शाश्वत प्रज्ञा
परम पूज्य योगऋषि स्वामीजी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
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स्वामी रामदेव
मेरे 50 वर्षों का अनुभव
१. विकल्परहित संकल्प एवं अखंड-प्रचण्ड पुरुषार्थ परमार्थ व पराक्रम के साथ चरैवेति चरैवेति ही जीवन का सत्य है। प्रकृति व परमेश्वर के विधान के अनुसार संसार की समस्त आत्माओं को असीम ज्ञान, अनन्त भक्ति व अपरिमित शक्ति, सामर्थ्य, विद्या विभूति, ऐश्वर्य समान रूप से मिला हुआ है। हम स्वयं को जाने, जगायें एवं सही दिशा में अपना समय, शक्ति व प्रतिभा को लगायें तो एक-एक व्यक्ति बहुत बड़ा सृजन करने में समर्थ हो सकता है।
२. आत्मा सो परमात्मा, अपना आपा नहीं खोवो व जीते रहो। ये तीन बातें हमने बचपन में अपने बड़ों से सुनी थी। तीनों बातों में जीवन का सार व विस्तार अन्तर्निहित है। आत्मा में परमात्मा का समस्त सामर्थ्य सन्निहित है। जाति, वर्ग व समूह विशेष के भेदभाव के बिना हम सब भगवान् व अपने पूर्वजों के प्रतिनिधि प्रतिरूप मूर्त रूप जीवनत साक्षात् मूर्त विग्रह है। भगवान के ही अंश व ऋषि-ऋषिकाओं के वंश या वंशधर हैं। यह तथ्य सत्य कभी भी विस्मृत नहीं होना चाहिए। एक दिन हम स्वयं ऋषिकल्प हो ही जायेंगे।
अपने स्वरुप निजता से कभी भी नीचे नहीं आना चाहिए। परिस्थिति, मन:स्थिति चाहे जैसी हो जन्मजन्मान्तरों के संस्कार, कर्माशय व भगवान की कर्मफल व न्याय व्यवस्था के अनुरूप जीवन का प्रवाह अत्यन्त ही गतिशील व परिवर्तनशील है। अत: हम प्रतिबद्ध रहें कि हमें सदा सात्विक चेतना में ही जीना है। रजोगुण, वतमोगुण में क्षिप्त मूढ़ व विक्षिप्त चित्त व चेतना यह हमारा मूल स्वभाव व मूल प्रकृति नहीं है। जीते रहो, यह मात्र जीना या आयुष्मान होना भर नहीं है। हमें योगधर्म, वेदधर्म, ऋषिधर्म, सनातनधर्म को सत्य या शाश्वत सार्वभौमिक मूल्य, आदर्श व सिद्धान्तों को अपने आचरण में लाना है, उनको जीना है। बाहर के जगत में भले लोग धर्म व सत्य को पूरा नहीं जीते हों, लेकिन हमें अपने जीवन में १००% सत्यमेव जयते को जीना है।
३. समग्रता - शिक्षा, स्वास्थ्य, धर्म-अध्यात्म, राजनीति से लेकर घर-परिवार, सम्बन्ध, व्यापार व वैश्विक सन्दर्भों तक हर विषय में समग्रता, व्यापकता मूल से लेकर शिखर तक पूर्ण विवेक, पूर्ण भक्ति व पूर्ण शक्ति से समस्त कार्यों व सेवाओं का सम्पादन करना। टुकड़ों-टुकड़ों में कभी भी कोई भी सत्य पूर्ण अभिव्यक्त नहीं होता।
सनातन- सारे संसार की समस्त भौतिकवादी ताकतें, मजहबी उन्मादीवादी शक्तियों व सत्ताओं से भी परम शक्तिशाली है। हमारी पूर्वजों की सनातन संस्कृति की शक्ति और यही हमारी सबसे बड़ी विरासत ताकत व सर्वोपरि उपलब्धि व विश्व के लिए हमारा सबसे बड़ा अवदान होगा।
आह्वान- मैं समस्त दिव्यता, सात्विक आत्माओं से आह्वान करता हूँ कि आप स्वयं इस सांस्कृतिक वैचारिक, आर्थिक आजादी, शिक्षा व चिकित्सा की आजादी, रोग, नशा व भोग-विलासिता की आजादी के आंदोलन से जुड़ें और सबको जोड़े। एक दिन हम सारी दुनियां पर भारी पडेंग़े, विजयी होगें।
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