‘न्यूरोग्रिट गोल्ड’ से करें पार्किंसंस की रोकथाम

‘न्यूरोग्रिट गोल्ड’ से करें पार्किंसंस की रोकथाम

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

     पार्किंसंस रोग मष्तिष्क या स्नायुतंत्र का एक ठीक होने वाला और घातक रोग है। इस बीमारी में हमारे मस्तिष्क की स्नायु कोशिकाएं विभिन्न कारणों से मरने लगती हैं। लगभग 50% से अधिक व्यक्तियों में यह रोग अज्ञात कारणों से होता है, वहीं अन्य 50% में इसकी वजह विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थ, दवाइयों के साइड इफेक्ट्स, मष्तिष्क के संक्रमण या सर में चोट लगना होता है। विश्व प्रसिद्द मुक्केबाज मोहम्मद अली को भी सर में चोट लगने के कारण कम आयु में ही पार्किंसंस रोग हुआ था। ब्रिटिश चिकित्सक जेम्स पार्किंसंस द्वारा 1817 में लिखे गए एक लेख 'An Essay on the Shaking Palsy' के आधार पर इस बीमारी का नाम रखा गया। विश्वभर में 65 वर्ष के अधिक आयु के व्यक्तियों में लगभग 1% लोगों में यह बीमारी पाई जाती है। यह एल्ज़ाइमर्स के बाद दूसरी सबसे बड़ी स्नायुतंत्र सम्बंधी बीमारी है। यह बीमारी एक बार शुरू होने पर बढ़ती ही जाती है।
मष्तिष्क हमारे शरीर के सभी अंगो का संचालन करता है। अंग संचालन दो प्रकार से होता है - स्वैच्छिक और अनैच्छिक। मष्तिष्क के ऊपरी भाग की ओर स्थितपिरामिडलस्वैच्छिक अंग संचालन को नियंत्रित करता है वहींबेसल ग्यानग्लियाअनैच्छिक अंग संचालन को नियंत्रित करता है। बेसल ग्यानग्लिया में सब्सटेंसिया नियाग्रा नामक एक काले रंग का टिशू होता है। इस हिस्से के अंदर जब न्यूरॉन्स या मष्तिष्क कोशिकाएं मरने लगती हैं तो पार्किंसंस रोग की शुरुआत होती है। न्यूरॉन्स एक दूसरे को संकेत भेजने के लिए न्यूरोट्रांसमीटर्स का प्रयोग करते हैं। ऐसा ही एक न्यूरोट्रांसमीटर डोपामिन है, जिसकी कमी होने पर न्यूरॉन्स की आपस की कनेक्टिविटी पर असर पड़ता है। इसके कारण न्यूरॉन्स बाकी शारीरिक कोशिकाओं को भली-भांति सिग्नल्स नहीं भेज पाते हैं। फलस्वरूप शारीरिक मूवमेंट्स पर असर पड़ता है। मस्तिष्क में डोपामिन का मात्रा और सब्स्टेंसिया नियाग्रा की कोशिकाओं की मृत्यु इस बीमारी के प्रमुख कारक हैं।

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जब इस डोपामिन का स्तर मस्तिष्क में 70-80% तक कम हो जाता है तब इसके साथ-साथ स्नायु कोशिकाओं में कुछ  संरचनात्मक परिवर्तन भी देखा जाता हैं, जिसेल्यू बॉडीजकहते हैं, जिनके अंदरसाईन्यूक्लीननामक एक प्रोटीन जमा होते हैं। यह इस न्यूरो-डिजनरेटिव रोग के लिए एक बॉयोमार्कर की तरह काम करते हैं, जिसका मतलब अगर यह एक जगह जमा होना शुरू हो जाये, तो पार्किंसंस रोग की शुरुआत हो जाती है। स्नायु कोशिकाओं की मृत्यु होने से पार्किंसंस रोग के साथ-साथ तनाव, चिंता, अवसाद आदि विभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारियां भी होने लगती हैं।
बीमारी के कारण
यह बीमारी 2 कारणों से हो सकती है- पहला यदि यह अनुवांशिक हो जिसका मतलब सीन्यूक्लीन प्रोटीन में अगर म्यूटेशन पैदा हो जाए और दूसरा तनाव, चिंता, अवसाद के कारण।
इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षणों में अंगों के काम करने की गति धीमी पड़ जाती है और हाथ पैर का कांपना शुरू हो जाते हैं। धीरे-धीरे बीमारी बढऩे पर शरीर का ऊपरी हिस्सा झुकने लगता है और घुटने भी मुड़ जाते हैं। खाते समय, बात करते समय और दैनिक दिनचर्या के अन्य कार्य करते समय भी गति मंद हो जाती है और अंत में रोगी किसी भी प्रकार के कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इस रोग के लिए बहुत सी दवाइयां हैं परन्तु इनका कोई स्थाई इलाज नहीं है। साथ ही इन दवाइयों के साइड इफेक्ट्स भी हैं।
इसी समस्या से मुक्ति के लिए पतंजलि योगपीठ के माध्यम से पतंजलि अनुसंधान संस्थान द्वारा विभिन्न आधुनिक शोधों के उपरांत न्यूरोग्रिट गोल्ड का निर्माण किया गया है। यह औषधि एकांगवीर रस, मोती पिष्टी, रजत भस्म, वसंत कुसुमाकर रस, रसराज रस, ज्योतिष्मती, गिलोय आदि महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों से बनी है, जिनका कोई दुष्परिणाम भी नहीं है।
इस आयुर्वेदिक औषधि की प्रमाणिकता की पुष्टि के लिए सबसे पहले सी. एलेगंस को चुना गया। इन सी. एलेगंस की लम्बाई 1 एम.एम. तक होती है, यानि यह बहुत छोटे जीव होते हैं, साथ ही इनका जीवन चक्र मात्र 21 दिन का होता है। इन जीवों में 302 न्यूरॉन्स होते हैं जिन्हें गिना जा सकता है, इसके साथ ही इनमें ऐसे 8 न्यूरॉन्स होते हैं जो डोपामिन का स्राव करते हैं। इन्हीं सब कारणों से यह शोधपरक गतिविधियों के लिए यह एक उत्तम जीव है।
उसके बाद इन न्यूरॉन्स में कुछ बदलाव किये गए अर्थात् इनको म्युटेशन दिया गया, इस प्रक्रिया में इन न्यूरॉन्स के आगे कुछ रंगीन प्रोटीन लगा दिए, जिससे यह पता लग पाए कि यह न्यूरॉन्स या जींस किस प्रकार से दिखाई दे रहे हैं। इन जीवों को न्यूरोग्रिट देने के बाद इनके जीवन चक्र में बढ़ोतरी देखी गई।
निष्कर्ष
शोध से पहले ये जानने का प्रयास किया गया कि सी. एलेगंस की स्वाभाविक गतिविधियां या व्यवहार किस प्रकार का है। उसके बाद इनके न्यूरॉन्स में कुछ बदलाव किये गए अर्थात् इनको म्युटेशन दिया गया। इस प्रक्रिया में इन न्यूरॉन्स के आगे कुछ रंगीन प्रोटीन लगा दिए, जिससे यह पता लग पाए कि यह न्यूरॉन्स या जींस किस प्रकार से दिखाई दे रहे हैं। तत्पश्चात इनकी प्रतिक्रियाओं का आंकलन किया गया और पाया कि इनके व्यवहार जैसे सिर हिलाने की गति, चलने की गति के घुमाव में आदि में कमी आई। इसके बाद आयुर्वेदिक औषधि न्यूरोग्रिट गोल्ड की प्रभाविकता को नापने के लिए इन जीवों को यह औषधि दी गई, परिणामस्वरुप इन जीवों में स्वस्थ्य बदलाव देखने को मिले। इन जीवों को न्यूरोग्रिट देने के बाद इनके जीवन चक्र में 2 दिन की बढ़ोतरी देखी गई, जो जीवनकाल पहले 21 दिन का था वह 23 दिन का हो गया था। एक न्यूरोटॉक्सिक 6- OHDA का प्रयोग कर यह पाया गया कि यह मस्तिष्क के लगभग 50% न्यूरॉन्स को खत्म करना शुरू कर देता है। न्यूरोग्रिट के उपयोग से यह पाया गया कि इस औषधि के द्वारा न्यूरॉन्स की संख्या को वापिस पाया जा सकता है। पेट्रीप्लेट के द्वारा एक और शोध किया गया जिसमें एक ओर इन जीवों के आकर्षक और दूसरी ओर विकर्षक रखे गए। प्राय: यह देखा गया कि अच्छे जीव अपनी नैसर्गिक क्रिया के साथ ही आकर्षको की ओर गए, वहीं जब इन जीवों में न्यूरोटॉक्सिसिटी शुरू हो गई तो यह जीव विकर्षकों की ओर आकर्षित होने लगे। तत्पश्चात इन जीवों को न्यूरोग्रिट गोल्ड दिया गया तो यह जीव फिर से अपनी नैसर्गिक किया को दोहराते हुए आकर्षकों की ओर जाने लगे, जोकि एक सफल प्रतिक्रिया थी।

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एक अन्य शोध में अल्फा-सीन्यूक्लीन, जोकि पार्किंसंस रोग का मुख्य कारक है को हरे रंग की डाई के साथ इन जीवों में रोपित किया गया, जिससे इस बीमारी का पता चल सके, उसके बाद ऐलोपैथिक दवा एल-डोपा से तुलनात्मक अध्ययन के लिए इन जीवों में न्यूरोग्रिट और अल-डोपा दिया गया, जिससे परिणाम निकला कि न्यूरोग्रिट, अल-डोपा से अधिक प्रभावकारी है और उसने इन जीवों पर अधिक बेहतर प्रभाव दिखाया। एक और शोध के लिए सी. एलेगंस को उनका भोजन अर्थात् बैक्टीरिया लाल स्टेन के साथ दिए गए, जिससे यह पता लगा कि इन जीवों कि भूख की क्षमता समाप्त हो गई थी। उसके बाद इन्हें हरे स्टेन के साथ मिला दिया गया। तुलनात्मक अध्ययन के लिए इन जीवों पर एलोपैथिक दवाई एल-डोपा और आयुर्वेदिक औषधि न्यूरोग्रिट दिया गया, फलस्वरूप न्यूरोग्रिट ने एल-डोपा से बेहतर परिणाम दिए, जोकि एक प्रभावकारी शोध रहा।
उसके बाद एक अन्य शोध में न्यूरॉन्स में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ाने के लिए सोडियम आर्सेनिक दिया गया, जिसके फलस्वरूप न्यूरॉन्स मरने लगे, फिर जब आयुर्वेदिक औषधि न्यूरोग्रिट दी गई तो फिर से सी. एलेगंस ठीक होने लगे। तत्पश्चात जींस एक्सप्रेशन के तौर पर भी न्यूरोग्रिट को परखने के बाद यह निष्कर्ष निकला कि यह औषधि 3 बड़े जींस PINK - 1, PDR - 1 और CAT - 1, को भी कंट्रोल करती है।
न्यूरोग्रिट गोल्ड, आयुर्वेद के प्राचीनतम सिद्धांतो पर निर्मित एक साक्ष्य आधारित आयुर्वेदिक औषधि है जोकि पार्किंसंस जैसी मष्तिष्क से जुड़ी बीमारी को जड़ से समाप्त करने की क्षमता रखती है।

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