मुखपाक की इंटिग्रेटेड वेलनेस थैरिपी

मुखपाक की इंटिग्रेटेड वेलनेस थैरिपी

डॉ. नागेन्द्रनीरजनिर्देशक चिकित्सा प्रभारी

योग-प्राकृतिक-पंचकर्म चिकित्सा एवं अनुसंधान केन्द्र

योग-ग्राम, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार

लक्षण:
सारे मुँह में सूजन, खुश्की, होठों पर सूजन, होठ बाहर लटके हुए, साँस में दुर्गन्ध, लार रस का अधिक स्राव, जुकाम, जीभ, गाल, होठ, मसूड़ों पर छाले, मसूड़े के संक्रमण से तीव्र वेदना, ज्वर, निर्बलता, अजीर्ण, अपचन आदि लक्षण दिखते हैं।
कारण:
पारा, संखिया, विस्मुथ, फीनोबारबिटोन, फ़ॉस्फोरस वाली दवाओं के सेवन, दाँतो में संक्रमण, अधिक धूम्रपान, बच्चों को दूध पिलाने वाली बोतल या माँ के चूचक का दूषित एवं संक्रमित होना, क्षय रोग, प्रतिरोधक क्षमता की कमी, स्कर्वी, परप्युरा, संग्रहणी, परनीशस रक्तहीनता की कैल्शियम का गलत चयापचय, विटामिन-बी तथा सी की कमी के कारण मुख पाक होते हैं।
उपचार:
प्राय: मुख पाक का ढंग से उपचार करने पर ठीक हो जाते हैं। खसरे का विशेष ज्वर से आक्रांत जिसे कैंक्रम ओरिस जन्य गैन्ग्रेनस मुख पाक कहते हैं, इसका सही उपचार नहीं होने पर अस्सी प्रतिशत आक्रांत लोगों की मृत्यु हो जाती है। इस रोग में दाँतों की सफाई पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। ओरल तथा पैराओरल इसमें मुख तथा आस-पास होठ आदि के नरम तथा सख्त उत्तकों का विनाश शुरू हो जाता है।
सर्वप्रथम इसमें मसूड़े लाल, क्षतिग्रस्त, दूसरी स्थिति में गालों में सूजन तथ तीसरी स्थिति में ठुड्डी के अन्दर गेंग्रीन वाले चकते हो जाते हैं। इस रोग के प्रारम्भ होते ही नीबू पानी, शहद या संतरे के रस में पानी मिलाकर उपवास कराना चाहिए। पेट का गरम-ठण्डा सेक देकर मिट्टी की पट्टी दें। पेट की हल्की मालिश करके नीम के पानी का एनीमा दें। स्थानीय उपचार में नीम के पत्ते या अमरूद के पत्ते उबालें। पानी अथवा मेथी को पानी में उबालकर उसमें 3-4 बूँद लहसुन का रस तथा हल्दी 2 ग्राम मिलकर (काढ़े) से गरारा करने, जलन वाले पित्तजन्य में दूध, गन्ने का रस, द्राक्षा के क्वाथ से, जूही या चमेली के क्वाथ में शहद मिलाकर, श्वेत रंग एवं भारीपन वाले कफज मुखपाक में मौलसरी की छाल के क्वाथ में एक ग्राम फिटकरी मिलाकर गरारा करें। लौंग का तेल लगायें। चमेली के पत्ते चबायें।
जीभ पर छाले:
जीवाणुजन्य मुखपाक में जीभ पर सफेद झिल्ली वाले चकत्ते पाये जाते हैं। यह एक विशेष प्रकार के फंगस कण्डिडा एलबीकेन्स के कारण होते हैं। इसे ओरल कण्डिडायसिसथ्रसभी कहते हैं। सर्वप्रथम जीभ तथा गालों से प्रारम्भ होकर सारे मुँह में फैल जाते हैं। बोतल तथा चूचक की अस्वच्छता के कारण दूध पीने वालों बच्चों में ज्यादा होता है, किन्तु यह रोग बड़ों में भी हो सकता है। फटी-फटी जीभ पर दरारे तथा होठों पर लाल पपड़ी जिसे एन्गुलर चीलाइटिस कहते है। थ्रस फंगल यीस्ट मुँह के साथ गला, जीभ तथा गालों के अन्दर सफेद चकते जो बार-बार जलन और दर्द पैदा करते हैं। इसका बहुत बड़ा कारण विटामिन-बी कॉम्पलेक्स, बी-6, बी-1, बी-2 की कमी की वजह भी होता है। किडनी रोग, अनियंत्रित डाइबिटीज, तम्बाकू उत्पाद का सेवन, लम्बा ज्वर, वायरल बीमारी, बढ़ती उम्र, ओरल और पैराओरल हाइजिन का अभाव तथा कीमोथैरिपि के कारण जीभ फटने की समस्या हो सकती है।
प्राकृतिक चिकित्सा:
मुखपाक में बताये गये काढ़े या क्वाथ से गरारा करें। दो दिन संतरे के रस पर रखें। नीम के पानी का एनीमा दें। चमेली के पत्तों को चबायें। मुँह तथा जीभ के छाले दूर हो जाते हैं। मुँह के छाले में 3 घंटे के अंतर से छाछ से गरारा करें। 150 ग्राम बबूल की छाल आधे लीटर पानी में उबाले। 100 ग्राम पानी रह जाने पर गरारा करें। मुँह तथा जीभ के छाले दूर हो जाते हैं। एक गिलास में गरम पानी तथा दूसरे गिलास में ठण्डा पानी रखें। एक बार गरम पानी से गरारे, दूसरी बार ठण्डे पानी से क्रम से 10-15 बार करें। अति विशुद्ध मिट्टी का मंजन दिन में दो-तीन बार करें। दातुन भी नीम का करें। टूथ ब्रश की सफाई का ध्यान रखें। दाँतों की स्वच्छता का ध्यान रखना अधिक आवश्यक है।
मुँह तथा जीभ के छाले या मुख पाक एक ऐसा लक्षण है जो सूचित करता है कि सारा शरीर दूषित पदार्थ से भरा हुआ है। मुँह या जीभ की स्थानीय चिकित्सा के साथ सारे शरीर का उपचार करें। मुख पाक तथा छाले कम होते हैं। वाष्प स्नान, गरम पादस्नान, गीली चादर लपेट, सर्वांग मिट्टी का लेप, वायु स्नान, धूप स्नान, आकाश (उपवास), प्राणायाम, ध्यान, योगासन से सारे शरीर के विकार निकालने के साथ समस्त अंगों की जीवनी शक्ति बढ़ानी चाहिए ताकि दुबारा रोग पैदा नहीं हो। प्राकृतिक चिकित्सा में रोग का नहीं रोगी का इलाज होता है। रोगी के इलाज में उसकी समस्त गलत आदतों को दूर किया जाता है। तन तथा मन के समस्त विकारों को निकाल बाहर किया जाता है। यही कारण है कि प्राकृतिक चिकित्सा में प्रत्येक रोग जड़-मूल से जाता है।
आहार चिकित्सा:
अनाजों में ऐसे आहार लेने चाहिए जिसमें लाइसिन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो। लाइसिन प्रोटीन की कमी से ही मुँह के अन्दर-बाहर, नाक तथा ओठ के दोनों किनारों पर घाव, फोड़े-फुंसी, हर्पिस सिम्पलेक्स होते है, जिसे माउथ कोल्ड सोर कहते हैं। लाइसिन अनाजों में ही नहीं अपितु सभी प्रकार के दालों में होता है। अनाजों में मेथियोलिन प्रोटीन होता है। मेथियोलिन की कमी से लिवर, मांस-पेशियों तथा घाव भरने एवं हीलिंग क्रिया में बाधा पहुँचती है। यही कारण है भारतीय परम्परा में दाल रोटी, दाल-भात, खिचड़ी खाने की परम्परा रही है ताकि ये आहार एक दूसरे के पूरक होते थे। अनाजों में कार्बोहाइड्रेट तथा दालों में प्रोटीन की बहुलता होती है साथ ही इन दोनों में नॉन-स्टार्च पॉली सैकराइड्स, अल्फा एमाइलेस इन्हवीटर ओलिगोसैकराइड्स, पालीसैकराइड्स टर्पेन -5 स्टीरायड प्रोटीन, गैलेक्टोमैनेस, फिनॉल्स, एण्टीऑक्सीडेन्ट सपोनिन्स, फायटो स्ट्रोजेन्स, एक्सोजेनस ओपीओइड्स ग्लूटेन एक्सोर्फिन्स ग्लूटियो मॉर्फिन, ग्लियडिन एक्सोर्फिन्स ग्लियडोर्फिन पाये जाते हैं। अनाजों को अंकुरित करके खायें, उसमें उपर्युक्त सभी तत्त्व मिल जाते हैं। अंकुरित अन्न को खाने से दिक्कत होती है तो उस हल्का उबाल कर सलाद, चाट बनाकर खाये या अंकुरित अनाज को बारीक पीसकर दो-तीन घंटे दही में मिलाकर रख दें। पुन: उनका खम्मन, ढ़ोकला, चिला, अप्पे, इडली आदि बनाकर खायें।
सब्जियों में गाजर, चुकन्दर, पालक, टमाटर, लौकी, खीरा, धनिया, ब्रोकली, पुदीना आदि का रस बनाकर पीयें। फलों में मौसमानुसार खायें। सभी फल दिव्य औषधी हैं। इन आहारों में मौजूद विटामिन बी-1, बी-2, बी-6, बी-9, सी सभी मिल जाते हैं। अनार, आँवला, नीबू, संतरा, मौसम्मी, चकोतरा, स्ट्रॉबेरी, चेरीज तथा सभी प्रकार के बेरीज, सेव, पाइन एप्पल, रोजएप्पल, एवोकोडो आदि फलों का प्रयोग करें।
 आयुर्वेद जड़ी बूटी चिकित्सा:
1.   दिव्य अविपत्तिकर चूर्ण 100 ग्राम दिव्य आमलकी रसायन 100 ग्राम मिलाकर 3/4 चौथाई चम्मच खाने के एक घंटा पूर्व जल या तक्र से लें।
2.   चमेली या अमरूद के 5-7 पत्ते लेकर धीरे-धीरे चबायें। कुछ देर के बाद थूक दे लाभ होता है।
3.   खदिरादि वटी 1-2 बार मुँह में रख कर चूसें। पतंजलि न्यूट्रेला डेली एनर्जी 2-2 कैप्सूल सुबह-शाम गुन-गुने पानी से लें।

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