प्रकृति की प्रयोगशाला में निर्मित कार्बनिक अंकुरित अमृतान्न आयु, आरोग्य जीवन को बनाता है महान

प्रकृति की प्रयोगशाला में निर्मित कार्बनिक अंकुरित अमृतान्न आयु, आरोग्य जीवन को बनाता है महान

डॉ. नागेन्द्र कुमार नीरज
निर्देशक एवं मुख्य चिकित्सा प्रभारी, योगग्राम, हरिद्वार

कार्बनिक आहार क्या है? 
   कार्बनिक आहार अर्थात् स्वास्थ्य एवं जीवनदायी जैव-आहार (Vitalyzing Food) सभी प्राणियों का वैज्ञानिक आहार है। प्रकृति की उन्मुक्त प्रयोगशाला में बने आहार को बिना तले-भुने एवं उबाले सीधे ही जो आहार उपयोग में लाया जाता है, वह जैव कार्बनिक आहार है। कार्बनिक-जैव आहार कार्बनिक जैव-खाद से ही उगाया जाता है। कार्बनिक आहार को उगाने से लेकर खाने तक किसी प्रकार के संश्लिष्ट रसायन एवं खाद, कीटनाशी दवाओं तथा अग्नि आदि से उसकी भौतिक, रासायनिक एवं भैषजीय संरचना को क्लिष्ट, जटिल एवं विकृत नहीं किया जाता। इसलिए कार्बनिक जैव-आहार को प्रकृति के रसोई घर में बना हुआ तथा बिना अग्नि का बना भोजन कहा जाता है। जैव-कार्बनिक आहार में सभी भौतिक, रासायनिक एवं भैषजीय संरचना, एन्जाइम, कार्बोज, प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन करिटोनॉथड, फ्लोवोनॉयड तथा अन्य ज्ञात-अज्ञात उपयोगी आवश्यक पोषक खाद्य तत्त्व जैव तथा नैसर्गिक रूप में होते हैं। 
कार्बनिक आहार की खोज
हम जो भी आहार लेते हैं वह सभी कार्बनिक रूप में होता है, लेकिन यहाँ पर कार्बनिक आहार का मूल तात्पर्य उपर्युक्त जैव-कार्बनिक आहार से है। हमारा शरीर जैव-कार्बनिक रसायनों का श्रेष्ठ यौगिक है अत: इसके स्वस्थ निर्माण एवं विकास के लिए सजातीय उपर्युक्त जैव-कार्बनिक रसायन ही श्रेष्ठ तथा उपयोगी हैं। कार्बनिक रसायन का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। सन् 1745 ई. में सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ लैवोजिएर ने यह सिद्ध किया कि कार्बनिक यौगिकों में प्राय: कार्बन हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन तत्त्व पाए जाते हैं। स्वीडिश वैज्ञानिक डॉ. शीले ने सन् 1769 से 1786 के मध्य नीबू से साइट्रिक अम्ल तथा पेशाब से यूरिक अम्ल बनाया। उस समय सभी प्रकार के कार्बनिक यौगिक जीव-जन्तुओं तथा पौधों से ही प्राप्त होते थे। इसीलिए सन् 1815 ई. में कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में स्वीडिस रसायनज्ञ डॉ. जॉन्स जैकब (जे.जे.) बर्जीलियस ने जीवनी-शक्ति सिद्धान्त (Vital Force Theory) का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार सभी कार्बनिक पदार्थों के निर्माण के लिए एक विशेष प्रकार की अद्भुत दिव्य जीवनी शक्ति की आवश्यकता होती है और यह जैव शक्ति जैव-पदार्थों में ही होती है। इस शक्ति द्वारा ही जीवन के सभी कार्य सम्पादित होते हैं तथा ये विभिन्न जैव रस-रसायनों, हार्मोन, एन्जाइम आदि का निर्माण करते हैं। इस शक्ति द्वारा ही जीवन स्वस्थ एवं नैसर्गिक सौन्दर्ययुक्त होता है। यह शक्ति प्रयोगशाला में किसी भी कीमत पर पैदा नहीं की जा सकती है। जीवनी शक्ति परमात्मा द्वारा सिर्फ जीवित जीवों (Living Organism) को दिव्य वरदान के रूप में मिला है। इसे प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता है। कार्बनिक यौगिकों का निर्माण एवं संश्लेषण जीवित कोशिकाओं के द्वारा प्रकृति प्रदत्त जीवनी शक्ति (Vita Force) की सहायता से होता है। 19वीं शताब्दी के 1828 ई. में जर्मन रसायनज्ञ बोलर अमोनिया सायनेट को गर्म करके यूरिया, 1845 ई. में कोल्वे कार्बन तथा हाइड्रोजन से एसिटिक एसिड तथा बर्थेलाट 1856 में मिथेन बना चुके थे। अब तक लाखों की संख्या में कार्बनिक रसायन ज्ञात हो चुके हैं तथा बनाये जा रहे हैं। इस प्रकार रसायनज्ञों की भाषा में जीवनी शक्ति सिद्धान्त खंडित हो चुका है, लेकिन आहार-विशेषज्ञ होने के नाते मैं बल देकर कहना चाहता हूँ कि आहार के क्षेत्र में वर्जिलियस का सिद्धान्त शाश्वत है, क्योंकि प्राणियों के आहार के रूप में जैव-कार्बनिक रसायन जितना उपयोगी एवं सात्मीकृत होता है, उतना प्रयोगशाला में निर्मित औषध या किसी रूप में संश्लेषित कार्बनिक रसायन उपयोगी नहीं होता है। साथ ही ये अपने दुष्प्रभाव से अनेक प्रकार की विकृतियाँ एवं असाध्य रोग पैदा करते हैं। कार्बनिक रसायन का विद्यार्थी होने के नाते मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि विटामिन, औषधियाँ तथा अन्य कथित टॉनिक तथा एण्टीबायोटिक्स में प्रयुक्त संश्लेषित कार्बनिक रसायन जीव को बेमौत मारता है। संश्लेषित कार्बनिक रसायन मृत्य एवं विषाक्त रसायन हैं। ये जीव के लिए कभी उपयोगी नहीं हो सकते हैं। यह एक कटु सत्य है। सभी औषधियाँ जहर सदृश हैं। स्वास्थ्य के लिए मृग मरीचिका हैं। प्रत्येक कसौटी पर कार्बनिक जैविक आहार खरा उतरता है। 
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कार्बनिक आहार की विशेषताएं
पर्यावरण की दृष्टि से विकास के नाम पर आज विभिन्न प्रकार के कल-कारखाने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या खड़ी कर रहे हैं। आहार पकाने के लिए प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के ईंधन-गैस, कोयले, लकड़ी इत्यादि के जलने से भी पर्यावरण प्रदूषित होता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के कृत्रिम आहारों, रासायनिक खादों तथा कीटनाशी दवाओं के बेशुमार उत्पादन, प्रयोग तथा खपत के कारण भयंकर रूप से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। इनसे कारगर ढंग से निपटने का एक ही रास्ता है- जनसाधारण को जैव-खेती द्वारा अधिक से अधिक उत्पादन बढ़ाने का प्रशिक्षण देना और जैव-खेती में उत्पादित आहारों को जैव-कार्बनिक आहार के रूप में कच्चे ही खाने के लिए प्रोत्साहित करना। इस प्रकार के प्रयोग लेखक सन् 1973 ई. से स्वयं तथा ढ़ाई लाख से भी अधिक इनडोर एवं लाखों आउटडोर रोगियों पर कर चुका हूँ तथा अभी भी प्रयोग चल रहा है। यह प्रयोग काफी उत्साहवर्धक एवं सफल रहा है। जैव-खेती एवं जैव-कार्बनिक आहार में रुचि रखने वाले अनेक लोगों ने इस प्रक्रिया को सहर्ष अपनाया है। आवश्यकता इस बात की है कि जैव-कार्बनिक खेती करने तथा जैव-कार्बनिक आहार का उपयोग करने के लिए एक विशाल जन स्वास्थ्य आन्दोलन पतंजलि योगपीठ संस्थान द्वारा चलाया जा रहा है। इस आन्दोलन आहार के प्रयोग को सार्वभौम एवं सार्वजनीन बनाने से राष्ट्रीय तथा विश्व पर्यावरण की दृष्टि से हम काफी समृद्ध हो सकेंगे।
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आयुर्विज्ञान की दृष्टि से
विश्व की अनेक विख्यात प्रयोगशालाओं ने अपने विविध प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि कार्बनिक जैव खाद से उत्पादित आहार की रासायनिक संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता है। वे अपने मौलिक रूप में होते हैं। रासायनिक खाद तथा कीटनाशी औषधियों से उगाए गए पौधों की रासायनिक संरचना में विषम परिवर्तन होने से उनके मौलिक गुणों में काफी अन्तर आ जाता है। ऐसे आहारों के प्रयोग से गुर्दे, यकृत, मांसपेशीय सम्बन्धित तथा कैंसर जैसे घातक रोग होने की प्रबल संभावना बढ़ जाती है। इस प्रकार के आहार शरीर के रासायनिक घटकों पर रोगोत्पादक प्रभाव डालते हैं। अत: स्वास्थ्य- संवर्धन रोग-निवारण तथ स्वास्थ्य-संरक्षण की दृष्टि से कार्बनिक जैव-आहार ही हमारे शरीर के रसायनों के अनुकूल श्रेष्ठतम आहार है। आयुर्विज्ञानियों ने जैव अंकुरित अनाजों से एक विशेष प्रकार का आहार तैयार किया है। इस आहार का उपयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा में किया जायेगा। आयुर्विज्ञानी अपने प्रयोगों के दौरान यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि एक बीज के अंकुरण के समय इन नन्ही सी अद्भुत प्रयोगशाला के किसी खण्ड में एमीनों अम्ल की सक्रियता काफी बढ़ रही है तो कहीं पर विभिन्न प्रकार के विटामिनों, एन्जाइमों, शर्कराओं का निर्माण हो रहा है। कहीं जटिल पोषक तत्त्वों का सरलीकरण हो रहा है अर्थात् विभिन्न खंडों में विभिन्न प्रकार का जैव-रासायनिक संश्लषण व निर्माण कार्य चल रहा है। अंकुरण के दौरान जैव भौतिक रासायनिक क्रियाओं का अद्भुत करिश्मा चलता है। इन अद्वितीय करिश्मों को देखकर दाँतों तले अँगुली दबाने को बाध्य होना पड़ता है। अंकुरण के दौरान प्रोटीनों का श्रेष्ठ प्रोटीनों में रूपान्तरण होता है। अंकुरित अनाज का प्रोटीन माँसाहार से श्रेष्ठ माना जाता है। माँसाहार का प्रोटीन शरीर में किडनी हृदय एवं मस्तिष्क रोग यूरिक अम्ल, क्रिटीनाइन, फ़ास्फेट, यूरिया तथा कोलेस्टेरॉल बढ़ाता है, जबकि अंकुरित अनाज इन्हें कम करते हैं। मिनेसोटा विश्वविद्यालय के डॉ. सी.डब्लू. वैली अपनी शोधों से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि गेहूँ के प्रारम्भिक अंकुरण काल में विटामिन सी 600 प्रतिशत तथा बहुमूल्य विटामिन-ई प्रचुरता से बढ़ता है। डॉ. बुरखोल्डर्स अपने शोधों से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अंकुरित अनाज में नायसिन 500 प्रतिशत, बायोटिन 50 प्रतिशत, पायरिडॉक्सिन 500 प्रतिशत, पेन्टोथेनिक 200 प्रतिशत, फॉलिक अम्ल 600 प्रतिशत, थायमिन 10 प्रतिशत, रिबोफ्लेविन 100 प्रतिशत तथा इनोसिटाल 100 प्रतिशत बढ़ जाता है। डॉ. लेट्राइल केबस के अनुसार अंकुरित अनाजों तथा ताजी हरी सब्जियों में कैंसर-अवरोधी तत्त्व लेट्राइल प्रचुरता से पाया जाता है। हिप्पौक्रेट्स हेल्थ इन्स्टीट्यूट बोस्टन के संस्थापक निदेशक डॉ.एन. विग्मोर तथा पूर्व अनुसंधान निर्देशक डॉ. विक्टोरस पी. कुल्वीन्सकॉस ने अंकुरित अनाजों पर वर्षों प्रयोग कर एक पुस्तक न्यूट्रीशन एवोल्यूएशन ऑफ स्प्राउट एण्ड ग्रासेस लिखी है। इस नवीनतम शोध-पुस्तक के आधार पर अंकुरण के दौरान कुछ प्रमुख जीवनदायक जैव तत्त्वों का संवर्धन किस प्रकार होता है, उन्हें निम्न तालिकाओं द्वारा दर्शाया गया है-
एन्जाइम- मूँगफली में अंकुरण के पूर्व तथा पश्चात् एन्जाइम सक्रियता (Enzyme Activity) का संवर्धन यू. मोल्स ग्लाइकोमेट में निम्न प्रकार से होता है-
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विटामिन-सी 100 ग्राम सोयाबीन में अंकुरण के बाद विटामिन-सी में वृद्धि निम्नानुसार पाई गयी है-
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सूखे अनाज में विटामिन-सी तथा एन्जाइम का सर्वथा अभाव होता है, लेकिन भीगने तथा अंकुरण के बाद इनमें तेजी से वृद्धि होती है। 
आर.एन.ए. तथा डी.एन.ए.- प्रति 100 ग्राम गेहूँ तथा जई के अंकुरण में आर.एन.ए. तथा डी.एन.ए. का सम्वद्र्धन माइक्रोग्राम पायरो फॉस्फेट में-

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कैरोटिन प्रति 100 ग्राम विभिन्न प्रकार के अनाज द्विदल बीजों के अंकुरण के बाद कैरोटिन (विटामिन-ए) में वृद्धि-

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विटामिन-बी 100 ग्राम सोयाबीन में अंकुरण के बाद विटामिन-बी में सम्वद्र्धन-
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प्रति ग्राम गेहूँ, मूँग, मटर के सूखे तथा अंकुरण के 5वें दिन बी-ग्रुप के विभिन्न विटामिनों की स्थिति मा.ग्रा./ग्राम  66
माँसाहार समर्थक कुछ आहार-विज्ञानियों का मानना है कि विटामिन बी-12 का एकमात्र स्रोत माँसाहार ही है, परन्तु निम्न शोधपूर्ण तालिका से यह सिद्ध होता है कि अंकुरित अनाज विटामिन बी-12 का श्रेष्ठ स्रोत है। प्रति ग्राम मूँग, मसूर, चना, सूखे हरे मटर के अंकुरण के बाद विटामिन बी-12 में वृद्धि माइक्रोग्राम में-

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प्रति ग्राम विभिन्न प्रकार के बीजों के अंकुरित होने पर विटामिन-ई (टोकोफेरॉल) की वृद्धि माइक्रोग्राम में-
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उपर्युक्त विभिन्न प्रकार के अंकुरित अनाजों, तेल तथा द्विदल बीजों के अंकुरण के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के ताजे फलों, सब्जियों तथा हरी सब्जियों को कच्चे खाने से सभी प्रकार के एन्जाइम तथा विटामिन प्रचुरता से उपलब्ध हो जाते हैं। फल व सब्जियों का वैज्ञानिक विश्लेषण लेखक की अन्य पुस्तक आहार के चमत्कार में देखें। 
आर्थिक दृष्टि से- अंकुरित अनाज तथा मौसमानुसार मिलने वाले फल एवं सब्जियाँ आदि कार्बनिक जैव आहार काफी सस्ते पड़ते हैं। अंकुरित अनाज विश्व को श्रेष्ठतम आहार है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस बहुमूल्य आहार का लाभ उठा सकता है। यह आहार विकासशील, अविकसित तथा तीसरी दुनिया के गरीब देशों के लिए प्रकृति का श्रेष्ठतम वरदान है। 
‘अजस्र अक्षय स्वास्थ्य’ का स्रोत है- अंकुरित अनाज। जिस कौम के बाल, वृद्ध एवं युवा गरीबी के कारण कुपोषण के शिकार हो अकाल काल-कवलित हो जाते हैं, उनके लिए अमृत तुल्य है अंकुरित अन्न। उदाहरण स्वरूप भीषण कमर तोड़ मंहगाई की स्थिति में 100 ग्राम अंकुरित अनाज का अधिकतम मूल्य मात्र 2-4 रुपया ही होगा। इस प्रकार से अंकुरित अनाज सर्वसुलभ तथा सर्वसाध्य है। इसके लिए मंहगे ईंधन, गैस, कैरोसिन तेल, लकड़ी तथा कोयला आदि की आवश्यकता नहीं होती है। 
स्वास्थ्य की दृष्टि से- कार्बनिक जैव आहार में विपुल मात्र में विशिष्ट प्रकार के एन्जाइम, विटामिन तथा अन्य ज्ञात-अज्ञात पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य की सुरक्षा एवं निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से कार्बनिक जैव आहार का कोई विकल्प नहीं है। 
सौन्यदर्य की दृष्टि से- हमारा सौन्दर्य जीवन्त कोशिकाओं तथा चमकते रक्त के हिमोग्लोबिन पर निर्भर करता है। रक्त कोशिकाओं का स्वास्थ्य उच्चतम किस्म के पोषक तत्त्वों से संयुक्त कार्बनिक जैव आहार पर निर्भर करता है। कार्बनिक जैव आहार का प्रयोग करें तो आपका सौन्दर्य पूर्णता में निखरेगा। शृंगार-प्रसाधन तथा ब्यूटी क्लिनिक आपको कभी भी सौन्दर्य नहीं दे सकते। कार्बनिक जैव आहार के प्रयोग से आपके अन्दर से ही फूल की तरह सौन्दर्य प्रस्फुटित एवं सुरभित होगा तथा खिलेगा।
मानवीय सौहार्द की दृष्टि से- कार्बनिक जैव आहार के प्रयोग से व्यक्ति के दुर्गुण ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, हिंसा, लोभ, क्रोध, मोह इत्यादि का रूपान्तरण हो जाता है। व्यक्ति के अन्दर दूसरों के तथा अपने प्रति सहानुभूति, उदारता, प्रेम, स्नेह, करुणा, मैत्री, मुदिता, संयम, शांति, शील, समता, सौजन्यता, सहृदयता, सेवा, सहनशीलता, सहकारिता, निर्भयता, प्रसपता, स्वच्छता आदि उदात्त विचारों एवं सद्गुणों का विकास होता है। मानवीय सौहाद्र्र के भाव का संवर्धन होता है। 
असाध्य रोग-निवारण की दृष्टि से- गलत आहार मेल, मिलावट, कृत्रिम रंग रसायनों से युक्त आहार के कारण आधुनिक सभ्य लोगों में कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गुर्दे तथा यकृत के रोग, मधुमेह, आर्थराइटिस, मोटापा, मानसिक आदि रोग तेजी से बढ़ रहे है। इन असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए जैव कार्बनिक आहार का प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा है। 
दीर्घ जीवन की दृष्टि से- कार्बनिक जैव आहार का विशेष महत्त्व है। कार्बनिक जैव आहार के प्रयोग से मनुष्य की पूर्ण आयु 150 से 200 वर्ष तक की जा सकती है। यौवनावस्था 25 से बढ़ाकर 75 वर्ष तक की जा सकती है। अंकुरित अमृतान्न जीवन में सत्कर्म करने का जोश, जवानी, जूनून एवं जज्बात के रस से भर देता है।  
पाचन की दृष्टि से- कार्बनिक जैव आहार में अनेक प्रकार के पाचक तत्त्व, एन्जाइम, विटामिन तथा अन्य ज्ञात-अज्ञात सुपाच्य तत्त्वों का शीघ्रता से संवर्धन होता है। उदाहरण स्वरूप दाल-बीजों में कार्बोज परिवार के दो तत्त्व स्टेकीओस तथा वरवेसीकोस होता है। रेफिनोज (कार्बोज) परिवार के इन तत्त्वों का पाचन अल्फा ग्लेक्टसाइडेज नामक एन्जाइम करता है। आमाशय के रस में इस एन्जाइम का सर्वथा अभाव होता है फलत: ये पेट में सड़ते हैं। अंकुरित अनाज में किण्व प्रक्रिया द्वारा एमिलाइटिक, प्रोटियोलाइटिक तथा लाइपेज एन्जाइम तथा अन्य पाचक एन्जाइम पैदा होते हैं जिससे रेफिनोज तथा अन्य खाद्य-तत्त्व शीघ्रता से पच जाते हैं।
कब्ज निवारण की दृष्टि से- सभी प्रकार के कार्बनिक जैव आहार में रफेज सेलुलोज की पर्याप्त मात्रा होने से कब्ज की स्थिति दूर होती है। 
औषधीय-गुण की दृष्टि से- सभी प्रकार के कार्बनिक जैव आहार में अनेक प्रकार के हार्मोन, एन्जाइम, विटामिन तथा प्रति जैविकीय (Antibiotics) तत्त्व पैदा होने से इनमें प्रबल औषधीय गुण आ जाते हैं। यही कारण है कि कार्बनिक जैव आहार सभी प्रकार के रोगों से लोहा लेने में सक्षम हैं। 
स्वाद-संवेदनशीलता संवर्धन की दृष्टि से- कार्बनिक जैव-आहार जिह्वा की स्वाद संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं। बचपन में स्वाद की संवेदनशीलता पूर्ण रहती है। लेकिन आहार में गर्म मिर्च, मसाले तथा तले-भुने आहार के प्रयोग से स्वाद की संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है। जिह्वा स्थित स्वाद की कलियाँ मर जाती हैं। मुर्दा जिह्वा पर गर्म मिर्च-मसाले युक्त आहार डालने से वह तडफ़ड़ाती एवं काँपती है तो ऐसा भान होता है कि स्वाद आ रहा है, परन्तु यह स्वाद का एक भ्रम होता है। स्वाद की संवेदनशीलता को लौटाने के लिए कार्बनिक जैव आहार का प्रयोग श्रेष्ठ है। 
इस प्रकार हम देखते हैं कि कार्बनिक जैव आहार की असंख्य विशेषताएँ हैं। कार्बनिक जैव आहार के प्रयोग से व्यक्ति की पेटूपन की आदत समाप्त हो जाती है। दाँतों की खूब अच्छी कसरत होती है। हमारा शरीर एक जैव रासायनिक कारखाना है अत: इसका ईंधन भी जैव-रासायनिक ही होना चाहिए। यही सत्य तथ्य विज्ञान एवं प्रकृति-सम्मत है। कार्बनिक जैव आहार जीवन्त शरीर का सर्वश्रेष्ठ ईंधन है। अनेक आयुर्विज्ञानियों ने भी अपने विभिन्न प्रयोगों के आधार पर इस तथ्य को स्वीकार किया है। अमृतान्न आप भी अपनाइये तथा 100 साल तक आरोग्य आनन्द उल्लास के रस से भरपूर रहिए, उमंग की तरंग से तरंगामित होते रहिए, इसी आशा एवं विश्वास के साथ।

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