पतंजलि आयुर्वेद व योग का पर्याय

योगायुर्वेद के साथ सात्विक जीवनशैली के जीवन को बनाएँ स्वस्थ व आनंदमय

पतंजलि आयुर्वेद व योग का पर्याय

आचार्य बालकृष्ण

पतंजलि आयुर्वेद व योग का पर्याय
   पतंजलि में दुनिया के लगभग 70 से ज्यादा देशों के लोग उपचार के लिए आ रहे हैं। इनमें लगभग सभी रोगी वे रोगी हैं जिनके पास चिकित्सा कराने के लिए साधन उपलब्ध हैं, यानि वे आर्थिक रूप से विपन्न नहीं हैं, सामथ्र्यशाली हैं। उनके पास आधुनिक चिकित्सा कराने के सभी विकल्प हैं फिर भी वे आयुर्वेद व योग का प्राथमिकता से चयन करते हुए पतंजलि आ रहे हैं, ये बड़ी बात है।
पतंजलि पूरे विश्व में आयुर्वेद का सबसे बड़ा संस्थान है, या यह कहें तो अतिश्योक्ति न होगी कि पतंजलि आज आयुर्वेद का पर्याय बन गया है।
योग मत-पंथ-संप्रदाय के बंधनों से मुक्त है, योग को योग ही रहने दें
योग करने के लिए बहुत सारे बाह्य उपकरण नहीं चाहिए, साधन नहीं चाहिए, बहुत सारी जगह की आवश्यकता नहीं है, योग एक विज्ञान है, जीवन के लिए आवश्यक विधा है। इसलिए अपनी संकुचित अवधारणा को छोडक़र, मत-पंथ की अवधारणाओं से बाहर निकलकर योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएँ। योग ही बने रहने दें। योग को किसी संप्रदाय का चश्मा पहनाने का प्रयास न करें। तब योग का लाभ सबको मिलेगा। योग जहाँ तक पहुँचा है, वहाँ तक लोग योग का पालन करें और जहाँ योग अभी नहीं पहुँचा है, उसका दायित्व भी उनका है जो योग के साधक हैं, जिन्होंने योग से स्वस्थ जीवन पाया है।
योग व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ जीवन पद्धति है
स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं
जो रोगी नहीं हैं वे रोगी न हों, इसके लिए दुनिया में कोई विधा हो सकती है तो वह योग व आयुर्वेद है। योग, आयुर्वेद न केवल चिकित्सा पद्धति हैं अपितु जीवन पद्धति हैं। आइए! हम सब मिलकर योग और आयुर्वेद को जीवन पद्धति बनाने का संकल्प लें। यह समय स्वदेशी को अपनाकर स्वालम्बी बनने का समय है। हम मानते हैं कि यदि हम अपने जीवन में योग व आयुर्वेद को अपनाते हैं तो हम स्वदेशी को स्वत: ही स्थान देते हैं।
मन प्रसन्न तो आत्मा प्रसन्न
प्रसन्नात्मेन्द्रियमन: स्वस्थइतिअभिधीयते।
    आरोग्य का अर्थ है स्वस्थ शरीर, प्रसन्न मन व आत्मा तथा स्वस्थ इंद्रियाँ। जब तक हमारा मन प्रसन्न नहीं है, अन्दर से आत्मा प्रसन्न नहीं है, हमारी इन्द्रियाँ स्वस्थ नहीं हैं, तो ऐसे शरीर का क्या? आरोग्य दुनियां में किसी औषधि से, किसी दवाई से, कहीं भी जायें, किसी पूजा-पाठ पद्धति से नहीं मिल सकता। केवल आंशिक फल ही मिल सकता है। किंतु यज्ञ एक ऐसा कर्म है, जो आपको अन्दर से भी शु़द्ध करता है, अन्तर को निरोग करता है, प्रसन्नता को प्रदान करता है और जीवन में समृद्धि को लाता है।
यज्ञ जीवन की पवित्रता व निरोगिता के लिए आवश्यक 
   यह तो सभी जानते हैं कि योग से बीमारी जड़-मूल से समाप्त होती है। पूज्य स्वामी जी के अथक प्रयास से योग विधा आज पूरे विश्व में स्थापित करने का कार्य किया जा रहा है। योग के साथ-साथ यज्ञ को पतंजलि ने एक अभिन्न अंग बनाया है। क्योंकि ये पूरक है। यज्ञ जीवन की पवित्रता के साथ, जीवन के निरोगता के लिए है। 
धर्मार्थ काम मोक्षाणां आरोग्यं मूलमुतमम्। 
चरक संहिता सूत्र १/२४
 यह तो मूल है, सबको निरोगी काया तो चाहिए ही, तभी तो सारी दुनियां हमको अच्छी लगेगी। संसार के सारे पुरुषार्थ में देह स्वस्थ हो तो दुनियां अच्छी लगती है। लेकिन जब देह ही स्वस्थ नहीं रहेगी, तो सब चीजें अच्छी नहीं लगती। इसलिए नित्य यज्ञ को अपनाना चाहिए।
ऋषियों के ज्ञान को अक्षुण्ण बनाकर उसकी अभिवृद्धि करना हमारा दायित्व
   आयुर्वेद आदि ग्रंथों में चरक-सुश्रुत आदि ऋषियों ने ऐसा वर्णन किया है किउन्होंने कभी नहीं कहा कि जो हमने उपदेश दिया है, वही अंतिम है, वही सम्पूर्ण है। उन्होंनेकहा कि हमने एक विधा को आपको बताया है, एक चिकित्सा के उपायों का हमने वर्णन किया है। काल, समय, ज्ञान और बोध के आधार पर इसकी अभिवृद्धि करना हमारा दायित्व है। हमारे ऋषियों ने हमें इतना दिया है, हम उन ऋषियों के दिए ज्ञान के सतही स्तर (Basic Level) तक भी पहुँच पाएँ तो यह बड़ा कार्य है लेकिन उन ऋषि परम्पराओं को अक्षुण्ण बना कर उसकी अभिवृद्धि कर पाएँ तो यह बहुत बड़ी बात है।
योगमय जीवनशैली
   कहा जाता है कि स्वस्थ व्यक्ति को ब्रहम मुहूर्त में यानि सूर्योदय से 2 घंटे पहले, अर्थात् लगभग 6 बजे सूर्य उदय होता है तो 4 बजे तक उठ जाना चाहिए। इस बात को हम बार-बार कहते हैं। वैसे तो एक स्वस्थ व्यक्ति को रात को 10 बजे सोना और सुबह 4 बजे उठ जाना चाहिए, लेकिन जो साधक होते हैं वो सुबह 3 बजे भी उठ जाते हैं। यानि हमारी जो निद्रा 6 घंटे या ज्यादा से ज्यादा 8 घंटे होनी चाहिए, इससे ज्यादा नहीं। कुल मिलाकर लगभग प्रात:काल 5 बजे से पहले हमें उठ ही जाना चाहिए। क्योंकि अष्टांग संग्रह में बहुत ही अच्छे शब्दों में लिखा गया है कि ब्रह्म मुहूर्त उत्तिष्ठेज्जीर्णाजीर्ण निरूपयन। यानि कि यह समय बहुत ही शुभ माना जाता है। सुबह के वातावरण में शान्ति होती है, उस समय व्यक्ति बहुत सात्विक वातावरण में रहता है जिससे मन भी बहुत प्रसन्न रहता है। 
इसके तदोपरान्त प्रात: उठकर हमें योग करना चाहिए। जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। योग हमको आत्म केन्द्रित होना तो सिखाता ही है साथ ही निरोगी भी बनाता है। योग हमें पवित्र बनाता है। योग वह सागर है जिसमें हमारी छिपी हुई अच्छाईयां बाहर निकलती है। योग करने से व्यक्ति योगी बनता है। जिस दिन आदमी योग करना शुरू कर देता है, वह उसी दिन से योगी बन जाता है क्योंकि जीवन मुक्त होना योगों का लक्ष्य हो सकता है परन्तु जिस दिन आपने योग प्रारम्भ कर दिया, उस दिन आपके जीवन की मुक्ति का रास्ता शुरू हो जाता है। 

बौद्धिक क्षमता परिष्कृत करने में  संस्कृत व शास्त्र महत्वपूर्ण
   पूज्य स्वामी जी महाराज बार-बार यह कहते हैं कि संस्कृत पढऩे से, शास्त्र पढऩे से बुद्धि का विकास होता है या बौद्धिक क्षमता और ज्यादा परिष्कृत हो जाती है। संस्कृत को देव वाणी या देव भाषा कहते हैं, इससे लगता हैइसमें इतनी विविधता और विविधता में भी गहराई, सरलता, सुगमता के साथ सुन्दता का जो समावेश है, वो अपने आप में अद्भुत है। संस्कृत भाषा के विषय में कुछ लोग कहते हैं कि यह बहुत ज्यादा प्राचीन नहीं है। जब इस तरह की परिचर्चाएँ होती हैं तो निश्चित रूप से स्वत: ही इस बात का बोध होता है कि मानव की उत्कृष्ट संरचना तो हम पाणिनीय व्याकरण को कहते हैं परंतु भाषा की यह उत्कृष्टा मानवीय मस्तिष्क की संरचना नहीं है, अपितु परमात्मा द्वारा मानव के लिए प्रदत्त ज्ञान है, विद्या है, उपहार है। इसलिए हम इसे देव वाणी कहते हैं। 
सकारात्मक सोच रखें
    मुझसे सुखी कोई नहीं, जिस दिन आपके मन में ये भाव आ गया न, मैं सुखी हूँ इन बातों का भरोसा करना सीखों। हमें जिन्दगी में सुकून से रहने की, मस्ती से रहने की आदत डालनी चाहिए। क्योंकि यदि आप अपनी सोच को सकारात्मक रखेंगे तो आपके आसपास का वातावरण भी धीरे-धीरे सकारात्मक हो जाएगा और यदि आप निगेटिव सोच के साथ जीयेंगे तो कुछ भी अच्छा होने वाला होगा तो वह भी आपसे दूर चला जायेगा। जीवन की जो प्रतिकूलताएं है, वह रोने से या चिल्लाने से दूर नहीं होती है। उसको भोगने से दूर होंगी, क्योंकि कर्म का जो फल है वह तो हमें भोगना होता ही है। जब व्यक्ति के पास सुख आता है तो मैंने मना नहीं किया था लेकिन जब दु:ख आता है वो भी मनुष्य को भोगना होता है। बस सोच सकारात्मक रखने से व्यक्ति उस दु:ख की घड़ी को भी आसानी से पार कर लेता है और सुख पुन: सकारात्मक सोच के साथ आता है। 
धर्म धैर्य सिखाता है 
    धर्म हमको आंतरिक ताकत देता है और जो अन्दर से धार्मिक होता है, सच में जीवन के रहस्यों को वही जान सकता है। ऋषि दयानन्द जी से किसी ने पूछा कि हमको कैसे पता चलेगा कि यह व्यक्ति धार्मिक है या नहीं। उस पर उत्तर देते हुए दयानन्द जी बोले कि ये पता नहीं है कि वो धार्मिक है या नहीं, लेकिन इसको जानने का एक उपाय है। वह बोले जब जिन्दगी में विपत्ति आती है, कष्ट आता है, परेशानी आती है और व्यक्ति चारों तरफ  से परेशानियों से घिर जाता है, तड़पता है, उस समय भी धार्मिक व्यक्ति शान्त रहेगा। ये धर्म का लक्षण है। धैर्य धर्म का पहला लक्षण है। हम यदि धार्मिक हैं तो भगवान की शक्ति हमारे पास है। अगर कोई आपके दु:ख के क्षण में आपके पास है, तो वह है भगवान की ताकत जो आपको शक्ति प्रदान करती है। इसके पश्चात आप स्वस्थ्य रहने के लिए पूरे आनन्द के साथ योग करें। आप पाएँगे कि सु:ख आपके अन्दर ही है।
   भगवान से ये ही प्रार्थना करना कि हे प्रभु कितनी भी प्रतिकूलताएं दे, कोई बात नहीं, पर हमें इतनी शक्ति देना कि जिस मिशन और अभियान को हमने अपने हाथ में लिया है, जिस संकल्प के साथ हम आगे बढ़े हैं, वो संकल्प कभी कमजोर नहीं होने पाये। जिस अभियान को हमने अपने हाथों में लिया है उस अभियान को जब हम जन-जन तक न पहुँचा दे, तब तक हमको विश्राम नहीं लेना है। इस संकल्प के साथ आपको और हमें आग़े बढऩा है।
प्रात: उठकर करें परमात्मा का स्मरण
     सुबह उठकर सर्वप्रथम हमें परमात्मा का स्मरण करना चाहिए। जो भी आपके परमात्मा हैं चाहे उसमें वाहे गुरु है या खुदा है, भगवान है, परमात्मा है, ईश्वर है या आपके ईष्ठ देवता है, जिसको भी आप मानते हैं, जानते हैं। इस प्रकृति ने आपको जो असीम सुख दिया है। इस प्रकृति की जो व्यवस्था है, इस प्रकृति की जो देन है कम से कम उसको तो याद कर सकते हैं। आप चाहे नास्तिक हों या आस्तिक किन्तु कुछ समय उनको तो दे ही सकते हैं जिनको आप पूजते हो, मानते हो या भजते हो। इस प्रकृति ने जो आपके ऊपर जो उपकार किया है, इन शक्तियों को चलाने का जो इस प्रकृति का योगदान है, उसको सुबह उठकर हमको स्मरण करना चाहिए, उनके प्रति मन में कृतज्ञता का भाव होना चाहिए। सुबह उठकर कृतज्ञता करते हुए कहना चाहिए कि हे प्रभु! तुमने मुझे नया जीवन दिया है तो मैं इस जीवन को अच्छे कार्य में लगाऊँ, अपनी दिनचर्या को ठीक करुँ, अपने जीवन को ठीक करुँ। इस तरह प्रात:काल उठकर हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए।