भारत को डायबीटीज का शिकार बनाने का विदेशी कंपनियों का षड्यंत्र
भारत में बिकने वाले नवजात शिशु आहार नेस्ले सेरेलेक में ज्यादा चीनी की मिलावट, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चेतावनी
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राकेश कुमार ‘भारत’
सह-संपादक - योग संदेश
एवं मुख्य केन्द्रीय प्रभारी-
भारत स्वाभिमान
नेस्ले नाम की एक विदेशी कंपनी जो पूरी दुनिया में बच्चों के लिए शिशु आहार बनाने के साथ-साथ अन्य बहुत से उत्पाद बनाती है उसके बारे में स्विट्जरलैंड की एक गैर सरकारी संस्था द्वारा तथा इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क जो पूरी दुनिया में बच्चों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाला संगठन है, उसने अपनी रिपोर्ट में यह आरोप लगाया कि भारत में बच्चों की हेल्थ के साथ शिशु आहार के नाम पर खिलवाड़ हो रहा है। बच्चों के आहार में बच्चों को बचपन से ही लत लगाने के लिए 2.7 ग्राम प्रति सर्विंग के आधार पर ज्यादा चीनी मिलाई जा रही है, जबकि स्विट्जरलैंड, अमेरिका, जर्मनी आदि दूसरे देशों में बिल्कुल चीनी नहीं मिलाई जाती। यह एक बहुत खतरनाक विषय है जिसमें बच्चों को बचपन से ही ज्यादा चीनी खाने की लत पडऩे के कारण मेटाबॉलिक डिसऑर्डर पैदा हो जाता है और पूरी उम्र उसे बच्चों की फूड हैबिट्स या टेस्ट बर्ड्स इस प्रकार से डेवलप हो जाती हैं कि वह बहुत अधिक चीनी खाता है। जिससे भविष्य में उसे बच्चों की डायबिटीज होने की संभावना तथा मोटापे के साथ-साथ अन्य रोगों से ग्रसित होने का जोखिम कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। हैरानी की बात यह है स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले ऐसे मामलों की जांच देश के अंदर से नहीं बल्कि बाहर विदेश के गैर लाभकारी संस्थान द्वारा की जाती है और इस मुद्दे को उठाया जाता है। आइये, विश्लेषण करते हैं कि यह मुद्दा कितना गंभीर है किस प्रकार से आने वाले भारत की नई पीढिय़ों के खान-पान की आदत को बदलकर उनको गंभीर बीमारियों में झोंकने का षड्यंत्र है।
भारत में डायबिटीज
इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 100 मिलियन अर्थात 10 करोड़ से भी ज्यादा लोग डायबिटीज से जूझ रहे हैं और इससे भी चौंकाने वाली बात यह है कि इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में 136 मिलियन 13.6 करोड़ लोग या देश की 15.6त्न पापुलेशन ऐसी भी है जो प्री-डायबिटिक है। इस प्रकार यदि हम इन दोनों आंकड़ों को मिला दें तो हम पाएंगे कि दुनिया में केवल पांच ही देश ऐसे हैं जिनकी कुल जनसंख्या भारत के डायबिटिक और प्री-डायबिटिक लोगों के कुल आंकड़े से ज्यादा है, यही कारण है कि अब भारत को दुनिया की डायबिटीज कैपिटल भी कहा जाने लगा है। साल 2019 से 2021 के बीच भारत में तीन करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज के पेशेंट बन गए, यहां तक की कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार देश में होने वाले 65त्न मौतें डायबिटीज जैसी नॉन कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से हुई है।
साभार : अमर उजाला
डायबिटीज क्या है? कैसे होती है? और गलत खानपान का क्या प्रभाव पड़ता है?
ऐसा माना जाता था कि डायबिटीज अधिक उम्र के लोगो में ही देखने को मिलती है लेकिन भारत में किये गये अध्ययन यह बताते हैं कि भारत में 20 और 30 की उम्र के बीच डायबिटीज का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है, जहां ICMR की रिपोर्ट बताती है कि 25 साल से कम उम्र के डायबिटिक युवाओं में से 25.3% लोग डायबिटीज से जूझ रहे हैं जिसे लेकर हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि युवाओं के बीच तेजी से फैलने डायबिटीज को जल्द ही जाँच और उपचार ना किया गया तो आगे जाकर उनमें क्रॉनिक डिजीज के होने का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि भारतीय युवाओं में बढ़ते डायबिटीज को उनमें हार्ट स्ट्रोक, कार्डिक अरेस्ट और किडनी डिजीज के बढ़ते और देश से भी जोडक़र देखा जाता है, जिससे भारत की आगामी पीढ़ी की औसत आयु पर भी बुरा असर पड़ सकता है।
लोगों को बीमार बनाने के लिए परंपरागत खाने से दूर करने का षड्यंत्र
मल्टीनेशनल कंपनियां अपने भ्रामक विज्ञापनों से लोगों की खाना खाने की आदतें और टेस्ट को रसायनों के माध्यम से बदलने का काम कर रहे हैं जिससे वर्तमान समय में स्थानीय खान-पान जैसा कुछ रहा ही नहीं है, बल्कि भारत में आज भूमंडलीकरण और पश्चिमी आधुनिकरण की वजह से परंपरागत खान-पान की जगह फास्ट फूड ने ले ली है। आज की पीढ़ी हाई कैलोरी और फैट से भरे हुए पिज़्ज़ा, बर्गर और हॉट डॉग्स जैसे जंक फूड खाना पसंद करती है। इंडिया में फास्ट फूड इंडस्ट्री 18% कंपाउंड वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ रही है। फास्ट फूड की इस बढ़ती मांग के पीछे मल्टीनेशनल कंपनियों का बड़ा हाथ है क्योंकि यदि परंपरागत भोजन घर में बनेगा तो मल्टीनेशनल कंपनियों का टर्नओवर व मुनाफा नहीं बढ़ सकता। नेशनल सैंपल सर्वे (NSSO) के मुताबिक आज भारत अपने टोटल एक्सपेंडिचर का 2.1% फास्ट फूड पर खर्च करता है जो कि फलों और सब्जियों पर खर्च की गई राशि से भी ज्यादा है।
भारत में तेजी से बढ़ते डायबिटीज का हल
ऐसे अस्वास्थ्यकर और अनियमित उत्पादों को बाजार में आने से रोका जा सके जो डायबिटीज को बढ़ावा देते हैं। हालांकि इंडियन गवर्नमेंट और FSSAI की गाइडलाइंस भी इस बात को सुनिश्चित करती है कि बाजार में मिलने वाले सभी फूड प्रोडक्ट्स पर उनके घटक जैसे शुगर, कैलोरीज, फैट इत्यादि के परसेंटेज मार्क हो लेकिन इसके बाद भी कंपनी इन नियमों को या तो पूर्ण रूप से नहीं मानती या फिर प्रचार की आड़ में अपने अनहेल्दी स्टेटस को जनता से छुपाती है।
भारत में बड़ी संख्या में ऐसे प्रोडक्ट बेचे जाते हैं जिनके अंदर कोई पोषक तत्व नहीं होते तथा जिनमें चीनी तथा हानिकारक रसायनों की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। ऐसे बहुत से प्रोडक्ट भारत के बाजार में बिकते हैं, जो दूसरे देशों में बैन हैं। भारत में जो नियामक बने हुए हैं उनकी गाइडलाइंस भी कई बार स्पष्ट न होने के कारण मल्टीनेशनल कंपनियां अपने उत्पादों को मार्केट में उतारने व बेचने में सफल हो जाते हैं।
जो कंपनियां झूठे भ्रामक विज्ञापनों में दावा करती हैं, ऐसे प्रोडक्ट्स को मार्केट में आने से और उनकी मिसलीडिंग एडवरटाइजमेंट को रोकने की जरूरत है और इसके लिए हम साउथ अफ्रीका और मेक्सिको जैसे देशों से भी सीख ले सकते हैं जहां इस बात को सुनिश्चित किया गया है कि उन सभी फूड प्रोडक्ट्स और बेवरेजेस पर अनहेल्दी या एक्सेस शुगर जैसे लेबल्स लगाया जाएँ, जिनमें शुगर या फैट की मात्रा हेल्दी मार्जिन से ज्यादा है जिससे कंज्यूमर्स खरीदते समय एक सही निर्णय ले सकें, साथ ही डायबिटीज के खिलाफ इस लड़ाई में इस बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए सरकार को अच्छे स्वास्थ्य देखभाल की पहुँच प्रदान करने और हेल्थ केयर इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करने की भी जरूरत है।
नेस्ले का सेरेलेक (Cerelac) विवाद
स्विस की NGO "The International Baby Food Action Network, (IBFAN)" द्वारा नेस्ले के बेबी प्रोडक्ट्स की जाँच में विभिन्न देशों में नेस्ले के शिशु उत्पादों में शुगर लेबल में भारी अंतर का पता चला है। नेस्ले नाम की कंपनी अपने शिशु उत्पादों में जो उत्पाद भारत, इथोपिया, थाईलैंड आदि विकासशील अर्थात गरीब माने जाने वाले देशों में हानिकारक अधिक चीनी की मिलावट वाले उत्पाद बेचती है। जिस नेस्ले कंपनी का मुख्यालय स्विट्जरलैंड में है वह कंपनी स्वीटजरलैंड देश में बिना किसी चीनी की मिलावट के उत्पाद बेचती है। खुद यह कंपनी कई देशों में जहाँ चीनी रहित शिशु उत्पाद बनाती है, वहां यह दावा करती है कि चीनी रहित उत्पाद बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर जिन देशों में कंपनी बच्चों के शिशु आहार में प्रति सर्विंग के आधार पर लगभग 2.7 ग्राम चीनी ज्यादा मिलती है तो तर्क देती हैं कि हम अपनी गुणवत्ता बच्चों के पोषक तत्वों के मामले में कोई समझौता नहीं करते। इसी कंपनी के मूल देश स्विट्जरलैंड के गैर लाभकारी NGO पब्लिक आई द्वारा इस जाँच में विभिन्न देशों के लगभग 150 शिशु उत्पादों की जांच की गई, जिसके बाद पता चला कि दक्षिण एशियाई (भारत सहित), अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी बाजारों में नेस्ले के उत्पादों में यूरोप की तुलना में काफी अधिक शुगर का स्तर है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि नेस्ले का एक प्रोडक्ट है Cerelac जो 6 महीने से ऊपर के बच्चों को खासकर खिलाया जाता है, इसमें ऐड ऑन शुगर की मात्रा प्रति सर्विंग 2.7 ग्राम है जबकि यू.के. और जर्मनी में नेस्ले सेरेलैक में कोई भी ऐड ऑन शुगर की मात्रा नहीं है और सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि थाईलैंड में उसी प्रोडक्ट में ऐड ऑन शुगर की मात्रा 6 ग्राम है, जो टेस्ट किए गए उत्पादों में सबसे अधिक है।
2015 में WHO ने गाइडलाइंस जारी की थीं कि चाहे बच्चा हो या फिर एडल्ट्स, जितनी भी एनर्जी वह एक दिन में कंज्यूम करता है उसका 10% से ज्यादा ऐडेड शूगर नहीं होना चाहिए। और साथ ही हमें यह भी कोशिश करनी चाहिए कि इसको 10% से कम करके हम 5% कर सकें या फिर 25 ग्राम कर सकें, जितना हम इसकी क्वांटिटी कम कंज्यूम करेंगे, उतना ही यह हमारे हेल्थ के लिए अच्छा होगा।
अकेले भारत में, 15 सेरेलैक उत्पादों का विश्लेषण किया गया, जिसमे प्रति सर्विंग औसतन 2.7 ग्राम एडेड शुगर पाया गया, भारत में पैकेजिंग पर इस ऐड ऑन शुगर को FSSAI के नियमों के आधार पर अनिवार्यता होने के कारण दर्शाया गया। वहीं दूसरी तरफ यह कंपनियां कितनी शातिर हैं इन्होंने फिलीपींस में जहां आठ में से पाँच नमूनों में प्रति सर्विंग 7.3 ग्राम चीनी थी, जिसका पैकेजिंग पर कोई उल्लेख नहीं किया गया था।
कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्टर की कार्यावाही
कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्टर द्वारा FSSAI को यह मामला रिपोर्ट किया गया और जाँच की मांग की गयी। FSSAI ने कहा कि अगर नेस्ले के इस प्रोडक्ट में एडेड शुगर को लेकर कोई भी गड़बड़ी पाई जाती है तो उस पर कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
भारत के भविष्य को बीमार करने का बड़ा खतरा
ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (BPNI) के डॉ. अरुण गुप्ता कहा कि, ‘जब आप बेबी प्रोडक्ट में एडेड शुगर मिलाते हैं, तो अच्छे स्वाद के कारण बच्चा उसे पसंद करता है। जिससे खुशी के साथ माता-पिता उत्पाद खरीदते हैं, इससे कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है और वे ऐसा कर सकते हैं क्योंकि नियम कमजोर हैं।’
साभार : पंजाब केसरी
इतने बड़े मामले पर भी नेस्ले की ओर से यह सफाई दी गई कि ‘हम बच्चों के लिए अपने उत्पादों की पोषण गुणवत्ता में विश्वास करते हैं और उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री के उपयोग को प्राथमिकता देते हैं। पिछले पांच वर्षों में, नेस्ले इंडिया ने एडेड शुगर में 30 प्रतिशत तक की कमी की है।’और यह प्रतिशत कम करने वाला दावा भी भ्रामक है जैसे एक तरफ कंपनी ने मान लीजिए 1000 ग्राम अधिक चीनी मिलायी थी, उसमें से केवल 300 ग्राम की कमी थी, जिसको कम्पनी 30% की कमी के साथ बड़ी उपलब्धि दिखा रही है। यह वास्तव में भ्रम में डालकर उपभोक्ताओं को धोखा देने का षड्यंत्र है। जबकि छोटे बच्चे के बारे में विज्ञान यह मानता है कि उसकी स्वाद ग्रन्थियां बचपन में जो वह खाता है उसके आधार पर ही विकसित होती हैं। जैसे माँ के हाथ का खाना हर व्यक्ति को अच्छा लगता है क्योकि बचपन में माँ ने वैसा खिलाया, उसी स्वाद का स्वाद ग्रंथियां आपकी स्मृति के स्टोर कर लेती हैं तथा वैसा ही खाना जो बचपन में खाया गया उसी प्रकार की आदत जीवन भर पड़ती है। वह जैसे ही हाई शुगर का खाना खाता है तो जीवन भर वह ज्यादा चीनी के उत्पादों का एक स्थाई ग्राहक बन जाता है और यही ज्यादा चीनी खाने की आदत जो उसको बचपन में नेस्ले जैसे शिशु आहार के खाने में मिली वह मोटापा, डायबिटीज से लेकर तरह-तरह की बीमारियों का मरीज बना देती है। अब भी गंभीर और गहरा षड्यंत्र मल्टीनेशनल कंपनियों द्वारा चलाए जा रहा है जिससे इस दुनिया के हर व्यक्ति को डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का रासायनिक खान-पान का व एलोपैथी की दावों का गुलाम बनाया जा सके ऐसे षड्यंत्र का यह शिशु आहार में मिलावट का एक उदाहरण है।
शहरों के साथ-साथ गांव में भी बढ़ते डायबिटीज के मामलेआज की स्थिति में डायबिटीज भारत में अर्बन सेंट्रिक डिजीज नहीं रह गई है बल्कि अगर हम डायबिटीज के ट्रेंड्स पर नजर डालें तो हमें पता चलता है कि भले ही आज शहरी क्षेत्रों में डायबिटीज का प्रमोशन ज्यादा हो लेकिन प्री-डायबीटिक्स के मामले में ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्रों से आगे है क्योंकि आईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में प्री-डायबिटीज से डायबिटीज के रोगी बनने वाले रोगियों की संख्या काफी ज्यादा है। भारत की बड़ी आबादी को प्री-डायबीटीज की श्रेणी में लाने की बड़ी जिम्मेदारी ऐसे डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ व गलत खान-पान की है। यही नहीं 2023 में The Lancet Diabetes andEndocrinology द्वारा रिलीज स्टडी के अनुसार आने वाले 5 सालों में देश की 60% प्री-डायबिटिक लोग डायबिटिक कैटेगरी में पहुंच जायेंगे जिसमें इस अध्ययन की लीड ऑथर डॉ. आर.एम. अंजना का कहना है कि भारत जैसे देश के लिए यह एक टाइम बम इसलिए भी है क्योंकि भारत की ज्यादातर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहती है और देश की प्री-डायबिटिक जनसंख्या में हमें कोई ग्रामीण-शहरीय विभाजन देखने को नहीं मिलता है।भारत में नेस्ले कंपनी की 2022 में कुल बिक्री 16,897 करोड़ रुपए और मुनाफा 2391 करोड़ रुपए थी। पूरी दुनिया में बात करें तो इस कंपनी ने 2023 में 8,68,164 करोड़ रुपए का कारोबार किया, वहीं कंपनी का कुल मुनाफा 1.04 लाख करोड़ रुपए था।WHO की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक दो साल से काम बच्चों को यह एडेड शुगर बिलकुल भी नहीं देना चाहिए क्योंकि यह आगे जाकर बच्चों में डायबिटीज या मोटापे का कारण बन सकती है, यहाँ तक की यह बच्चों में हार्ट डिजीज और कैंसर जैसे बीमारियों का भी कारण बन सकती हैं। |
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