स्वास्थ्य समाचार
बढ़ती उम्र में रिस्क फैक्टर पर शोध उम्र नहीं, खराब जीवनशैली 60-69 में बीमार बनाती है
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60 से 69 साल की उम्र मे बीमार पडऩे की वजह बुढ़ापे से ज्यादा हमारी जीवनशैली है। ऑस्टे्रलिया में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इस उम्र में हम सबसे कम सक्रिय रहते हैं।
सक्रिय न रहने की वजह से बीमार पड़ते हैं। अगर हम थोड़ा बहुत भी व्यायाम या कोई शारीरिक काम करें तो बीमार पडऩे की आशंका कम रहती है। जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड कम्यूनिटी हेल्थ में छपे शोध में ये बताया गया है कि ६० से ६४ आयु वर्ग के लोग एक्टिव कम रहने के साथ-साथ ध्रूमपान, खराब आहार और पूरी नींद न ले पाने से उनके बीमार होने का खतरा दोगुना हो जाता है। इस आयु में लाइफ स्टाइल बदलने से डायबिटीज जैसी कई बीमारियां का खतरा बन जाता है। स्टडी के लिए ६० वर्ष से अधिक उम्र के १.२७ लाख लोगों को शामिल किया गया था। इन्हीं लोगों की लाइफ स्टाइल पर २००६ से २००९ तक स्टडी की गई थी, जब उनकी उम्र करीब ४५ वर्ष थी। स्टडी में ५ रिस्क फैक्टर पर अध्ययन किया गया। इनमें धूम्रपान, सक्रियता, सिटिंग टाइम, नींद का पैटर्न और आहार पर शामिल था।
5 रिस्क फैक्टर ये हैं
लाइफ स्टाइल के ५ रिस्क फैक्टर ६० से ६४ उम्र के लोगों में बहुत ज्यादा प्रभावशाली हैं। इस आयु वर्ग में अनहेल्दी लाइफ स्टाइल वाले लोगों में नर्सिंग होम में भर्ती होने की संभावना दोगुनी से ज्यादा थी।
सभी रिस्क फैक्टर का लोगों में नर्सिंग होम या अस्पताल में भर्ती होने से सीधा संबंध था। इनमें धूम्रपान करने वालों में ये जोखिम सबसे ज्यादा ५५ प्रतिशत था।
साभार : दैनिक भास्कर
पोषण के साथ जरूरी है प्रेम
गर्भकाल से लेकर तीन वर्ष तक 80 प्रतिशत से अधिक न्यूरल विकास होता है। हर बच्चे को अच्छा पोषण, उत्तरदायी देखभाल, सुरक्षित वातावरण मिलना आवश्यक है। पूरक आहार छह महीने बाद शुरू हो जाता है, लेकिन ध्यान रखें स्तनपान दो साल तक जारी रखना चाहिए।
मां का दूध बच्चे के लिए अमृत
शुरूआती छह महीने तक बच्चे को मां का ही दूध पिलाना चाहिए। मां बच्चे को जितना दूध पिलाएगी, उतना ही यह बढ़ेगा। मां का दूध बच्चे के लिए सुपाच्य होता है। दूध पीते-पीते बच्चे को पच जाता है और एक घंटे में ही उसे दोबारा भूख लग जाती है। छह महीनों में न तो पानी या कोई घुटटी देनी चाहिए, ना ही कुछ खिलाना।
मां के पोषण पर बच्चे की निर्भरता
हर मां को दिनभर में आठ बार शिशु को स्तनपान कराना चाहिए। आमतौर पर माना जाता है कि यदि मां बच्चे को दूध पिला रही है तो उसे चावल, दही, आम नहीं खाना चाहिए, जबकि स्तनपान के दौरान मां को घर का बना सब कुछ कम से कम चार बार खाना चाहिए। साथ ही मौसमी फलों का सेवना करना चाहिए। कुछ महिलाओं को भ्रम होता है कि प्रसव के तुरंत बाद बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए, क्योंकि इससे पस बनता है। यह गलत धारणा है।
कुपोषण के कारण
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बाटल फीडिंग से बच्चे को दस्त और निमोनिया होने की आशंका अधिक रहती है।
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बाटल फीडिंग से मां का दूध कम होने लगता है और बच्चे को कुपोषण हो सकता है।
कब शुरू करें पूरक आहार देना
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छह महीने बाद बच्चे को दाल का पानी पिलाना शुरू कर देते हैं, वह भी गलत है। चावल, दाल मसलकर थोड़ा-थोड़ा खिलाना शुरू करें और बाजार के फीडिंग फार्मूले से बचें।
गर्भकाल के दौरान सर्तकता
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गर्भावस्था के दौरान मां का आह सही और संतुलित हो। घर का बना भोजन ही करें।
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नियमित रूप से डॉक्टर से मिलें और जरुरी टीकाकरण कराएं। इससे गर्भस्थ शिशु का बेहतर विकास होता है।
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बच्चे के संपूर्ण मानसिक विकास के लिए गर्भकाल के दौरान मां का स्वस्थ रहना आवश्यक है। गर्भावस्था के दौरान मां का वजन आठ से नौ किलोग्राम तक बढऩा चाहिए।
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साथ ही मां के रक्तचाप की नियमित जांच आवश्यक है। प्रसव हमेशा अस्पताल में कराएं।
मानसिक विकास के लिए जरुरी हैं ये उपाय
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छह महीने के बाद बच्चों के साथ खेलना बढ़ाए, उससे बात करें।
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बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए दो बातें हमेशा ध्यान रखें। पहला मां का दूध, छह महीने बाद पूरक आहार, दूसरा बच्चे को सकारात्मक पारिवारिक माहौल।
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बच्चों का नियमित और जरुरी टीकाकारण अवश्य कराएं। इससे उसके समुचित विकास की निगरानी भी होती है।
यूं पाएं सांस में तकलीफ से राहत
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अपने घर को साफ रखने के अलावा अपने बिस्तर को भी साफ रखें। घर में वेंटिलेशन का पूरा ध्यान दें।
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सिगरेट पीते हैं तो इसे जल्दी से छोड़ दें। धूम्रपान की वजह से न केवल आपको सांस लेने में दिक्कत होगी बल्कि कैंसर जैसी कई गंभीर समस्याओं का भी आपको सामना करना पड़ सकता है।
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खाने में ब्रोकोली, गोभी, पत्ता गोभी, पालक और चौलाई को शामिल करें।
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व्यायाम नहीं करते हैं तो आप सुबह-शाम व्यायाम करना शुरू कर दें। ध्यान दें, अगर आप प्रदूषित शहर में रहते हैं, तो कोशिश करें कि आप घर पर ही व्यायाम करें।
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वजन कम करने की कोशिश करें। अमेरिकी डायबिटीज एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, मोटापा फेफड़े को सही ढंग से काम करने से रोकता है। इसके लिए आप अपने खाने-पीने पर ध्यान दें।
साभार : दैनिक भास्कर
इन्सुलिन पंप और ग्लूकोज मॉनिटर है एआईडी, फिक्स प्रोग्रामिंग से शुगर कंट्रोल
एनआईसीई की रिपोर्ट: डायबिटीज पीडि़त गर्भवती महिला में अनियमित रहता है शुगर लेवल,
इसके कई खतरे हैं
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्लिनिकल एक्सीलेंस (एनआईसीई) की हाल ही में आई रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया गया है डायबिटीज पीडि़त गर्भवती महिला में ग्लूकोज नियंत्रण अनियमित होता है। गर्भावस्था में ग्लूकोज नियंत्रण के लिए स्वचालित इन्सुलिन प्रणाली (एआईडी) ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। दावा ये भी है कि एआईडी इन्सुलिन पंप और ग्लूकोज मॉनिटर है। पंप में कम्प्यूटर प्रोग्राम फिक्स है, जिससे यह शरीर में ग्लूकोज की मात्रा का अध्ययन करता है और फिर इन्सुलिन देकर इसे नियंत्रित करता है। भारत में डॉक्टरों की संस्था इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी प्रैटिक्स ऑटोमेशन के चेयरमैन डॉ. जतिंद्र बाली के अनुसार, एआईडी डायबिटीज टाइप वन से पीडि़त गर्भवती महिलाओं के लिए ज्यादा उपयुक्त है। नए दौर में महिलाएं अधिक उम्र यानी ३५ से ४५ वर्ष की उम्र तक भी गर्भधारण कर रही हैं। बढ़ती उम्र में इन्सुलिन का उत्पादन काफी कम होता जाता है। इससे मिस कैरेज की आशंका रहती है।
124 महिलाओं पर परीक्षण किया गया
एनआईसीई के मुताबिक, टाइप वन डायबिटीज वाली गर्भवती महिलाओं में मानक इन्सुलिन के लिए एआईडी और कंट्रोल ग्रुप टेस्ट में १२४ महिलाओं को शामिल किया गया। इन्हें इन्सुलिन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए रैंडमाइज्ड किया गया था। महिलाएं गर्भावस्था के १६वें सप्ताह में ६३ से १४० मिग्रा/डीएल, ३.५ से ७.८ मिमी ऑल लीटर तय किया गया। इनका रक्त ग्लूकोज सीमा लक्ष्य ज्यादा समय तक मेंटेन रहा।
कैसे काम करता है एआईडी
मणिपाल हॉस्पिटल, द्वारका में डायबिटीज और एंडोक्रिनोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. मोनिका शर्मा के अनुसार, एआईडी को चिप के जरिए महिला के हाथ पर लगाया जा सकता है। इसमें इन्सुलिन पंप और ग्लूकोज मॉनिटर होता है। पंप सेंसर के जरिए इसे नियंत्रित करता है। पता लगाता है कि शरीर में इन्सुलिन की मात्रा कितनी देनी है। शुगर बढ़ रही तो इन्सुलिन पंप कर देता है और वह नियंत्रित हो जाती है। गर्भावस्था मे शुगर लेवल कम-ज्यादा होती रहती है।
साभार : दैनिक भास्कर
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