पतंजलि विश्वविद्यालय में दर्शन एवं संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन

पतंजलि विश्वविद्यालय में दर्शन एवं संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन

  हरिद्वार, 06 मार्च। पतंजलि विश्वविद्यालय में मानविकी एवं प्राच्य विद्या संकाय के अन्तर्गत दर्शन एवं संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में "Sanskrit Computational Linguistics" विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला को शुभारम्भ करते हुए श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण, कुलपति पतंजलि विश्वविद्यालय ने कहा कि पतंजलि विश्वविद्यालय प्राचीनता एवं आधुनिकता को एक साथ लाकर नवीन प्रतिमान स्थापित कर रहा है, जिसके अन्तर्गत केवल नये अनुसंधान सम्मिलित है बल्कि प्राचीन एवं दुर्लभ ग्रंथों को भी कम्प्यूटर की भाषा में सरल, पाठ्य एवं संकलित किया जा रहा है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।
कार्यशाला के समापन अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि आने वाले समय में प्राचीन शिक्षा प्रणाली के साथ आधुनिक और वैज्ञानिक संसाधनों की महति आवश्यकता होगी। अष्टाध्यायी जैसे प्राचीन और प्रामाणिक व्याकरण शास्त्र को कम्प्यूटर के माध्यम से कैसे समझा और समझाया जा सकता है, इस विषय में स्वामी जी ने अपना व्यापक दृष्टिकोण रखा।

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कार्यशाला का विषय भी यही रहा कि दर्शन और संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों का रख-रखाव एवं संयोजन कम्प्यूटर में कैसे समायोजित किया जा सकता है। इसके लिए कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय और शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, केरल से आए हुए विद्वानों ने सभी विद्यार्थियों को कम्प्यूटर लैब में इस विषय पर प्रायोगिक जानकारी प्रदान की। इसी क्रम में स्ट्रक्चर ऑफ लेग्वेंज विषय पर प्रोफेसर शिवानी, मोर्फोलॉजी पर डॉ. स्वाति बासापुर, इन्पुट मैथड्स फॉर इंडियन लैंग्वेज सिद्धान्त एवं प्रयोग, टैगिंग-टैक्ट्स विषय पर आचार्य चैतन्य एवं आचार्य नवीन के. कौशिक ने, कोश-प्रैक्टिकल डेटाबेस पर प्रोफेसर शिवजा एवं विदुषी अरूणा ने विस्तृत जानकारी प्रदान की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की मानविकी संकायाध्यक्षा साध्वी आचार्या देवप्रिया जी ने की। उन्होंने अपने सम्बोधन में विद्यार्थियों को कम्प्यूटर भाषा ज्ञान के साथ-साथ मूल ग्रंथों का गहराई से अध्ययन पर बल दिया।
कार्यशाला में दर्शन एवं संस्कृत विभाग के समस्त प्राध्यापकगणों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।

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