क्या है अस्थमा ?
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स्वामी समग्रदेव
पतंजलि संन्यासाश्रम, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार
अस्थमा (दमा) फेफड़ों की एक बीमारी है जो श्वसन मार्गों (श्वासनलियों/Bronchial tubes) को प्रभावित करती है जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन आ जाती है जिस कारण श्वसन मार्ग संकुचित हो जाता है। श्वसन नली में सिकुडऩ के चलते रोगी को सांस लेने में परेशानी, सांस लेते समय आवाज आना, सीने में जकडऩ, खांसी आदि समस्याएं होने लगती हैं। लक्षणों के आधार अस्थमा के दो प्रकार होते हैं- बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा बाहरी एलर्जन के प्रति एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है, जो कि पराग, जानवरों, धूल जैसे बाहरी एलर्जिक चीजों के कारण होता है। आंतरिक अस्थमा कुछ रासायनिक तत्वों को श्वसन द्वारा शरीर में प्रवेश होने से होता है जैसे कि सिगरेट का धुआं, पेंट वेपर्स, डस्ट माइट (धूल में उपस्थित कण) आदि।
दमा ऐसा रोग है जो बच्चों से लेकर बुजुर्ग किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता है और ये बच्चों में तेजी से होता है। बढ़ते प्रदूषण और अनेक कारणों से दमा पूरी दुनिया में तेजी से फैलता जा रहा है। भारत में ही लगभग तीन करोड़ लोग दमा से ग्रस्त हैं, जो कि विश्व का 10 प्रतिशत है।
योग, आयुर्वेदिक औषधियों व अन्य उपचारों से इसके लक्षणों को गम्भीर होने से रोका जा सकता है और रोग को पूर्णत: निर्मूल किया जा सकता है। यदि इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाये तो अस्थमा घातक हो सकता है। आइए जानते हैं, अस्थमा कैसे फैलता है, अस्थमा किसकी कमी से होता है, इसके लक्षण, कारण और उपचार इत्यादि।
अस्थमा कैसे होता है?
जब भी आप सांस लेते हैं तो वायु आपके नासिका या मुख द्वारा गले से वायुमार्ग से होते हुए फेफड़ों तक पहुंचती है। आपके फेफड़ों में कई छोटे-छोटे वायुमार्ग होते हैं, जो हवा से ऑक्सीजन को छानकर आपके ब्लड में पहुंचाते हैं। किन्तु जब वायुमार्ग की परत में सूजन आ जाती है और मांसपेशियों में तनाव होता है, तो अस्थमा के संकेत आपको मिलने लगते हैं। फिर वायुमार्ग में बलगम भर जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है, जिसके कारण छाती में जकडऩ और खांसी जैसी स्थिति होती है। इसे अस्थमा या दमा भी कहते हैं।
अस्थमा एक गम्भीर समस्या है जिससे कई लोग परेशान हैं। यह सांस से जुड़ी एक बीमारी है जो किसी को भी अपनी चपेट में ले सकती है। बच्चों और बुजुर्गों को अधिकतर दमा की समस्या होती है।
सांस की नलियों में जलन, सिकुडऩ या सूजन की स्थिति और उनमें ज्यादा बलगम बनना, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है।
दमा मामूली हो सकता है या इसके होने पर रोजमर्रा के काम करने में समस्या आ सकती है। कुछ मामलों में, इसकी वजह से जानलेवा दौरा भी पड़ सकता है।
अस्थमा अटैक रात में अधिकतर होता है। दमा या अस्थमा की खांसी रात में परेशान करने वाली होती है। रात में अस्थमा या दमा के अटैक से बचाव के उपाय जरूरी हैं। घर के अंदर का तापमान और वायु प्रदूषण के साथ कमरे की धूल पर अगर ध्यान रखा जाए तो रात में अस्थमा के अटैक से बच सकते हैं।
अस्थमा के प्रमुख कारक
ऐसे कई कारक हैं, जो अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा देते हैं इनमें प्रमुख रूप से धूम्रपान, तम्बाकू, धूल, मिट्टी, सूक्ष्म कीट, पराग, खांसी-जुकाम और श्वसन मार्गों में संक्रमण आदि शामिल हैं।
ठंडी हवा, मौसम में बदलाव, वायरल संक्रमण, घास और पेड़ के पराग, जानवरों के फर और पंख, वायु प्रदूषक जैसे (धूल, धुआं) तेज महक वाले साबुन और इत्र गैस्ट्रो इसोफेगल रिफ्लक्स रोग (GERD), बीटा ब्लॉकर्स, एस्पिरिन और नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स सहित कुछ दवाएं अस्थमा को बढा देती हैं।
अस्थमा के लक्षण
अस्थमा के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। लेकिन अस्थमा के कुछ प्रमुख लक्षणों की बात करें, तो इसके कुछ मुख्य लक्षण निम्नलिखत हैं -
अस्थमा के समय सर्वाधिक महसूस होने वाला लक्षण सांस लेने पर घरघराहट है, जो कर्कश सी या सीटी की तरह आवाज होती है। ये लक्षण कभी-कभी ज्यादा गंभीर हो जाते हैं।
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सांस लेने में कठिनाई, जो दौरों के रूप में तकलीफ देती है।
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बार-बार जुकाम और खांसी होना।
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धूल और धुएं से एलर्जी।
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सांस लेने में तकलीफ।
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तेज़ खांसी का आना, रात में गम्भीर हो जाती है।
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छाती में जकडऩ, सीने में दर्द जलन।
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हर वक्त थकावट महसूस होना।
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बलगम वाली खांसी या सूखी खांसी।
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रात में या सुबह के समय स्थिति और गंभीर हो जाना।
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ठण्डी हवा में सांस लेने से हालत गम्भीर होना।
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जोर-जोर से सांस लेना, जिस कारण से थकान महसूस होना।
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गम्भीर स्थिति में कई बार उल्टी की सम्भावना भी होती है।
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बलगम वाली खांसी या सूखी खांसी।
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एक्सरसाइज के दौरान ज्यादा हालत गम्भीर होना।
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बार-बार इंफेक्शन होना।
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हंसते समय खांसी का बढऩा।
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नींद में बेचैनी या परेशानी।
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कई बार पीडि़त व्यक्ति को अस्थमा का खतरनाक दौरा भी पड़ सकता है।
साथ ही यह भी आपको बता दें कि आपको किस प्रकार के लक्षण होंगे, यह अस्थमा के प्रकार पर निर्भर करता है।
याद रखें, इन लक्षणों की उपेक्षा न करें, अस्थमा का टेस्ट जिसे पल्मोनरी फंक्शन कहते हैं, जरूर करवाएं।
अस्थमा के प्रकार
अस्थमा के कारण और लक्षणों के आधार पर, इसे दो भागों में बाँटा गया है।
इंटरमिटेंट अस्थमा - इस प्रकार का अस्थमा रुक-रुक कर आता है, यानी आता है और चला जाता है। इस तरह के अस्थमा में आप बीच-बीच में सामान्य भी महसूस कर सकते हैं।
लगातार अस्थमा - इस तरह के अस्थमा में आपको ज्यादातर समय लक्षण दिखाई देते हैं। आपको महसूस होने वाले लक्षण हल्के, मध्यम या गंभीर भी हो सकते हैं।
अस्थमा के प्रमुख कारण
आज के समय में अस्थमा का सबसे बड़ा कारण है प्रदूषण। कल-कारखानों, वाहनों से निकलने वाले धूएं अस्थमा का कारण बन रहे हैं। सर्दी, फ्लू, धूम्रपान, मौसम में बदलाव के कारण भी लोग अस्थमा से ग्रसित हो रहे हैं।
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कुछ ऐसे एलर्जी वाले फूड्स हैं जिनकी वजह से सांस संबंधी बीमारियां होती हैं।
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पेट में अम्ल की मात्रा अधिक होने से भी अस्थमा हो सकता है।
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तनाव stress से भी फेफड़े कमजोर होने से अस्थमा होता है।
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इसके अलावा एलोपैथिक दवाईयां, शराब का सेवन और कई बार भावनात्मक तनाव भी अस्थमा का कारण बनते हैं।
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कुछ लोगों में यह समस्या आनुवांशिक होती है।
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वायरल संक्रमण का इतिहास।
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रेस्पिरेटरी इंफेक्शन जैसी स्वास्थ्य स्थितियां।
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पारिवारिक इतिहास, एलर्जी जैसे एक्जिमा और राइनाइटिस, कई जीवन शैली कारक, धूम्रपान, वायु प्रदूषण, वायरल, श्वसन संंक्रमण, पर्यावरणीय एलर्जी, व्यावसायिक जोखिम तथा अधिक वजन आदि।
निदान-अस्थमा का परीक्षण
अस्थमा में खासतौर से फेफड़ों की जांच की जाती है, जिसके अंतर्गत स्पायरोमेट्री, पीक फ्लो और फेफड़ों के कार्य का परीक्षण शामिल हैं। इन जांचों को अलग-अलग स्थितियों में किया जाता है। अस्थमा के निदान के लिए इसके अतिरिक्त भी कई टेस्ट किए जाते हैं, जैसे- मेथाकोलिन चैलेंज, नाइट्रिक ऑक्साइड टेस्ट, इमेजिंग टेस्ट, एलर्जी टेस्टिंग, स्प्यूटम ईयोसिनोफिल्स टेस्ट के अलावा व्यायाम और अस्थमा युक्त जुकाम के लिए प्रोवोकेटिव टेस्ट किया जाता है।
अस्थमा के निदान में मदद के लिए उपयोग किए जाने वाले मुख्य परीक्षण हैं- FeNO परीक्षण—इसमें आप एक ऐसी मशीन से सांस लेते हैं जो आपकी सांस में नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को मापती है, जो आपके फेफड़ों में सूजन का संकेत है।
Spirometry—इसमें आप एक ऐसी मशीन में फूंक मारते हैं जो मापती है कि आप कितनी तेजी से सांस छोड़ सकते हैं और कितनी हवा अपने फेफड़ों में रख सकते हैं। स्पिरोमेट्री पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट में सबसे आम है। यह फेफड़ों के कार्य, विशेष रूप से हवा की मात्रा और गति को मापता है जिसे अंदर और बाहर निकाला जा सकता है। स्पिरोमेट्री श्वास पैटर्न का आँकलन करने में सहायक है जो अस्थमा, फुफ्फुसीय फाइब्रोसिस, सिस्टिक फाइब्रोसिस और COPD जैसी स्थितियों की पहचान करता है।
अस्थमा में क्या परहेज करना चाहिए?
अस्थमा में इलाज के साथ बचाव की आवश्यकता अधिक होती है। अस्थमा के मरीजों को बारिश, सर्दी, धूल भरी आंधी से बचना चाहिए। बारिश में नमी के बढऩे से संक्रमण की संभावना अधिक होती है। इसलिए खुद को इन चीजों से बचा कर रखें। धूल व मिट्टी से सुरक्षित रखने के लिए नाक को ढक कर रखें। घर से बाहर निकलने पर मास्क साथ रखें। यह प्रदूषण से बचने में मदद करेगा।
सर्दी के मौसम में धुंध में जानें से बचें। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों से दूर रहें। घर को डस्ट फ्री बनाएं। ज्यादा गर्म और ज्यादा नम वातावरण से बचना चाहिए, क्योंकि इस तरह के वातावरण में मोल्ड स्पोर्स के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। धूल मिट्टी और प्रदूषण से बचें। एलर्जी वाली जगह और चीजों से दूर रहें। हो सके तो हमेशा गर्म या गुनगुने पानी का सेवन करें, ठण्डे पानी से परहेज़ करें।
अस्थमा के मरीजों का खानपान भी बेहतर होना चाहिए। अस्थमा के रोगियों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा वाली चीजों का सेवन कम से कम करना चाहिए। कोल्ड ड्रिंक, ठंडा पानी और ठंडी प्रकृति वाले आहारों का सेवन नहीं करना चाहिए। अंडे, मछली और मांस जैसी चीजें अस्थमा में हानिकारक होती है।
अस्थमा के मरीजों को आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए। पालक और गाजर का रस अस्थमा में काफी फायदेमंद होता है। विटामिन ए, सी और ई युक्त खाद्य पदार्थ अस्थमा मरीजों के लिए लाभकारी होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट युक्त फूड के सेवन से रक्त में आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। आहार में लहसुन, अदरक, हल्दी और काली मिर्च को जरूर शामिल करें, यह अस्थमा से लडऩे में मदद करते हैं।
यदि आप अस्थमा से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो इसके लिए अपनी जीवनशैली को सुधारें। अगर आप दमा ( A s t h m a ) के रोगी हैं, तो किसी भी तरह का नशा करने बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए नशा खतरनाक हो सकता है। मौसम में बदलाव अस्थमा के मरीज के लिए ट्रिगर का काम कर सकता है। ऐसे में बदलते मौसम खासतौर पर सर्दी में अपना खास ख्याल रखें। यदि आप अस्थमा के मरीज हैं और आपको कोई एलर्जी है, तो डॉक्टर से इसका इलाज जरूर करवाएं। यदि आपको अस्थमा की बीमारी है, तो ज़्यादा सोने से बचें। क्योंकि ज्यादा सोने से आपकी समस्या बढ़ सकती हैं। अस्थमा से पीडि़त व्यक्ति को अपनी डाइट का भी खास ख्याल रखना चाहिए। ऐसे में कोशिश करें कि आप ऐसे आहार का सेवन करें, जो आसानी से पच जाए। अगर आप अस्थमा के मरीज है, तो रात में जल्दी खाना खाने की आदत डालें।
अस्थमा के मरीज अगर खाने-पीने की चीजों में परहेज न करें तो रोग और अधिक बढ़ जाता है। मरीजों को निम्नलिखित चीजें खाने से परहेज करना चाहिए—
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पैकेट बंद फूड
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अल्कोहल और अचार
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मूंगफली
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दूध दही
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ठंडी चीज जैसे कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, ठण्डा पानी, इत्यादि।
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ज्यादा तली हुई चीजें।
एलोपैथी में कोई इलाज नहीं
एलोपैथी में अस्थमा का कोई इलाज नहीं है, उपचार के नाम पर लक्षणों पर नियन्त्रण (Control But No Cure) करते हैं जिसमें ब्रोंकोडाइलेटर (Bronchodilators) शामिल हैं, आमतौर पर लक्षणों से बचाव करने वाले इनहेलर यानी रेस्क्यू इनहेलर (साल्ब्युटामॉल) और लक्षणों को दबाने वाले नियन्त्रक इनहेलर यानी कंट्रोलर इनहेलर (स्टेरॉइड) से दमा को काबू करते हैं। गम्भीर मामलों में श्वासनली को खुला रखने वाले इनहेलर (फ़ॉर्मोटेरॉल, साल्मेटेरॉल, टियोट्रोपियम) के साथ ही सांस के साथ लिए जाने वाले स्टेरॉइड दिए जाते हैं जिनके दुष्परिणाम अवश्यम्भावी हैं।
अस्थमा से निपटने के लिए आमतौर पर इन्हेल्ड स्टेरॉयड (नाक के माध्यम से दी जाने वाली दवा) और अन्य एंटी इंफ्लामेटरी दवाएं अस्थमा के लिए जरूरी मानी जाती हैं। इसके अलावा ब्रोंकॉडायलेटर्स (Bronchodilators) वायुमार्ग के चारों तरफ कसी हुई मांसपेशियों को आराम देकर अस्थमा से राहत दिलाते हैं। इसके अलावा अस्थमा इन्हेलर का भी इलाज के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके माध्यम से फेफड़ों में दवाईयां पहुंचाने का काम किया जाता है। अस्थमा नेब्यूलाइजर का भी प्रयोग उपचार में किया जाता है। अस्थमा का गंभीर अटैक होने पर डॉक्टर अक्सर ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स का एक छोटा कोर्स लिए लिख सकते हैं, मगर इसे एक महीने से ज्यादा प्रयोग करने से इसके दुष्प्रभाव अधिक गम्भीर और स्थायी भी हो सकते हैं।
आयुर्वेदिक औषधि से उपचार
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दिव्य ब्रोंकोम वटी
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दिव्य करक्यूमिन वटी
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श्वासारि गोल्ड
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दिव्य गिलोय घनवटी,
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दिव्य संजीवनी वटी,
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दिव्य लक्ष्मीविलास रस,
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दिव्य श्वासारि घनवटी,
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दिव्य श्वासारि क्वाथ (काढ़ा),
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दिव्य पञ्चकोल क्वाथ,
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दिव्य श्वासारि प्रवाही,
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दिव्य दिव्यकण्ठामृत,
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दिव्य खदिरादि वटी,
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दिव्य लवंगादि वटी
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दिव्य च्यवनप्राश इत्यादि।
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नास्यम : अणु तैलम और जो तिस्मती तैलम्
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शिला तुलसी 2-2 बूद गरम पानी में दें।
सितोपलादि चूर्ण 20 gm, त्रिकटु चूर्ण 20 gm, स्वर्णवसंतमालती 5 gm, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी 10gm, श्वसारी भस्म 10gm Mix all
(Critical रोगियों में Swasari Gold के साथ निम्नोक्त योग 1/2 - 1/2 चम्मच सुबह शाम खाली पेट शहद से देवें।)
श्वासारि + त्रिकटु चूर्ण + गोदन्ती + सितोपलादि + प्रवाल पिष्टी + स्वर्णवसन्त मालती मिलाकर शहद के साथ सेवन करें।
विशेष- रोगी की उम्र, मेडिकल हिस्ट्री, स्थिति की गंभीरता और प्रकार जानने के बाद ही उचित उपचार का फैसला किया जाता है।
अस्थमा के उपचार हेतु घरेलू नुस्खे
अस्थमा के लिए कई तरह के घरेलू इलाज है, जो आपके अस्थमा को रोकने में मदद कर सकते हैं। उनमें कुछ प्रभावी उपाय निम्नलिखित हैं-
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लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे की आरम्भिक अवस्था में बहुत लाभ होता है।
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अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सुबह और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
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अदरक को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर, पांच मिनट तक उबालें। उसके बाद पानी को छानकर ठंडा होने के बाद पी लें।
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दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है।
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4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
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180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, काली मिर्च और नीम्बू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
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एक चम्मच अदरक का ताजा रस, एक कप मेथी का काढ़ा और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है। मेथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सुबह-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।
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तीन अंजीर को रात के समय पानी में भीगो दें। आप इसका सेवन सुबह में कर सकते हैं।
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सरसों तेल में थोड़ा सा कपूर डाल कर गर्म कर लें। उसके बाद ठंडा होने पर छाती की अच्छे से मालिश करें। सौंठ और हल्दी दूध में मिलाकर पिएं, केवल दूध अस्थमा में हानिकारक है।
प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार- प्राकृतिक चिकित्सा
1. OGGT COMPRESS WITH CHEST LAPET
2. ASTHMA BATH
3. DIVYA DHARA + PATANJALI BALM CHEST PACK
4. HOT FOOT BATH
5. FACIAL STEAM WITH MUSTERD OIL NASYA
6. AMROOD KE PATTE KE GARARE
7. KUNJAL ,RUBBER NETI , JAL NETI
8. SUN BATH
रोगी की स्थिति के अनुसार एनीमा ,पेट का गर्म ठंडा सेक, लपेट, गरम पाद स्नान, वाष्प स्नान, गरम ठंडा कटी स्नान, अस्थमा स्नान, छाती की प्याज-लहसून, अदरक, हल्दी को कूटकर इनका पेस्ट छाती और पीठ पर लगाएं तथा लगे हुए पेस्ट को कपड़े की पोटली में बांधकर गरम पानी वाले बर्तन में निचोडक़र रखें और उस पानी से गरम सेंक 3 मिनट और दूसरे तौलिये से ठंडा सेंक 1/2 मिनट कम से कम 4 बार करें, पुन: छाती और पीठ को स्थानीय भाप देकर लपेट बांध देवें, इसके अतिरिक्त सूर्य स्नान, अज्जों की भाप चेहरे की दे सकते हैं और अमरुद के पत्ते के गरारे करने चाहिए।
आहार कल्प DIET THERAPY
अस्थमा में पथ्य आहार
मुख्य आहार - द्राछ /खजूर /लौकी कल्प वैकल्पिक आहार - पुष्टाहार दलिया /भुने चने /गुडफ़ल- भुना सेव, भुना अमरुद, अनार + काली मिर्च + सैंधव, पपीता
शाक- ऋतु आहार उबली शाक
औषधियुक्त जल - दिव्य पेय
अस्थमा में अपथ्य आहार -
पका केला, आम, कदली का फूल, दही - दूध से बनी वस्तुएं, नारियल जल, तुम्बी, दूधी, नयी इमली, खट्टे बेर, करौंदा, कच्चा अमरुद, आँवला, चिरौंजी, तिल का तेल, सिंघाड़ा, छोटी इलाइची, प्याज, नारियल, गेहूं इत्यादि।
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