अनुशासन की याद दिलाते हैं श्रीराम
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प्रफुल्ल चंद्र कुँवर ‘बागी’
रेशमी शहर, भागलपुर, बिहार
श्रीराम कहलाये मर्यादा पुरुषोत्तम, इस धरा-धाम।
तब संयम और अनुशासन की याद दिलाते हैं श्रीराम।।2।।
पिता, पुत्र, पति, भाई, शिष्य, यति, सखा और शासक के रूप।
सत्य, शील, मर्यादा पालक, वे मानव गाथा में अनूप।।
खग, नर-वानर, सुर, मुनि खातिर, युगों-युगों से प्रेरणा-स्रोत।
सृष्टि काल से आज तलक दिखाता अखिल ब्रह्मांड जोत।।
संयम, अनुशासन संग आज पालन हो हर मर्यादाएँ।
जिसकी आज जरूरत ज्यादा, मिटे ताकि जल्दी विपदाएँ।।
अपने जीवन में श्रीराम ने हर व्यक्ति की रखी प्रतिष्ठा।
स्वाभिमान, सम्मान बढ़ाया, वैसी हो हममें जन-निष्ठा।।
सामाजिक मूल्यों का चिंतन, तब सारा जीवन पूर्ण काम।
तब संयम और अनुशासन की याद दिलाते हैं श्रीराम।।3।।
गुरुकुल में, वनवासी जीवन या हो राजतिलक की बेला।
समरसता, मर्यादा की जो नींव रखी प्रतिमान अकेला।।
उनने समाज में अनुशासन के जो मानदंड किए स्थापित।
उनका आज अनुकरण करना, अत्यावश्यक और देशहित।।
निज संपूरण जीवन-रण में, दिया राम ने परिचय जैसा।
धैर्य सहित सहनशक्ति का फिर है आज जरूरत वैसा।।
परिचय संयम, अनुशासन का दे, कायम की अद्भुत मिसाल।
भगवान राम शोभायमान, वैकल्पिक सिंहासन विशाल।।
पौराणिकता, प्रामाणिकता, लौकिकता, प्रभुता युत तमाम।
तब संयम और अनुशासन की याद दिलाते हैं श्रीराम।।4।।
जब सेनापति मीर बकी ने बर्बर बाबर के इंगित पर।
रामजन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त किया तोपची बुलाकर।।
उसी स्थान के मलबे पर, जिस मस्जिद का निर्माण किया।
उसे भक्त ने सींच रक्त से, ‘‘मस्जिद-ए-जन्म स्थान’’ कहा।
राम, कृष्ण, शिव बिना भारत का शब्द चित्र खींचना मुश्किल।
शिव मस्तिष्क हैं, राम भुजा दो एवं कृष्ण हैं इसके दिल।।
भारत को आभा-रत करता, शिव, राम, कृष्ण से बनी त्रयी।।
आध्यात्मिक गुरु विश्व मानता, आर्ष, आर्य और विश्व-विजयी।।
आजादी बाद उनचास में रामलला खुद हुए प्रकाशित।
छठा दिसंबर साल बानवे, कलंक मिटा जो निरा विवादित।।
सत्तर साल टेण्ट में ठहरे, न्यायालय से मिला विश्राम।
पाँच सदियों का इंतजार कुल करना पड़ा तुझे प्रभु राम।
तब संयम और अुनशासन की याद दिलाते हैं श्रीराम।।5।।
मध्यकाल में महान संत तुलसीदास ने रहकर काशी।
‘‘रामचरित मानस’’ रचना की, हे राम! तुम्हारा पा आशी।।
मानस एक अलौकिक रचना, तुलसी ने घर-घर पहुँचाया।
जिस घर में यह हुआ प्रतिष्ठित, उसको ‘‘राम मंदिर’’ बनाया।।
काशी और अयोध्याजी का आदिकाल से नाता गहरा।
कवि ने कालजयी रचना कर, दिया राम-ध्वज जग में फहरा।।
मानस रचना के त्रिसदी बाद, टेक अशोक सिंहल आये।
विश्व हिंदू परिषद् से जन्म भूमि मुक्ति का बिगुल बजाये।।
रामनाम ने हवा बदल दी, शीघ्र देश के हर कोने की।
इससे बड़ा प्रमाण और क्या ? श्रीराम तुम्हारे होने की।।
इस आंदोलन ने भी लोगों के धैर्य को रेखांकित किया।
पैंतीस साल संघर्षरत रह राजनीति परिवर्तित किया।।
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