जैन मुनि डॉ. मणिभद्र की 'सर्वोदय शांति यात्रा' का दो दिवसीय पड़ाव पतंजलि योगपीठ में

जैन मुनि डॉ. मणिभद्र की 'सर्वोदय शांति यात्रा' का दो दिवसीय पड़ाव पतंजलि योगपीठ में

  •       स्वार्थ से ऊपर उठकर ही मनुष्य परमार्थी बनता है: जैन मुनि डॉ. मणिभद्र
  •  जैन धर्म में अहिंसा, तप, दान और शील मुक्ति का मार्ग : स्वामी रामदेव
  • पतंजलि मानव सेवा, समाज सेवा राष्ट्र सेवा में संलग्न संस्थान : आचार्य बालकृष्ण
   हरिद्वार, 14-15 मार्च। राष्ट्र संत, नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र जी महाराज आज पतंजलि योगपीठ पहुँचे जहाँ पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने स्वयं मुख्य द्वार पर पहुँकर उनका भव्य स्वागत किया। जैन मुनि 'सर्वोदय शांति यात्रा' पर हैं, यह पद यात्रा मेरठ से लेकर बद्रीनाथ धाम तक जाएगी। यात्रा का दो दिवसीय पड़ाव पतंजलि योगपीठ बना है जहाँ आज उनकी भेंटवार्ता पतंजलि योगपीठ के परमाध्यक्ष योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज से हुई। स्वामी जी महाराज ने जैन मुनि का भव्य स्वागत करते हुए कहा कि जैन मुनि डॉ. मणिभद्र जैन धर्म के महान संत हैं। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन सत्यान्वेषी है जिसमें जैन श्रमण, साधु, साध्वी एक स्थान पर रहकर विहार भ्रमण करते रहते हैं, यह यात्रा भी उसी का विग्रह रूप है। स्वामी जी ने कहा कि जैन धर्म में अहिंसा, तप, दान और शील को मुक्ति का मार्ग बताया गया है।

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इस अवसर पर जैन मुनि ने कहा कि आचरण की पवित्रता तथा समाज सेवा ही जीवन का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि रोगियों को आरोग्य प्रदान करना सबसे बड़ी सेवा है। डॉ. मणिभद्र ने कहा कि स्वामी रामदेव जी महाराज आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के नेतृत्व में पतंजलि संस्थान ने स्वास्थगत सेवाएँ प्रदान कर देश समाज के समक्ष समाज सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि जीवन में धर्म, अध्यात्म ईश्वर के मार्ग पर चलने के लिए सर्वप्रथम अपने मन को नियंत्रित करना आवश्यक है जो अपनी एषणाओं को समाप्त करके ही संभव है।
पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी महाराज से उनका भ्रातवत आत्मीय सम्बंध है। पतंजलि योगपीठ भ्रमण का उनका यह तीसरा अवसर है। इससे पूर्व वे 2007 2011 में पतंजलि योगपीठ पधारे थे। पतंजलि के विविध सेवा प्रकल्पों यथा- पतंजलि अनुसंधान संस्थान, पतंजलि वैलनेस सेंटर, पतंजलि कन्या गुरुकुलम् पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल आदि का भ्रमण कर उन्होंने कहा कि गत यात्रा के पश्चात पतंजलि ने अपनी सेवापरक गतिविधियों में अभूतपूर्व विस्तार किया है। उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण जी के नेतृत्व में पतंजलि योगपीठ आयुर्वेद अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी कार्य कर रहा है। डॉ. मणिभद्र ने कहा कि वनस्पतियों पर्यावरण के लिए स्वामी रामदेव जी महाराज आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के पुरुषार्थ को देखकर सुखद अनुभूति हुई। उन्होंने बताया कि वनस्पतियों में 24 लाख प्रकार का वर्णन है। इनका पता इन पर अनुसंधान आप्त पुरुष ही कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि ने 4 लाख वनस्पतियों पर अनुसंधान कर आयुर्वेद के रहस्यों को उजागर किया है। यह सम्पूर्ण मानव जाति की ही नहीं, पर्यावरण की भी सेवा है।

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जैन मुनि ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म, षट्कर्म, योग, आयुर्वेद के द्वारा चिकित्सकीय सेवाएँ, शिक्षा, कृषि, अनुसंधान, गौ-संरक्षण, उद्योग आदि की एक ही स्थान से उत्कृष्ट सेवाओं की व्यक्ति मात्र कल्पना कर सकता है किन्तु पतंजलि योगपीठ ने इसे साकार रूप दिया है। पतंजलि की सेवाओं का लाभ वैश्विक स्तर पर लाखों-करोड़ों लोगों को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि स्वार्थ से ऊपर उठकर ही मनुष्य परमार्थी बनता है।
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने डॉ. मणिभद्र को पतंजलि की विविध सेवापरक गतिविधियों की विस्तृत जानकारी दी।
आचार्य जी ने कहा कि रोगी की चिकित्सा के लिए पतंजलि किसी पैथी का विरोधी नहीं, रोगी हित सर्वोपरि। पतंजलि का अभियान सेवा का पर्याय है चाहे वह मानव सेवा हो, समाज सेवा हो या राष्ट्र सेवा। आज पतंजलि शिक्षा, चिकित्सा, स्वदेशी, सूचना एवं तकनीकि, योग-आयुर्वेद अनुसंधान, कृषि अनुसंधान, गौ-संरक्षण संवर्द्धन तथा उद्योग आदि क्षेत्रों में अपनी सेवाओं को विस्तार देने के साथ-साथ भारतीय मूल्यों, परम्पराओं संस्कृति के उत्थान में भी महती भूमिका निभा रहा है।
ज्ञात हो कि जैन मुनि डॉ. मणिभद्र आजीवन पदयात्री हैं जो वर्ष में 8 माह भ्रमण करते हैं तथा 4 माह विराम रहता है, चतुर्मास में यात्रा नहीं होती। उनकी यात्रा निरंतर चलती रहती है जिसमें बिना कारण 28 दिन से अधिक का विराम नहीं रहता। 23 फरवरी से प्रारंभ उनकी वर्तमान यात्रा मेरठ से प्रारंभ हुई है जो बद्रीनाथ धाम तक जाएगी। इससे पूर्व जैन मुनि लगभग 90 हजार किलो मीटर की पदयात्रा कर चुके हैं जिसमें कन्याकुमारी से जम्मू, मुम्बई, गुजरात, कोलकाता, गुवाहाटी, मेघालय, भूटान सम्पूर्ण नेपाल इत्यादि शामिल हैं।
इस उपलक्ष्य में उप-प्रवर्तक अभिषेक मुनि जी तथा उप-प्रवर्तक आशीष मुनि जी भी उपस्थित रहे।

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