गौ-मूत्र

भू-लोक के अमृत के समान

गौ-मूत्र

डॉ. पूर्वा सोनी

मुख्य चिकित्सा अधिकारी पतंजलि वैलनेस, फेज-2, हरिद्वार

 गौ विश्वस्य मातर: अर्थात् गौ सम्पूर्ण विश्व की माता है। आयुर्विज्ञान एवं सभी वेद-शास्त्र में गाय की तुलना माता से की गई है क्यूंकि गाय एक ऐसा जीव है जो वात्सल्य से परिपूर्ण है एवं माता के सामान नि:स्वार्थ भाव से हमारा पोषण करने में समर्थ है। गौ द्वारा प्राप्त दुग्ध से हमें घी, दही, माखन, छांछ आदि प्राप्त होता है। गौ मूत्र के चिकित्सीय प्रयोग भी सर्वजगत में व्याप्त है। गौ मूत्र का बाह्य एवं आतंरिक प्रयोग जरा नाशक एवं आरोग्यदायक है। पतंजलि वैलनेस, पतंजलि निरमयम्, पतंजलि योगग्राम, पतंजलि वेदालाइफ, पतंजलि मोदीनगर में पूज्य गुरुदेव द्वारा निर्देशित गौ मूत्र चिकित्सा से हमारे अनुभवी वैद्यों ने अनेको चर्म रोग, कैंसर, obesity, lifestyle diseases इत्यादि से ग्रसित रोगियों को रोगमुक्त किया है। गौ मूत्र चिकित्सा में मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी अद्भुत रहा है।  मैंने अपने अनुभव से यह पाया है कि जब भी गौ मूत्र का प्रयोग हम किसी औषध के अनुपान स्वरूप में करते हैं तो औषध की सक्रियता और अधिक बढ़ जाती है।
वेद शास्त्र एवं उपनिषद में गाय को माता की उपाधि
भारतीय परंपरा में गौ माता को विशेष दर्जा प्राप्त है। गाय में 33 कोटि देवी देवता का वास होने के कारण वैदिक काल में एवं पूर्व वैदिक काल में भी गाय की अनुपम महिमा बताई गई है। गाय से हमे दुग्ध प्राप्त होता है वह संपूर्ण जगत का पोषण करने वाली है इसीलिए कहा गया है कि-
मातर: सर्वभूतानां गावं: सर्वसुखप्रदा
अर्थात्- गाय सम्पूर्ण प्राणियों की माता है एवं सबको सुख देने वाली है। महर्षि वशिष्ठ द्वारा उपदिष्ट है कि गौ-माता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह जान कर उनको प्रणाम करें-
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम््।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
अर्थात जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूँ।
विद्यते गोषु समभाव्यम विद्यते ब्रह्मणे तप:
विद्यते स्त्रीषु चापळयम विद्यते ज्ञातितो भयम्॥
वाल्मीकि रामायण में भी वर्णन आया है कीगाय माता पे ही तीनो लोक स्थित है। अत: गाय माता प्रत्यक्ष देव है। शास्त्रों में गाय के गोबर में महालक्ष्मी का निवास बतलाया गया है, गौ मूत्र में भागीरथी (माँ गंगा) का निवास बतलाया है
यथा धेनु सहस्त्रो वत्सो विन्दति मातरम्।
एवम् पूर्वकृतम् कर्मम् कर्तारमनुगच्छति।।
शास्त्रों में गाय का माहात्म्य बताते हुए आचार्यो ने गाय एवं उसके बछड़े की तुलना कर्म एवं उसके फल से करते हुए कहा है कि जिस प्रकार हज़ारों गायों में बछड़ा अपनी माँ को पहचान कर उसके पास चला जाता है, उसी प्रकार पूर्व के किये हुए कर्म कर्ता के पीछे जाते ही हैं।
यजुर्वेद में गाय की महिमा का अद्भुत वर्णन है, पूछा गया है कि संसार में किसकी तुलना नहीं की जा सकती। 
कस्य मात्रा विद्यते (यजु)
उत्तर : गौ अस्तु मात्रा विद्यते।
अर्थात् संसार में गाय की तुलना नहीं की जा सकती। गाय का दूध, माखन, तक्र (छांछ), घी एवं गोबर का रस और गौ मूत्र में जो औषधीय गुण पाए जाते हैं वह किसी भी दुधारू पशु के माध्यम से नहीं पाए जाते हैं।
आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा में गाय की महिमा
गौ मूत्र (आसुत गौ मूत्र) चिकित्सा एक विशेष रूप से समृद्ध विषय है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ गौमूत्र को जीवन का अमृत मानते हैं। यह सबसे प्रभावी प्राकृतिक उपचार है और उपचार का सबसे सुरक्षित तरीका प्रकृति द्वारा हमें प्रदान किया गया है।पंचगव्यअवयवों में से एक गौ मूत्र, कई असाध्य रोगों का इलाज करने में सक्षम है और आयुर्वेदिक में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
गोमूत्रम् कटु तीक्षणोष्णम् सक्षारत्वन्न वातलम्।
लघ्वग्निदीपनम् मेध्यम् पित्तलम् कफवातनुत।।
शूल गुल्मोदरानाह विरेकास्थापनदीषु।
मूत्रप्रयोगसाध्येषु गव्यम् मूत्रम् प्रयोजयेत।।
(सु सू 45/220-221)
गव्यम् समधुरम् किञ्चिददोषघ्नम् क्रिमकुष्ठनुत्।
कण्डु शमयेत् पीतं सम्यग्दोषोदरे हितम्।। ( सू 1/102)
मूत्रंगो अजावमहषीगजावोखरोद्भवं पित्तलम तीक्ष्णोष्णम् लवणानुरसम् कटु।
कृमशोफोदरानाह पांडुकफानीलां  शूलगुल्मरूचिविषश्वित्रकुष्ठाशांसी जयेल्लघु।।
( हृ सू 5/82-83)
गौ मूत्र उष्ण, तीक्ष्ण, लघु एवं अग्निदीपन स्वाभाव वाला होता है। गौ मूत्र थोड़ा मीठा होता है, दोषों का शमन करता है। यह कृमि, त्वचा रोग (कुष्ठ) को ठीक करता है और खुजली से राहत देता है। इसके उचित सेवन से पेट के विकार दूर हो जाते हैं। गौ मूत्र कफ एवं वात दोष को हरने वाला है। गौ मूत्र रसायन, हृदय के लिए हितकर, बल, बुद्धि, आयु को बढ़ाने वाला एवं विष के प्रभाव को दूर करने वाला है।
 
गव्यं पवित्रम् रसायनं पथ्यं हृद्यं बल बुद्धिदंस्यात।
आयु: प्रदं रक्तविकारहारी, त्रिदोषघ्नं, हृदय रोग विषापहम् स्यात।।

 

महाभारत में भी गौ मूत्र के माहात्म्य का वर्णन करते समय कहा गया है कि -
ऋषिभवांश्चापि जानामि राजन पूजित लक्षणाम्।
येषाम् मूत्र उपाग्राह्य आदि बंध्या प्रसूयते।
गौ मूत्र के सेवन या केवल उसके बछड़े या बैल के मूत्र को सूंघने से ही बंध्या स्त्री संतान उत्पन्न करने योग्य हो जाती है।
आयुर्वेद में औषध निर्माण करते समय कई औषध कल्पनाओ में गौ मूत्र की भावना दी जाती है अथवा औषध द्रव्यों का शोधन गौ मूत्र द्वारा किया जाता है। भावना देने से द्रव्यों में गुणान्तर्धान होता है जिससे औषध द्रव्यों की रोगों पर कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। भावना देने के पश्चात् औषध के गुणों में भी वृद्धि हो जाती है जिससे औषध की अल्प मात्रा भी तेजी से रोगों पर कार्य करती है। एकोनिटाइन के कारण कच्चा वत्सनाभ (एकोनाइट) कार्डियोटॉक्सिक होता है। धूप में तीन दिन तक गौ मूत्र में वत्सनाभ को डुबाकर शोधन करने पर एकोनिटाइन का स्तर नगण्य/अनुपस्थित हो जाता है और उल्लिखित खुराक में दवा सुरक्षित और कार्डियोप्रोटेक्टिव हो जाती है। इसी तरह, कुपीलु (नक्स वोमिका) के शोधन के दौरान , गाय के मूत्र में विसर्जन से विषाक्तता कम हो जाती है। आयुर्वेद की अनेक औषध कल्पनाओ में गौ मूत्र का प्रयोग आचार्र्यों द्वारा निर्दिष्ट है। वातकफहर होने के कारण गौ मूत्र कफज व्याधि जैसे स्थौल्य, प्रमेह, हृदय रोग, चर्म रोग, अर्बुद एवं वात व्याधि जैसे सन्धिवात, आमवात, अध्मान, आनाह, आटोप, विबंध, शोफ, श्लीपद, दांत में दर्द, यकृतशोथ, जलोदर, नेत्र रोग, रक्तचाप आदि में अत्यंत लाभप्रद है।
पाश्चात्य विज्ञान ने स्वीकारा गौ मूत्र कैंसर के लिए अमृत औषध
गौ मूत्र में वे सभी पदार्थ शामिल होते हैं, जो प्राकृतिक रूप से मानव शरीर में मौजूद होते हैं। इस प्रकार गौमूत्र का सेवन करने से इन पदार्थों का संतुलन शरीर में बना रहता है और इससे लाइलाज बीमारियों को ठीक करने में मदद मिलती है। गौ मूत्र की अनुमानित शेल्फ लाइफ लगभग 5 वर्ष होती है इस कारण यह सबसे प्रभावी प्राकृतिक एंटीसेप्टिक, एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, एंटीऑक्सीडेंट, Immuno-modulator, bio enhancer, anti-helmintic, analgesic साबित हो सकता है गौ मूत्र में  95% पानी, 2.5% यूरिया और शेष 2.5% खनिज, लवण, हार्मोन और एंजाइम का मिश्रण होता है। गौ मूत्र चिकित्सा का महत्त्व विदेशियों ने समझकर उसके औषधीय गुणों के लिए, विशेष रूप से bio-enhancer, antibiotic, antifungal, antimicrobial, anti-cancer agent के लिए, अमेरिकी पेटेंट (संख्या 6,896,907 और 6,410,059) प्रदान किया गया है। कैंसर के संबंध में, गौ मूत्र प्रयोग करने पर इन-विट्रो (In-vitro) परीक्षण (यूएस पेटेंट संख्या 6,410,059) में MCF-7 (human breast cancer cell line) के खिलाफटैक्सोल(पैक्लिटैक्सेल) के प्रभावशाली anti-cancerous परिणाम सामने आये हैं।
गौ मूत्र के चिकित्सा अनुभव
आयुर्वेद में वैसे तो गौ मूत्र की प्रयोग की कोई सीमा नहीं है परन्तु पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से मैंने अपने कुछ चिकित्सीय अनुभव आप सभी के साथ साझा किये हैं। इन प्रयोगों को अपनाकर अनेक रोगी स्वास्थ लाभ ले चुके हैं। 
  • रसायन के तौर पर, कैंसर में, डायबिटीज, चर्म रोगो में, मेद दुष्टि होने पर प्रात: कल 10-20 मिली. गौ मूत्र का सेवन जल के साथ करना चाहिए।
  • कफज व्याधि के साथ पित्त की समस्या भी होने पर गौ मूत्र में पानी के साथ सामान मात्रा में एलोवेरा जूस मिलाकर सेवन करने से पित्त की समस्या नहीं होती है एवं रोग का शमन होता है। 
  • घाव होने पर गौ मूत्र से साफ़ करने से एंटीसेप्टिक की तरह कार्य करता है।
  • चर्म रोगों में कायाकल्प क्वाथ को पकाकर उसमे गौ मूत्र मिलाकर स्नान करें अथवा sponge या किसी सूती कपड़े को लेकर साफ़ करने से चर्म रोग में लाभ होता है।
  • मिटटी स्नान करने पर मिटटी में एलोवेरा, नीम, गुलाब जल एवं गोधन अर्क मिलाकर स्नान करना चाहिए।
  • कैंसर, गांठ, lipoma जैसी व्याधियों में सिस्टोग्रिट की 2 गोली 10 से 20 मिली. गोधन अर्क में पानी मिलाकर प्रात: सूर्योदय के पहले सेवन करने से लाभ होता है।
  • चर्म रोग, खुजली में 10-20 मिली. गोधन अर्क में पानी मिलाकर नीम घन वटी की 2 गोली सेवन करने से रक्त की शुद्धि होती है एवं रोग शमन होता है। 
  • स्थौल्य या मोटापा होने पर गोधन अर्क का सेवन दिन में दो बार खाली पेट करना चाहिए। 
  • जोड़ों में दर्द, वात रोग, संधिगत वात में ऑर्थोग्रिट की 1-2 गोली 10 से 20 मिली. गोधन अर्क में पानी मिलाकर प्रात: सूर्योदय के पहले सेवन करने से दर्द एवं सूजन में लाभ होता है। 
  • लिवर के रोगों में, पीलिया आदि में लिवोग्रिट की 1-2 गोली 10 से 20 मिली. गोधन अर्क में पानी मिलाकर प्रात: सूर्योदय के पहले सेवन करने से में लाभ होता है।
  • बंध्या स्त्री को प्रात: 5 बजे नारी कांति वटी 1 गोली एवं संतति सुधा 1 गोली 10-20 मिली. गौ मूत्र एवं 10-20 मिली. एलोवेरा जूस मिलाकर सेवन करना चाहिए।
  • गौ मूत्र का प्रयोग निरापद रूप से सभी व्याधियों में किया जा सकता है। यह हर वर्ग के व्यक्ति, बाल, युवा, वृद्ध स्त्री-पुरुष के लिए हितकर है। इसकी सामान्य मात्रा २०-२५ मिली. है। बालकों में इसकी आधी मात्रा ही देवें।
उपसंहार
बंगाल में एक कहावत है  ‘जो खाय गौचुर कोना, तार देह होइ सोनाजिसका अर्थ है कि जो गौ मूत्र पीने वाले का  शरीर स्वर्ण के सामान दीप्तिमान बन जाता है। गौ मूत्र चिकित्सा एक समृद्ध विषय है जिसमे निरंतर अनुसन्धान की आवश्यकता है।  इस लेख में मैंने संक्षिप्त में गौ मूत्र का वर्णन कर आप सभी को इस अमृत स्वरूपी औषध से परिचय करवाने का प्रयास किया है। यह आवश्यक नहीं कि कोई रोग होने पर ही गौ मूत्र सेवन किया जाये। स्वस्थ व्यक्ति को भी अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए गौ मूत्र का सेवन करना चाहिए। यह भू-लोक के अमृत समान है। जो गौ माता हमें इस अमृत को प्रदान करने वाली है, उसका रक्षण, पालन, पोषण करना हमारा मौलिक धर्म होना चाहिए। समाज में घटती पशुपालन व्यवस्था एक चिंता का विषय है। इस पर हम सभी को संगठित हो कर यह प्रण करना चाहिए कि हम जीवन में कम से कम एक गौ वंश का पालन पोषण अवश्य करेंगे और एक स्वस्थ समाज में अपना सहयोग देंगे।
।।आओ गौ माता से प्रेम करें।।
।।सनातन धर्म की जय।। ।।गौ माता की जय।।