शाश्वत प्रज्ञा

परम पूज्य योग.ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से निःसृत शाश्वत सत्य………

शाश्वत प्रज्ञा

संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य अज्ञान
1.   मुझे संसार की बड़ी-बड़ी रचनाएं, घटनाएं व वंडर्सादि आश्चर्यचकित नहीं करते लेकिन जब मैं देखता हूँ कि 99% विश्व के मानव जीवन के सन्दर्भ में अपने ज्ञान, संवेदना, सामर्थ्य के बारे में बेखबर होकर अज्ञान या अविद्या जनित वृत्तियों व प्रवृत्तियों में जी रहे हैं। जीवन जो अनादिकाल से चला आ रहा व अनन्त काल तक चलने वाला शाश्वत प्रवाह है तथा जीवन के प्रयोजन, उपयोगिता, उपलब्धि व अन्तिम गन्तव्य या ध्येय के सन्दर्भ में अतिशय भ्रान्ति है। अज्ञान, प्रमाद व क्षणिक सुख व तुच्छ आकर्षणों में फंसकर प्रकृति व परमेश्वर प्रदत्त अनन्त शक्ति सम्पन्न जीवन को क्षुद्र उद्देश्यों के लिए ही अधिकांश लोग बर्बाद कर देते हैं। शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि सहित अनन्त शक्ति सम्पन्न आत्मा क्या है, क्यों है, जन्म और जीवन हमें क्यों मिला है, ये सब किसका परिणाम है और अन्ततः जीवरन का परिणाम परिणति व नीयति क्या है? इन सब अत्यन्त गंभीर सन्दर्भों के सन्दर्भ में हम अनजान रहकर जीवन के अमूल्य एक-एक क्षण में व्यर्थ गंवा देते है। जब किसी गंभीर संकट, रोग-दुःख, दरिद्रता, अन्याय, शोषण, चुनौति, संघर्ष या समस्या से घिर जाते हैं तो सोचते है कि कोई दैवी शक्ति, शक्तिशाली व्यक्ति शासक राजा, फकीर-वजीर या अमीर व्यक्ति आयेगा और हमें बचायेंगा जबकि यथार्थ यह है कि हम अपनी समस्त समस्याओं या 99% दुःख का स्वयं ही प्रत्यक्ष या परोक्ष कारण हैं। अमीर अपनी अमीरी बढ़ाना चाहते हैं, शासक अपनी सत्ता बचाना चाहते हैं आपके वोट से कंपनियां आपको अपना ग्राहक बनाकर अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहते है। धर्मसत्ता आपको अपनी भीड़ का हिस्सा बनाकर अपना साम्राज्य या दंभ दिखाना चाहते हैं भगवान् ने जीवन के रूप में सब कुछ दे दिया, इसके बाद तो प्रभु कर्म फल व न्याय व्यवस्था के अनुरूप न्याय करते हैं निष्कर्ष यह है कि आपको स्वयं को जानना, जगाना होगा तथा अपने सामर्थ्य को सही दिशा में लगाना होगा तब आप स्वयं-स्वयं पूर्ण सुखी हो सकेंगे और करोड़ों लोगों को भी स्वास्थ्य सुख, समृद्धि, शान्ति देकर सबकी सेवा कर सकेंगे। जीवन अनन्त हैं जीवन में ज्ञान, शक्ति सामर्थ्य भी अनन्त है। जीवन का ध्येय भी अनन्त है। संसार में जिन आत्माओं को जवीन का सम्यक् यथादि बोध हो चुका है जो जीवन को अनन्तता को जी रहे हैं उनका धर्म, कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व है कि वे संसार को समस्त आत्माओं को भी सही मार्गदर्शन दें। 
2.  जीवन भी अनन्त है जगत भी अनन्त है जगदीश्वर भी अनन्त है। अतः हम सब मनुष्यों का भी यह परम धर्म है कि हम सब अनन्त ज्ञान, अनन्त प्रेम-करुणा, वात्सल्य व अत्यन्त व अनन्त पुरुषार्थ, शौर्य-वीरता व पराक्रम के साथ इस पूरे अस्तित्व को दिव्यता से भर दें। सारे संसार में सब दिशाओं सभी प्रकार की खुशहाली हो तो कितना सुन्दर होगा, ऐसा होता ही है और आप और हम सब मिलकर ऐसा ही करेंगे।
3. जब हमारे भीतर कभी-कभी काम, क्रोध, लोभ, मोह या अहंकारादि अनन्त अत्यन्त या तीव्र आवेग होता है तो हम आंशिक रूप से अनन्तता के सिद्धान्त को नकारात्मक रूप से अनुभव करते हैं आइये इसे ज्ञान, भक्ति, सेवा सुमिरन, सुख-शान्ति, प्रसन्नता व आनंद के रूप में अनुभव कीजिए।