भारतीय सांस्कृतिक विरासत समृद्ध छवि
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डॉ. रीना अग्रवाल (हिंदी वैज्ञानिक-बी)
पतंजलि हर्बल अनुसंधान हरिद्वार, उत्तराखंड
भारतीय संस्कृति अथवा ‘देव संस्कृति’को विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी माना गया है। संस्कृति का शब्दार्थ उत्तम या सुधरी हुई स्थिति से है। संस्कृति मनुष्य द्वारा सीखा गया वह व्यवहार है जिसे वह एक समाजिक प्राणी होने के नाते प्राप्त करता है। इसमें जटिल समग्रताज्ञान, कला, विश्वास, नैतिकता, रीति-रिवाज, कानून और समाज के सदस्य के रूप में अर्जित की गई अन्य आदतें समाहित है। मनुष्य की अमूल्य निधि उसकी संस्कृति है, संस्कृति एक ऐसा पर्यावरण है जिसके सानिध्य में रहकर वह सामाजिक प्राणी बनता है और प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता अर्जित करता है। संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का पता चलता है जिनके आधार पर वह आदर्शों एवं जीवन-मूल्यों का निर्धारण करता है। संस्कृति का साधारण अर्थ परिवार, शुद्धि, संस्कार, सुधार, सौंदर्य आदि होता है, भारतीय संस्कृति विभिन्न विशेषताओं से परिपूर्ण हैं।
प्राचीनतम्
भारत में पुरापाषण काल से भीम बैटका में बने हुए चित्र इस संस्कृति की प्राचीनता को प्रदर्शित करते हैं। इसी तरह विश्व के प्राचीनतम् साहित्य की रचना वेदों के रूप में भारत से जुड़ी हुई है। वेद भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान के मूलस्त्रोत हैं, आर्यों का सर्वस्व है, विशेष रूप से भारतीय सभ्यता और संस्कृति के इतिहास में वेदों का स्थान गौरवपूर्ण है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी समृद्ध सभ्यताओं में से एक है जिसमें विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। भारतीय संस्कृति सदा से बहुआयामी एवं कर्म प्रधान रही है जो महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली, इसकी स्वयं की प्राचीन विरासत शामिल हैं। मानव इतिहास में सभ्यता का सर्वप्रथम उदय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में प्राचीन मेसोपोटेमिया में हुआ था।
भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है और हजारों वर्षों के बाद आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवंत है। मिस्र, मेसोपोटामिया, सीरिया और रोम की संस्कृतियाँ अपने मूल स्वरूप को विस्मृत कर चुकी हैं। शताब्दियोंसे भारत में सूर्य, चंद्र-तारे, नदियों, वृक्षों एवं अन्य देवी-देवताओं की उपासना का चला आ रहा विधान आज भी है। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से यह मिस्र और मेसोपोटेमिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं के समकालीन समझी जाने लगी हैं।
भौतिक संस्कृति और अभौतिक संस्कृति
भारत में संस्कृति की शुरुआत 2500 ईसा पूर्व में हड़प्पा संस्कृति के साथ हुई मानी जाती है, जब आर्यों का आगमन हुआ था। अनेक सामाजिक समूहों एवं समुदायों के सांस्कृतिक चिह्न जैसे- भाषा, पंथ, धर्म, जाति या प्रजाति द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में आश्रम-व्यवस्था के साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चार पुरुषार्थों का विशिष्ट स्थान है। इन्होंने ही भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता के साथ भौतिकता का एक अदभुत समन्वय स्थापित किया। मितव्ययता भारतीय संस्कृति का प्रमुख आदर्श है जो सुखी और स्वस्थ जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
विभिन्न प्रकार की संस्कृतियाँ भौतिक संस्कृति और अभौतिक संस्कृति में विभाजित हैं जहाँ भौतिक संस्कृति में कला, वास्तुकला और प्रौद्योगिकीया भौतिक वस्तुएँ हैं वहीं अभौतिक संस्कृति में दर्शन, पौराणिक कथाएँ, साहित्य, मूल्य-विश्वास और आध्यात्मिक प्रथाओं का समावेश है। पवित्र मंदिरों के पुनरुद्धार, पुनस्र्थापन और नवीनीकरण के माध्यम से भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार राष्ट्र की शक्ति और पहचान को आकार देने में सर्वोपरि है। समाज की सांस्कृतिक विरासत आदर्शों, मूल्यों, परंपराओं और साझा अनुभवों की परिणति हैजो एकता और उद्देश्य भावनाओं में वृद्धि करती है।
भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थों का समावेश
भारतीय संस्कृति का प्रधान गुण भौतिक और आध्यात्मिक तत्त्वों को साथ-साथ लेकर चलना है। प्राचीन काल में मनुष्य के चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष तथा चार आश्रम- ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम इसी भौतिक एवं अध्यात्मिक पक्ष को प्रमाणित करते हैं। भारतीय संस्कृति का केंद्र हिंदू धर्म है जो केवल एक धर्म नहीं बल्कि एक व्यापक जीवन शैली है। भारतीय संस्कृति का लोकाचार हिंदू धर्म के सिद्धांतों और इसके सह-अस्तित्व और ‘वसुधैव कुटुंबकम’के मूल दर्शन के साथ जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म ने वह आधार प्रदान किया है जिस पर समय के साथ विभिन्न उप-संस्कृतियाँ उभरीं और विकसित हुईं, जिन्होंने भारतीय सांस्कृतिक विरासत की समृद्ध छवि में योगदान दिया।
भारतीय संस्कृति को आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिनका उद्देश्य इसके सांस्कृतिक ताने-बाने को समाप्त करना है। इस्लामी आक्रमणकारियों ने मंदिरों को निशाना बनाया जो न केवल पूजा-स्थल थे बल्कि शिक्षा, कला, नृत्य-संगीत और संस्कृति के भी अद्भुत केंद्र थे। इन चुनौतियों के बावजूदभारत का सांस्कृतिक लचीलापन समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
बहुरंगी विविधता में अनेकता
भारतीय कला, खानपान, रहन-सहन, वेशभूषा, धर्म, साहित्य, शिक्षा, सांस्कृतिक विरासत की समृद्ध छवि का विश्व भर में प्रभाव है। इसे सांस्कृतिक विविधता की पृष्ठभूमि के रूप में जाना जाता है, विविधता का प्रभाव विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों पर है। इस कारण खानपान, पहनावा, विरासत एवं रीति-रिवाज़ों में विभिन्नता दिखाई देती है किंतु फिर भी भारत की सांस्कृतिक विशिष्टताएँ इस प्रकार घुल-मिल गई हैं कि उनके मूलस्वरूप को स्पष्ट रूप से पहचानना मुश्किल है। कहा भी गया है, ‘हम अपनी एकता के कारण शक्तिशाली हैं परंतु विविधता के कारण अत्यधिक शक्तिशाली हैं।’इसी प्रकार, नागरिकों के रूप में मानवजाति पर आश्रित हुए बिना न तो समाज और न ही संस्कृति का अस्तित्व रह सकता है, संस्कृति और सभ्यता में पारस्पारिक संबंध है।
सभ्यता संस्कृति की ऐतिहासिकता का बोध कराती है और अपने विशिष्ट लक्षणों जैसे- नगरों और नगरीकरण द्वारा, व्यावसायिक कौशलों द्वारा, स्मारकीय संरचनाओं जैसे- मंदिरों, भवनों एवं गुंबदों, वर्गों, वंशानुक्रम और लेखन के द्वारा पहचानी जाती है।
आध्यात्मिकता एवं भौतिकता में समन्वयता
किसी भी समूह के सदस्य अपनी संस्कृति के नियमों, मूल्यों-मान्यताओं को अपने जीवन का आदर्श मानकर जीवन में प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। वास्तव में, संस्कृति सामूहिक अनुभव से उद्भूत होती है और उन्हीं मूल्यों, मानकों और लक्ष्यों को स्थापित करती है जो पीढिय़ों से प्राप्त अनुभवों के परिणामस्वरूप विकसित होते हैं। वेद पूज्य हैं, सांसारिक आकर्षण मिथ्या हैं, धन, वैभव, यौवन का लोभ विनाश का कारण हैं। इनका उतना ही संग्रहण किया जाना चाहिए जो धर्म अनुकूल एवं जीवन के लिए आवश्यक है। स्त्री मातृत्व और शक्ति की प्रतीक हैं, उसका सम्मान करना चाहिए, गुरू का आदर करना चाहिए, इत्यादि जीवन के आदर्श हैं जिन्हें हम सदियों से जीवन में आत्मसात करने के लिए प्रयत्नशील रहे हैं।
संस्कृति के पुनरुत्थान में साझा सांस्कृतिक पुनरोद्धार पर बल दिया जाता है जो उत्पीडऩ एवं सांस्कृतिक प्रभुत्व के कारण नष्ट हो गए। इस पुनरुत्थान को प्राप्त करने के मुख्य तरीकों में पवित्र मंदिरों की पुनस्र्थापना और नवीनीकरण है जो भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीकात्मक भंडार रहे हैं। मंदिर स्थापत्य कला, शिक्षा, आध्यात्मिकता और संस्कृति के केंद्र रहे हैं जो भारत के समृद्ध इतिहास के सार का प्रतीक हैं। मध्ययुगीन काल में, भारतीय संस्कृति को आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किया गया था, बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और पुरी नामक चार धामों का अभिषेक किया था। भारत के चारों कोनों में देश की सांस्कृतिक एकता और अखंडता अंतर्निहित है।
पिछले वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सांस्कृतिक जागृति के फलस्वरूप इन मंदिरों को पुनर्जीवित एवं पुनस्र्थापित करने का ठोस प्रयास किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी जी की पहल भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुन: जीवंत करने की गहन प्रतिबद्धता को दर्शाती है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, उज्जैन में महाकाल और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, केदारनाथ सौंदर्यीकरण और ऐसी कई परियोजनाएँ जीवंत उदाहरण हैं जो सांस्कृतिक राष्ट्रवादी एवं गौरव के समग्र पुनरुत्थान का प्रतीक हैं।
सार्वभौमिकता
भारतीय संस्कृति का दृष्टिकोण वैश्विक रहा है, ‘वसुधैव कुटुंबकम’अर्थात संपूर्ण विश्व ही एक परिवार है, की अवधारणा में विश्वास करती है। इस प्रकार सहअस्तित्व की अवधारणा केवल भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं में ही नहीं अपितु उसके बाहर भी स्थापित है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ समय के प्रवाह के साथ नष्ट हो रही हैं किंतु भारतीय संस्कृति आदिकाल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ स्थिर बनी हुई है। संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है और मनुष्य की भोजन, यौन संतुष्टि जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के दो रूपों की संतुष्टि स्वतंत्र और मर्यादित रूप में करने की प्रेरणा देती है। प्रथम रूप घोर बर्बता का सूचक हैं जो अहिकारी है और दूसरा मर्यादित रूप संस्कृति का सूचक है जो पीढिय़ों के सामाजिक अनुभव, एक विवाह के फलस्वरूप विकसित हुआ है, जो समूह के हितों की बेहतर पूर्ति का श्रेष्ठ साधन है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा, 21 जून को योग दिवस घोषितयोग जो दुनिया को भारत द्वारा दिया गया उपहार है, दिसंबर 2014 में भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के एक प्रस्ताव के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया, 21 जून को योगदिवस घोषित होने के बाद संयुक्त राष्ट्र का अहम हिस्सा बन गया, यह इस बात का प्रमाण है कि प्रधानमंत्री मोदी भारतीय संस्कृति को विस्तार देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों का उपयोग कर रहे हैं जो कार्य स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में अपने भाषण से किया वही प्रधानमंत्री मोदी अपने प्रयासों के माध्यम से कर रहे हैं। उनके नेतृत्व में सांस्कृतिक कायाकल्प केवल धार्मिकता तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें व्यापक घोषणा शामिल है जो हिंदुओं के विविध सातत्य को प्रतिध्वनित करती है।संक्षेप में, भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार देश की समृद्ध विरासत को पुनर्जीवित करने का एक बहुआयामी प्रयास है। सांस्कृतिक पुनर्जागरण ने एक नए युग के लिए मंच तैयार किया है देशवासियों को फिर से अपनी जड़ों से जोड़ा जा रहा है। नि:संदेह, भारतीय संस्कृति प्रेम, उदारता, सर्वांगीणता, विशालताऔर सहिष्णुता की दृष्टि से अन्य संस्कृतियों की अपेक्षाअग्रणी है। |
निष्कर्षत: रूप में कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति अनेक विशेषताओं से सुसमृद्ध है जो आज भी संपूर्ण भारतीय समाज को उच्चतम मूल्यों और आदर्शों की चेतना प्रदान करती है। अंतत: भारतीय सभ्यता-संस्कृति के संपूर्ण पक्षों के परिज्ञान के लिए वेदों का अध्ययन-अध्यापन एवं चिंतन-मनन नितांत आवश्यक है। इस रूप में मानव, समाज एवं संस्कृति तीनों एक दूसरे पर आश्रित हैं। अत: इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि जहाँ एक ओर हमारा व्यवहार समाज से प्रभावित है वहीं संस्कृति के आदर्श मानव जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
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