छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज

भारत की पावनधरा वीर बहादुरों की भूमि रही है। शिवाजी भी एक ऐसे ही वीर सेनानी थे। उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए विदेशियों से लोहा लिया और कुर्बानी दी।
शिवाजी का जन्म सन् 1630 में हुआ। इनके पिता का नाम शाह जी और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी को बचपन से ही उनकी माता रामायण, महाभारत तथा पुराणों में वर्णित वीरों, सत्पुरुषों और साधु-संतों की कहानियां सुनाती रहती थीं। इन वीर कथाओं तथा धर्म कथाओं को सुनते-सुनते शिवाजी के मन में राम, कृष्ण, भीम, अर्जुन के समान बनने के विचार उठने लगे। परमात्मा की कृपा से उन्हें दादा कोण्डदेव जैसे महापुरुष का मार्ग-दर्शन मिला, जिसके कारण उनमें महान् गुणों का प्रवेश होने लगा।
गुरु-निष्ठा
शिवाजी के गुरु का नाम समर्थ गुरु रामदास था, जिन्होंने सारे भारतवर्ष का भ्रमण करके शिवाजी को पत्र लिखा था कि शिवाजी में ही धर्म की रक्षा करने का साहस देखता हूँ। शिवाजी हर मास समर्थ गुरु रामदास से सलाह करते थे। हर सप्ताह वीरवार को उनके दर्शन करते थे। समर्थ गुरु रामदास राजनीति के भी अच्छे पण्डित थे। यह उन्हीं का करिश्मा था कि शिवाजी को अपने राज्य की प्रत्येक घटना का पता होता था।
ल्प आयु में वीरता का प्रमाण
एक बार शाहजी अपने पुत्र शिवाजी के साथ बीजापुर के सुलतान के दरबार में गये। उस समय शिवाजी की आयु केवल 12 वर्ष की थी। दरबार में जाते ही शाह जी ने सुलतान को धरती स्पर्श करके तीन बार सलाम किया और अपने पुत्र को सलाम करने के लिए कहा। परन्तु सुनते ही शिवाजी 4 कदम पीछे हो गए और निर्भय होकर बोले कि मैं पराये शासकों के सामने कभी नहीं झुकुंगा। सिंह की चाल और शान के साथ वह दरबार से निकल आये। बीजापुर के सुलतान के दरबार में आज तक इस प्रकार का बर्ताव करने की हिम्मत किसी ने नहीं की थी। उस समय इस छोटे बच्चे के धैर्य को देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। शाह जी ने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया कि मेरा बेटा एक दिन स्वतन्त्र राजा बनेगा।
विपरीत परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता
16 वर्ष की आयु में शिवाजी ने अपनी वीरता का परिचय देते हुए एक किला जीता, जिसका नाम था तोरण दुर्ग। उस दुर्ग की खुदाई से अपार स्वर्ण मुद्राएं निकलीं। इसके बाद शिवाजी एक के बाद एक किलेे जीतने लगे। शिवाजी के दुर्ग जीतने का समाचार बीजापुर के सुल्तान के कानों तक पहुंचा। उसके बाद सुलतान ने एक षड्यन्त्र रचा। धोखा देकर शाह जी को कैद कर लिया और अफ़वाह फ़ैला दी कि शाह जी का सिर अलग कर दिया जायेगा और दूसरी बात फ़ैलायी कि शिवाजी और उसके भाई शंभा जी पर भी आक्रमण किया जाएगा। इस बात से जीजाबाई को बड़ी चिन्ता हुई। शिवाजी भी पिता के प्राण खतरे में देख चिन्तित हुए। इस कठिन अवसर पर उनकी पत्नी सईबाई ने योग्य मन्त्रणा दी। उस समय उनकी आयु सिफऱ् 14 वर्ष की थी। उसने अपने पति शिवाजी से कहा कि आप इस बात पर क्यों चिन्तित हैं। ऐसी योजना बनाएं ताकि पिता भी मुक्त हो जाएं और स्वराज्य भी बना रहे। सईबाई सचमुच वीर पत्नी थी। शिवाजी ने सबसे पहले आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय पायी फिऱ पिता को छुड़ाने का उपाय सोचा।
 छल-कपट का जवाब कूटनीति से
जब शिवाजी 28 वर्ष के थे तब उन्होंने 40 दुर्ग जीत लिये थे। शिवाजी की इस विजय यात्रा को देखकर सुलतान आदिलशाह बहुत बेचैन हो उठा। आदिलशाह की उपमाता डलिया बेगम ने बीजापुर के सभी वीरों की सभा बुलाई और घोषणा की कि जो वीर शिवाजी को पकड़ सकता है वह खड़ा हो जाये। इस पर एक हट्टा-कट्टा सात फुटा सेनापति खड़ा हुआ, जिसका नाम था अफज़लखान। वह आदिलशाह दरबार का प्रथम श्रेणी का सेनापति था। वह जितना पराक्रमी था उतना ही कपटी और क्रूर था। सुलतान ने पचीस हजार वीर सैनिकों के साथ उस सेनापति को भेजा। इस प्रकार खान ने कई मन्दिरों को तोड़ा, मूर्तियों को नष्ट किया। स्त्रियों का सतीत्व लूटा। गऊओं की हत्या की ताकि शिवाजी मैदान में आकर लड़ेगा और उसे आसानी से पकड़ लिया जायेगा। परन्तु शिवाजी ने किसी कच्चे गुरु से शिक्षा नहीं ली थी। अफज़लखान ने शिवाजी के पास अपना दूत भेजा कि एक बार मेरे से मिल ले ताकि उनका सारा अत्याचार माफ़ कर दिया जाए। शिवाजी ने भी छल-कपट का जवाब इसी तरह एक बुद्धिमान दूत द्वारा भिजवाया और बड़े ही नम्र शब्दों में लिखा कि आप तो मेरे चाचा तुल्य प्रिय हैं। एक बार आप ही प्रतापगढ़ दुर्ग में दर्शन दें, फिऱ आपके चरणों में हाजिर हो जाऊंगा। इस पत्र के भुलावे में खान गया। दलबल के साथ खान मिलने आया परन्तु शिवाजी भी अपने सैनिक को सतर्क कर चुके थे। शिवाजी भी अपने आपको सुरक्षित करके मिलने चले और हाथों में बाघनख डाल लिये। दोनों मिले परन्तु खान ने शिवाजी को आलिंगन के बहाने बाजुओं में कस लिया। उसकी चाल शिवाजी समझ गये और अपने बाघनख से पेट चीर दिया। इसके बाद शिवाजी के सैनिकों ने उन पर धावा बोल दिया और थोड़े ही समय में मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार शिवाजी की कीर्ति देश-विदेश में फ़ैल गई। इसके बाद दूसरे सेनापति ने 70 हजार सैनिकों के साथ शिवाजी पर आक्रमण किया, परन्तु मुंह की खानी पड़ी।
शिवाजी का राजनीतिक कौशल वीरता देखकर मुगल सम्राट् औरंगजेब क्रोधित हुआ। वह शिवाजी को पहाड़ी चूहा कहा करता था।
स्वराज्य स्थापना का संकल्प
शिवाजी ने केवल शत्रुओं से लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि उन्होंने प्रजाहित में बहुत काम किया। उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि रास्ते में जनता को किसी प्रकार का कष्ट हो। खेतों में खड़ी फ़सल के पत्ते भी कोई छूये। किसानों को इनसे बड़ा लगाव था। जो धनी जमींदार अन्यायी था, उससे जमीन लेकर शिवाजी ने गरीबों में बांट दी थी। भ्रष्टाचारी और देशद्रोही लोगों पर शिवाजी क्रोधित होते थे। वे कहा करते थे कि यदि मेरा पुत्र भी देश के लिए काम नहीं करेगा और विरोध करेगा तो मैं उसे अवश्य दण्ड दूंगा।
शिवाजी अंतिम सांसों तक देश-धर्म की सेवा करते रहे। स्वराज्य स्थापना के लिए 35 वर्ष तक वह लड़ते रहे और अन्त में 1602 में चैत्र पूर्णिमा को उनका देहान्त हो गया। उनके बारे में किसी ने ठीक ही कहा है।
धन्य-धन्य हे वीर शिवाजी, तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम।
देशधर्म पर मिट गए, किया अद्भुत काम।
 

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