अतिथि संपादकीय

आयुर्वेदीय निदान ग्रन्थों की परम्परा में आचार्य बालकृष्ण प्रणीत सौमित्रेयनिदानम्

प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री,
अध्यक्षचर, वेदविभाग, गुरुकुलकांगड़ी (समविश्वविद्यालय)
कुलपति-उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय

    आनादिकाल से सतत प्रवहमान ‘आयुर्वेद’ विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। धर्म, अर्थ आदि पुरुषार्थचतुष्टय की सिद्धि में ‘आरोग्य’ को मूल मानते हुए आरम्भ से ही मानव स्वास्थ्य तथा तदर्थ चिकित्सा का क्रम निरन्तर चला आ रहा है। ‘श्रुतिपरम्परा’ से प्राप्त आयुर्वेद ज्ञान को समय की आवश्यकतानुसार ग्रन्थों में निबद्ध किया गया। इसके परिणामस्वरूप मानवकल्याणार्थ आयुर्वेद का विपुल साहित्य विद्यमान है। नाना प्रकार की चिकित्साविधियों से समन्वित आयुर्वेद को कायचिकित्सा आदि आठ अङ्गों में बाँटा गया है। यह अष्टाङ्ग आयुर्वेद मूलत: त्रिसूत्रत्मक है। आचार्य चरक के अनुसार सर्वप्रथम ब्रह्मा को हेतु, लिङ्ग व औषध रूप त्रिसूत्रात्मक आयुर्वेद का बोध हुआ था- 
हेतुलिङ्गौषधज्ञानं स्वस्थातुरायणम्।
त्रिसूत्रं शाश्वतं पुण्यं बुबुधे यं पितामह:।। (च.सं.सू.1.24)
इस प्रकार 1. हेतु (रोग की उत्पत्ति का कारण), 2. लिङ्ग (रोग व आरोग्य का लक्षण), तथा 3. औषध (स्वस्थ व रोगी के लिए हितकारी चिकित्सा प्रक्रिया)-
इन तीनों का पल्लवित रूप ही अष्टाङ्ग आयुर्वेद है। आयुर्वेदीय अष्टाङ्ग में भी ‘निदान’ व ‘चिकित्सा’ का विशिष्ट महत्त्व है।
रोगविज्ञान की महत्ता को देखते हुए कालान्तर में ‘निदान’ को आधार बनाकर स्वतन्त्र ग्रन्थों का भी प्रणयन किया गया। इस विषय पर सर्वप्रथम माधवकरप्रणीत प्राचीनतम ग्रन्थ ‘माधवनिदानम्’ उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त हंसराजनिदान, अमजननिदान, सिद्धान्तनिदान आदि निदान पर आधारित उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं।
इसी क्रम में निदानग्रन्थों की परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये चिरकाल के अनन्तर 21 वीं शताब्दी में आयुर्वेद व वनस्पतिविज्ञान के मर्मज्ञ तथा संस्कृतभाषानुरागी श्रद्धेय आचार्यबालकृष्ण जी के द्वारा सौमित्रेयनिदानम् नामक एक बृहद् ग्रन्थ की रचना की गई है, जिसका लोकार्पण 7 अगस्त, 2024 को केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति श्री श्रीनिवास बरखेड़ी, केन्द्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद् के महानिदेशक प्रोफेसर रविनारायण आचार्य, राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग के अध्यक्ष वैद्य श्री जयन्त देवपुजारी और राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग में आचार एवं पंजीकरण बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर (वैद्य) राकेश शर्मा सदृश आयुर्वेद एवं संस्कृत के विशेषज्ञों की उपस्थिति में वैदिक संस्कृति के उपायक योगऋषि स्वामी रामदेव जी के द्वारा किया गया।
सौमित्रेयनिदानम् का वैशिष्ट्य
सौमित्रेयनिदानम् व्याधियों से सम्बन्धित शास्त्रीयशैली में विरचित एक श्लोकबद्ध बृहद् आयुर्वेदीय निदानग्रन्थ है। विश्व में मानवमात्र के स्वास्थ्य संरक्षण और विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त रोगियों के रोगों के निवारण के संकल्प को लेकर ही ग्रन्थकार के द्वारा इसका प्रणयन किया गया है। अर्वाचीन युग में सभी व्याधियों का आयुर्वेद से उपचार करने के साथ-साथ आयुर्वेद का पठन-पाठन करने वाले पाठकों तक सम्पूर्ण व्याधियों के ज्ञान को पहुंचाना भी ग्रन्थकार को अभीष्ट है। यह ग्रन्थ आयुर्वेद सहित रोगी के स्वास्थ्य से सम्बन्धित सम्पूर्ण पद्धतियों के द्वारा चिकित्सापरायण चिकित्सकों के लिए व जन स्वास्थ्य सम्बन्धी नीति-निर्माताओं के लिए अतीव उपयोगी होगा और सम्पूर्ण स्वास्थ्य के अभिलाषीजनों के लिए रोगमुक्त जीवन की ओर बढऩे में मित्र के समान सहायक सिद्ध होगा। आयुर्वेद के अनेक पूर्ववर्ती ऋषियों द्वारा प्रदत्त
निदानविषयक सारसूत्रों से अनुस्यूत यह ग्रन्थ स्वस्थ एवं रोगमुक्त समाज के निर्माण में नींव के पत्थर के समान अतीव उपयोगी सिद्ध होगा।
प्राचीन और अर्वाचीन ग्रन्थों का समग्र दृष्टि से अवलोकन करके आयुर्वेद के प्राचीन शास्त्रों में वर्णित व्याधियों के अतिरिक्त पूर्वशास्त्रों में जो अपर्याप्त रूप से वर्णित हैं और विश्व में वर्तमान में प्राप्यमाण नवीन व्याधियां हैं, उन सबको भी इस ग्रन्थ में समाविष्ट किया गया है। ग्रन्थ में 500 व्याधियों को 471 व्याधिशीर्षकों के अन्तर्गत रखा गया है, जिसमें 234 प्राचीन व्याधियां हैं, जबकि 237 वर्तमान व्याधियों को नवीन नामों से अभिहित करके वर्णित किया गया है। ग्रन्थ को शरीर संरचना क्रम से 14 खण्डों में वर्गीकृत किया गया है। सभी खण्डों में व्याधियों को अकारादिक्रम से वर्णित किया गया है। प्रत्येक व्याधि के तीन विभाग हैं-स्वरूपम्, निदानम् और लक्षणम्। ग्रन्थ में अनुष्टुप्, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, वंशस्थ, इन्द्रवंशा, विशिष्ट उपजाति (वंशस्थ, इन्द्रवंशा), द्रुतविलम्बित, भुजङ्गप्रयात, प्रहर्षिणी, वसन्ततिलका, मालिनी, पञ्चचामर, शिखरिणी, पृथ्वी, मन्दाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित और स्रग्धरा-इन 18 छन्दों का प्रयोग किया गया है। उल्लेखनीय है कि ग्रन्थ-परिचय में भी इन्हीं 18 छन्दों को प्रयुक्त किया गया है।
ग्रन्थ के विस्तृत कलेवर और पाठक की सुविधा की दृष्टि से इसे दो भागों में विभाजित किया गया है। इसके प्रथम भाग में प्रथम खण्ड से पञ्चम खण्ड (व्याधिसंख्या 1-260) रोग वर्णित हैं और ग्रन्थ के द्वितीय भाग में छठे खण्ड से चतुर्दश खण्ड (व्याधिसंख्या 261-471) तक व्याधियां हैं। प्रथम भाग के परिशिष्ट भाग में, द्वितीय भाग में वर्णित की जाने वाली व्याधियों की अनुक्रमणिका जोड़ी गई है, जबकि द्वितीय भाग के परिशिष्ट भाग में प्रथम भाग की अनुक्रमणिका को भी रखा गया है। पाठक की सरलता की दृष्टि से ग्रन्थ में प्रयुक्त सभी नवीन शब्दों की संस्कृतनामावली परिशिष्ट भाग में रखी गई है, जिसमें 400 से भी अधिक नवीन शब्द हैं। ग्रन्थ के परिशिष्ट भाग में लगभग 2500 चिकित्सकीय अवस्थाएं उपनिबद्ध भी की गई हैं।
यह भी इस ग्रन्थ की विशेषता है कि सभी 500 व्याधियों को खण्डों के अनुसार श्लोकबद्ध किया गया है, जिसके कारण ग्रन्थ की सभी व्याधियों को स्मरण करने में सरलता होगी। व्याधियों के श्लोकों का लयबद्धता से गायन करके QR Code की सहायता से समग्र ग्रन्थ के श्लोकों का श्रव्य रूप भी प्रस्तुत किया गया है। अल्पसंस्कृतज्ञजनों के लिए श्लोक में प्रयुक्त प्रत्येक पद का अर्थ करके काठिन्यनिवारण पहले ही कर दिया गया है। सम्पूर्ण विश्व के लोगों के लिए ग्रन्थ को उपयोगी बनाने के उद्देश्य से असंस्कृतज्ञजनों के ज्ञानार्थ श्लोकों के साथ उनकी
फोनेटिक्स और अंग्रेजी में स्वरूप, निदान और लक्षणों को प्रस्तुत करके ग्रन्थ का अंग्रेजी रूपान्तरण भी किया गया है।
सौमित्रेयनिदानम् की प्रमाणिकता व उपादेयता
सौमित्रेयनिदानम् ग्रन्थ की शास्त्रीयता, प्रासंगिकता, उपादेयता, शुद्धता और प्रामाणिकता आदि के आयुर्वेद दृष्ट्या अवलोकन तथा विषयगतसमीक्षा के लिए पतञ्जलि विश्वविद्यालय और केन्द्रीय संस्कृत-विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सौजन्य
से 7 अगस्त से 8 अगस्त तक द्विदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन करवाया गया, जिसमें संपूर्ण भारतवर्ष से प्रतिष्ठाप्राप्त आयुर्वेद और संस्कृत के लगभग 50 विद्वानों
ने अपने विचार व समीक्षात्मक प्रस्तुति दी। सबमें एक बात सामान्य रही कि सौमित्रेयनिदानम् प्रामाणिक और अद्वितीय एक ऐसा ग्रन्थ है, जो चिकित्सा जगत् के लिए अत्यधिक उपयोगी होगा-
1.  परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने ‘सौमित्रेयनिदानम्’ ग्रन्थ के विषय में कहा कि यह एक मौलिक कालजयी अनुपम रचना है, अप्रितम प्रस्तुति है। यह कार्य बहुत बड़ा था। 18 छन्दों में 6821 श्लोकों में जो रचना हुई है, साथ ही हिंदी सहित इंग्लिश भाषा में इसका रूपान्तरण करना और उसको पूरी ऋषि परम्परा के अनुरूप प्रतिबद्धता के साथ सम्पूर्ण विषय को समेटते हुए अभिव्यक्त करना एक चुनौती पूर्ण कार्य था। श्रद्धेय आचार्यश्री और सम्पूर्ण विद्वन्मण्डली के लिए विशेष अभिनन्दन होना चाहिए। आज यहां ‘सौमित्रेयनिदानम्’ का लोकार्पण अपने आप में ऐतिहासिक कार्य है।
2.  केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्रीनिवास बरखेड़ी ने कहा कि ‘‘ग्रन्थ के आविर्भाव से आयुर्वेद शास्त्र के इतिहास में एक ऐतिहासिक नूतन युग का आरम्भ हुआ है। आज इस संस्कृत भूमि पर शास्त्रबीज का वपन हुआ है। इस कृषि में आचार्य बालकृष्ण जी ने अपने अनुभवजल से सेचन किया है। उनके द्वारा एक नव निदानशास्त्र का अंकुर उत्पन्न हो गया है। इसको वृक्ष बनाना, इसका फल प्राप्त करना, पुष्प प्राप्त करना- यह हमारा कार्य है। अष्टाङ्गहृदय के समान यह मौलिक ग्रन्थ भी सहस्रों वर्षों तक आयुर्वेद के क्षेत्र में देदीप्यमान रहेगा।’’
‘‘यह चर्वितचर्वण नहीं है, अपितु नूतन नवीन है।’’ उनके अनुसार इसमें नूतन शब्दों, धातुओं और नवपरिभाषितों पर शोध के लिये भी पर्याप्त विषयवस्तु देखी गई है।
3.  केन्द्रीय आयुर्वैदिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद् के महानिदेशक प्रोफेसर रविनारायण आचार्य के अनुसार शास्त्र और विज्ञान की तब वैज्ञानिकता नहीं होती जब तक वह समय के अनुसार उन्नत तथा परिष्कृत न हो। उन्होंने आगे कहा कि सौमित्रेयनिदानम् की यह विशेषता ही उसे सर्वोत्कृष्ट बनाती है कि यह एक मौलिक रचना है और आधुनिक परिप्रेक्ष्य के अनुसार अनुसन्धानपूर्वक प्राय: सभी नए रोगों का भी इसमें समावेश किया गया है।
4.  राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग में आचार एवं पंजीकरण बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर (वैद्य) राकेश शर्मा के अनुसार यह ग्रन्थ आयुर्वेद के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध होगा। यह अपने आप में एक विशेष रचना है और इस बात से भी इसका महत्त्व और बढ़ जाता है कि इसमें प्रत्येक श्लोक के प्रत्येक पद का अर्थ भी साथ में प्रस्तुत करके आयुर्वेद के पाठकों के लिए शब्दकोश तथा अर्थज्ञान की दिशा में उत्कृष्ट कार्य किया गया है। इसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्रत्येक आयुर्वेद संस्थान के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए, जिससे सभी छात्र इसके वैशिष्ट्य से लाभान्वित हो सकें।
5. राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग के अध्यक्ष वैद्य श्री जयन्त देवपुजारी ने कहा कि ‘‘सौमित्रेयनिदानम् ग्रन्थ पर आयुर्वेद के सम्बन्ध में दीर्घकाल तक कार्य होता रहेगा। इससे इस दिशा में एक नई परंपरा का आरंभ हुआ है। अनुक्त को उक्त करने का शुभारम्भ श्रद्धेय आचार्य जी के द्वारा किया जा चुका है। पञ्चनिदान व आयुर्वेद की दृष्टि से यह एक परिपूर्ण ग्रन्थ है। उन्होंने आगे परामर्श देते हुए कहा कि पूज्य आचार्य जी को प्राचीन पुस्तक नाड़ीतत्त्वदर्शन के विकृतिविज्ञान विषय पर भी अनुसंधानात्मक कार्य करना चाहिए।’’
6.  दत्ता मेघे आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय एवं औषधालय नागपुर (महाराष्ट्र) से उपस्थित प्रोफेसर वैद्य माधव आष्टिकर ने ‘‘ग्रन्थस्य तन्त्रगुणदोष-युक्त्यात्मकम् अध्ययनम् विषय पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि यह शास्त्र स्वयं में एक अपूर्व महत्त्वपूर्ण कार्य है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सौमित्रेयनिदानम् में वर्णित अपस्मार में वयोऽनुसार प्रेरक आक्षेप, संवेदी आक्षेप आदि भेद बताकर बहुत श्रेष्ठ कार्य किया गया है। आयुर्वेद विज्ञान के सिद्धान्तों का अनुपालन करते हुए अपने विचार व्यक्त करने से यह अनुमत शास्त्र की श्रेणी में आता है। स्वसंज्ञाओं का समायोजन और नवीनपदावली का प्रयोग, अन्वयपूर्वक प्रत्येक पद की अर्थप्रस्तुति आदि से यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है, जो आने वाली अनेक पीढिय़ों का पथप्रदर्शन करता रहेगा। उन्होंने व्याधियों के वर्गीकरण सम्बन्धी परामर्श देते हुए हेतु और लक्षण के मध्य सेतुस्वरूप सम्प्राप्ति की संयोजना का भी परामर्श दिया।
7.    देशभगत विश्वविद्यालय पंजाब के कुलपति डॉ. अभिजित एच. जोशी ने ग्रन्थ की समीक्षा करते हुए कहा मैं इसे आयुर्वेदीय निदान ग्रन्थ की अपेक्षा अथर्ववेद आधारित व्याधिनिदान मानता हूँ। परामर्श देते हुए उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के विषय में अथर्ववेद पर भी अनुसंधानात्मक कार्य करवाया जाना चाहिए।
8.    केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय श्री सदाशिव परिसर, पुरी ओडीशा के निदेशक डॉ. बनमाली बिस्वाल ने कहा कि ग्रन्थ की भाषा और उसमें शार्दूलविक्रीडित जैसे विभिन्न छंदों का प्रयोग करके एक श्रेष्ठ कार्य को प्रस्तुत किया गया है। नवीन संस्कृत पदावली का प्रयोग और परिशिष्ट भाग में उसको दर्शाकर शास्त्रगत काठिन्य का स्वयं परिहार प्रस्तुत करके श्रेयस्कर कार्य किया गया है।
9.    अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली के रोगनिदान विभाग के सह-प्राध्यापक डॉ. सन्दीप सिंह तिवारी ने कहा कि सौमित्रेयनिदानम् को मैंने जितना देखा है, इसमें ग्रन्थ के श्लोकों का गायन करके QR Code के रूप में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रशंसनीय प्रयोग किया गया है, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में अपूर्व प्रयास है। आयुर्वेद की साधना में लगे हुए जनों के लिए यह विधा अतीव उपयोगी सिद्ध होगी।
इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण भारतवर्ष से पतञ्जलि विश्वविद्यालय के सभागार में उपस्थित होकर आयुर्वेद और संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ 35 अन्य विद्वानों ने भी सौमित्रेयनिदानम् ग्रन्थ के विषय में अपनी-अपनी समीक्षापरक प्रस्तुति दी, जिसमें एक बात सामान्य रही कि अर्वाचीन में इस बृहद्ग्रन्थ की सर्जना करके आयुर्वेद जगत् के साथ-साथ समग्र विश्व का उपकार किया है। सहस्रों वर्षों तक यह आयुर्वेद के पाठकों और जिज्ञासुओं को अपने प्रकाश से लाभान्वित करता रहेगा। ग्रन्थकार का यह कथन-
आयुष्यवेदस्य कृतेश्च तस्या: सद्वर्तमाने च भविष्यकाले। अध्यापनं चाध्ययनं चिकित्साक्रान्तिं प्रकुर्युर्जगतीह नूनम्।। (इन्द्र)
‘‘सौमित्रेयनिदानम् आयुर्वेद के क्षेत्र में वर्तमान में तथा आने वाले अनेक वर्षों तक पठन-पाठन तथा इससे चिकित्सा हेतु आयुर्वेद के जगत् में एक नई क्रान्ति को लाने वाला रहेगा।’’
वस्तुत: ग्रन्थकार का यह कथन सटीक एवं यथार्थता से परिपूर्ण एवं नितान्त चरितार्थ है। नि:सन्देह यह एक परिपूर्ण और अनुपम आयुर्वेदीय निदान शास्त्र है। ‘वैदिक वाग् ज्योति’ की ओर से आचार्य बालकृष्ण जी को इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना करने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाऐं। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह कृति लोक हित में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनायेगी और भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देगी।

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