जून 21 विश्व का योगाभिषेक
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वंदना बरनवाल
राज्य प्रभारी-महिला पतंजलि, योग समिति
योग केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं बल्कि हर प्रकार की समस्या के निवारण के लिए सम्पूर्ण विश्व को भारत का अनमोल उपहार है। एक ऐसा उपहार जो हर प्रकार के रोगों पर अचूक प्रहार है। आज इस अटल सत्य को पूरी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। जैसे-जैसे योग की गहराई में उतरिये वैसे-वैसे यह समझ व्याप्त होती जाती है कि योग केवल आसन, प्राणायाम या कुछ क्रियाओं तक ही सीमित नहीं बल्कि इसमें हर प्रकार की समस्याओं के निराकरण की अपार संभावनाएं व्याप्त हैं।
संतुलित दुनिया के लिए योगाभिषेक
एक बार फिर से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए पूरी दुनिया तैयार है, ऐसे में भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के समग्र स्वास्थ्य में योग के अमूल्य योगदान पर गंभीरतापूर्वक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। एकाकीपन और तनावग्रस्त गतिहीन जीवनशैली के कारण उपजी अनेकों प्रकार की समस्याओं के त्वरित समाधान की निरंतर खोज वाले युग में आज पूरा विश्व अनेकों चुनौतियों का सामना कर रहा है। इन चुनौतियों में आपसी सौहार्द और संवाद खो सा गया है। नतीजतन विश्व के लगभग सभी देश और उनके नागरिक अनेकों बाह्य एवं आन्तरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन समस्याओं के कारण ही दो देशों के बीच सौहार्द की कमी से लेकर एक ही परिवार के दो सदस्यों के बीच के मनमुटाव एवं व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्या उपज रही हैं। नतीजतन वैश्विक से लेकर सामाजिक एवं व्यक्तिगत स्वास्थ्य की मांग भी अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंच गई है। इस मांग को पूरा करने का एकमात्र साधन है योग।
यह हमारा सौभाग्य है कि हर प्रकार की समस्याओं का निदान करने में सक्षम सदियों पुरानी योग की यह कला भारत की देन है। योग का अनुशासन ना केवल स्वस्थ और बल्कि संतुलित दुनिया को खोलने की कुंजी भी रखते हैं। इसलिए योग दिवस के इस महत्वपूर्ण अवसर पर, आइए हम अपने ऋषियों द्वारा बताये गए योग की सदियों पुरानी प्रथाओं की गहन बुद्धिमत्ता और परिवर्तनकारी क्षमता पर थोड़ा और गौर करते हुए अधिक से अधिक लोगों का योगाभिषेक सुनिश्चित करें।
विश्व गुरु बनने के लिए योगाभिषेक
भारत का इतिहास हम सभी ने पढ़ा है। इतिहास के पन्नों में भारत को विश्वगुरु यानी कि विश्व को पढ़ाने वाला अथवा पूरी दुनिया का शिक्षक कहा जाता था, क्योंकि भारत देश की प्राचीन अर्थव्यवस्था, राजनीति और यहाँ के लोगों का ज्ञान इतना समृद्ध था कि पूरब से लेकर पश्चिम तक सभी देश भारत के कायल थे। जब पश्चिम अंधकार युग में था, तब हम भौतिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित आदि में गुरु थे। लेकिन किसी तरह हमने इसे खो दिया। शायद इसीलिए ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो वर्तमान में विश्व गुरु होने को आत्म-गौरव की खोखली भावना मानते हैं, जो अंध-राष्ट्रवाद से उपजी है। पर इसमें किसी को कोई संदेह नहीं कि भारत में विश्व गुरु बनने की अपार क्षमता है। कारण कि भारत की सभ्यतागत संस्कृति ने हमें विश्व गुरु बनने के लिए एक मजबूत दार्शनिक आधार प्रदान किया है जिसमें कई अनूठी विशेषताएं हैं। विश्व गुरु होने का मतलब क्या है। संस्कृत शब्द गुरु के दो मुख्य अर्थ हैं, एक अर्थ में इसका अर्थ है गंभीरता, गरिमा और महत्ता; और दूसरे अर्थ में इसका अर्थ है वह जो ज्ञान प्रदान करके मन के अंधकार को दूर करता है। यदि हम गुरु शब्द को इन दोनों अर्थों में विश्व-गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं, तो हमें इस उपाधि का वास्तविक महत्व समझ में आ जाएगा। योगाभिषेक के माध्यम से ही भारत, विश्व और उसके निवासियों के मन में व्याप्त अंधकार को दूर करके, एक ऐसे गुरु के पद तक पहुँचेगा, जिसकी गरिमा, महत्व और महिमा दुनिया के देशों में सर्वोच्च होगी। भारत के विचार का एक और महत्वपूर्ण संदेश है पूरे विश्व को एक परिवार या वसुधैव कुटुम्बकम मानना। ऐसी विशेषताएं ही भारत को वह बनाती हैं जो वह है, यानि विश्व गुरु।
स्वास्थ्य के संकल्प के लिए योगाभिषेक
हम सब राज्याभिषेक से तो भली-भांति परिचित हैं, योगाभिषेक भी राज्याभिषेक जैसा ही है। राज्याभिषेक अर्थात एक ऐसा वैदिक संस्कार जो राजा बनने की विधिवत घोषणा है जिसका तात्पर्य था राजा द्वारा लिया गया एक ऐसा संकल्प जिसमें वह जनता की सेवा का वचन देता था। भारत में तो राज्याभिषेक का गौरवशाली इतिहास रहा है। राज्याभिषेक के अनेकों विवरण हमें वैदिक काल से लेकर अब तक मिलते हैं। इस इतिहास में प्रभु श्रीराम से लेकर सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, विक्रमादित्य, छत्रपति शिवाजी महाराज, रानी लक्ष्मीबाई आदि अनेकों राज्याभिषेक चर्चित रहे हैं। प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक जो चौदह वर्षों के वनवास और रावण वध के पश्चात हुआ उसने केवल युग ही नहीं बदला बल्कि उन मूल्यों को भी उन्नत शिखर दिया जो आज भी आदर्श की तरह जाने जाते हैं। एक ऐसा राज्याभिषेक जिसकी मर्यादाओं का पालन किये बगैर पुरुषोत्तम बन ही नहीं सकते। योगाभिषेक भी राज्याभिषेक के सामान ही है जिसमें योग के अनुशासन का पालन कर उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त हो सकता है। योगाभिषेक में स्वयं के स्वास्थ्य के संकल्प के साथ ही देश और विश्व के स्वास्थ्य के संकल्प को भी सहेजने का संकल्प निहित है। यह योग ही तो है जो पूरे विश्व को समग्र दृष्टिकोण प्रदान करने की क्षमता रखता है, जो मन, शरीर और आत्मा को शामिल करता है, जिससे दुनिया भर के व्यक्तियों के लिए कल्याण के सामंजस्यपूर्ण ताने-बाने का निर्माण होता है।
स्वाभिमान के पुनर्जागरण के लिए योगाभिषेक
वर्तमान में योग ने भारत की राष्ट्रीय सीमाओं को पार करने के साथ ही वैश्विक समुदाय की कल्पना पर कब्जा कर लिया है। यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त योग, दुनिया भर में एकता, शांति और कल्याण का प्रतीक बन गया है। वास्तव में, परम पूज्य स्वामी जी महारज के द्वारा योग जागरण के बाद भारत सरकार की पहल पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भारत के प्राचीन ज्ञान की वैश्विक मान्यता और स्वीकृति को उजागर करता है। जैसे-जैसे दुनिया अनेकों चुनौतीपूर्ण समय से गुजऱ रही है, व्यक्तियों की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तंदुरुस्ती केंद्र में आ गई है। योग, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, तनाव कम करने और समग्र तंदुरुस्ती को बढ़ावा देने के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरा है। इसके अपार लाभों को पहचानते हुए, सरकारें और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियाँ एवं शिक्षण संस्थान, योग को अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में शामिल कर रही हैं। विगत साढ़े तीन दशकों में योग की अतुलनीय विवेचना के साथ परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने हर भारतीय के मानस पटल पर भारत के जिस स्वाभिमान को पुनर्जागृत किया, वह आज विश्व भर में सूर्य की भांति दैदीप्यमान हो रहा है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाते समय, यह समझने की कोशिश भी कीजिये कि भारत की वैदिक योग परंपरा ने वैश्विक स्वास्थ्य पर कितना गहरा प्रभाव डाला है।
शाश्वत परंपरा के लिए योगाभिषेक
स्वास्थ्य सेवा के विभिन्न तरीकों का समर्थन करने के लिए अनुसंधान अत्यंत महत्वपूर्ण है। परम पूज्य स्वामी जी महाराज के अनवरत प्रयासों से गत साढ़े तीन दशकों के अल्पकाल में ही योग ने भारत के लोगों का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व का भरपूर ध्यान आकर्षित किया है। हजारों वर्ष पुरानी भारतीय ज्ञान परंपरा को नव स्फूर्ति के साथ वैश्विक स्तर पर पुनस्र्थापित करना और लोगों में इसको और अधिक जानने की भूख को जगा देना आसान नहीं था। आज से लगभग साढ़े तीन दशकों पहले का समय यदि किसी को याद होगा तो उसे यह भी याद होगा कि कैसे यह ज्ञान परंपरा हाशिये पर पड़ी थी। ऐसे में आज जब एक बार फिर से योग का डंका पूरे विश्व में बज रहा है तो इसके लिए नमन करना होगा परम पूज्य स्वामी जी महाराज के उस अखंड प्रचंड पुरुषार्थ का, जिसके कारण लोगों ने योग से रोगों पर प्रहार कर स्वस्थ जीवन जीने के लिए स्वयं को प्रेरित किया। इन दशकों में पतंजलि योगपीठ ने कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से नेतृत्व प्रदान करते हुए पहले से ही योग सेवा में लगे किन्तु बिखरे हुए अनेकों योग संस्थानों, शोधकर्ताओं, विद्वानों को और अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया। देखते ही देखते योग से स्वास्थ्य के ठोस नैदानिक अनुसंधान साक्ष्यों की भरमार होने लगी। लोगों ने स्वयं को भारत की इस शाश्वत परंपरा को अपनाकर स्वयं को एक प्रयोगशाला बना लिया। इस प्रयोगशाला में स्वयं का योगाभिषेक कर योग साधकों ने स्व-अनुभूति के आधार पर बढ़-चढ़ जब प्रतिक्रिया देनी शुरू की तो विश्व के लोगों का ध्यान आकर्षित होना तो स्वाभाविक ही था।
अध्यात्म के लिए योगाभिषेक
जिसके जीवन में अध्यात्म उतर गया, वह धन्य होकर व्यापक-विराट हो जाता है। उसका पुरुषार्थ बहुआयामी हो जाता है। इसी पुरुषार्थ का नाम साधना या तपस्या है, इसके माध्यम से साधक स्वयं को परिमार्जित व परिष्कृत करता है। अध्यात्म मनुष्य के जीवन को पवित्रता से परिपूर्ण कर देता है। यह पवित्रता यदि व्यवहार में उतर आए तो उसे समाज में नैतिकता का नाम दिया जाता है, लेकिन जब यह पवित्रता, विचार, भाव व संस्कार में समाहित हो जाती है, तो उसे अध्यात्म कहा जाता है। अध्यात्म आन्तरिक पवित्रता का पर्याय है, जिसमें मनुष्य साधन-सम्पन्न नहीं, संस्कारित बनता है। यश-मान-सम्मान, ऐश्वर्य-वैभव उन्हें अच्छे लगते हैं, जिसका अन्तर खोखला व शून्य होता है। इतिहास गवाह है कि आत्मचेतना के विकास ने किसी को सम्पन्न नहीं बनाया, अपितु वह समृद्धि के आदर्र्शों हेतु स्वयं को समर्पित करने एवं सहज-सरल रहने के लिए बाधित करता है। धन-सम्पत्ति एवं समृद्धि की चाहत इन्हें विष के समान प्रतीत होती है। वास्तविक अध्यात्म यही है, जो महत्वाकांक्षाओं एवं लिप्साओं में कटौती करना सिखाता है, इससे लोक मंगल की प्रभु उपासना हेतु अपना सब कुछ नियोजित व नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए जहां प्रकृति है, वहीं अध्यात्म है। दूसरे शब्दों में प्रकृति के विपरीत जो कुछ भी है, वह विकृति है। विकृति चाहे किसी भी स्थिति में क्यों न हो, वहां पर अध्यात्म की कल्पना सम्भव ही नहीं है। अध्यात्म प्रकृति एवं जीवन की वह सत्यता है जिसमें मात्र कल्याण का जुड़ाव रहता है। अपनी आध्यात्मिकता के कारण ही भारत ने दुनिया को हमेशा वैचारिक नेतृत्व दिया है। ऐसे में यदि हम भारत की आध्यात्मिकता को परिभाषित करने के लिए किसी एक शब्द का उपयोग करना चाहें तो वह शब्द है आस्था। आस्था की यह पवित्र भावना भारतीय आध्यात्मिकता की नींव में है ईश्वर में आस्था, गुरु में आस्था, प्रकृति में आस्था, संबंधों में आस्था भविष्य में आस्था, जीवन में आस्था और यहाँ तक कि मृत्यु में भी आस्था।
ऋषि ज्ञान परंपरा के लिए योगाभिषेक
योग भारतीय प्राच्य विद्या एवं प्राचीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति में रचा-बसा व गुंथा हुआ है और हमारी जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा है। प्राच्य विद्या एवं भारतीय संस्कृति का उल्लेख योग के बिना पूरा नहीं हो सकता। अनेकों ऋषियों-मुनियों के लिए साधना के उच्चतम शिखर तक पहुँचने का मार्ग योग ही रहा है। योग तन और मन को इतना सुदृढ़ और परिपक्व बना देता है कि व्यक्ति मानव से महामानव बनता है। भारत की इस ऋषि ज्ञान परंपरा में आधुनिक विज्ञान प्रबंधन सहित अनेकों क्षेत्रों के लिए अद्भुत खजाना छुपा हुआ है जिसे उभारने के लिए सतत अनुसन्धान की आवश्यकता है। इस अनुसन्धान के लिए हमें अपनी मानसिकता को बदलकर अपने जीवन में भारतीयता को अपनाने की जरुरत है। भारतीयता को अपनाने का तात्पर्य यह बिलकुल भी नहीं कि विकास के मॉडल को नाकारा जाये, इसका अर्थ तो यह है कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ा जाये। हम भारतीय अपनी परंपरा, संस्कृति, ज्ञान और यहाँ तक कि ज्ञान की गंगा को बहाते हुए हम तक पहुँचाने वाली महान विभूतियों को भी तब तक तवज्जो नहीं देते जब तक विदेशों में उसे न स्वीकार किया जाये। यही कारण है कि आज विदेशों में योग, आयुर्वेद, शाकाहार, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, होम्योपैथी और सिद्ध जैसे उपचार लोकप्रियता पा रहे हैं जबकि हम उन्हें बिसरा चुके हैं। हमें अपनी जड़ी-बूटियों, नीम, हल्दी, गोमूत्र का ख्याल तब आता है जब कोई उसका पेटेंट करवा लेता है। योग को हमने उपेक्षित करके छोड़ दिया था पर जब यही योगा बनकर वापस आया हम उसके दीवाने बन बैठे।
बीमारियों पर प्रहार के लिए योगाभिषेक
भारत में, पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ एकीकृत करके स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य में क्रांति लाने में सबसे आगे रहा है। पतंजलि योगपीठ आज एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बन चुका है जो योग शिक्षकों, प्राकृतिक चिकित्सकों एवं आयुर्वेदिक चिकित्सकों को रोगियों से जोड़ते हुए स्वास्थ्य के लिए परामर्श और उनके निदान के लिए सुविधाजनक पहुँच प्रदान करता है। योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाने वाले और हर दिन पतंजलि के सेवा कार्र्यों से जुडऩे वाले लोगों की बढ़ती संख्या समग्र स्वास्थ्य सेवा समाधानों की बढ़ती माँग का प्रमाण है। पिछले साढ़े तीन दशकों में हम सभी ने योग, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा स्वास्थ्य सेवा को लेकर पतंजलि योगपीठ की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, जो पारंपरिक उपचार पद्धतियों की प्रभावशीलता के बारे में बढ़ती जागरूकता और मान्यता को दर्शाता है। यह उल्लेखनीय है कि योग एवं आयुर्वेद को अपनाने का दायरा व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है क्योंकि अब आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के अस्पताल और चिकित्सक भी पूरक के रूप में इसकी अपार क्षमता को पहचान रहे हैं। आने वाले समय में जब भारत की इन पारंपरिक चिकित्सा प्रथाओं का आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ एकीकरण हो जायेगा तब वह स्वास्थ्य सेवा में एक नए युग की शुरुआत होगी। एक एकीकरण के लिए योग की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि जोडऩे का नाम ही योग है।
स्वस्थ विश्व का योगाभिषेक
आज परम पूज्य स्वामी जी महाराज पूरे विश्व में योग और योग से स्वास्थ्य के पर्याय बन चुके हैं। पूज्य स्वामी जी का प्रात: स्मरण करते ही जहाँ बीमारियों से छुटकारा मिल जाने की उम्मीदें जगती हैं तो वहीं स्वास्थ्य के नाम पर माफियागिरी करने वालों में खलबली भी मचती है। पूज्य महाराजश्री योग से न सिर्फ सनातन धर्म को पुनस्र्थापित करने में सफल हुए हैं बल्कि पतंजलि योगपीठ की स्थापना और उससे लाखों योग शिक्षक शिक्षिकाओं को जोडक़र उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि स्वास्थ्य, बुद्धि, कौशल, साहस और सांस्कृतिक उन्नयन के बलबूते किस प्रकार कोई भी संगठन खड़ा किया जा सकता है। परम पूज्य महाराजश्री के कार्यों की विशालता और विशेषताओं की बारीकियों को समझने के लिए हर किसी को कम से कम एक बार पतंजलि योगपीठ और योगग्राम का भ्रमण अवश्य करना चाहिए। एक बार पुन: जब इस 21 जून को जब पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रही होगी तब हमें यह भी याद रखना होगा कि यह स्वस्थ भारत और स्वस्थ विश्व के योगाभिषेक का दिन भी है। एक ऐसा दिन जिसके पीछे परम पूज्य स्वामी जी महाराज के अखंड प्रचंड पुरुषार्थ की लम्बी गाथा है।
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