आयुर्वेद की विजय यात्रा, विजय गाथा
योग एवं आयुर्वेद को जन-जन तक पहुंचाने की यात्रा में संघर्ष, प्रयास और अनुसंधान
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आचार्य बालकृष्ण
प्राचीनकाल से ही हम सुनते आए हैं कि ‘पहला सुख- निरोगी काया।’संसार की कितनी भी ऊँचाइयों को हमें पाना हो, समुद्र की गहराइयों को नापना हो चाहे आसमान की ऊँचाइयों को छूना हो, जीवन में कितनी भी उन्नति या समृद्धि की ओर हमें बढऩा हो, यदि सेहत (सुस्वास्थ्य) है तो सब कुछ है। जब व्यक्ति बीमार हो जाता है तो स्वयं ही नहीं अपितु सम्पूर्ण परिवार परेशान हो जाता है। साधन के साथ-साथ बहुत सारा समय भी उसमें चला जाता है।
इसके लिए हमारा आयुर्वेद हमेशा से कहता रहा है-
स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं। (चरक संहिता, 30.26)
सुस्वास्थ्य है तो सब कुछ है
हमको ये ध्यान रखना है कि ये जो प्रिवेंशन है कि हम रोगी ही न हों, हमें कुछ उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए। और वह उपाय आयुर्वेद व योग के द्वारा ही संभव है। आज माननीय प्रधानमंत्री जी के पुरुषार्थ से पूरे विश्व के लोग ‘इंटरनेशनल योगा डे’के रूप में योग को मान्यता प्रदान करके योग का आनंद और योग का लाभ उठा रहे हैं। परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने आज योग को घर-घर तक, जन-जन तक पहुँचाया है। पूरे विश्व में यदि ऐसा कोई शब्द है जिसके बेसिक अर्थ को लोग जानते हैं तो वह ‘योग’है। योग के विषय में आप किसी से भी पूछोगे तो वह ये तीन चीजें तो बता ही देगा कि कुछ फिजिकल एक्सरसाइज, कुछ ब्रिथिंग एक्सरसाइज और कुछ मेडिटेशन। उसको पता है कि कुछ आसन करने हैं, कुछ श्वास की क्रियाएँ करनी हैं तथा कुछ ध्यान करना है, उसका नाम योग है। चाहे वह उल्टा कर रहा हो, सीधा कर रहा हो, पूरा कर रहा हो या अधूरा कर रहा हो, परन्तु पूरे विश्व का जनमानस बहुतायत में योग को समझ चुका है।
पूरे विश्व में आयुर्वेद की प्रतिष्ठापना का संकल्प
विदेशों में जाकर आयुर्वेद अभी तक आयुर्वेद के रूप में प्रतिष्ठापित नहीं हो पाया है। कहीं न कहीं वह हर्बल मेडिसिन, फूड सप्लिमेंट के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद की बात करें तो विश्व के बहुत से देशों में लोग यह भी नहीं जानते कि वस्तुत: आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान है या आयुर्वेद कोई भाषा है। कई बार लोगों को लगता है कि डॉक्टर ने जो दवाइयाँ संस्कृत में लिखी हैं उन दवाओं का नाम आयुर्वेद है, इतनी अज्ञानता है आयुर्वेद को लेकर। उस अज्ञानता को दूर करने के लिए पतंजलि ने बहुत सुंदर कार्य किया। हमारी साइंस ऑफ आयुर्वेदा जिसे हम ‘आयुर्वेद सिद्धांत रहस्य’बोलते हैं आज दुनिया की ७० भाषाओं में वह पुस्तक प्रकाशित हो रही है। और हमें यह कहते हुए प्रसन्नता है कि संबंधित भाषा के लोग अपने देश में इस पुस्तक को छपवाकर अपने देश में वितरित कर रहे हैं। ये आयुर्वेद की सबसे बड़ी विजय यात्रा है, विजय गाथा है। क्योंकि ध्यान उस ओर नहीं है। हम कहते हैं कि लोग हमारा आयुर्वेद नहीं मानते, अरे आयुर्वेद को तो तब मानेंगे जब उन्हें आयुर्वेद के अर्थ का बेसिक बोध होगा। जैसे योग को अब दुनिया मानने लगी है। दुनिया को अब योग का अर्थ पता है लेकिन आयुर्वेद के विषय में लोग अभी नहीं जानते। हमें आयुर्वेद के अर्थ को लोगों को समझाना पड़ेगा।
देश-धर्म की सीमाओं से परे है आयुर्वेद
सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात तो यह है कि दुनिया की सब भाषाओं में ‘आयुर्वेद सिद्धांत रहस्य’प्रकाशित हो रही थी किंतु चाइना की भाषा में यह पुस्तक छपवाने के लिए बहुत सी क्वाइरीज और प्रश्नों का सामना हमें करना पड़ा क्योंकि चाइना वाले अपनी पद्धति के प्रति थोड़ा आग्रही होते हैं, लेकिन वहाँ भी यह पुस्तक प्रकाशित हुई और उर्दू में पाकिस्तान में भी यह पुस्तक छपी। यानि आयुर्वेद देश की सीमाओं को भी जोडऩे का कार्य करता है।
आयुर्वेद के विद्यार्थियों को ‘विश्व जड़ी बूटी का इतिहास’पढ़ाए जाने की आवश्यकता
जब आयुर्वेद की बात आती है तो कुछ सामान्य गलतियाँ हम भी करते हैं, आयुर्वेद के प्रबुद्ध व्यक्तियों से भी होती हैं जैसे हम आयुर्वेद के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं आयुर्वेद का इतिहास। मैं आयुर्वेद के इतिहास को पढ़ाने का विरोधी नहीं हूँ परंतु हमें उन विद्यार्थियों को ‘विश्व जड़ी बूटी का इतिहास’पढ़ाने की आवश्यकता है। क्योंकि यदि हम बच्चों को वल्र्ड बोटनी बेस्ड मेडिसिन सिस्टम पढ़ाएँगे तो हमें यह पता चलेगा कि आयुर्वेद कहाँ पर खड़ा है। जब हमको यह बोध होगा कि विश्व में हम कहाँ खड़े हैं तो उससे लोगों का आयुर्वेद के प्रति जो विश्वास है, विश्व में आयुर्वेद के लिए काम करने की जो भावना है, वह और बलवती होगी। जब हमको पता चलेगा कि हम दुनिया की चिकित्सा पद्धतियों में इतने ऊँचे हैं तो उनको भी पता चलने लगेगा।
पैथियों में भेद लेकिन सभी पैथी में प्रथम लक्ष्य रोगी को निरोगी बनाना
यदि हम सरकार की पॉलिसी की बात करें तो भारतवर्ष में हम दो धाराओं में रोगों को ठीक करने की बात या रोगी को निरोग करने की बात करते हैं। चाहे वह किसी भी पैथी में प्रेक्टिस कर रहा हो, अंतत: हम सबका लक्ष्य तो एक ही है। किसी भी पद्धति के चिकित्सक के पास यदि कोई रोगी आता है तो वह प्रयास करता है कि मुझे इस रोगी को ठीक करना है। और जहाँ तक पैथी की बात है, जब तक हमारे हाथ में लाल, नीली, पीली, सफेद गोली है, चाहे चूर्ण या पाऊडर है, जब तक हाथ में है वह तभी तक गोली, चूर्ण आदि है, पेट में जाने के बाद तो बॉयोकैमिस्ट्री ही काम करेगी। पेट के अंदर तो उसका एक्टिव कम्पाउण्ड ही काम करेगा। इस सोच को देश व दुनिया तक पहुँचाने तथा इसे विकसित करने की आवश्यकता है। आजकल हम इंटिग्रेटेड की बात करने लगे हैं लेकिन यह ट्रूली इंटिगे्रटेड होना चाहिए। सब विधाओंके लोग एक साथ बैठकर इसे करें क्योंकि चाइना में पहले हमारे जैसी ही स्थिति थी जैसा कि आज हम मेडिकल साइंस को लेकर पूरब-पश्चिम करते रहते हैं कुछ ऐसी ही स्थिति उस समय चाइना में थी परंतु १९७२ में चाइनीज मेडिसिन सिस्टम के लोगों ने उस सिस्टम को एक ही बना दिया। जैसा उदाहरण के तौर पर एक विद्यार्थी लॉ कॉलेज में लॉयर बनने जाता है तो प्रारंभ में तो सभी विद्यार्थी सब तरह की पढ़ाई करते हैं परंतु बाद में विभिन्न विषयों में स्पेशलाइजेशन करकेअलग-अलग विषय के स्पेशलिस्ट बनते हैं। ऐसे ही मेडिसिन सिस्टम में भारत के विद्यार्थी भी चाइना में एमबीबीएस करने जाते हैं तो ३ साल चाइनीज मेडिसिन सिस्टम पढऩा उनकी मजबूरी है। वो भारत में आकर चाइनीज मेडिसिन की प्रेक्टिस नहीं करने वाले, वो एमबीबीएस डॉक्टर बनकर आने वाले हैं और हमारे देश की जो व्यवस्थाएँ हैं, उन्हें भी अर्जित करने वाले हैं परंतु उनको वहाँ चाइनीज मेडिसिन सिस्टम पढऩा जरूरी है। इसी तरह की व्यवस्था इस देश में नहीं हो सकती क्या? इससे क्या लाभ होगा? सबसे पहले तो हमारे उन लगभग २२०० से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सकों को लाभ मिलेगा जो यूएसए में हैं, एमडी भी हैं, ग्रेजुएट भी हैं। चाइनीज मेडिसिन सिस्टम वाला यूएसए में चाइनीज मेडिसिन सिस्टम को यूएसए में धड़ल्ले से कर सकता है क्योंकि उसकी डिग्री यूएसए में मान्य है परंतु मुझे पीड़ा होती है कि हमारा आयुर्वेद का बीएएमएस/एमडी यूएसए जाता है तो रोगी को छू भी नहीं सकता, उसे वहाँ सर्टिफिकेट लेना पड़ता है जिसके बाद वह थेरेपिस्ट का काम करता है, उससे पहले वह भी नहीं कर सकता था। उससे हमें कितनी बड़ी हानि हो गई, हमारा देश से बाहर जाने का दरवाजा बंद हो गया। आज हम भी आयुर्वेदिक दवाएँ दुनिया में पहुँचा रहे हैं परंतु हर्बल सप्लीमेंट व फूड सप्लीमेंट के रूप में। यूएस एफडीए के जो प्रोटोकॉल्स हैं, जो स्टैंडर्स हैं, हम उन्हें पूरा करते हैं।
आयुर्वेद की वैश्विक स्थापना आवश्यक, वर्ल्ड हर्बल इंसाइक्लोपीडिया कालजयी ग्रंथ
वैश्कि स्तर पर आयुर्वेद को आयुर्वेद के रूप में स्थापित करना अभी शेष है। इसके लिए हमने वर्ल्ड हर्बल इंसाइक्लोपीडिया के रूप में बड़ा कार्य प्रारंभ किया। यह पतंजलि के द्वारा प्रारंभ किया गया कालजयी कार्य है। पूरी दुनिया में जो पादप जगत है उसमें लगभग ३ लाख ६० हजार प्लांट्स बॉयोडायवर्सिटी पूरे विश्व में है। पहली बार पतंजलि ने यह चैकलिस्ट बनाने का प्रयास किया कि पूरे विश्व में कितने प्लांट्स हैं जो मेडिशनली प्रयोग किए जा रहे हैं या किए जा सकते हैं। यह काम करते हुए ही हमें पता चला की १९९९ में यह कार्य विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी शुरू किया था, १४७ मोनोग्राफ उन्होंने बनाए हैं, ५ वाल्यूम में छोटी-छोटी किताबें छापी गई हैं। बाद में २०१० में WHO ने यह कहकर इस कार्य को बंद कर दिया कि ‘यह कार्य तो असंभव जान पड़ता है।’ WHO की साइट पर अभी भी आप यह जानकारी देख सकते हैं। पतंजलि ने जब यह कार्य प्रारंभ किया तब हमें पता भी नहीं था कि WHO ने यह कार्य प्रारंभ करके बंद भी कर दिया है। किंतु आज हमें यह कहते हुए गर्व होता है कि पतंजलि ने असम्भव को सम्भव करके दिखाया। पूरी दुनिया में ट्रीटमेंट के लिए केवल ९ बॉटनी बेस्ड मेडिसिन सिस्टम हैं। और यदि पूरे विश्व में हीलिंग प्रैक्टिसिज की बात करें तो लगभग ९६४ हीलिंग प्रैक्टिसिज हैं। पतंजलि ने इस स्तर तक कार्य किया कि कितने मेडिशनल प्लांट्स इनमें प्रयोग किए जाते हैं, किस रोग में कौन से प्लांट का प्रयोग किया जाता है। इस कालजयी रचना में लगभग ६ लाख रेफरेंसिज, दुनिया की लगभग २ हजार भाषाएँ, लगभग २ हजार ट्राइब्स, २.५ लाख सिनोनेम्स (Synonyms) तथा २० लाख वर्निकुलर नेम्स (Vernacular) समाहित किए गए हैं। यह वर्ल्ड हर्बल इन्साइक्लोपीडिया १०९ वाल्यूम्स और यदि पृष्ठों की बात करें तो लगभग १,२५,००० पृष्ठ में यह समाहित किया गया है। इसके पहले लगभग ७० वाल्यूम्स का विमोचन हमने भारत में ही किया तथा बाद में सभी वाल्यूम्स का विमोचन बॉटनी की सबसे बड़ी संस्था लंदन के रॉयल बॉटनिकल गार्डन, क्यू (Royal Botanic Gardens, Kew) में किया। जब उन्होंने यह कार्य देखा तो इसकी व्यापक स्तर पर प्रशंसा की कि ऐसा बड़ा कार्य भारत से हो रहा है। यह विडम्बना है कि इसे आश्चर्य की दृष्टि से देखा जाता है कि भारत से भी इतना बड़ा कार्य हो रहा है जबकि आज पूरे विश्व में भारत के डॉक्टर, इंजीनियर, सीईओ अपनी क्षमताओं का लोहा मनवा रहे हैं। रॉक्सबर्ग (Roxburgh) ने बॉटनी में जो कार्य किया, बॉटनी वाले आयुर्वेद वालों को अपने से थोड़ा कम मान्यता देते हैं। उनका मानना है कि उन्हें पौधों के औषधीय गुणों का तो पता है किंतु पौधों की पहचान की क्षमता नहीं है। इससे हमें आयुर्वेद को बाहर निकालना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पतंजलि अनुसंधान की स्वीकार्यता
अभी अनुसंधान की बात करें तो कोरोना के ऊपर आयुष मंत्रालय और भारत सरकार के प्रयास से अंतराष्ट्रीय स्तर पर केवल 2 रिसर्च पेपर्स पब्लिश हुए हैं तथा दोनों का रिव्यू पतंजलि से ही हुआ है। हमें इस बात को कहते हुए प्रसन्नता व गर्व की अनुभूति होती है कि पतंजलि ने २८ रिसर्च पेपर्स हाई इम्पैक्ट वाले अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च पेपर्स में पब्लिश किए। कोरोना पर इंडिविजुअल इंस्टीट्यूट के रूप में सबसे ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च पेपर्स पतंजलि ने ही प्रकाशित किए हैं, यह आयुर्वेद की सबसे बड़ी यात्रा, विजय गाथा है।
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