साक्ष्य आधारित लिवोग्रिट एक प्रभावी और सुरक्षित औषधि

साक्ष्य आधारित लिवोग्रिट एक प्रभावी और सुरक्षित औषधि

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय 
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

  नई औषधियों की खोज और विकास के दो बड़े आयाम हैं- एक इनकी efficacy यानि दवा का प्रभाव कैसा है? और यह कैसे काम करती है? साथ ही साथ यह बीमारी के किन-किन कारणों पर असर कारक है, तथा दूसरा इनकी safety या जिसे दवाई का टोक्सिकोलॉजिकल अस्सेस्मेंट भी कहते हैं, जिसमें यह पता लगाने का प्रयास किया जाता है कि क्या बनाई गई नई औषधि का कोई दुष्प्रभाव है या नहीं और अगर है तो वह कितनी मात्रा लेने के बाद और कितने समय के पश्चात हो रहा Efficacy और safety दोनों ही औषधियों के विकास और निर्माण के महत्पूर्ण घटक हैं और इसी से यह प्रमाणित होता है कि कोई औषधि कितने लम्बे समय तक कारगर साबित होगी।
पतंजलि की सभी औषधियाँ साक्ष्य आधारित
पतंजलि की सभी औषधियां इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही बाजार में रोगियों के लिए उपलब्ध कराई जाती है, इसलिए ही इन्हें साक्ष्य आधारित औषधियों की संज्ञा दी गई है।
लिवर कोशिकाओं पर गहन अनुसंधान
इस प्रक्रिया को जानने के लिए लिवर कोशिकाओं के ऊपर एक शोध किया गया। लिवर हमारे शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है और यह एक तरह से सबसे मेहनती अंग भी है। इसका एक प्रमुख कार्य ड्रग मेटाबोलिज्म है अर्थात् जो भी औषधियां हम खाते हैं उनको रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा शरीर के लिए आसान बनाना होता है। इन एलोपैथिक और सिंथेटिक दवाइयों के सेवन से यकृत या लिवर में डिली (ड्रग इंडयूस्ड लिवर इंजरी) पैदा हो जाती है जिसका प्रभाव लिवर के साथ-साथ पूरे शरीर पर पड़ता है। इस शोध के माध्यम से यह जानने का प्रयास किया गया कि क्या यकृत पर पडऩे वाले इन दुष्प्रभावों को आयुर्वेदिक औषधियों के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। अमेरिका के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हुए लगभग 1321 रोगियों पर हुए एक शोध से एक आश्चर्यजनक डाटा सामने आया जिससे यह पता चला कि एक्यूट लिवर फेलियर की घटनाएं उन रोगियों के साथ ज़्यादा घटित हुई जिन्होंने बुखार में प्रयोग होने वाली दवाई पैरासिटामोल का प्रयोग बहुत लम्बे समय तक और अधिक मात्रा में किया था। गर्भावस्था के दौरान और दिल की बीमारियों में दी जाने वाली दवाइयों से भी यकृत के काम करना बंद करने की घटनाएं अधिक देखी गई।
आयुर्वेद का सरलीकरण
आयुर्वेद में वर्णित विभिन्न औषधियों के सन्दर्भ से बनाए गए सर्वकल्प क्वाथ जो पुनर्नवा, भूमि आंवला, और मकोय जड़ी-बूटियों से निर्मित हैं में निहित विभिन्न फाइटोकेमिकल के एक्सट्रैक्ट और फार्मूलेशन बनाये गए जिससे रोगियों और उनके परिवारजन बीमारी के समय काढ़े को बनाने वाली परेशानी से बच सकें। उसके बाद इन्हीं अर्क से बनाए गए लिवोग्रिट की Efficacy और safety को सिद्ध करने के लिए शोध भी किया गया। इस शोध में यह देखा गया कि क्या सर्वकल्प क्वाथ या लिवोग्रिट के प्रयोग से यकृत की कार्यशीलता में सुधार किया जा सकता है और क्या डिली को भी ठीक किया जा सकता है या नहीं। शोध के लिए सबसे पहले मानव यकृत कोशिकाओं को अनुसंधान प्रयोगशाला में निर्मित कर उन्हें एक रसायन, कार्बन टेट्रा क्लोराइड (CCL4) दिया गया, जोकि एक औद्योगिक रसायन है और डिली की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण भी है। जब यह रसायन इन कोशिकाओं में प्रेरित किया गया तो इन कोशिकाओं का जीवन कम हो गया अर्थात् इनकी मृत्यु होने लगी। तत्पश्चात सर्वकल्प क्वाथ देने पर उन कोशिकाओं की पुन: उत्पत्ति होने लगी। इन कोशिकाओं की मृत्यु के दो प्रमुख कारण थे, पहला इन सेल्स में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का शुरू होना और दूसरा जो माइटोकॉन्ड्रिया हमारे सेल्स का पावर हाउस है, का मेम्ब्रेन पोटेंशियल कम होना। रिएक्टिव ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और एमएमपी स्तर जो औद्योगिक रसायन की वजह से बढ़ गया था वह भी डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम हुआ और यह दोनों पैरामीटर्स लिवोग्रिट के माध्यम से पुन: सही अवस्था में आ गए।
लिवोग्रिट का चूहों पर सफल प्रयोग
इसके बाद इन-वीवो शोध के लिए विन्स्टर चूहों को चुना गया। 9 हफ्तों तक किए गए इन शोध में विभिन्न पैरामीटर्स को जांचा गया जिसमें सीरम एएलटी और सीरम एएसटी प्रमुख हैं, शोध में पाया गया कि सर्वकल्प क्वाथ या लिवोग्रिट देने पर इन पैरामीटर्स का स्तर डोज़ डिपेंडेंट और टाइम डिपेंडेंट तरीके से कम हुआ। एक अन्य पैरामीटर सीरम बिलीरुबिन जोकि पीलिया के समय भी नापा जाता है वह भी सीसीएल 4 के प्रयोग से बढ़ चुका था वह भी लिवोग्रिट के माध्यम से डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम हुआ। स्ट्रेस की वजह से जानवरों में कोलेस्ट्रॉल और यूरिक एसिड के बढ़े हुए स्तर को भी इन आयुर्वेदिक औषधियों के माध्यम से कम किया। 
इन्हीं दवाइयों के साथ-साथ ही सिलिमेरिन जोकि एक कारगर ऐलोपैथिक औषधि है पर भी शोध किये गए, तत्पश्चात देखा गया कि यकृत की कोशिकाओं पर दोनों का क्या प्रभाव पड़ता है और पता लगा कि लिवोग्रिट अपने समकक्ष सिलिमेरिन से ज़्यादा प्रभावकारी है।
सीसीएल 4 के कारण इन यकृत कोशिकाओं में फाइब्रोसिस, लिम्फोसिस्टिक इंफिल्ट्रेशन, और हेपैटोसेलुलर वैक्यूओलेशन जैसी समस्या पाई गई, जिसका मतलब इन कोशिकाओं के बीच बहुत बड़ी-बड़ी खाली जगह बननी शुरू हो गई, लिवोग्रिट को डोज़ डिपेंडेंट और टाइम डिपेंडेंट तरीके से देने पर इन समस्याओं में भी कमी आई। 
इन शोधों से यह निष्कर्ष निकला कि सर्वकल्प क्वाथ या लिवोग्रिट एक असरकारक औषधि है। उसके बाद सेफ्टी और टॉक्सिकोलॉजी पर कार्य करने के लिए रेगुलेटरी गॉइडलाइंस और ओसीडी गॉइडलाइन के अनुरूप 28  दिन तक 1000 mg/kg डोज़ दी गई और किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला, तत्पश्चात महत्वपूर्ण अंगो की अलग-अलग हिस्टोपैथोलॉजी करने के बाद यह पता लगा कि इन अंगो में आयुर्वेदिक औषधि लिवोग्रिट देने से किसी भी प्रकार का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है। 
लाल रक्त कणिकाओं और श्वेत रक्त कणिकाओं, तथा 118 अलग-अलग प्रकार के पैरामीटर्स देखने के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि लिवोग्रिट हर प्रकार से एक सुरक्षित और असरदारक औषधि है। 
आयुर्वेद की पुन: प्रतिष्ठा में पतंजलि की भूमिका
भारत के प्राचीन ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के औषधीय पेड़-पौधों का वर्णन है, परन्तु अपनी भाषा का ज्ञान न होने के कारण यह विद्या हमारे देश से विलुप्त होती जा रही थी। परन्तु पतंजलि इस अनमोल धरोहर को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेकर, साक्ष्य आधारित आयुर्वेदिक औषधियों से हर नागरिक को रोग मुक्त कर विश्व को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

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