प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की देन

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की देन

प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

   प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने देश के परिवेश को ऊर्जा और उत्साह से भर दिया। अपने ढंग से यह काम केवल जवाहरलाल नेहरू ने थोड़े समय किया था परंतु बहुत जल्दी वे भारत के मुख्य समाज को धिक्कारने और दुत्कारने लगे तथा उसमें खोट ही खोट निकालने लगे। इसके बाद तो सारे ही नेताओं का यह धंधा हो गया कि वे भारत के मुख्य समाज- हिन्दू समाज को सुधारने का अभियान छेड़े रहें। यह अभियान वस्तुत: यूरो-ईसाई पादरियों द्वारा भारत के ईसाइकरण की योजना से गढ़े गये नारों और मुहावरों के सहारे चलाया गया। इसमें संसार के सबसे समृद्ध समाज- ‘हिन्दू समाजकी मुख्य समस्या गरीबी बताते हुये दिनरात धन और संसाधनों के अभाव का रोना रोया गया और इस विलाप की आड़ में विदेशों से राष्ट्रघाती शर्तों पर ऋण और सौदे किये जाते रहे हैं तथा विनिमय में देश की बहुमूल्य संपदा बहुत सस्ते में उन देशों को दी जाती रही। इस धंधो में शासकों और प्रशासकों ने खूब धन कमाया। जिसका बड़ा हिस्सा विदेशों में जमा होता रहा। ऊपर से भ्रष्टाचार का विलाप भी शासक और प्रशासक ही करते रहे। मानो भारत के सर्वसाधारण लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं और बेचारे नेता और अफ़सर उनके भ्रष्टाचार से दुखी हैं और रोकने को बेचैन हैं। रोकने के नाम पर बनाई गई संस्थायें भी भ्रष्टाचार का ही नया जरिया बन गईं। देश की एक सीमित आबादी के पास धन बढ़ता रहा और सरकारें गरीबी का रोना रोती रहीं। इतनी सीधी सी बात तक देश के मानस से छिपाई गई कि अगर देश में धन बढ़ रहा है तो समस्या उचित वितरण, विषमता या दान के अभाव की है, कि गरीबी की। इससे देश में आत्मनिंदा, आत्मग्लानि, अवसाद और आत्महीनता की प्रवृत्तियाँ बढ़ती रहीं। वर्तमान में विपक्ष बने समुदाय आज भी यही कर रहे हैं।
मोदी सरकार में हुए युगान्तकारी परिवर्तन
नरेन्द्र मोदी जी की सहज विशेषता यह है कि उन्होंने इसके स्थान पर भारतीयों में आत्मगौरव, आत्मविश्वास, उत्साह और ऊर्जा का संचार कर दिया है। इससे परिवेश में युगान्तकारी परिवर्तन हो गया। अब लोग हिन्दू धर्म, हिन्दू समाज और हिन्दू परंपरा पर ज्ञान के बिना ही सही, परंतु गर्व से बात करते हैं। उसे कोई दीन-हीन या गंदी चीज कहने का साहस अब कोई नहीं कर सकता। अब जिसे हिन्दू से मुसलमान या ईसाई बनना है, वह हिन्दू धर्म की निंदा की आड़ लेकर यह काम नहीं कर सकता। उसे कोई अन्य बहाना बनाना होगा और उसकी सच्चाई समाज के सामने जायेगी।
स्टार्ट-अप से बेरोजगारों की संख्या घटी
लोकतंत्र में अधिकांश बातों में निरंतरता बनाये रखनी होती है। समाजवादी ढांचे के नाम पर लोगों के अभिक्रम और पुरूषार्थ की सामथ्र्य छीन ली गई और सभी लोग सरकारी नौकरी की लालसा से समय बिताते रहे। जिन्हें नहीं मिली, वे भी प्रतीक्षा उसकी ही करते रहे। परंतु अब स्टार्ट-अप सहित अनेक अभिक्रमों से बहुत साधारण लोग सरकारी नौकरी का मुँह देखे बिना अच्छा-खासा जीवन जीने की पहले करने लगे हैं। इसके साथ ही समाज के लिये कुछ अच्छा करने और दिखाने की भी होड़ मची हुई है। आवश्यक नहीं है कि इसमें कुछ कमियाँ हों। परंतु इससे देश का परिवेश पूरी तरह अवश्य बदल गया है। अब सरकारी नौकरी के इंतजार में बेरोजगारी का जीवन गुजारने वाले लोगों की संख्या बहुत घट गई है। गरीबी हटाओ के नाम से मुफ्तखोरी निश्चय ही अभी भी जारी है परंतु सबको पता है कि अगर हमने अपनी शक्ति भर काम किया तो अभाव की भीषण दशा नहीं रहने वाली है। आय कम हो सकती है परंतु बिल्कुल भी आय हो, ऐसी स्थिति नहीं रह गई है। जो कि सरकारीकरण के दौर में थी।
स्वच्छ राष्ट्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी
सबसे बड़ी उपलब्धि तो स्वच्छता के क्षेत्र में हुई। लगभग यह अंधविश्वास की तरह फ़ैल गया था कि भारत के सर्वसाधारण लोग सार्वजनिक स्थलों पर थूकना, पीक उगलना तथा अन्य प्रकार की गंदगी और कूड़ा फ़ैलाना कभी भी नहीं छोड़ेंगे। परन्तु सबसे चमत्कारी क्रांति इसी मामले में हुई है। भारत आज एक स्वच्छ देश है। जहाँ छोटे बच्चे और किशोर भी कूड़ा फ़ैलाने वाले बड़ों को टोक सकते हैं और लज्जित कर सकते हैं। यह केवल ऐसे नेतृत्व में ही संभव है जो सबकी आत्मीयता अपने व्यक्तित्व और आचरण से अर्जित कर ले।
 स्वावलम्बन की दिशा में तेजी से बढ़ा भारत,
सेना के नेतृत्व में रक्षा तैयारियाँ उत्कर्ष पर
एक राष्ट्र के रूप में मोदी जी ने जो किया है, उसके संदर्भ में ऊपर गिनाई गई बातें नगण्य हैं। एक ऐसे देश में जहाँ अपने को बौद्धिक कहने वाले लोगों का मुख्य काम शांति की रट रटते हुये विश्व का तथ्य अपने देश के लोगों से छिपाना और सैन्य तैयारियों को घटिया या मामूली चीज बताना रह गया हो, वहाँ आज अपनी सेना के प्रति राष्ट्र में सदा से व्याप्त प्रेम के अनुरूप रक्षा तैयारियाँ उत्कर्ष पर हैं और रक्षा के क्षेत्र में कतिपय शस्त्रों और उपकरणों का भारत निर्यात करने की स्थिति में गया है। इसके साथ ही रक्षा मामलों में स्वावलम्बन की दिशा में राष्ट्र तेजी से बढ़ रहा है। चंद्रयान की सफ़लता और सौर क्षेत्र के अध्ययन के लिये उपग्रह छोडऩे की पहल वस्तुत: रक्षा क्षेत्र का ही कार्य है।
समद्र में भी बढ़ी भारत की ताकत
जिसे हिन्द-प्रशांत महासागर का क्षेत्र कहा जाता है, वह सदा से ही भारत का क्षेत्र रहा है। हिन्द महासागर विश्व का एकमात्र महासागर है जो अत्यन्त प्राचीनकाल से भारत के नाम पर ही जाना जाता रहा है। इससे प्रतिस्पर्धा रखते हुये हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर के छोटे-छोटे टुकड़ों को कहीं अरेबियन सी और कहीं साउथ चाइना सी जैसे नाम दिये गये जो वस्तुत: छद्म नाम हैं। हालत यह है कि अभी कुछ समय पहले तक जिसे फ़ारस की खाड़ी कहा जाता था, उसका भी नाम बदलने का प्रयास चला।
द्वितीय महायुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका हिन्द-प्रशांत महासागर (इण्डो पैसिफिक़ सी) में दादागिरी के लिये सामने आया। वह यहाँ चौकसी रखने के पीछे इस समूचे क्षेत्र की सुरक्षा की चिंता बता रहा था। परंतु उसका प्रयोजन नाटो के दायरे से बाहर के देशों को इस क्षेत्र में बाधित करना है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास से आज पुन: हिन्द-प्रशान्त महासागर क्षेत्र भारत को सौंप दिया गया है और प्रधानमंत्री जी ने यह घोषणा की है कि यह क्षेत्र सबके कल्याण के लिये है। इस घोषणा के द्वारा उन्होंने भारत के स्वभाव को ही अभिव्यक्ति दी है।
 अंग्रेजों की कूटनीति से तैयार हुए शत्रु राष्ट्र
भारत विश्व में सदा से एक अद्वितीय राष्ट्र रहा है। सम्पूर्ण विश्व का यह सबसे समृद्ध राष्ट्र हजारों साल से रहा है। इसकी विशालता और वीरता से घबराकर अंग्रेज कूटनीतिज्ञों ने भारत के गांधी और नेहरू तथा अन्य अल्प राष्ट्रभक्ति वाले नेताओं का पोषण कर उनका समर्थन लेकर भारत के भीतर अनेक शत्रुराष्ट्र तैयार कर दिये- अफग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान तो सर्वविदित हैं ही, स्वयं तिब्बत में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को कब्जा करा दिया और उत्तर में 5 भारतीय गणराज्य - अजरबेजान, ताजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान और उजबेकिस्तान प्रथम महायुद्ध के बाद लेनिन और स्तालिन को दे दिये। इस प्रकार भारत की शक्ति को जितना घटाना संभव था, घटा दिया। परन्तु कालप्रवाह के साथ अब वे सभी राष्ट्र क्रमश: पुन: अपनी स्वाभाविक नियति को प्राप्त हो रहे हैं। इस प्रकार वृहत्तर भारत के विराट क्षेत्र में भारत के मर्मभाग की केन्द्रीय भूमिका निरन्तर बढ़ रही है। यह विश्व में भारत के पुन: उत्कर्ष का प्रमाण है जिसका सम्पूर्ण श्रेय श्री नरेन्द्र मोदी को है।
विश्व में बढ़ती भारत की पैठ
पूर्व की ओर देखो अभियान के अन्तर्गत मोदी जी ने जापान, कोरिया, चम्पा (वियतनाम), इण्डोनेशिया, मलेशिया आदि से निकटता बढ़ाई है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की गति तीव्र हुई है। यह विश्व शांति की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम है।
आज विश्व में श्री नरेन्द्र मोदी ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो सचमुच विश्वशांति की गारंटी है। इसीलिए विश्व के नेता उनपर बहुत अधिक भरोसा करते हैं और संबंधों को सुदृढ़ करने की ओर ध्यान देते हैं। सैन्य बल की वृद्धि इसमें बड़ा कारण है।
कोरोना महामारी में दिखी भारत की ताकत
विश्व नेता के रूप में नरेन्द्र मोदी जी ने अद्भुत कीर्तिमान तब स्थापित किया जब उन्होंने कोरोना की महामारी के दौर में सम्पूर्ण देश को आवश्यक सुरक्षा उपाय अपनाने के विषय में अद्भुत अनुशासन में ढाल दिया। इतनी व्यापकता और नियमितता के साथ विश्व में और कहीं मास्क नहीं लगाये गये और ही इतनी शांति के साथ टीके लगवाये गये। इसके साथ ही 80 करोड़ लोगों को निरन्तर भोजन सुलभ कराकर उन्होंने प्रजापालक राजा की छवि को साकार किया।
श्रीराम मंदिर की प्रतिष्ठा विगत दस वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि
आज इस आत्मविश्वास के साथ हर भारतीय को आत्मगौरव का अनुभव होता है और श्रीराम मंदिर की नवरचना के बाद से तो राष्ट्र में अद्भुत उल्लास और भक्ति की भावना व्यापक हो गई है। यह भक्ति, उल्लास और शक्ति किसी भी राष्ट्र को ऊँचाई तक ले जाती है। विलाप का दृश्य विदा हो गया है और उल्लास का उत्सव चारों ओर छा गया है। यही मोदी जी की दस वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि है।