आर्थराइटिस

लक्षण, कारण, बचाव, घरेलू उपचार व निवारण

आर्थराइटिस

डॉ. अरुण पाण्डेय  पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज, हरिद्वार

   शरीर के जोड़ों में होने वाले दर्द और सूजन को आर्थराइटिस रोग के नाम से जाना जाता है। ज्वांइटस पेन (जोड़ों का दर्द) एक तरह से आज के युग की एक आम समस्या बनकर रह गयी है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे हमारे शरीर का कोई न कोई इस रोग की गिरफ्त में आ ही जाता है और तब इस रोग से ग्रसित व्यक्ति का जीवन पीड़ा युक्त होकर रह जाया करता है।
आस्टियो आर्थराइटिस
आस्टियो आर्थराइटिस रोग की शरीर में उत्पत्ति चयापचय में आयी गड़बड़ी की वजह से होता है। पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को यह रोग ज्यादा सताता है। ज्यादातर यह रोग घुटनों, कमर, नितंबों और अगूठों की हड्डियों में होता हैं वैसे यह रोग शरीर के किसी भी जोड़ में हो सकता है। हड्डियों के जोड़ों के बीच साइनोवियल फ्ल्यूड का तरल पदार्थ होता है। एक तरह से यह तरल पदार्थ लुब्रिकेशन का काम करता है। जब जोड़ों के बीच साइनोवियल फ्ल्यूड की उपस्थिति में कमी आ जाती है, तब आस्टियो आर्थराइटिस (अस्थि संबंधित) रोग होता है। इस रोग के होने पर खून में यूरिक एसिड और यूरेटस की मात्रा में बढ़ोतरी हो जाती है। जिससे यह शरीर के जोड़ो, उपास्थियों, कान व त्वचा के नीचे इकट्ठा होकर तेज दर्द पैदा करता है। रोगी को इस तरह का रोग ज्यादातर सुबह के समय होता है। ज्यादातर दर्द रोगी के दायें पैर के अंगूठे में होता है। इसके अलावा रोगी की एड़ी, घुटना, टखना और कानों में भी दर्द होता है। रोगी को सर्दी लगने के साथ-साथ तेज बुखार चढ़ जाता है। दिन में दर्द में कमी आ जाती है और शाम होते-होते रोगी को तेज दर्द होने लगता है। अगर रोगी को सही वक्त पर उपचार न किया जाए तो गंभीर स्थिति उत्पन्न होने की आशंका बन जाती है और फिर तब रोगी के गुर्दों में पथरी बननी शुरू हो जाती है और रोगी की रक्तवाहनियां व मूत्रशय रोगग्रस्त हो जाते हैं। इस रोग के होने पर शरीर की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सामान्य अवस्था में मानव शरीर की सुरक्षा करने वाले तत्व ही शरीर के जोड़ों के स्वस्थ ऊतकों और झिल्लियों पर ही आक्रमण करना शुरू कर देते हैं, जिससे रोागी को जलन और दर्द का अनुभव होता है और उसके शरीर के रोग ग्रस्त हिस्से में सूजन आ जाया करती है।
लक्षण
कई बार पायरिया, टांसिल की सूजन, गनोरिया, टी0बी0, सोरायसिस, सिफलिस और डिसेन्ट्री आदि कीटाणुओं के संक्रमण के कारण भी शरीर में आर्थराइटिस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। उपरोक्त सभी बीमारियों में रोगी के शरीर से बदबूदार पसीना निकलता है और उसमें प्यास, कब्ज, सिरदर्द, जोड़ों में सूजन, बुखार, जोड़ों में दर्द के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
  • रोगी की जीभ पर सफेद परत सी जम जाती है।
  • जब रोगी चलता है तब उसके दर्द में बढ़ोतरी हो जाती है।
  • रोगी को शाम के समय ज्यादा दर्द का अनुभव होता है।
  • रोगी के घुटने धनुष की तरह बाहर की ओर मुड़ जाते हैं। 
  • उंगलियों के जोड़ सूज जाते हैं। 
     
  • रोगी चिड़चिड़ा सा हो जाया करता है।
कारण
हमारे शरीर में जब विषाक्त पदार्थों का जमावड़ा आवश्यकता से अधिक हो जाता है, तब हमारे शरीर में वात रोग का प्रकोप पैदा हो जाता है। जब कब्ज रोग पुराना हो जाता है, तब आंतों में जमा मल सडऩ पैदा कर तरह-तरह के रोगाणुओं को पैदा को करता है। ये कीटाणु भोजन से मिले प्राटीन एमिनो एसिड्स पर अपना प्रभाव डालकर एमाइन्स में परिवर्तित कर देते हैं। जो टॉक्सिस खून सोखता है वे खून के द्वारा शरीर के जोड़ों और पेशियों में पहुंचकर उन्हें संक्रमित कर देते हैं, तब शरीर में संधिवात रोग पैदा होता है। बरसात में भोजन से, टॉन्सिल होने से, वायु विकार होने से, गनोरिया रोग होने से, टीबी होने से, सिफलिस रोग होने से भी शरीर में विभिन्न प्रकार के वातज रोग पैदा होने का कारण बन जाया करते हैं।
  • आस्टियो आर्थराइटिस में पतंजलि की निरापद चिकित्सा 
  • पीड़ानिल गोल्ड 2-2 कैप्सूल भोजन से पूर्व
  • आर्थोग्रिट व लाक्षादि गुग्गल 2-2 गोली भोजन के बाद
  • वातारि चूर्ण 1-1 चम्मच दूध  के साथ सुबह-शाम
  • सुबह-शाम पीड़ान्तक तैल से मालिश करें
जड़ी-बूटियों द्वारा रोग निवारण 
  • आक की जड़ की छाल, 1 भाग काली मिर्च, कुटकी और काला नमक एक-एक ग्राम। सबको मिलाकर जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियां बना लें। शरीर के किसी भी अंग में वातजन्य पीड़ा हो तो सुबह-शाम 1-1 गोली गर्म पानी के साथ सेवन करें। 
     
  • वासा के पके हुए पत्तों को गरम करके सिकाई करने  से संन्धिवात रोग में आराम पहुंचता है। 
  • धतूरे की जड़ और अगस्त्य की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पुल्टिस बनाकर  वेदना युक्त भाग पर बांधने से कष्ट दूर होता है और सूजन उतर जाती है। 
  • तिल के तेल में आजवायन खुरासानी को सिद्ध कर मालिश करने से संधिवात रोग में लाभ पहुंचता है। 
  • अमरबेल का बफारा देने से पीड़ा और सूजन में कमी आती है। 
  • अलसी के तेल की पुल्टिस गठिया की सूजन पर लगाने से लाभ होता है। 
  • 20 ग्राम सूखे आंवले और 20 ग्राम गुड़ को 500 ग्राम पानी में औटाकर 250 ग्राम पानी रहने पर, मल छान कर सुबह-शाम पीने से रोग में फायदा होता है।
  • अमरूद के कोमल पत्तों को पीसकर वेदना युक्त स्थान पर लेप करने से लाभ होता है। 
  • सारिवा मूल चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार देने से सन्धिवात में लाभ होता है। 
  • अंकोल के पत्तों की पुल्टिस रोग ग्रस्त हिस्सों पर बांधने से पीड़ा मिटती है। 
  • बकायन के बीजों को सरसों के साथ पीस कर रोग ग्रस्त हिस्से पर लेप करना चाहिए।
  • अश्वगंधा के तीन ग्राम चूर्ण को तीन ग्राम घी में मिलाकर, एक ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से रोग में फायदा होता है। 
  • संन्धिवात में तिल तथा सौंठ बराबर लेकर प्रतिदिन 5-5 ग्राम तीन से चार बार सेवन करना चाहिए। 
  • श्योनाक की छाल के चूर्ण को 125 मिली ग्राम से 250 मिलीग्राम तक मात्रा में दिन में तीन बार नियमित रूप से सेवन करने से तथा इसके पत्तों को गरम करके जोड़ों पर बांधने से संधिवात में बहुत लाभ होता है।
  • चित्रकमूल, आंवला, हरड़, पीपर, रेबंद, चीनी और सेंधा नमक इन सब चीजों को समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर 4 ग्राम से 5 ग्राम तक की मात्रा में प्रतिदिन सोते-सोते समय गरम पानी के साथ लेने से पुराना संधिवात रोग मिटता है।
  • संधिवात में दालचीनी का 10-20 ग्राम चूर्ण 20-30 ग्राम शहद मिलाकर, पेस्ट बनाकर धीरे-धीरे मालिश करने से लाभ होता है। इसके साथ-साथ एक कप गुनगुने जल में 1 चम्मच शहद एवं दालचीनी का 2 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह, दोपहर, शाम सेवन करना चाहिए।
  • 6 ग्राम धनिये के चूर्ण में 10 ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से गर्मी से होने वाला जोड़ों का दर्द मिटता है। 
  • जोड़ों के दर्द में ईसबगोल की पुल्टिस बांधने से लाभ होता है। 
  • करेले के ऊपरी छिलके को निकालकर शेष भाग को आग पर 10 मिनट रखकर भुर्ता बना लें, फिर उसमें शक्कर मिला रोगी को गर्म-गर्म सुहाता हुआ खिला दें। इस प्रकार सुबह-शाम करीब 125 ग्राम तक यह भुर्ता शक्कर मिलाकर रोगी को गरम-गरम सुहाता हुआ खिला दें। ऐसा करनेे से संधिवात रोग में लाभ होता है। पीड़ा वाले स्थान पर करेले के फूलों के रस का बार-बार प्रलेप करना चाहिए।
  • पलाश के बीजों को महीन पीसकर शहद के साथ वेदना वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात में लाभ होता है।
  • तगर को यशद भस्म के साथ लेने से संधिवात रोग में फायदा होता है। 
  • तेजपात के पत्तों का लेप संधिवात पर करने से लाभ होता है। 
  • संधिवात रोग में तुलसी के पंचाग का बफारा देने से लाभ होता है।
रयूमेटॉइड आर्थराइटिस
रयूमेटॉइड आर्थराइटिस बहुत की कष्टदायक रोग है। इस रोग को आमवात रोग के नाम से भी जाना जाता है। कम उम्र में और वृद्धावस्था में यह रोग ज्यादा होता है। एक साथ परिवार के कई लोगों को भी यह रोग होता देखा गया है। इस प्रकार से यह रोग वंशानुगत भी होता है। इस रोग में हड्डियों के जोड़ों में भयानक दर्द होने के साथ सूजन आ जाया करती है। रोग की अधिकता होने पर रोगी को कष्ट सहना मुश्किल हो जाया करता है। तीव्र र्यूमेटिज्म की अवस्था में स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है। यह रोग ज्यादातर बच्चों, किशोरों और युवाओं को होता है। गले में स्ट्रप्टोफोकस के संक्रमण से इस रोग की उत्पत्ति होती है। इस अवस्था में रोगी को बुखार चढ़ जाता है। 
रोगी के एक-एक जोड़ में दर्द और सूजन आ जाती है। रोगी में दर्द, सुर्ख लाल धब्बे विशेष रूप से कोहनी के नीचे दर्द रहित गांठ बन जाया करती है। रोग की अधिकता होने पर रोगी का हार्ट फेल हो जाता है, दिल में मर-मर की आवाज आती है और दिल के वाल्ब में खराबी आ जाती है। महिलाओं को रयूमेटॉइड आर्थराइटिस ज्यादा होता है।
लक्षण
  • रोगी के अनेक जोड़ों में दर्द रहने लगता है। 
  • रोगी की हाथों की उंगलियों में दर्द होने लगता है। 
  • जब रोगी सुबह उठता है तो उसे जकडऩ का अनुभव होता है। 
  • सुबह का वक्त रोगी के लिए ज्यादा कष्टदायक  रहता है।
  • सर्दी और बरसात के मौसम में रोगी की ज्यादा कष्ट  होता है। 
  • रोगी की उंगलियों, पंजों और घुटनों में सूजन आ जाती है और रोगी की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।
  • रोगी के हाथ-पैर, टखना, सिर, घुटना, नितंब, पीठ और जांघों में पीड़ा युक्त सूजन आ जाया करती है।
  • रोगी को चलने-फिरने में असुविधा होती है और रोग के बढऩे पर रोगी चलने-फिरने में असमर्थ सा होकर रह जाता है।
  • रोगी के शरीर में टूटन सी रहने लगती है।
  • रोग को आलस्य रहने लगता है। 
  • रोगी का खाया-पीया पचता नहीं है। 
  • चारपाई पर करवट बदलते वक्त भी रोगी को कष्ट होता है। कंपकपी के साथ रोगी को बुखार चढ़ता है।
  • रोगी को नींद कम आती है, पेशाब ज्यादा आता है। 
  • रोगी को दिल की बीमारी और कब्ज की शिकायत भी हो जाती है।
कारण 
तले-भुने व गरिष्ठ खाद्य पदार्थों के सेवन से, ज्यादा चिकनाई युक्त व मीठे पदार्थों के सेवन से, बर्फ, कोल्ड ड्रिक्ंस, आईसक्रीम के सेवन से, फ्रीज का ठंडा पानी पीने से, ज्यादा खट्टे पदार्थ जैसी-खट्टी छाछ, दही, कैथ, कैरी, अमचूर, आदि के सेवन से, बेसन व मैदा के बने खाद्य पदार्थों के सेवन से रयूमेटॉइड आर्थराईटिस रोग की उत्पत्ति होती है। मानसिक बैचेनी भी इस रोग का कारक बनती है। 40 से 60 साल की उम्र की महिलाओं को यह रोग ज्यादा होता है। शरीर की रोगों से लडऩे की ताकत में जब कमी आ जाती है, तब यह रोग हो जाता है। गरीब बस्तियों में नमी व सीलन युक्त वाली बस्तियों में ठंडे प्रदेशों में,  यह रोग ज्यादा पनपता है। कुपोषण भी इस रोग का मुख्य कारण हैं। 
  • रयूमेटॉइड आर्थराइटिस में पतंजलि की निरापद चिकित्सा 
  • पीड़ानिल गोल्ड 2-2 कैप्सूल भोजन से पूर्व
  • आमवातारि रस 2-2 वटी भोजन से पूर्व
  • सिंहनाथ गुग्गुल, ऑर्थोग्रिट, पुनर्वादि मण्डूर २-२ गोली भोजन के बाद
  • सुबह-शाम सैंध्वादि तैल से मालिश करें
  • यदि हम पिण्ड स्वेद करें तो अति लाभ होगा।
जड़ी-बूटियों से उपचार
  • आक का फूल, सौंठ, काली मिर्च, हल्दी व नागर मोथा समभाग लें। जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियां बना लें। 2-2 गोली सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें।
  • आरग्वध के 2-3 पत्तों के सरसों के तेल में भूनकर शाम के भोजन के साथ सेवन करने से र्यूमेटिड आर्थराईटिस रोग में फायदा होता है। 
  • एरंड मूल 10 ग्राम और सौंठ का चूर्ण 5 ग्राम लेकर इसका क्वाथ बना लें। इसका सेवन करने से आमवात (रयूमेटॉइड आर्थराईटिस) रोग में फायदा होता है। 
  • आमवात रोग में गोखरू के फल एवं समान भाग सौंठ की 10-20 ग्राम मात्रा को 400 मिली लीटर पानी में उबालकर चतुर्थांश बचे क्वाथ को सुबह और रात में सेवन करने से लाभ होता है।
  • गोरखमुण्डी के फल के साथ समभाग सौंठ चूर्ण पीसकर, उष्णोदक से दोनों समय 3 ग्राम सेवन करने से और फलों को महीन पीस कर पीड़ा वाले स्थान पर लगाना चाहिए।
  • आमवात में नीबू का रस एक-दो चार-पांच घंटे बाद सेवन करना चाहिए।
  • पुनर्नवा के क्वाथ के साथ कपूर तथा सौंठ को 1 ग्राम चूर्ण को सात दिनों तक आमवात में सेवन करने से फायदा होता है। 
  • अदरक के 1 किलोग्राम रस में 500 ग्राम तिल तेल डालकर आग पर चढ़ाना चाहिए। जब रस जलकर तेल मात्र रह जाये, तब उतार कर छान लेना चाहिए। इस तेल से मालिश करने पर जोड़ों की पीड़ा
    मिटती है।
  • अमजोद, पायविदंग, देवदारू, चित्रक, पिपला मूल, सौंफ, पीपल, काली मिर्च 10-10 ग्राम, हरड़ विधारा 100 ग्राम, शुंठी 100 ग्राम। इन सबका महीन चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में पुराना गुड़ मिश्रित कर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से आमवात में फायदा होता है।
  • आमवात रोग में अरलू की जड़ व सौंठ का फांट बनाकर दिन में तीन बार 50 मिली की मात्रा में पीने से लाभ होता है।
  • आमवात रोग में मिर्च सिद्ध तेल की मालिश करने से बहुत फायदा होता है।
दिव्य पीड़ान्तक रस द्वारा उपचार
इसकी 1-1 या दो-दो गोली दो बार दूध या गर्म पानी के साथ भोजनोपरान्त लेने से जोड़ों का दर्द, गठिया, कमर दर्द आदि रोगों में फायदा पहुंचता है।
दिव्य पीड़ान्तक क्वाथ द्वारा उपचार
5 से 10 ग्राम क्वाथ को लगभग 400 ग्राम पानी में पका कर जब लगभग 100 ग्राम शेष रह जाये तब छानकर सुबह खाली पेट व रात को सोते समय पीयें। ऐसा करने से जोड़ों का दर्द, गठिया रोग में फायदा होता है।
दिव्य पीड़ान्तक तेल द्वारा उपचार
पीड़ायुक्त स्थान पर इस तेल की धीरे-धीरे मालिश करनी चाहिए। मालिश हमेशा दिल की ओर उचित बल का उपयोग करते हुए धीरे-धीरे करनी चाहिए। इस क्रिया से जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, घुटनों का दर्द मिटता है। 
स्वानुभूत उपचार
दिव्य स्वर्ण माक्षिक भस्म 5 ग्राम, दिव्य महावातविध्वंस रस 10 ग्राम, दिव्य प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम, दिव्य बृहद वातचिन्तामणि रस 1 ग्राम, दिव्य गोदन्ती भस्म 5 ग्राम लेकर सबको मिला लें। इस मिश्रण की 60 पुडिय़ा बना लें। सुबह-शाम शहद या गर्म पानी से खाली पेट इस पुडिय़ा को लें। ऐसा करने से जोड़ों का दर्द, घुटनों का दर्द, कमर दर्द व गठिया रोग में फायदा होता है।
घरेलू उपचार
  • हल्दी 100 ग्राम, मेथी दाना 100 ग्राम, सौंठ 100 ग्राम व अश्वगंधा 50 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें। इसे 1-1 चम्मच नाश्ते व शाम के खाने के बाद गुनगुने पानी से लेने पर जोड़ों का दर्द, कमर दर्द व गठिया रोग में फायदा होता है।
  • लहसुन की 1 से 3 कली खाली पेट पानी से लेने पर जोड़ों के दर्द में लाभ होता है। 
  • मोथा घास की जड़ जो कि एक गांठ की तरह होती है, उसका पाउडर करके 1 से 2 ग्राम सुबह-शाम पानी या दूध से लेने से जोड़ों का दर्द व गठिया रोग में फायदा होता है। 
योग द्वारा उपचार
बुखार की अवस्था में भूलकर भी व्यायाम व योगासन न करें। इस अवस्था में बिस्तर पर व्यायाम करते हुए गहरा श्वास-प्रश्वास, प्राणायाम और व्यायाम करें। बुखार के उतरने पर या न होने पर सभी प्रकार के वात रोगों में व्यायाम और प्राणायाम बहुत ज्यादा लाभदायक है।
बचाव
अपने भार में ज्यादा बढ़ोतरी न होने दें, क्योंकि ज्यादा शारीरिक भार होने की अवस्था में शरीर के जोड़ों पर अतिरिक्त भार पड़ता है। एक तरह से मोटापा आर्थराइटिस रोगों को न्यौता देता है। 
एक ही मुद्रा में ज्यादा देर तक कभी नहीं बैठना चाहिए।
नाक, कान व गले के संक्रमण से बचें।
ठंड से, ठंडी हवा से, ठंडे पानी से नहाने से बचें। हाँ, रोग मुक्त होने पर ठंडे पानी से नहा सकते हैं।
पथ्य
गेंहू की रोटी, घी व शक्कर डालकर बनाया हलवा, किसी  भी प्रकार का अन्त: व बाहृय स्नेहन, पुनर्नवा पत्रों का शाक, अनार, पका मीठा आम, अंगूर, एरण्ड तेल, मूंग की दाल, हींग, अदरक, सौंठ, मेथी, आजवायन, लहसुन, सहिजन के फूल व कच्ची कली की सब्जी, हल्दी, घृतकुमारी का सेवन, उष्ण जल का पान व स्नान, उष्ण वातावरण में निवास सेवनीय होता है। गर्म जल में तेज नमक डालकर पीड़ा व सूजन युक्त स्थान पर सिकाई करने से विशेष लाभ होता है। रोगी को अंकुरित अनाज, उबली सब्जी शुरू करते हुए धीरे-धीरे रोटी, दलिया आदि ठोस खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
अपथ्य
इस रोग के रोगी को चीनी, चाय, कॉफी, शीतल पेय, कोक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को मांस, मदिरा, दाल, अण्डा, तंबाकू, जंक फूड, फास्ट फूड आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी का चना, मटर, सोयाबीन, आलू, उड़द, राजमा, मसूर, कटहल, फूल गोभी, खीरा, टमाटर, अमचूर, नीबू, संतरा, अंगूर, दही,  छाछ आदि खट्टे पदार्थ, भैंस का दूध, पेठा, ठंडा जल, पीना व स्नान, सीलन व ठंडे स्थान पर निवास करना अहितकर  है।
रोगी का आईसक्रीम, पिज्जा, बर्गर, पेटीज, इडली, डोसा, गुटखा, पान-मसाला, मैदा से बने ब्रेड आदि, कन्फैक्शनरी व सिन्थेटिक फूड्स आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

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