आज से 350 वर्ष पहले समर्थ गुरु रामदास जी और उनके समर्थ शिष्य शिवाजी महाराज से प्रारंभ हुई परम्परा के जीवंत विग्रह पतंजलि बाल गुरुकुलम्, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थीगण हैं। हिन्दू साम्राज्य, रामराज्य तथा भारत को पुन: परम वैभवशाली बनाने का जो सपना शिवाजी महाराज ने देखा था, उसको मूर्त रूप देने, उस युग की पुनरावृत्ति के लिए ये सभी बालक पूर्ण प्रतिबद्ध हैं।
हिन्दवी साम्राज्य के 350 वर्ष की पूर्ति के अवसर पर पहली बार व्यास पीठ से छत्रपति शिवाजी महाराज की कथा और वह भी हमारे सनातन धर्म व राष्ट्र धर्म के सबसे बड़े उद्घोषक, हमारे बहुत बड़े संत महापुरुष पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से की गई, यह एक अद्भुत क्षण था।
कथा का उद्देश्य देश के प्रत्येक नागरिक में 'राष्ट्र सर्वोपरि ' की भावना विकसित करना
यह कथा मात्र नौ दिनों का अनुष्ठान भर नहीं था, अपितु देश के प्रत्येक नागरिक में यह भाव-चेतना जगाना था कि मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, मैं भगवान् राम, भगवान् कृष्ण, भगवान् शिव का साक्षात् विग्रह हूँ, मैं छत्रपति शिवाजी महाराज का साक्षात् विग्रह हूँ और उनके सपनों को मूर्त रूप देने के लिए अपने पूरे जीवन की आहूति देने को तत्पर हूँ। तभी शिवाजी महाराज के सारे सपने साकार होंगे।
इस कथा के माध्यम से हर एक माँ के भीतर माता सीता, माता सावित्री, माता मदालसा, माता जिजाऊ के भाव विकसित करना था। जीजा माता, माता अंजनी, माता यशोदा, माता सुमित्रा, माता गुजरी देवी का महान चरित्र जब हमारे भीतर मूर्त रूप लेगा और हम अपनी उन महान माताओं के, अपने पूर्वज ऋषि-ऋषिकाओं के, अपने पूर्वज वीर-वीरागंनाओं के मूूत्र्त विग्रह होकर के उनके प्रतिनिधि, प्रतिरूप, उनके सच्चे अधिकारी होकर के जब एक-एक कदम आत्म निर्माण, चरित्र निर्माण और राष्ट्र्र निर्माण से नये युग के निर्माण के लिए आगे बढ़ेंगे तो इससे धरती का अंधेरा छँटेगा और जैसे वेदों के उद्घोष के अनुरूप हमारी भारतीय परम्परा के गौरव को अपने हृदय में धारण करके हमारे ऋषियों के वंशज, एक दिव्य तेज के साथ भावी भारत व विश्व के निर्माता होंगे, वे ही विश्व का नेतृत्व करेंगे।
छत्रपति शिवाजी महाराज का शौर्य व पराक्रम
जिस तरह से गौ-माता, भारत माता की रक्षा व अखण्ड भारत के निर्माण के लिए शिवाजी महाराज ने शौर्य, पराक्रम के साथ जो प्रचण्ड पुरुषार्थ किया, वही प्रचण्ड पुरुषार्थ इस देश के लोगों में जगे। उन्होंने 25 दिनों में 19 किले जीतकर लगभग 360 किलों के ऊपर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। आज व्यक्ति अपने परिवार को खण्डित होने से नहीं बचा सकता, वहीं उन्होंने अखण्ड भारत की संकल्पना ही नहीं की अपितु उसकी प्रतिष्ठा हेतु 50 वर्षों तक निरंतर संघर्ष किया और हारे नहीं, एक विजेता की भाँति हमेशा लड़ते रहे और जीतते रहे। ऐसे महापुरुष के शौर्य से सनातनधर्मी जगें और इस देश को शिक्षा, चिकित्सा, आर्थिक व वैचारिक सांस्कृतिक गुलामी से आजादी दिलाएँ। योगऋषि स्वामी जी महाराज संकल्पित हैं कि 1835 में मैकाले जो पाप करके गया, उस शिक्षा की गुलामी, रोगों भोगों व विलासिता की गुलामी से देश को मुक्ति दिलाएंगे। यदि पूरी दुनिया में बहुमत के आधार पर देखा जाए तो हमारा संकल्प है कि सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लगभग 500 करोड़ से अधिक लोग तैयार किए जाएँ। जिस तरह सारी दुनिया में त्रास, हिंसा, क्रूरता, युद्ध, मार-काट है, यदि पूरी दुनिया को राह दिखाने का कार्य कोई कर सकता है, तो वह केवल भारतवर्ष है। इस रामनवमी पर हमारा संकल्प है कि इस राष्ट्र में रामराज्य आए और पूरे विश्व में रामराज्य के मूल्य, आदर्श और प्रतिमान गढ़े जाएं। पतंजलि संन्यासाश्रम के अन्तर्गत 250 से अधिक योगी, योद्धा, वेदभक्त, सनातनधर्म व राष्ट्रधर्म को समान रूप से गौरव प्रदान करने वाले संन्यासी तैयार किए गए हैं जो इस देश को खड़ा करने में समर्थ होंगे।
रामराज्य हमारे आचरण की श्रेष्ठता से आएगा
छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी साम्राज्य व अखण्ड भारत का सपना देखा था उसको लाने के लिए हम अपने जीवन की आहूतियाँ समर्पित करेंगे, यह हमारा संकल्प है। रामराज्य आएगा हमारे आचरण की श्रेष्ठता से। राम हमारे आचरण की पवित्रता हैं, अवतारी सत्ता हैं, उपास्य देव हैं, हम राम-कृष्ण व ऋषि-ऋषिकाओं की संतान हैं। राम एक आदर्श पिता, पुत्र, शासक और तपस्वी हैं। हमारे मन के भीतर राम और सीता का विग्रह है। हम राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण, भगवती, उमा-महेश्वर के साक्षात विग्रह, मूर्त रूप व उनके उत्तराधिकारी बनकर उन सबके सपनों को साकार करने वाले बनें।
पतंजलि में तैयार हो रहे ऋषियों के वंशधर
राम नवमी भारतीय संस्कृति का पावन पर्व है। भगवान् श्री राम सभी देशवासियों के जीवन में प्रसन्नता, उल्लास व निरोगता प्रदान करें। इस राम नवमी पर पतंजलि योगपीठ के अभिभावक, संकल्प, शिल्पी श्रद्धेय स्वामी जी का 30वाँ संन्यास दिवस भी है। एक तरह से हम कहें तो हम सबके बापू आज तीस वर्ष के हो गये हैं। पतंजलि में हमारे ऋषियों के वंशधर, ऋषि परम्परा के भविष्य तैयार किए जा रहे हैं। उस ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाना है, जीवित और जागृत रखना है। यदि श्रद्धेय स्वामी जी इस ऋषि परम्परा, योग परम्परा, आयुर्वेद परम्परा को घर से बाहर नहीं निकालते, संन्यासी महात्मा न बनते तो आज विश्व इस ज्ञान से, संस्कृति के इस भण्डार से कभी जुड़ ही नहीं पाता। आज हमारे सैकड़ों तपस्वी, ब्रह्मचारी, तपस्वी साधु, तपस्वी संन्यासिनी बहनें उस मिशन, उस जन अभियान को अपना अभियान बनाकर स्वयं को तपाने के लिए, अपने आप को आहूत करने के लिए निकल पड़े हैं। अग्नि में तप कर कषाय वस्त्रों में अपने आप को देदीप्यमान करते हुए जब हम इन साधु व संन्यासिनियों को देखते हैं तो श्रद्धा का भाव स्वत: ही जागृत हो जाता है। पतंजलि बाल गुरुकुलम् के तीन-चार वर्ष के बच्चे भी इस कथा का श्रवण कर रहे हैं। यहाँ उनके भीतर संस्कारों के बीज बोये जा रहे हैं क्योंकि बच्चों का अवचेतन मन बड़ों से लाखों गुणा ज्यादा सक्रिय होता है। इस कथा का विचार व संस्कार आस्था चैनल के माध्यम से विश्वव्यापी हो रहा है और पूरे राष्ट्र में नवचेतना का संचार हो रहा है।
पूरे राष्ट्र को अखण्ड करने का एक बड़ा संकल्प
एक परिवार को अखण्ड रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है, 99 प्रतिशत परिवार खण्डित हो जाते हैं, बिखर जाते हैं। पूरे राष्ट्र को अखण्ड करने का एक बड़ा संकल्प और उसको मूर्त रूप देने का कितना बड़ा अप्रतिम पुरुषार्थ छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया। आज पतंजलि के योग, आयुर्वेद, स्वदेशी, भारतीय शिक्षा, चिकित्सा व्यवस्था और सनातन धर्म मूलक ज्ञान-विज्ञान, अनुसंधान, अविष्कार से करोड़ों लोगों का उपचार और उपकार का ये जो बहुत बड़ा महायज्ञ चल रहा है, इसके मूल में ‘योग’का बीज है। ये योग का बीज हृदय में पहले से ही था जो धीरे-धीरे विकसित होता रहा जिससे व्याकरण, शास्त्र, वेदशास्त्र, वैदिक धर्म से राष्ट्रधर्म की इतनी बड़ी यात्रा पूरी हुई।