भारत के सनातन धर्म की ताकत

भारत के सनातन धर्म की ताकत

वंदना बरनवाल

राज्य प्रभारी-महिला पतंजलि

योग समिति, .प्र.(मध्य)

    जब हम भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तो इसमें जो तत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक बनकर उभरता है वह है इसका सनातन मूल्य। हमारे सनातन, शाश्वत मूल्य समय के साथ सभ्यता के दर्पण में चाहे कोई भी आवरण धारण कर ले, किन्तु इनकी प्रवृत्ति अक्षुण्ण रहती है। यह सनातन मूल्य भारतीय संस्कृति की ऐसी प्रमुख विशेषता है जिसके बल वह इस देश की एकता का मार्ग प्रशस्त करती है। चाहे समय शांति का हो या कठिन परतंत्रता का, हर परिस्थिति में भारतीय सनातनी संस्कृति ने देश में राष्ट्रवाद की अलख जगाने और समस्त राष्ट्रवासियों की मातृभूमि के लिए एकबद्ध करने में हर परिस्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। यह सनातन धर्म की ही ताकत है कि आज हम सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से सुगठित हैं अपितु हमारी सुनिश्चित सांस्कृतिक विरासत और एकता एक ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है जो पूरे राष्ट्र में चतुर्दिक व्याप्त है।
सनातन की ताकत  
कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है कि भारत को सनातन या हिंदू धर्म के साथ ही जोड़कर देखे जाने की क्या आवश्यकता है और भी पंथ या मजहब भी तो हैं यहाँ? तो दरअसल तथ्य इसके पीछे बस इतना ही है कि भारत को केवल दो-ढाई सौ सालों की गुलामी और उसके बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में नहीं समझा जा सकता। भारत और सनातन को समझना है तो उसका प्राचीन इतिहास, भूगोल, जीवन दर्शन, परंपरा, धर्म-संस्कृति सभी के समन्वित रूप में देखना होगा। इस्लाम या ईसाइयत आदि धाराएँ भारत में बाद के कालखंड की विशेषताएं मात्र हैं। भले ही समय-समय पर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के साथ बारबार छल करने की कोशिश हुई हो पर भारत ने हमेशा से हर पंथ और मजहब को स्थान और सम्मान दोनों ही दिया। इसे कोई सनातन की कमजोरी, खूबी या ताकत किसी भी रूप में परिभाषित कर सकता है। भारत की इस विशेषता को हमें अपनी संस्कृति की सनातन धर्म के ही आलोक में समझने की आवश्यकता की ओर इंगित करती है। यह बात अलग है कि मुठ्ठी भर गुलाम मानसिकता और वामपंथी सोच के कुछ लेखकों द्वारा भारत का विकृत इतिहास लिखा गया। इस झूठे इतिहास को प्रचारित करने के पीछे उद्देश्य था भारत की विराट शक्ति और तेजस विश्व के सामने उभरने पाए। यह कार्य उपनिवेशवादियों और साम्राज्यवादी ताकतों के साथ ही कुछ राष्ट्र विरोधी विचारकों एवं छद्म चिंतकों में भी किया। पर ताकत तो देखिये सनातन की कि आज भी इसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका।
सनातन धर्म का अर्थ
आखिर सनातन धर्म क्या है? यह कब से प्रचलन में आया? सनातन धर्म के पहले क्या कुछ था? ये सब कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर हम सबको पता होने चाहिए, विशेष तौर पर हमारी नयी पीढ़ी को। दरअसल 'सनातन' का शाब्दिक अर्थ तो है शाश्वत या 'सदा बना रहने वाला' यानी जिसका ना तो कोई अंत है और ना ही कोई आदि। और जब आदि और अंत ही नहीं तब तो ऐसे में सनातन धर्म की उत्पत्ति कब हुई इस पर टिप्पणी कैसे की जा सकती है? हाल के दिनों में घटिया राजनीति के कारण कुछ लोगों ने सनातन पर तर्कहीन, बेहूदे और घटिया सवाल उठाये। निश्चित रूप से राजनितिक कारणों से ही ऐसे राजनीतिज्ञों ने अपनी बीमार मानसिकता का परिचय दिया है। पर यदि उनके बयान के लिए सनातन धर्म के बारे में उनकी अज्ञानता है तो ऐसे लोगों को सनातन धर्म और इसकी विशेषताओं के बारे में अवश्य पढ़ना चाहिए क्योंकि विश्व भर में यही एक मात्र ऐसा धर्म है जो सबकी भलाई की बात करता है। सबकी भलाई में मनुष्य के साथ ही पशु, पक्षी, जल, पृथ्वी, प्रकृति और यहाँ तक कि अंतरिक्ष और ग्रह उपग्रह सभी सम्मिलित हैं। सनातन धर्म जिन ग्रंथों से संचालित होता है वे सभी ग्रंथ वेद, पुराण, उपनिषद, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीरामचरितमानस सब अलग-अलग काल खंड में लिखे गए हैं। ये सभी ग्रन्थ ही हमारे आधार ग्रंथ हैं जो हमें सचेत करते रहते हैं कि जीवन को कैसे जीया जाये, हमारा आचरण कैसा हो। राम और कृष्ण का जन्म अलग-अलग युग में हुआ, उन्होंने अपने जीवन से आदर्श प्रस्तुत किया तो दुष्ट शक्तियों का नाश करने में भी देर नहीं की। यही सनातन है। यही सच है। सनातन कभी किसी धर्म की आलोचना नहीं करता पर वह सबमें समाया हुआ है।
सनातन का विराट स्वरूप
सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया का सबसे प्राचीनतम धर्म है। दरअसल सनातन धर्म उस समय से है जब कोई संगठित धर्म अस्तित्व में था ही नहीं और चूँकि जब लोगों के पास जीवन जीने का कोई दूसरा तरीका ही नहीं था, इसलिए इसे किसी नाम की जरुरत ही नहीं थी। इसीलिए सत्य को सनातन का नाम दिया गया है जो कि सत् और तत् से मिलकर बना है और जिसका अर्थ यह और वह होता है। इसका व्यापक उल्लेख अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार सनातन धर्म अरबों वर्ष पुराना है। सनातन धर्म में ग्रह-नक्षत्र भी समाए हुए हैं। भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। यह धर्म, ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है जबकि कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म को 90 हजार वर्ष पुराना भी माना गया है। सप्तऋषि, सप्ततीर्थ अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, उज्जैन, पुरी, द्वारिकाधीश ये सभी सनातन धर्म के आधार ही तो हैं। चार युग में चार मंदिरों की चर्चा की गयी है। सतयुग में बद्रीनाथ-केदारनाथ तो त्रेतायुग में रामेश्वरम, द्वापर में द्वारिकाधीश तो कलयुग में जगन्नाथ पुरी। ऐसा विराट स्वरुप है हमारे सनातन धर्म का।
सनातन के मूल तत्व
सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा दया क्षमा, दान, जप, तप, यम नियम आदि तो हैं ही पर इसके साथ ही इसके कुछ मूल तत्व और भी हैं जो इसके प्राण कहे जा सकते हैं। सनातन जहाँ एक तरफ हमें ईश्वर में विश्वास दिलाते हुए यह बतलाता है कि विविध देवों के रूप में भी जगत का नियंता परमात्मा ही है तो वहीं आध्यात्मिकता सनातन का एक मौलिक तत्व है। इसी कारण प्रत्येक सनातनी ईश्वर के अध्यात्मिक स्वरूप को स्वीकारते हुए परम सत्ता की सम्पूर्णता पर विश्वास करता है। परम सत्ता यानि जिसके तीन पक्ष हों सत, चित्त और आनंद। आध्यात्मिकता के साथ ही कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष के सिद्धांत और उदारता आदि भी सनातन धर्म के मूल तत्व के रूप में जाने जाते हैं। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण ही सनातन धर्म का स्वरूप अत्यंत व्यापक, सशक्त एवं चिरायु है।
कर्म का सिद्धांत
सनातन धर्म हमेशा से ही कर्म के सिद्धांत में विश्वास रखता है और यही इसकी ताकत का सबसे प्रमुख राज है। इस सिद्धांत के मत में सभी को अपने शुभाशुभ कर्मों का फल अनिवार्यत: भोगना पड़ता है। कर्म ही व्यक्ति का जीवन नियंत्रित करते हैं अर्थात मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। वह जैसे सद् असद् कर्म करेगा, उसे उसी प्रकार की भूमिका निभानी होगी। यह कर्म का सिद्धांत सनातन धर्म को मानने वालों को बुरे कर्म करने से रोकता है और सद्कर्मों को करने की प्रेरणा देता है। कर्मों के फल संस्कार रूप में सुरक्षित रहते हैं जो भावी जीवन को संचालित करते हैं। राष्ट्र के प्रति हमारे विचार और शब्द भी कर्म ही तो हैं और इसका परिणाम भी हमें मिलता ही है। शब्द और उनके अर्थ को लेकर केवल पूज्य स्वामी जी महाराज ही नहीं अपितु पूरी पतंजलि योगपीठ ऋषित्व की भूमिका निभा रहा है और इसलिए सजग भी है। यही कारण है कि अनेकों अवरोधों के बावजूद भी पतंजलि योगपीठ से भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूर्य उदय हो चुका है और पूज्य स्वामी जी महाराज के दिव्य मार्गदर्शन में भगवा रंग लिए और भारत की अभ्यर्थना में अनगिनत हाथ जुड़ते चले जा रहे हैं। सनातन धर्म स्वयं में इसीलिए इतना ताकतवर है क्योंकि इसे हमेशा से ऋषि-मुनियों का संरक्षण प्राप्त है। इसलिए जब कभी भी किसी ने भी इसको मिटाने का प्रयास किया तो इसका रंग और गहराता चला जाता है।
सनातन धर्म के संस्कार
सनातन धर्म में संस्कारों का विशेष महत्व है। संस्कार से जीवन में पवित्रता, सुख, शान्ति और समृद्धि का विकास होता है। ऐसा माना गया है कि संस्कार के द्वारा व्यक्ति शुद्ध होकर मानव बनता है, उसके अंदर के अवगुण समाप्त होते हैं।  संस्कारों  के माध्यम से उन्हें नैतिक कर्तव्यों एवं उत्तर दायित्वों का बोध कराया जाता है। इससे हर व्यक्ति अपने नैतिक कर्तव्य को करते हुए मोक्ष को प्राप्त होता है। संस्कारों के पालन से व्यक्ति आयु और आरोग्यता को प्राप्त करता है। सनातन धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग भी बताया गया है जैसे कि कर्म मार्ग, भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग और योग मार्ग। योग का अभ्यास इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह योगी को अपने आध्यात्मिक पक्ष के साथ मिलन प्राप्त करने की अनुमति देता है। जबकि कर्म एक अवधारणा है जो किसी कार्य और उसके परिणामों की व्याख्या करती है।
सनातन धर्म में गुरू का महत्व
हम सभी के जीवन को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं, हम किस संस्कृति में पले-बड़े हैं, वह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाला बहुत महत्वपूर्ण कारक होता है। प्राय: हम सभ्यता और संस्कृति में भ्रमित होते हैं। संस्कृति एक व्यापक क्षेत्र है और सभ्यता संस्कृति का ही एक अंग है। हमारी भौतिक प्रगति सभ्यता से होती है जबकि मानसिक प्रगति संस्कृति से दिखाई देती है। लेकिन भौतिक और मानसिक प्रगति में जब तक आध्यात्मिकता नहीं हो सनातन की दृष्टि में तब तक वह अपूर्ण है। जब भी हम भारतीय संस्कृति की बात करते हैं तो इसमें जो जो तत्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक बनकर उभरता है वह है सनातन मूल्य। इस सनातन मूल्य में हमारा पहनावा, खान-पान, भाषा, व्यवहार ही नहीं बल्कि जीवन से लेकर मृत्यु तक हमारी पूरी जीवन शैली शामिल है और इसी में शामिल है योग और आयुर्वेद पर आधारित स्वास्थ्य की अनूठी और अद्भुत भारतीय शैली। इसीलिए किसी भी सनातनी के जीवन में एक गुरु का होना महत्वपूर्ण ही नहीं आवश्यक भी है। सनातन धर्म में इसमें पूर्ण स्पष्टता है कि गुरू की शरण में गए बिना अध्यात्म जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ना असंभव है। वेदों में कहा गया है कि अपना मार्ग स्वयं चुनो, जो हिम्मतवर है वही अकेले चलने की ताकत रखते हैं और इस मार्ग को चुनने के लिए मार्ग दर्शन गुरु ही देते हैं।
सनातन धर्म और विज्ञान
सनातन धर्म पूर्णत: वैज्ञानिक है और इसका संबंध सीधे व्यक्ति के स्वास्थ्य से है। यह भारतीय जीवन शैली पर आधारित है और इसमें पाखंड का कोई स्थान नहीं है। दुर्भाग्यवश कुछ लोग इसकी वैज्ञानिकता को नहीं समझ पाए और भारतीय आदर्श चरित्रों को छोड़कर पाश्चात्य देशों की नकल में अपनी संस्कृति और परंपराओं को दरकिनार करते हुए उनकी नकल करने लग गए। जबकि यह स्थापित सत्य है कि हमारे ऋषि-मुनि बहुत बड़े वैज्ञानिक हुए हैं। उनके शोध बहुत प्रमाणिक थे। इसीलिए आज दुनिया भर में उनके शोधों के आधार पर आधुनिक विज्ञान भी तमाम सारे अनुसंधान कर रहा है। सनातन धर्म, परंपरा के वाहक हमारे ऋषि-मुनि अत्यंत सिद्ध थे और उनकी सिद्धियाँ वैज्ञानिक प्रमाणिकता के साथ समाज को सुखी रहने के लिए तमाम सारी सुविधाएँ मुहैया करा देती थीं। इसीलिए यह कहना ही उचित होगा कि ऋषि अर्थात अविष्कारक वैज्ञानिक एवं मुनि अर्थात शोधकर्ता। सनातन धर्म में एक और असाधारण बात यह है कि इसमें धर्म और विज्ञान के बीच कोई विरोध है ही नहीं। ऋषि-वैज्ञानिक सुश्रुत को सर्जरी के जनक के रूप में जाना जाता है तो आर्यभट्ट गणितज्ञ और परमाणु सिद्धांत के पहले प्रस्तावक के रूप में भी जाने जाते हैं। चरक संहिता के लेखक महर्षि चरक से लेकर आर्यभट्ट, पतंजलि आदि अनेकों नामों की बड़ी लम्बी शृंखला है सनातन धर्म में। इन ऋषि-वैज्ञानिकों ने संसार त्याग दिया था और वर्षों की तपस्या के बाद आत्मज्ञान प्राप्त किया था। इसी शृंखला की अगली कड़ी से स्वयं को जोड़ते हुए पूज्य स्वामी जी महाराज और श्रद्धेय आचार्यश्री चार दशकों से भी अधिक समय से लगातार योग और आयुर्वेद से हर व्यक्ति को स्वास्थ्य प्रदान कर रहे हैं।
सनातन का अभिमान
राष्ट्र की संस्कृति और परंपरा, एक संकल्पना मात्र नहीं होती है बल्कि यह एक अभिमान और गर्व की बात होती है जो हम सभी में एक भारतीय होने के नाते होना चाहिए। भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की जो विरासत हमारे हिस्से में आई है वह अन्य किसी देश को प्राप्त नहीं हुई है। इस विरासत का नाम है 'सनातन धर्म' वर्तमान में जैसे-जैसे दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में प्रवेश कर रही है, यह निश्चित है कि पतंजलि योगपीठ के अविष्कार और उसमें मिलने वाली और वैज्ञानिक सफलताएं भारत को एक अग्रणी वैश्विक शक्ति बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। कुछ चुनौतियाँ भी आयेंगी कुछ संघर्षोर्ं को भी झेलना होगा पर निश्चित जानिए कि पतंजलि योगपीठ संस्थान ही फिर से विज्ञान और अध्यात्म के दिव्य मिश्रण से भारत को विश्व गुरु के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करेगा। पूज्य स्वामी जी के दिव्य प्रयासों का ही यह परिणाम है कि आज भारत उस अद्वितीय स्थिति में है जो किसी राष्ट्र को कम ही प्राप्त होती है। ऐसे में योग और आयुर्वेद संग भारत की सनातनता एक नयी उड़ान भरने और अपना इतिहास लिखने के लिए तैयार है। बस थोडा इंतजार और कीजिये और सामानांतर में अपनी भूमिका भी तलाश लीजिये।

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