सफेद दाग की अचूक दवा मेलानोग्रिट

सफेद दाग की अचूक दवा मेलानोग्रिट

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

    मेलानिन हमारे शरीर के लिए एक अति महत्वपूर्ण रंजक (Pigment) है जो त्वचा को उसका रंग देने के साथ-साथ ही सूर्य की पराबैंगनी किरणों से भी बचाव करता है। मेलानिन की मात्रा सभी के शरीर में अलग-अलग होती है, यह भूमध्य रेखा के आसपास रहने वाले देशो के लोगों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, वहीं दूसरी ओर जैसे-जैसे हम ध्रुवीय क्षेत्र की ओर बढ़ते हैं, यह मात्रा कम होती जाती है। मेलानोसाइट्स कोशिकाएं ही मेलानिन बनाती हैं। प्याज़ की तरह त्वचा की भी कई परतें हैं। त्वचा की तीन परतें हैं, सबसे ऊपरी परत एपिडर्मिस, बीच की परत को डर्मिस और सबसे निचली परत को हाइपोडर्मिस कहते हैं। मेलानिन त्वचा की ऊपरी परत, एपिडर्मिस और मध्यम परत डर्मिस के जोड़ पर बनती है। एपिडर्मिस में केरोटोनोसाइट्स और मेलानोसाइट्स सामान्य रूप से पाए जाते हैं। मेलानोसाइट्स कोशिकाओं में मेलानोसोम होते हैं जो मेलानिन बनाते हैं। यह मेलानिन केराटिनोसाइट्स कोशिकाओं के माध्यम से पूरे शरीर में फैल जाते हैं जो हमारे शरीर को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाते हैं।
विटिलिगो, ल्यूकोडर्मा सफ़ेद दाग मात्र बीमारी
विटिलिगो, ल्यूकोडर्मा, सफ़ेद दाग या धब्बे, और श्वेत कुष्ठ एक शारीरिक बीमारी होने के साथ ही समाज में एक कलंक के रूप में देखे जाते हैं जिसमें रोगी के हाथ और पैरो पर सफ़ेद चकत्ते हो जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार हर सौ में से एक व्यक्ति को विटिलिगो की बीमारी है। इस रोग में व्यक्ति के शरीर पर छोटे-छोटे सफ़ेद चकत्ते या बड़े-बड़े सफ़ेद धब्बे हो जाते हैं। इस बीमारी में शरीर में मेलानोसाइट्स कोशिकाएं मर जाती हैं और मेलानिन का उत्पादन होना समाप्त जाता है। कुछ रोगियों के हाथों में सूजन के साथ-साथ त्वचा लाल और खुरदुरी भी हो जाती है।
मेलानिन का शरीर में बनना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें एक प्रकार के एन्जाइम टाइरोसिनेज़ द्वारा एल-डोपा, जोकि एक प्रकार का एमिनो एसिड है के निर्माण से निर्धारित होता है कि कितने प्रकार के मेलेनिन सिंथेसिस शरीर में होंगे, वहीं माइक्रॉफ थल्मिया एसोसिएटेड ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (MITF ) शरीर में मेलेनिन का स्तर तय करते हैं।
विटिलिगो और ल्यूकोडर्मा में भेद
प्राय: आम बोलचाल की भाषा में विटिलिगो और ल्यूकोडर्मा को एक ही बीमारी माना जाता है, परन्तु ल्यूकोडर्मा किसी दुर्घटना की वजह से होने वाली बीमारी है जबकि विटिलिगो एक प्रकार की ऑटो इम्यून डिजीज है। ल्यूकोडर्मा में त्वचा में किसी प्रकार की चोट का लगना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर विटिलिगो हार्मोनल डिस्बैलेंस, डीओडरंट, परफ्यूम या किसी केमिकल पदार्थ की वजह से होने वाली एलर्जी, बार-बार पीलिया या टाइफाइड होने, कोई अधिक संवेदनशील घटना, या फिर काफी लम्बे समय से चले रहे एंटी बायोटिक दवाइयों के प्रयोग से भी हो सकता है। वहीं कई बार इम्यून सिस्टम खुद में अनजाने में मेलानोसाइट्स को ख़त्म करना शुरू कर देता है। दोनों का उपचार भी लगभग एक प्रकार से ही होता है क्योंकि दोनों में ही पिगमेंटेशन और इम्युनिटी वर्धक दवाइयां दी जाती है, इसलिए इसमें अंतर बताना और भी कठिन हो जाता है।
 क्या स्टेरॉयड है समाधान?
आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में दिया जाने वाला उपचार ज़्यादातर स्टेरॉयड के रूप में होता है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए दिया जाता है। इन दवाइयों के शरीर पर दुष्परिणाम भी बहुत अधिक होते हैं। इनसे कई बार स्किन के सेल्स मरने शुरू हो जाते हैं, या फिर त्वचा पर अधिक बाल आने लगते हैं, कई बार त्वचा कर रंग तो ठीक हो जाता है लेकिन उनमें झुर्रिया पड़ जाती है और कई बार धूप में जाने पर जलन भी होने लगती है।
मेलानोग्रिट है भारतीय पुरातन चिकित्सा पद्धति के अनुरूप बनाई गई पहली हरबो मिनरल औषधि
शोधित बकुचि, खादिर, मंजिष्ठा, अमलतास, रस माणिक्य, ताम्र भस्म आदि जड़ी-बूटियों से बनी मेलानोग्रिट अपनी तरह की पहली हरबो मिनरल औषधि है, जो भारतीय पुरातन चिकित्सा पद्धति के अनुरूप बनाई गई है। यह सिर्फ विटिलिगो और ल्यूकोडर्मा जैसी त्वचा की बीमारियों को ठीक करने में मददगार है, बल्कि इन बीमारियों से होने वाली सामाजिक और आर्थिक हानियों से भी बचाव करती है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों के आधार पर निर्मित इस औषधि की जड़ी-बूटियों को प्रामाणित करने के लिए सर्वप्रथम हाई परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी तकनीक के माध्यम से यह देखा गया कि वह कौन से सिग्नेचर फाइटोमेटाबोलाइट है जो सीधे तौर पर मेलेनिन को ठीक करने में मददगार है और उनका स्टैंडर्डाइजेशन किया गया। इस प्रक्रिया का प्रथम उद्देश्य उन तत्वों की खोज करना था जो आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार इन बीमारियों में लाभदायक हैं, दूसरा यह भी सुनिश्चित करना जरूरी था कि जो भी आयुर्वेदिक औषधि निर्मित हो रही है, उसमें वह सभी तत्व सही मात्रा में विद्यमान रहें।
तत्पश्चात, कोशिकाओं पर परिक्षण के लिए प्रयोगशाला में ऊतकों का निर्माण किया गया और यह देखा गया कि इस दवाई से त्वचा पर किसी प्रकार कि कोई हानि तो नहीं हो रही है। 100 माइक्रोग्राम/एमएल की मेलानोग्रिट डोज़ के साथ भी यह देखा गया कि इन कोशिकाओं को कोई हानि तो नहीं हो रही है। उसके बाद यह भी देखा गया है कि मेलानोग्रिट देने के बाद इन कोशिकाओं में मौजूद फाइबर जैसे स्ट्रक्चर्स जिन्हें डैंड्राइट्स कहा जाता है में भी विस्तार हो रहा है। यह डैंड्राइट्स तय करते हैं कि वह कहां तक अपनी कनेक्टिविटी बना पाते हैं, जिससे कि एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक मेलानिन पहुंचाया जा सके।
मेलानिन की उत्पत्ति की यह प्रक्रिया तीन अलग-अलग प्रोटीन या एन्ज़ाइम्स के द्वारा होती है। उन एन्ज़ाइम्स के जीन्स एक्सप्रेशन भी देखने का प्रयास किया गया, तब यह पाया कि विलिटिगो और ल्यूकोडर्मा के दौरान जब इन जीन्स एक्सप्रेशन का लेवल कम होता है उसको मेलानोग्रिट की सहायता से डोज़ डिपेंडेंट तरीके से ठीक किया जा सकता है।
इसके बाद एक और शोध के द्वारा मेलानोग्रिट की प्रमाणिकता की पुष्टि की गई, इसके लिए अल्फा एमएसएच (अल्फ़ा-मेलानिन स्टिमुलेटिंग हार्मोन), जो कि एक प्रकार का हार्मोन है और आयुर्वेदिक हर्बल औषधि मेलानोग्रिट के द्वारा यह पाया गया कि अगर स्वस्थ कोशिकाओं में पहले यह हार्मोन इनड्यूस्ड किया जाये तो कोशिकाओं का रंग काला हो जाता है और फिर इस हार्मोन की मात्रा और भी कम कर दी जाये तो यह पारदर्शी जैसे हो जाते हैं परन्तु मेलानोग्रिट के प्रयोग से इनको फिर से उसी रूप और रंग मे किया जा सकता है जैसे वह स्वस्थ कोशकाएँ हो।
उसके बाद इसके मोड ऑफ़ एक्शन को जानने की कोशिश की गई, एक एन्ज़ाइम टाइरोसिनेज़ जो एल-डोपा के लेवल को कण्ट्रोल करता है, उस पर शोध में यह पाया गया कि मेलानोग्रिट के प्रयोग से सेलुलर टाईरोसिनेज़ एक्टिविटी को भी बढ़ाया जा सकता है जो यह प्रमाणित करता है कि त्वचा कोशिकाओं के अंदर एंजाइम की कार्यशीलता बढ़ चुकी है।
एक अन्य शोध में यह प्रमाणित हुआ कि मेलानोग्रिट के प्रयोग से एक बड़े ट्रांसक्रिप्शन सेल, एमआईटीएफ को भी कण्ट्रोल किया जा सकता है। इस शोध में यह पाया गया की डोज़ डिपेंडेंट तरीके से मेलानोग्रिट के प्रयोग से इसका लेवल बढ़ जाता है। इसके अलावा एक स्पेशल प्रोटीन ईआरके जो कि एक प्रकार का काईनेज़ है उस पर इस शोध करके यह पाया गया कि मेलानोग्रिट के प्रयोग से इसके फोस्फोरालाइजेशन को भी संतुलित किया जा सकता है।
मेलानोग्रिट सिर्फ ल्यूकोडर्मा जैसी चोट के कारण होने वाले सफ़ेद दाग में लाभदायक है बल्कि हार्मोनल डिस्बैलेंस दवाइयों के कारण होने वाले विटिलिगो को भी जड़ से मिटाने के लिए उपयुक्त आयुर्वेदिक दवा है। यह आयुर्वेदिक औषधि इन बीमारियों को शारीरिक रूप से ठीक करने के साथ ही सामाजिक रूप से होने वाले तिरस्कार को भी समाप्त करती है।