बवासीर का शत-प्रतिशत समाधान अर्शोग्रिट
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डॉ. अनुराग वार्ष्णेय
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान
बवासीर, भगन्दर, पाईल्स, हेमरॉयड एक ऐसी बीमारी है जिसमें रोगी को मल त्याग के समय असहनीय दर्द होता है, और कई बार मल द्वार से खून भी आता है। हेमरॉयड हमारे पाचन तंत्र के सबसे पीछे वाले हिस्से के कुछ ऐसे गद्देदार कुशन हैं, जिनमें खून भरा होता है और वह मल त्याग में मददगार होते हैं। एक मिथक यह भी है कि हेमरॉयड ही एक बीमारी है, परन्तु ऐसा नहीं है। यह हमारे शरीर के वह ऊतक हैं जिनमे सूजन आने पर हेमरॉयडल डिजीज होती है जिसे पाईल्स कहते हैं। इस हेमरॉयडल कोशिकाओं में जब खून आना शुरू हो जाता है तो यह बहुत असहनीय हो जाता है।
रोग के प्रमुख कारण
दुनियाभर में इस बीमारी से लगभग 4.5 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं जो दिन-रात असहनीय दर्द से गुजरते हैं। इसके प्रमुख कारणों में लम्बे समय तक कब्ज की समस्या बने रहना, मल त्याग के समय ज्यादा दबाव पडऩा, आदि प्रमुख हैं। कुछ अन्य कारणों की वजह से जैसे- भारी सामान उठाना भी अपने आप में इस समस्या को अधिक बढ़ा देता है। इस बीमारी के प्रमुख कारणों में मोटापा, और अधिक वजन उठाना, साथ ही आज-कल के वर्क कल्चर में जहां कर्मचारी बिना ब्रेक के लम्बे समय तक अपने वर्क डेस्क पर बैठे हुए कार्य करते हैं, उन लोगो में भी यह समस्या देखी गई है, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया के प्रयोग से लम्बे समय तक मल त्याग में समय लगाना भी इस समस्या का कारण हैं। इस रोग में व्यक्ति को मस्से, दर्द, मल त्याग के दौरान असहनीय पीड़ा और खून आना, खुजली जैसी समस्या रहती है।
मॉर्डन चिकित्सा पद्धति में सर्जरी व दर्द निवारक ही उपाय
मॉडर्न चिकित्सा पद्धति में इस बीमारी का एक मात्र समाधान सर्जरी है। वहीं दर्द से आराम के लिए गर्म पानी का सेंक और दर्द निवारक ऑइंटमेंट लगाने का परामर्श भी दिया जाता है। खान-पान में बदलाव जैसे अधिक तरल पदार्थों का सेवन, भोजन में डाइटरी फाइबर्स में बढ़ावा, कम तला-भुना सादा भोजन भी इस रोग की पीड़ा को कम करने में सहायक होते हैं।
चूहों पर अर्शोग्रिट का सफल वैज्ञानिक अनुसंधान
पतंजलि द्वारा निर्मित अर्शोग्रिट और पारम्परिक आयुर्वेदिक औषधियों पर उन्नत विश्लेषणात्मक तकनीकों के माध्यम से अध्ययन कर इन औषधियों की प्रभावकारिता ज्ञात करने कि चेष्टा की गई। अर्शोग्रिट और जात्यादि घृत पर किए गए शोध में इन औषधियों में विभिन्न फाइटो कंपाउंड्स के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। तत्पश्चात इन-विट्रो तकनीक के माध्यम से इन औषधियों के बारे अन्य आंकलन किए गए। इसके लिए, इस अध्ययन में विस्टर चूहों को विभिन्न समूहों में बाँट कर, पहले उनमें यह बीमारी उत्पन्न की गई, जिसके लिए जमालगोटे के बीज का तेल उनके मलद्वार पर लगाया गया। तत्पश्चात इनमें से कुछ समूहों को अर्शोग्रिट डोज और जात्यादि घृत की विभिन्न मात्रा का लेपन किया गया, वहीं कुछ समूह को अन्य दवाई दी गई।
अर्शोग्रिट के आयुर्वेदिक घटकमॉडर्न चिकित्सा पद्धति के इन अल्प-समाधानों और लोगों को इस बीमारी से मुक्ति के लिए पतंजलि ने भारत के प्राचीनतम विज्ञान और सनातन परम्परा के ऋषि-मुनियों के अद्भुत ज्ञान को आधार बना कर अर्शोग्रिट औषधि का निर्माण किया है। यह औषधि मकोय, एलोवेरा, नागदौना, महुआ, गोखरू, निशोध, वायविडंग आदि अति विशिष्ट जड़ी-बूटियों से निर्मित है। |
सर्वप्रथम, इन चूहों का वजन जांचा गया, जिससे पता चला कि आयुर्वेदिक औषधि वाले समूह के वजन में किसी प्रकार की कोई गिरावट नहीं आई थी, जो इस बात की पुष्टि करता है कि यह औषधियां शरीर पर किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती। तत्पश्चात इन चूहों के समूह के मलद्वार का आंकलन किया गया। इसमें यह बीमारी अर्शोग्रिट की विभिन्न मात्रा के सेवन से ठीक हुई, जिससे पता चला कि यह आयुर्वेदिक औषधियां, अत्यंत प्रयोग में आने वाले स्टेरॉयड प्रेडीनसोलोन से भी अधिक प्रभावकारी हैं।
तत्पश्चात इन समूहों में पैथोलॉजिकल एनालिसिस किया गया और एनोरेक्टल कोफिसिएंट को जांचा गया जोकि शरीर में सूजन को जांचने का एक कोफिसिएंट है। इस अध्ययन में भी इन आयुर्वेदिक औषधियों की प्रभावकारिता, समतुल्य स्टेरॉयड से अधिक पाई गई। इसके बाद शरीर में इन्फ्लैमेशन के बायोमार्कर्स, साइटोकाइन्स टीएनएफ-अल्फा और आईएल-1 बीटा की भी जांच की गई और देखा गया कि यह औषधियां अधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई। तत्पश्चात इन चूहों के समूहों की हिस्टोपैथोलॉजी यानि ऊतक की भी जांच की गई, परिणामस्वरूप यह सिद्ध हुआ कि यह आयुर्वेदिक औषधियां डीजनरेटिव कोशिकाओं को फिर से रीजनरेट कर पाने में सक्षम है।
साथ ही इन कोशिकाओं में नेक्रोसिस स्कोर, इन्फ्लेमेशन स्कोर, और अन्य पैरामीटर्स को जांचने के बाद यह निष्कर्ष निकला कि इन आयुर्वेदिक औषधियों ने इन जांचो में भी आशातीत प्रदर्शन किया है।
इन सभी अध्ययन से यह सिद्ध हुआ किआयुर्वेदिक औषधियां हर प्रकार के साध्य और असाध्य रोगो को ठीक करने में सक्षम हैं, आवश्यकता है उस ज्ञान को विश्व तक पहुंचाने की। यह पतंजलि का ध्येय है कि भारत की यह प्राचीन धरोहर जनकल्याण के काम आए और विश्व में हमारी सनातनी संस्कृति की ध्वज पताका लहराए।
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