2000  वर्ष के पूर्व के आयुर्वेद और वर्तमान समय के आयुर्वेद की कड़ी को जोडऩे का माध्यम है

‘सौमित्रेयनिदानम्’

2000  वर्ष के पूर्व के आयुर्वेद और वर्तमान समय के आयुर्वेद की कड़ी को जोडऩे का माध्यम है

आचार्य बालकृष्ण

  • प्राचीन शास्त्रों में दोषों के आधार पर अनेक रोगों का वर्णन है परन्तु वर्तमान समय में उनमें से लगभग 234 रोग ही उपलब्ध हैं 
     
  • ‘सौमित्रेयनिदानम्’ को शरीर संरचना के आधार पर 14 खण्डों में विभाजित करते हुए 6821 श्लोकों में 471 मुख्य व्याधियों सहित लगभग 500 व्याधियों का सचित्र वर्णन किया गया है।
  आयुर्वेद शाश्वत है, अनादि है किंतु लगभग 2000 वर्ष पूर्व आयुर्वेद काल, समय, स्थिति के कारण पिछड़ गया था। पिछले 2000 वर्ष के पूर्व के आयुर्वेद और वर्तमान समय के आयुर्वेद की कड़ी को जोडऩे का कार्य ‘सौमित्रेयनिदानम्’ के माध्यम से किया गया है और हम गौरवशाली हैं कि इस कार्य में हम सहभागी बने हैं। सौमित्रेयनिदानम् शास्त्रीय शैली में लिखा प्रमाणिक ग्रंथ है।
आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा विधा
आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा विधा है किंतु यह सिद्ध करने के लिए दुनिया की सभी विधाओं पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है। आयुर्वेद में हम मुख्य रूप से चरक, सुश्रुत व धनवंतरि आदि महर्षियों को प्रणेता मानते हैं, इसी प्रकार अन्य चिकित्सा पद्धतियों में भी कोई न कोई प्रणेता अवश्य रहा है। उनके समय, काल का अध्ययन कर तथ्य व प्रमाणों के आधार पर वैश्विक इतिहास को एक जगह रखकर हम सिद्ध कर पाएँगे कि वास्तव में आयुर्वेद ही सर्वाधिक प्राचीन, वैज्ञानिक व प्रामाणिक चिकित्सा पद्धति है। कथन से नहीं, शास्त्र से नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के इतिहास से भी हम प्रामाणिक हैं इसका प्रमाण भी पतंजलि के माध्यम से ही सिद्ध होगा। हमारे पूर्वजों ने आयुर्वेद के रूप में हमें ज्ञान का अनुपम उपहार दिया है जिसमें हमें निरंतर शोध व तकनीक की सहायता से अभिवृद्धि करनी है। उनके ज्ञान-विज्ञान को आधुनिक विज्ञान व शोध के माध्यम से कसौटी पर कसकर संसार में पनप रहे नए रोगों की पहचान कर उनके स्वरूप, लक्षण व निदान सचित्र प्रस्तुत करना एक दुर्गम कार्य था जिसे पतंजलि रिसर्च फाउण्डेशन के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत व अथक पुरुषार्थ से सफल बनाया है।
अनुपलब्ध व्याधियों को एक स्थान पर नूतन रूप में स्थापित करने का प्रयास है ‘सौमित्रेयनिदानम्’
यद्यपि प्राचीन शास्त्रों में दोषों के आधार पर अनेक रोगों का वर्णन है परन्तु वर्तमान समय में उनमें से लगभग 234 रोग ही उपलब्ध हैं। अर्वाचीन युग में दृश्यमान आयुर्वेद में वर्णित व्याधियों के अतिरिक्त प्राचीन ग्रन्थों में पृथक्-पृथक् रूप से जिनका विशेष वर्णन जो अभी तक अनुपलब्ध था, उन सबको प्रामाणिकता के साथ एक स्थान पर नूतन रूप में स्थापित करने का प्रयास ही ‘सौमित्रेयनिदानम्’ है। ग्रन्थ को शरीर संरचना के आधार पर 14 खण्डों में विभाजित करते हुए 6821 श्लोकों में 471 मुख्य व्याधियों सहित लगभग 500 व्याधियों का सचित्र वर्णन किया गया है। साथ ही ग्रन्थ के माध्यम से आयुर्वेद की परम्परा में प्रथम बार 2500 से भी अधिक चिकित्सकीय अवस्थाओं (Clinical Conditions) का वर्णन किया गया है। सौमित्रेयनिदानम् के अंग्रेजी रूपान्तरण में श्लोक, श्लोकों की फोनेटिक्स और अंग्रेजी में विषय प्रस्तुति की गई है। साथ ही ग्रन्थ का अंग्रेजी भाषा में रूपान्तरण भी कराया गया है। यह ग्रन्थ आयुर्वेद के चिकित्सकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी ग्रन्थ साबित होगा।
अभी तक हमारी ऋषि परम्परा में जितने रोगों के बारे में हमनें समझा है, पैथोलॉजिकल टैस्ट को छोड़ कर यांत्रिक रूप से रोगों के निदान के संबंध में जो नव अनुसंधान हुए हैं, आज तक हमने जितने भी रोगों के नाम, स्वरूप, लक्षण और निदान के संदर्भ में अपने पूर्वजों से बौध प्राप्त किया है, उसके साथ नव बौध का समन्वय करके 234 रोगों और लगभग उतने ही रोगों को और जोड़ करके लगभग 500 रोगों के संदर्भ में यह एक मौलिक कालजयी अप्रतिम रचना तैयार की है। किसी भी संदर्भ में जब हम वार्ता करते है, संवाद करते हैं या विश्व के सामने अपनी बात रखते हैं तो यह बात आती है कि जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांगहृदयम्, माधव निदान आदि जितने भी हमारे आयुर्वेद के ग्रंथ हैं जब इनमें उन बीमारियों का नाम ही नहीं है तो जिस उपचार की बात हम कर सकते हैं, वह बेईमानी प्रतीत होती है। जबकि रोगों का मूल कारण एक ही है। जैसी प्रकृति ने शरीर की रचना की है जब उसमें कोई विकृति आ गयी तो वह रोग कहलाती है। तो देह तो वही है बस इसका जो मूल स्वरूप है, जो त्रिदोष या हमारी जो तीन प्रकार की मूल प्रकृति में जब किसी भी प्रकार की विकृति आती है, तो वह रोग कहलाती है। उनके नाम, स्वरूप, लक्षण आदि भिन्न हो सकते हैं। उसका भी पूरा समावेश इस ग्रन्थ में करके हमने आयुर्वेद को गौरव दिलाने का बहुत ही गौरवपूर्ण कार्य किया है। इसमें गर्व, गौरव और स्वाभिमान है, इसमें पूर्वजों का बोध व ज्ञान भी है और नव अनुसंधान भी है। मानों की हमारी पूरी ऋषि परम्परा का सार रूप इस ग्रन्थ में एक विग्रह रूप मूर्त रूप होकर हमारे सामने उपस्थित है। इस गौरवशाली क्षण में, क्योंकि यह एक मौलिक रचना, कालजयी रचना है, अप्रतिम प्रस्तुति है।
हम एक दृष्टि से नहीं, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि, अनुसंधान, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से सभी दिशाओं से देश को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हों इसलिए विश्वविद्यालय की स्थापना की जाती है। आज पतंजलि का ये प्रागंण और सौमित्रेयनिदानम् का लोकार्पण अपने आप में ऐतिहासिक है।
योग-आयुर्वेद से जुडऩा हमारा गौरव 
जो संसार में आया है जीवन यापन के लिए वह कुछ तो करता ही है। हमें परमात्मा ने योग-आयुर्वेद से जोडक़र संसार से रोग, शोक मिटाकर मानवता की सेवा में निमित्त बनाया है, ये सब परमात्मा की व्यवस्थाएं हैं। योग आयुर्वेद के विद्यार्थीगण को भगवान ने ऋषि विधा से, ऋषि परम्परा से जुडक़र संसार में कुछ करने के लिए निमित्त बनाया। यह हम सबके लिए प्रसन्नता और गौरव की बात है।
पूज्य स्वामी जी जैसा व्यक्तित्व न इतिहास में और न वर्तमान में
परम पूज्य स्वामी जी महाराज उनका तप, अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ, कर्म में संलग्नता, ऐसा पुरुषार्थ एवं तप करने वाला कोई शरीरधाारी व्यक्ति कहीं दूर तक भी नहीं दिखता। न इतिहास में और न वर्तमान में। ऐसे पुरुषार्थ सेवा करने वाले स्वामी जी के सानिध्य में हमें तप करने का, सेवा करने का मौका मिला है।

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