पतंजलि विश्वविद्यालय में शल्य-तंत्र आधारित तीन दिवसीय ‘सुश्रुतकोन’ सम्मेलन का समापन
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हमारा प्रयास ऋषियों की विद्या को जन-जन तक पहुंचाना है: आचार्य बालकृष्ण
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पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने योग व आयुर्वेद के क्षेत्र में देश का नाम विश्व पटल पर स्थापित किया है : प्रो. मनोरंजन साहू
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प्राचीन शास्त्र ‘शल्य तंत्र’ एवं आधुनिक शल्य चिकित्सा के समन्वय हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान करने की आवश्यकता : प्रो. संजीव शर्मा
पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में तीन दिवसीय ‘सुश्रुतकोन’ सम्मेलन का समापन पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज, आयुर्वेद शिरोमणि आचार्य बालकृष्ण जी महाराज तथा आयुर्वेद विज्ञान एवं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के मूर्धन्य विद्वानों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। यह सम्मेलन शल्य तंत्र के जनक महर्षि सुश्रुत की जयंती एवं आचार्य बालकृष्ण जी के जन्मदिवस ‘जड़ी-बूटी दिवस’ के अवसर पर पतंजलि भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान तथा पतंजलि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन, नेशनल सुश्रुत एसोसिएशन, भारत एवं नियोवी लेजर, इजराइल के सहयोग से किया गया। इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के अध्यक्ष स्वामी रामदेव जी तथा कुलपति आचार्य बालकृष्ण जी ने अतिथि विद्वानों एवं प्रतिभागियों को प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। सम्मेलन में श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि हमारा प्रयास ऋषियों की विद्या को जन-जन तक पहुंचाना है। उन्होंने उपस्थित विद्वानों एवं प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए बताया कि विधा चाहे कोई भी हो, हम सभी का लक्ष्य रोगी को शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ करवाना होना चाहिए। सम्मेलन के मुख्य अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पद्म भूषण प्रो. मनोरंजन साहू ने आचार्यश्री को जन्मदिवस की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने योग व आयुर्वेद के क्षेत्र में देश का नाम विश्व पटल पर स्थापित किया है। उपस्थित प्रतिभागियों का मार्गदर्शन करते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में समेकित चिकित्सा पद्धति के विकास के साथ ही शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में गहन अनुसंधान की आवश्यकता है जिसमें पतंजलि का प्रयास निश्चित ही सराहनीय है। डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने शल्य एवं शालाक्य तंत्र की अनुसंधानपरक व्याख्या करते हुए आयुर्वेद की प्राचीन विरासत से सम्मेलन में आए प्रतिभागियों को अवगत कराया।
शल्य तंत्र विभाग, पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. सचिन गुप्ता ने सम्मेलन की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए शल्य तंत्र के क्षेत्र में पतंजलि के योगदान की विषद् व्याख्या की। पतंजलि हर्बल रिसर्च डिविजन की प्रमुख- डॉ. वेदप्रिया आर्या ने सम्मेलन में आए विशेषज्ञों का स्वागत करते हुए पतंजलि अनुसंधान संस्थान द्वारा आयुर्वेद के क्षेत्र में किए गए भगीरथ प्रयास पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इस अवसर पर शल्य चिकित्सा के विद्वान एवं राष्ट्रीय आयुर्वेद मानद विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी को जनकल्याण के उद्देश्य से प्राचीन शास्त्र ‘शल्य तंत्र’ एवं आधुनिक शल्य चिकित्सा के समन्वय हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान करने की आवश्यकता है।
पतंजलि विश्वविद्यालय के उप-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने अपने उद्बोधन के क्रम में बताया कि इस सम्मेलन में योग, आयुर्वेद व आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की त्रिवेणी का संगम हो रहा है। पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अनिल कुमार ने अध्यक्षीय उद्बोधन में बोलते हुए कहा कि पूज्य आचार्य जी का सम्पूर्ण जीवन आयुर्वेद द्वारा मानवता के कल्याण हेतु समर्पित है। उपस्थित प्रतिभागियों को उन्होंने पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल एवं पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय की गतिविधियों से भी अवगत कराया। सम्मेलन के तकनीकी सत्र में डॉ. अनुराग श्रीवास्तव ने सामान्य कैंसर की रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु आयुर्वेद के सिद्धांतों एवं आधुनिक चिकित्सा के समन्वय विषय पर एवं डॉ. विनोथ फिलिप ने वेरिकोज़ वेन्स के उपचार में लेजर की नवीन तकनीकों पर प्रकाश डाला। सम्मेलन के तीसरे सत्र में डॉ. एम.सी. मिश्रा, डॉ. मनोरंजन साहू, डॉ. शिव जी गुप्ता, डॉ. पी. हेमन्था, डॉ. सचिन गुप्ता, डॉ. संजीव शर्मा, डॉ. अजय गुप्ता द्वारा अपने संबोधन एवं समूह परिचर्चा के माध्यम से उपस्थित प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया गया। सम्मेलन के दूसरे दिन लेजर वैरिकोज वेन, लेप्रोस्कोपिक वैरिकोसेले और प्रोक्टोलॉजी की हाइब्रिड तकनीक विषय पर समानांतर मौखिक पेपर और पोस्टर प्रस्तुति से प्रकाश डाला गया।
डॉ. विनोथ फिलिप, डॉ. पी. हेमंथा, डॉ. हेमंत गुप्ता, डॉ. सचिन गुप्ता ने शल्य चिकित्सा का लाईव सत्र प्रस्तुत किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. एम.सी. मिश्रा तथा डॉ. मनोरंजन साहू ने की। सर्जिकल प्रक्रियाओं में एकीकृत दृष्टिकोण विषय पर समानांतर मौखिक पेपर और पोस्टर सत्र प्रदर्शित किए गए जिसकी अध्यक्षता डॉ. प्रदीप भारद्वाज तथा डॉ. पी. हेमंथा कुमार ने की। डॉ. एम.सी. मिश्रा ने लैपरो एंडोहर्निया सर्जरी में प्रशिक्षण-एक सतत चुनौती : आगे बढ़ें- देखें, करें, सिखाएं विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों व शोधार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सर्जरी को एक चुनौति के रूप में लें और सदैव रोगी हित को सर्वोपरि रखें।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पद्म भूषण डॉ. मनोरंजन साहू ने आयुर्वेद में साक्ष्य आधारित शल्य चिकित्सा प्रक्रिया के विषय में बताते हुए कहा कि आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा प्राचीनकाल से है जिसका जीवंत प्रमाण सुश्रुत संहिता है। महर्षि सुश्रुत को आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है। डॉ. मोहित वर्मा ने प्री-ऑपरेटिव कार्डियो-डायबिटिक रिस्क एसेसमेंट विषय से छात्र-छात्राओं को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि हृदय रोग में सर्जरी से पहले कई बातों का ध्यान रखना होता है जिसमें मधुमेह मुख्य है।
डॉ. शिवजी गुप्ता ने क्षारसूत्र द्वारा गुदा में फिस्टुला के प्रबंधन में क्या करें और क्या न करें विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि फिस्टुला अत्यंत गम्भीर रोग है जिसका प्रामाणिक उपचार आयुर्वेद की शल्य क्रिया ‘क्षारसूत्र’द्वारा सम्भव है। डॉ. अजय गुप्ता ने ‘गुदा फिस्टुला निदान सीमाएँ’ विषय पर विषद् व्याख्या प्रस्तुत की।
सम्मेलन के समापन अवसर पर महर्षि सुश्रुत द्वारा प्रणीत ‘शल्य चिकित्सा’ का लाईव सत्र डॉ. पी. हेमंथा एवं डॉ. मोहित वर्मा की अध्यक्षता में डॉ. अजय गुप्ता, डॉ. शिवजी गुप्ता एवं डॉ. सचिन गुप्ता आदि चिकित्सकों द्वारा सम्पन्न हुआ। सभी प्रतिभागियों ने इस सत्र में शल्य चिकित्सा की बारीकियों को विस्तार से सीखा।
डॉ. पी. हेमंथा कुमार ने एनोरेक्टल डिसऑर्डर में क्षार कर्म की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आयुर्वेद की शल्य क्रिया ‘क्षारसूत्र’ एक प्रामाणिक उपचार पद्धति है। वहीं डॉ. अनिल दत्त ने लोकल एनेस्थीसिया की जटिलता विषय पर अपना व्याख्यान दिया। पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के प्रोफेसर एवं शल्य चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ. सचिन गुप्ता ने उपरोक्त विषय पर अपनी सारगर्भित प्रस्तुति दी तथा अपना चिकित्सकीय अनुभव उपस्थित प्रतिभागियों से साझा किया। इस सत्र में सर्जिकल प्रक्रिया के समेकित उपागम पर अतिथि चिकित्सकों द्वारा समूह परिचर्चा भी की गई। यथार्थ हॉस्पिटल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. प्रशान्त शर्मा ने हर्निया सर्जरी विषय पर साक्ष्य आधारित सम्बोधन दिया। उन्होंने सम्मेलन के प्रतिभागियों को बताया कि सदैव रोगी हित को सर्वोपरि रखकर सर्जरी की चुनौती को हमें स्वीकार करना चाहिए।
समापन सत्र में पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों एवं सम्मेलन के आयोजकों द्वारा अतिथि विद्वानों एवं प्रतिभागियों को प्रतीक चिह्न एवं प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस सम्मेलन में 12 राज्यों के 1100 से अधिक प्रतिभागियों ने ऑनलाईन एवं ऑफलाईन माध्यम से जुडक़र शल्य चिकित्सा की प्रक्रिया एवं जटिलता आदि विषयों पर ज्ञानार्जन किया। अतिथि विद्वानों एवं प्रतिभागियों के सम्मान में सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा भजन, नृत्य, योग आदि की भव्य प्रस्तुति दी गई।
कार्यक्रम में प्रति कुलपति डॉ. मयंक अग्रवाल, मुख्य परामर्शदाता प्रो. के.एन.एस. यादव, कुलसचिव डॉ. प्रवीन पूनिया, पतंजलि हर्बल रिसर्च डिविजन की प्रमुख- डॉ. वेदप्रिया आर्या, डॉ. केतन महाजन, डॉ. विक्रम गुप्ता, डॉ. मनोज भाटी सहित समस्त अधिकारीगण, शिक्षकगण, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे।
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