वर्तमान सदी के महापुरुष

वर्तमान सदी के महापुरुष

साध्वी देवकल्याणी

पतंजलि संन्यासाश्रम

   हम सभी के भगवद् स्वरूप गुरुदेव श्रोत्रिय, ब्रह्मनिष्ठ, अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ के जीवन्त विग्रह, प्रपञ्च में व्यवहार करते हुए भी सदा भगवद्मय दृढ़ सात्विक संकल्पों को पूर्व आकार देने वाले, व्रज के समान कठोर (आत्मानुशासन में) तो वहीं नवनीत समान कोमल, माँ के तुल्य जीवों के  प्रति अगाद्य ममता लिए, पिता के समान प्रतिपल रक्षण करने वाले, अपने सम्पूर्ण जीवन को नि:स्वार्थतापूर्वक इस समष्टि के लिए लगाने वाले श्रीभगवन गीता में कहते हैं-
यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदातमानं सृजाम्यहम्।।
अर्थात् जब-जब भी धर्म की ग्लानि (हानि) होती है और अधर्म की प्रबलता हो जाती है (अर्थात् जब ईश्वरीय यज्ञचक्र को बाधित करने वाले आसुरी प्रवृत्ति के लोग प्रबल हो जाते हैं) तब मैं (श्रीभगवन्) जन्म लेकर अपने आपको प्रकट करता हूँ।
यहाँधर्मका तात्पर्य अत्यन्त व्यापक है, धर्म वह यज्ञचक्र है, जिसे सृष्टि के आरम्भ में सृष्टि रचयिता ने प्रारम्भ किया तथा जिस यज्ञचक्र से भी प्राणियों की वृद्धि एवं समृद्धि की कामना की, उस चक्र में दुष्ट व्यक्तियों द्वारा व्यवधान उत्पन्न किया जाता, तो उस समय महापुरुषों के रूप में विशिष्ट शक्ति का उदय होता है, जो उन दुष्ट तत्वों को नष्ट कर पुन: उस यज्ञचक्र को व्यवस्थित करती हैं।
आत्मतत्व में स्थित महापुरुष वस्तुत: उस परम तत्व (महाशक्ति) के स्वरूप ही होते हैं। ऐसे ही दुर्लभ महान संतों, महापुरुषों की श्रेणी में परम पूज्य स्वामी जी महाराज का जीवन भी आता है। हर सदी में जब दुष्ट प्रवृत्तियों के व्यक्तियों का आंतक अपनी सीमाओं को पारकर ताण्डव मचाने लगता है, अधर्म का भरण-पोषण पूर्णत: तब उन अधर्मियों के द्वारा किया जाने लगता है और धर्मरूपी महान वटवृक्ष का जब ह्रास होने लगता है तो श्रीभगवन् अवतरित होते हैं-
‘‘धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे
अर्थात् प्रत्येक युग में धर्म की स्थापना हेतु (रक्षण हेतु) मैं जन्म लेता हूँ। यह इस समष्टि का परम सौभाग्य ही मानों कि कलयुग में इस महान कार्य का बीड़ा आत्मतत्व में स्थित परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज द्वारा उठाया जा रहा है।
यदि कोई अत्यन्त गूढ़तापूर्वक परम पूज्य स्वामी जी महाराज के जीवन का विश्लेषण करें तो वह पाएगा कि अपने जीवन के इतने कम वर्षों में ही उनके द्वारा इतने महानतम कार्यों का अभी तक सम्पादन किया जा चुका है और अनेकानेक जगत के लिए कल्याणकारी वृहद् कार्यसम्भार को पूर्ण करने का संकल्प वह ले चुके हैं और आगामी अनेक योजनाओं पर उनकी दूर दृष्टि है जो सर्वथा इस समष्टि के कल्याण के लिए ही है।
एक जीवन के इतने अल्पकाल में इतना सब कुछ किसी सामान्य मनुष्य के द्वारा किया जाना तो असम्भव सा लगता है, निश्चित ही ये भागवती प्रेरणाओं से ओतप्रोत अथवा यूं कहना कि अतिशयोक्ति होगा कि भगवद् अंश ही साकार रूप में मानव मात्र तो तारने के लिए उपस्थित हुए हैं।
यह बात भी सर्वविदित है कि हर काल में इन महापुरुषों को कुछ आसुरी चेतना के व्यक्तियों समूहों से लोहा लेना पड़ा है, उनको पारमार्थिक कार्यों में भी इस समाज के चंद विवेक शून्य, अविश्वासी, कुतार्किक, विधर्मी व्यक्तियों की आलोचनाओं विरोधों का सामना करना पड़ा है, परन्तु इस सबको सहते हुए भी इन सच्चे संतों, महापुरुषों का भगवद् ज्ञान, प्रेममय व्यक्तित्व, शील, संतोष, सादगी, नम्रता, परोपकार आदि सद्गुणों से पूरित जीवन मानो दिव्यता का वह शाश्वत झरना होता हैं, जिसके सान्निध्य में जीव मात्र का कल्याण सुनिश्चित होता है।
परम पूज्यनीय गुरुदेव का कठिन त्याग, तपस्या सबके प्रति समता और ममताभरा जीवन मानवता को परमात्मा की सर्वोच्च भेट है। उनका योग, आयुर्वेद, स्वेदशी का यह व्यापक कार्य इस समष्टि पर अहेतुकी कृपा ही जाननी चाहिए और इतने बड़े-बड़े कार्यों के भार को सम्भालते हुए भी जो सदैव निर्भार रहते हैं। जिनके दो भगवा वस्त्र, सादगी साधुता की छटा बिखेरते हैं, जो समस्त अर्थ को केवल परमार्थ में लगाकर स्वयं अत्यल्प साधारण भोजन लेते हैं, आडम्बररहित निवाससंत कुटीरमें जो आज भी भूमि पर शयन करते हैं, केवल जीवन निर्वाह के लिए अत्यावश्यक अतिसाधारण वस्तुओं को प्रयोग में लाते हैं, इतने प्रसिद्ध महान विभूति होते हुए भी जो सहजता से सबको सुलभ है, जिनका कठोर आत्मानुशासन पर्वत को भी विचलित करने का सामथ्र्य रखता है जो स्वयं नि:शब्द होते हुए भी अपने सम्पूर्ण श्रीविग्रह से समस्त साधको को अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ करने का संदेश देते हैं, अधिक क्या कहूँ।
भगवद्स्वरूप पूज्य गुरुदेव के विशेषण लगाने में हमारी वाणी सर्वथा अपने को असमर्थ पाती है, ईश्वरप्रदत्त सभी सद्गुणों को धारण किए हुए जिनका सम्पूर्ण जीवन प्राणीमात्र के लिए अनुकरणीय है, ऐसे परमात्मास्वरूप महापुरुष को इस सदी में पाकर स्वयं को जानकार और जगाकर, इनके सहयोगी स्वरूप होकरआत्म कल्याण से राष्ट्र कल्याणकी ओर यदि यह समाज नहीं बढ़ पाया तोदिये तले अंधेरायह कहावत कहीं कहीं सत्यघटित होती मालूम होती है।
वो तालीम कहाँ मुझ में,
कि बयां कर सकूं, गुरु की दरियादिली।
इस नजाकत से उन्होंने की रहमत,
कि दिया इन सूखे दरख्तों (पेड़ों) में पानी।
इल्म ये भी नहीं इनको कि कर सके मनमानी,
ख्वाहिशों के समन्दर में लगा ली डुबकी।
कि फिर नहीं रहा खौफ इस जमाने का,
कि लगा डूबने जैसे ही आशियां हमारा।
कृपाकर गुरुवर ने लगा दी कश्ती उस पार हमारी,
अफसोस है कि कशमकश में हैं अब भी।
ऐतबार (विश्वास) करें या कि साजिशों की गुफ्तगू में उलझे रहें, तो गौर करो एक बारगी एक साधक, तुम ऐतबार कर भी लो, रख गुरु पर हौंसला उसपरम की उड़ानभर भी ले।

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