स्वास्थ्य समाचार
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67% मरीज इलाज के लिए निजी अस्पतालों पर निर्भर
युवाओं में बढ़ा कैंसर का खतरा, 20 फीसदी मरीजों की आयु 40 से कम
देश के युवा कैंसर की गिरफ्त में हैं। यह खुलासा ऑन्कोलॉजिस्ट के एक समूह के शुरू किए एनजीओ कैंसर मुक्त भारत फाउंडेशन की रिपोर्ट में हुआ है। एनजीओ की कैंसर मरीजों के लिए चलाई जाने वाली हेल्पलाइन पर दूसरी राय लेने के लिए फोन करने वालों में 20 फीसदी कैंसर मरीज 40 साल की कम उम्र के है। यह साफ इशारा है कि युवाओं में कैंसर बढ़ रहा है।
कैंसर मुक्त भारत फाउंडेशन के मुताबिक, मरीजों के लिए निशुल्क दूसरी राय लेने के लिए हेल्पलाइन नंबर (93-555- 20202) शुरू किया गया। यह सोमवार से शनिवार तक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चालू रहता है। कैंसर मरीज प्रमुख ऑन्कोलॉजिस्ट से सीधे बात करने के लिए इन हेल्पलाइन नंबर पर कॉल कर सकते हैं या कैंसर के इलाज पर चर्चा करने के लिए वीडियो कॉल भी कर सकते हैं। इस हेल्प लाइन पर एक मार्च से 15 मई के बीच 1,368 कैंसर मरीजों की कॉल उन्हें आई थीं। एनजीओ के मुताबिक, सबसे ज्यादा कॉल हैदराबाद से थीं। इसके बाद मेरठ, मुंबई और नई दिल्ली का नंबर था। इनमें 40 साल से कम उम्र के कैंसर मरीजों में 60 फीसदी मरीज पुरुष थे।
सिर और गर्दन के कैंसर सबसे अधिक
अध्ययन में देखा गया कि सबसे अधिक सिर और गर्दन के कैंसर (26 फीसदी) के थे। इसके बाद गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर (16 फीसदी), स्तन कैंसर (15) फीसदी) और फिर रक्त कैंसर (9 फीसदी) थे। अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में 27 फीसदी मामलों में कैंसर का पता चरण 1 और 2 और 63 फीसदी में चरण 3 या 4 में पहुंचने पर पता चलता है। हेल्पलाइन पर कैंसर रोगियों आम सवाल अपने इलाज के सही, अपडेटेड, नवीनतम होने और दवाई को लेकर थे। वहीं, कई मरीज अपने कैंसर के चरण और रोकथाम के बारे में जानकारी लेते थे।
उपचार में मिलेगी मदद...
कैंसर मुक्त भारत अभियान का नेतृत्व करने वाले मुख्य अन्वेषक और वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. आशीष गुप्ता का कहना है कि हेल्पलाइन नंबर के लॉन्च के बाद से यह पूरे भारत में कैंसर मरीजों के लिए मददगार प्रणाली साबित हुई है। इस पर हर दिन लगभग सैकड़ों कॉल आती हैं। यह अध्ययन हमें इलाज के लिए अधिक लक्षित कैंसर दृष्टिकोण अपनाने और भारत को कैंसर मुक्त बनाने में मदद करता है। भारत जैसी बड़ी आबादी वाली देश में सही स्क्रीनिंग को कम अपनाने की वजह से लगभग दो तिहाई मामलों में कैंसर का देर से पता चलता है।
कैंसर मरीज निजी अस्पतालों के भरोसे
अध्ययन से पता चला कि 67 फीसदी कैंसर रोगी निजी अस्पतालों में तो 33 फीसदी सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे थे। डॉ. आशीष गुप्ता का कहना है कि हमारे देश में बढ़ता मोटापा, आहार संबंधी बदलाव, खास तौर से अल्ट्रा- प्रोसेस्ड भोजन की खपत में बढ़ोतरी और गतिहीन जीवनशैली भी उच्च कैंसर दर को बढ़ा रही है।
साभार : अमर उजाला
https://www.amarujala.com/india-news/cancer-mukt-bharatfoundation-
report-claims-increased-risk-of-cancer-amongindian-youth-2024-05-
विभिन्न कारणों से दुनिया भर में डिप्रेशन के शिकार लोगों की संख्या बढक़र 28 करोड़ हुई
अमेरिका: वर्कप्लेस पर काम के दबाव से 34% डिप्रेशन में, इसके लक्षण बिना रुके काम करना, सहकर्मियों से दूरी और काम में दिलचस्पी का खोना
अमेरिका में वर्कप्लेस (कार्यस्थलों) में मेंटल हेल्थ एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। द कॉन्फ्रेंस बोर्ड के सर्वे के अनुसार, काम का तरीका और इसके दबाव से अमेरिका में 34% कर्मचारी डिप्रेशन के शिकार हैं। हालांकि, यदि आप वर्कप्लेस पर डिप्रेशन से गुजर रहे हैं तो आप अकेले नहीं हैं, दुनिया भर में 28 करोड़ लोग विभिन्न कारणों से इसके शिकार हैं।
वर्कप्लेस पर डिप्रेशन के कई लक्षण तो तुरंत समझ में आ जाते हैं लेकिन कई ऐसे होते हैं कि हम उसे सामान्य मान नजरअंदाज कर देते हैं। इसमें काम की आदतें भी शामिल हैं। आइए जानते हैं काम की 4 आदतों के बारे में जो डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं।
1. बिना रुके काम और घर जाने का मन न करना : यदि आप काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि घर जाने का मन नहीं करता? संभव है कि आप काम में खुद को इसलिए डुबो रहे हों ताकि व्यक्तिगत समस्याओं से बच सकें। यह डिप्रेशन का संकेत हो सकता है।
2. सहकर्मियों से दूरी बनाना : यदि आप पहले मिलनसार थे और अब सहकर्मियों से दूर रहने लगे हैं, मीटिंग्स में भाग नहीं ले रहे, तो यह डिप्रेशन के संकेत हो सकते हैं। सहकर्मियों से दूरी कार्यक्षमता को प्रभावित वकरती है व इससे आप अकेलापन महसूस कर सकते हैं।
3. काम में दिलचस्पी का खोना : यदि आप अपने काम में दिलचस्पी खो चुके हैं। क्या आप स्क्रीन पर बस खाली नजरें डालते रहते हैं और महत्वपूर्ण कार्यों को नजरअंदाज करते हैं? तो यह भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं। जब आप अपने काम में दिलचस्पी खो देते हैं, तो आपकी प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है और आप अपने कामों को टालते रहते हैं।
4. समय पर काम पूरा न कर पाना : यदि आप समय पर काम पूरा नहीं कर पा रहे हैं, या आप लगातार देर से ऑफिस आ रहे हैं, यह भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं। टाइम मैनेजमेंट में समस्या, फोकस्ड न रह पाना, और काम के प्रति उदासीनता यह सभी इस बात के संकेत हैं कि आपको मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत है।
डिप्रेशन के लक्षण खुद पर हावी होने से पहले उन्हें पहचानना जरूरी
मनोचिकित्सक गार्सिया के अनुसार, वर्कप्लेस पर डिप्रेशन के लक्षण खुद पर हावी होने से पहले उन्हें पहचानना और डाक्टर से प्रामर्श करना जरूरी है। इससे निपटना हमारी व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। कंपनियों को भी इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। डिप्रेशन की पहचान के लिए स्क्रीनिंग प्रोग्राम और जागरूकता अभियान चलाते रहना चाहिए। ताकि कर्मचारी अपनी मानसिक स्थिति समझ सकें।
साभार : दैनिक भास्कर
https://www.bhaskar.com/happylife/news/280-millionpeople-worldwide-suffer-fromdepression-133293541.
html#:~:text=अमेरिका%20में%20वर्कप्लेस%20पर%20
काम,%E2%80%8Bडिप्रेशन%20के%20शिकार%20
इंडियन टेस्ट सेहत को लेकर भारतीय फिक्रमंद
73% स्नैक्स लेने से पहले देखते हैं न्यूट्रिशनल वैल्यू
हर चार में से तीन यानी 73% भारतीय स्नैक्स खरीदने से पहले उसके लेबल पर इंग्रीडिएंट्स और न्यूट्रिशनल वैल्यू पढ़ते हैं। यह ट्रेंड भारतीयों के बीच बढ़ रही हेल्दी स्नैक्स की चाहत को दर्शाता है। हेल्दी स्नैकिंग रिपोर्ट 2024 के मुताबिक भारत में 10 में से 9 यानी 93% लोग पारंपरिक स्नैक्स को सेहतमंद मानते हैं। 60% नेचुरल, एडिटिव-फ्री प्रोडक्ट चुन रहे हैं, जिनमें नट्स, सीड्स और खड़ा अनाज जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं। इसमें देशभर के 6,000 से अधिक लोगों की राय जानी गई।
नाश्ते में मखाना, नट्स लोगों की पहली पसंद
67% भारतीय पोषक तत्वों से भरपूर विकल्प पसंद करते हैं। 23- 38 साल के 59% लोगों ने मखाने, ड्राई फ्रूट्स को भरोसेमंद नाश्ता बताया। 22 साल तक की उम्र के जेन-जी (49%) और 39-54 साल तक के जेन-एक्स (47%) ने इसे अपनी पसंद बताया।
मीठे में चॉकलेट पहले और आम दूसरे नंबर पर
देश में सभी आयु वर्ग के बीच चॉकलेट फेवरेट स्वीट है। 65% जेन-जी, 63% मिलेनियल्स, 46% जेन-एक्स और बूमर्स यानी 55-73 साल तक के 40% लोगों ने इसे पसंदीदा स्वीट बताया। वहीं, 50% मिलेनियल्स, 41% जेन एक्स, 40% जेन-जी और 30% बूमर्स ने चॉकलेट के बाद आम को पसंदीदा स्वीट बताया।
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