छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

   शक्ति, मर्यादा साधना का महापर्व चैत्र नवरात्रि रामनवमी के उपलक्ष्य में वेदधर्म ऋषिधर्म के संवाहक परम पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के 30वें संन्यास दिवस के पावन अवसर पर परम पूज्य स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से हिन्दवी स्वराज के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज की यशोगाथा ‘‘छत्रपति शिवाजी महाराज की दिवसीय कथा'' का समापन पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ। पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने सभी देशवासियों को रामनवमी की शुभकामनाएँ दीं और व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए पूज्य गोविन्ददेव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया।
''छत्रपति शिवाजी महाराज कथा'' के समापन अवसर पर पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने कहा कि जितना मैं कथा कह रहा हूँ, उतनी ही अगाध ज्ञानश्रुति का श्रवण भी कर रहा हूँ। इसलिए यह कथा नहीं अपितु शिव कथा का संवाद हो गया। भगवद्गीता संवाद है, इसमें दोनों ओर से बोला जाता है। इसलिए भगवद्गीता के मंथन में सच्चा आनंद आता है। उन्होंने कहा कि वेद में वाणी की बड़ी महिमा है और उसी का आधार लेकर राष्ट्र को जागृत किया जाता है।
पूज्य स्वामी गोविन्द देव जी ने कहा कि शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किसी राजा का राज्याभिषेक नहीं था तथापि वह भारतीय इतिहास का सर्वोत्तम स्वर्ण क्षण था। इसके उपरान्त भारतीय इतिहास का दूसरा स्वर्ण क्षण 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का क्षण था। आयु के 15वें वर्ष में छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हेतु प्रतिज्ञा ली। उसके बाद अनेक प्रकार की आपदाओं को झेलते हुए, संघर्ष करते हुए, शत्रुओं से घिरे रहने पर भी युद्ध नीति का आश्रय लेते हुए उन्हें परास्त करके लगभग 350 किलों का आधिपत्य निर्माण किया।

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उन्होंने कहा कि युद्ध तो युद्ध होता है, यह क्षत्रिय धर्म है। देश, देश की सीमाओं संस्कृति की रक्षा करने के लिए बलिदान करने की जब बारी आती है तो जो पीछे नहीं हटते, उन्हीं का गौरव है। हमारे वीरों ने कितना-कितना बलिदान किया है। महाभारत में स्पष्ट रूप से कहा है कि उत्तम राज्य वह है जहाँ सज्जन निर्भयता से विचरण करते हैं। पापियों के राज्य में सज्जनों को छिपकर रहना पड़ता है, महिलाओं को अपनी आत्मरक्षा का डर रहता है। इन्हीं सज्जनों की रक्षा के लिए भगवान राम दण्ड लेकर चले थे। संसार में कुछ दुर्जन ऐसे होते हैं तो दण्ड के भय से ही अनुशासन में रहते हैं। गीता में कहा है कि ऐसे पापियों का पूर्ण विनाश ही करना पड़ता है। सभी को जो लगभग असम्भव सा लग रहा था, वो कार्य शिवाजी महाराज ने कर दिखाया। पूणे शहर में लाल किले के भीतर लाखों की सेनाओं के आवृत्त घेरे में शाहिस्तेखान था। 258 मावलों को साथ ले करके शिवाजी महाराज किले में कैसे घुसे और सुरक्षित कैसे बाहर निकल गए, यह चमत्कार था। शिवाजी महाराज द्वारा किया गया यह देश का पहला सर्जिकल स्ट्राइक था जिसमें 55 मुगल मारे गए तथा 6 मराठे भी वीरगति को प्राप्त हुए। शिवाजी महाराज को स्वराज्य के विस्तार के साथ-साथ इन सभी पापियों से भी लोहा लेना था।
पूज्य स्वामी गोविंद देव जी ने जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्व बताया। उन्होंने कहा कि अनुशासन का पालन करने वाले थोड़े से लोग भी योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें तो बड़े कार्य को सिद्ध कर सकते हैं। समय की प्रतीक्षा करना आना चाहिए, कोई भी कार्य उत्तेजना में नहीं, योजना के अनुरूप होना चाहिए। मुट्ठीभर अंग्रेजों ने भारत आकर 150 वर्षों तक राज किया, इसका मुख्य कारण योजना और अनुशासन था।
उन्होंने कहा कि मेरे अंदर सभी महापुरुषों को लेकर बड़ा आदर है, लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती के लिए विशेष आदर है क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी का एक भी अक्षर पढ़े बिना राष्ट्रीयता का उत्थान किया। विशुद्ध वैदिक, विशुद्ध भारतीय प्रेरणा स्वामी दयानंद सरस्वती की ही देन है। देश बड़ा है, अंधकार घना है, अज्ञान पीढिय़ों से जमा है, उनको दूर करने के लिए प्रयासों की भी आवश्यकता है, और इन प्रयासों में पतंजलि योगपीठ का बहुत बड़ा योगदान है। देश जगना चाहिए, अभी पूरा जगा नहीं है। मानसिक गुलामी अभी भी है। अंग्रेजी के कारण ही देश-विदेश में इस प्रकार के आख्यान (नैरेटिव) निर्माण करके इस गुलामी को पक्का करने का प्रयास आज भी हो रहा है। आज एक बौद्धिक संघर्ष की आवश्यकता है।
शिवाजी महाराज के हृदय में सनातन की प्रतिष्ठा के संकल्प के विषय में उन्होंने बताया कि शिवाजी की बीजापुर यात्रा उन्हें अन्तर्मुख करती गई। वहाँ उन्होंने भवन मंदिरों को देखा, चौराहों पर कटती गायों को देखा, डरे हुए किसानों को देखा, घसीट कर ले जाती हुई ललनाओं को देखा, जिससे उनके मन में काफी कष्ट हुआ। उनके मन में बार-बार यह प्रश्न आता था कि मैं कौन हूँ, मेरा परिवार कैसा है, मेरा समाज कैसा है, मेरा राष्ट्र क्या है? मेरे कुल की परम्पराएँ क्या हैं? उन परम्पराओं का पालन हो रहा है या विध्वंस हो रहा है? जीजा माता उन्हें बार-बार कहती थीं कि इस पर विचार करते रहो। इस प्रकार चिंतन करना ही सबसे बड़ा चिंतामणि होता है। वेदांत में चिंतन की बड़ी महत्ता है, वहाँ भी तो चिंतन किया जाता है जो जीवन को पूर्णत: बदल देता है। माता जीजा बाई के दिए संस्कार ही थे जो उन्हें अपने देश, समाज राष्ट्र के प्रति जागरूक रखते थे।
उन्होंने अपने जीवन में अत्यंत पवित्र चरित्र को धारण करते हुए शूरता, वीरता, चातुरी के बल पर महान राष्ट्र खड़ा करने में अपना पूरा जीवन लगा दिया। उनको गागाभट्ट ने इसलिए राजा बनने के लिए आग्रह किया कि जब तक वे स्वयं राजा नहीं बनेंगे तब तक इस देश के लिए स्थाई आधार नहीं होगा। इसलिए उन्होंने हिन्दु राष्ट्र का राज्याभिषेक करवाया। उनके द्वारा स्थापित हिन्दवी साम्राज्य के 350 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं और मेरी वर्षों की इच्छा थी कि रामायण, भागवत आदि कथाओं की भाँति छत्रपति शिवाजी महाराज की भी कथा होनी चाहिए ताकि लोगों को सदाचार, पुरुषार्थ और राष्ट्रीय भावना का निरंतर संदेश मिलता रहे।
कार्यक्रम में स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि शिवाजी महाराज के चरित्र, व्यक्तित्व उनकी साधना पर पूरे देश को गौरव है। वे भगवान शिव के अंशावतार के साथ-साथ शक्ति-भक्ति राष्ट्रधर्म के पूर्णावतार हैं। वे हमारी सनातनी परम्परा के बहुत बड़े गौरव हैं। प्रथम सनातन धर्म, हिन्दू धर्म, राष्ट्रधर्म, हिन्दू साम्राज्य की प्रतिष्ठा के प्रणेता, उद्गाता, उद्घोषक, पुरोधा, प्रेरक और सौ करोड़ से ज्यादा भारतवासियों के हृदय में सनातन धर्म और राष्ट्रधर्म की प्रेरणा जगाने वाले सबसे बड़े आदर्श या रोल मॉडल छत्रपति शिवाजी महाराज हैं। किसी भी महापुरुष के चरित्र के एक-दो प्रधान तत्व होते हैं, जैसे मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम भगवान के पूर्ण अवतार हैं, यह तो उनका अध्यात्म तत्व है लेकिन उनका प्रधान तत्व राजधर्म और मर्यादा है। भगवान कृष्ण का प्रधान तत्व कर्मयोग और योग की सारी विभूतियाँ है। भगवान शिव, भगवान हनुमान, भगवान राम, छत्रपति शिवाजी महाराज आदि सभी महापुरूषों ने धर्म युद्ध में, देवासुर संग्राम में पाप अधर्म का विनाश कर धर्म न्याय की प्रतिष्ठा की। भगवान शिव में समाधि तत्व प्रधान है और शिव तो अनादि, अनंत है, अजन्मा हैं। भगवान बुद्ध का करूणा तत्व प्रधान है, भगवान् महावीर का त्याग तत्व प्रधान है, महर्षि दयानंद का वेद तत्व प्रधान है तथा स्वामी विवेकानंद जी का सेवा तत्व प्रधान है। तो छत्रपति शिवाजी महाराज का सनातन धर्म हिन्दू धर्म मूलक राष्ट्रधर्म उनका प्रधान तत्व है और एक तत्व के निर्वहन के लिए एक-एक क्षण पुरुषार्थ करना होता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के अनुसार हमें शत्रु पक्ष का बोध भी होना चाहिए। यह शत्रु किसी एक पक्ष में नहीं होते अपितु विधायिका में, कार्यपालिका में, न्यायपालिका में, मीडिया में, शिक्षा में, चिकित्सा में पग-पग पर आपको शत्रुओं का समाना करना पड़ेगा। और उन शत्रुओं के साथ संघर्ष करते हुए एक यौद्धा के रूप में विजयी होकर हम निकलें यह पूज्य महाराजश्री ने हमको प्रेरणा दी। कथा में उनके श्रीमुख के निकले एक-एक तत्व को हमें आत्मसात करना है।
शिवाजी महाराज ने सनातन धर्म, राष्ट्र धर्म के साथ एक विराट लक्ष्य लेकर जो इतना बड़ा प्रचंड पुरुषार्थ और पराक्रम किया, आज उस रूप में युद्ध की आवश्यकता नहीं है लेकिन हमारी सांस्कृतिक विरासत के विरूद्ध आज भी वैचारिक संग्राम, सांस्कृतिक संग्राम, आर्थिक युद्ध, राजनैतिक युद्ध, सामाजिक युद्ध चारों ओर अभी भी चल रहा है। हमारी शिक्षा, चिकित्सा, खान-पान, वेश-भूषा, तथा हमारी भाषा आदि सभी तरह से हमारे गौरव को धूमिल करने के लिए जो कुत्सित प्रयास करते हैं और चारों तरफ जो राजसिक, तामसिक, आसुरी शक्तियां संगठित होकर छद्म रूप से जो प्रहार करती हैं, इन सबके विरूद्ध हम सबको संगठित होकर अपने-अपने उत्तरदायित्वों का निर्धारण करना है।
आज विश्व की साम्राज्यवादी, पूंजीवादी, बाजारवादी ताकतें पूरी दुनिया पर अपना एकाधिकार करके अपने खूनी पंजों से, क्रूर पाशों से नोचाना चाहती हैं, पूरी दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहती हैं। जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का, योगेश्वर श्री कृष्ण का, आचार्य चाणक्य, चंद्रगुप्त और शिवाजी महाराज के जीवन का दर्शन करते हैं, सबके संदर्भ में एक बात समान रूप से लागु होती है कि सिद्धि की प्राप्ति सत्व से होती है। वह सत्व है उत्साह, शौर्य, वीरता, पराक्रम, सात्विकता, आत्मधर्म, सनातनधर्म, राष्ट्रधर्म, ऋषिधर्म वेदधर्म और इन सबके सबसे बड़े उद्घोषक, प्रणेता, योद्धा, पुरोधा छत्रपति शिवाजी महाराज हैं।
पिछले कुछ दिनों से साम्राज्यवादी, पूंजीवादी, बाजारवादी ताकतें, कॉर्पोरेट माफिया, मेडिकल माफिया या फार्मा माफिया जो योग, आयुर्वेद और वेदों के ज्ञान को सुडो साइंस कहते हैं और कहते हैं कि ये तो अज्ञान से भरे हैं, कितनी मूर्खतापूर्ण धूर्ततापूर्ण बातें करते हैं, कहते हैं कि राम भी नहीं थे, कृष्ण भी नहीं थे, शिव भी नहीं थे, हनुमान भी नहीं थे। पता नहीं वेदों पर क्या-क्या लांछन लगाते हैं। हमारी संस्कृति सनातन मूल्यों पर घात-प्रतिघात करते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि मुगलों ने किसको चुना? उन्होंने छोटे-छोटे गाँवों के मंदिरों को नहीं अपितु बड़े प्रतिमानों को चुना। उन्होंने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, अयोध्या, मथुरा आदि मंदिरों को चुना। वहाँ इन विधर्मियों ने, इन मजहबी आतंकवादियों ने रिलिजियस टेरेरिस्टों और माफियाओं ने वहाँ मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें बनाई थी जिनमें से कुछ मुक्त हो गए, अभी कुछ और भी मुक्त होंगे। इन्होंने सोचा कि योग, आयुर्वेद सनातन धर्म के विषय में कोई ताल ठोककर बोलता है तो वह स्वामी रामदेव है, पहले इसी को डहाओ। हम अहंकार में नहीं जीते, हम स्वाभिमान में जीते हैं और इसे कोई खत्म नहीं कर सकता।
सनातन हिन्दू धर्म के दो पक्ष हैं- एक भारत की सनातन ज्ञान परम्परा, ऋषि परम्परा, वेद परम्परा जो 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 122 वर्ष पुरानी हमारी सांस्कृतिक विरासत है और दूसरा हमारे भारत के पूर्वजों का पराक्रम, शौर्य वीरता। हमारा कलैण्डर 2024 वर्ष पुराना नहीं है। दुर्भाग्य से हम अपने इतिहास को, अपनी संस्कृति को, अपने वैभव को, गौरव को इतने भूल गए कि लगभग 200 करोड़ वर्ष पुरानी संस्कृति, संस्कारों, अपने सनातन ज्ञान के प्रवाह को, पुण्यों के प्रवाह को विस्मृत करके हम गुलामी, आत्मग्लानि, कुण्ठाओं भ्रान्तियों में डूब गए थे। सनातन धर्म को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है, किसी राजाश्रय, कॉर्पोरेट हाऊस या राजनैतिक पार्टी की आवश्यकता नहीं है। ये सनातन के रक्षक नहीं है। सनातन धर्म तो शाश्वत है लेकिन सनातन धर्म विरोधी, राष्ट्र विरोधी जो असुर राक्षस प्रवृत्ति के लोग जब सनातन के मूल्यों आदर्शों पर प्रहार करते हैं, उस समय जिस जुझारूपन की जरूरत होती है, वह हिन्दुत्व है। उस हिन्दुत्व के, हिन्दवी साम्राज्य के कोई संस्थापक, प्रतिष्ठापक, उद्घोषक या प्रणेता हैं तो वह नवजागरण के पुरोधा, राष्ट्रधर्म के योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज हैं।
पूज्य स्वामी जी महाराज ने अलग-अलग कथानकों, प्रसंगों, शास्त्रीय संदर्भों के माध्यम से, ऐतिहासिक संदर्भों के माध्यम से शिवाजी महाराज के चरित्र को सबके समक्ष रखा। पूज्या माता जीजा बाई ने जो संस्कार, स्वाभिमान, शौर्य, वीरता, पराक्रम छत्रपति शिवाजी महाराज को दिए, जो संस्कार माता अंजनी ने हनुमान जी को दिए, जो संस्कार माता यशोदा ने बालकृष्ण भगवान में सम्प्रेषित किए, जो संस्कार माता कौशल्या ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को दिए और अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व आहुत करने का स्वाभिमान पूज्या गुजरी माता ने गुरु गोविन्द सिंह को दिया, जो संस्कार माता मदालसा ने दिए, उन सभी माताओं की भूमिका पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज निभा रहे हैं कि वह संस्कार हम सबमें सम्प्रेषित हों। देश की सब माताएँ इन माताओं से प्रेरित होकर उनका अनुसरण करें और हम सब एक क्षण के लिए भी अपने भीतर ग्लानि, निस्तेजता और विस्मृति को आने दें। भारत की सभी माताएँ माता जीजाबाई से प्रेरणा लेकर शिवाजी महाराज जैसे सुतों को जन्म देंगी। ये वीर प्रसुता भूमि है, ऋषि भूमि है, वीर भूमि है, इसका शौर्य ऐसे ही जागता रहेगा।
आज से 35 वर्ष पूर्व योग, आयुर्वेद स्वदेशी की यह यात्रा शून्य से प्रारंभ हुई और आज इसने विराट् स्वरूप ले लिया। पूरे विश्व के ज्ञात इतिहास में जितने अल्प कालखण्ड में यह इतना विशाल सनातन धर्म की सेवा का अनुष्ठान महायज्ञ आगे बढ़ा है, वैसा कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। हमें यहाँ रूकना नहीं है, यात्रा अभी बहुत लम्बी है। हम तो चरैवेति-चरैवेति के उपासक हैं। पूज्य गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने हमें अपने स्व, अपनी निजता से जोडक़र, प्रतिपल प्रेरणा देकर अपने स्वधर्म राष्ट्रधर्म के लिए हमें आंदोलित किया है। हम अपने वेदधर्म, ऋषिधर्म, सनातनधर्म, राष्ट्रधर्म के साथ पूरी तरह एकात्म होकर, शाश्वत मूल्यों को अपने जीवन में जीते हुए सेवा कार्य कर रहे हैं।
अंग्रेजों ने जो छल-छद्म किया, वह कानून बनाकर किया। 1835 में भारतीय शिक्षा व्यवस्था को खत्म करने के लिए इण्डियन एजुकेशन एक्ट बनाया। चिकित्सा की दृष्टि से इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन बनाया, यह इण्डियन नहीं इडियट मेडिकल एसोसिएशन है। इण्डियन एजुकेशन एक्ट बनने से क्या वह शिक्षा का प्रतिमान हो गया। इसको हम भारतीय शिक्षा बोर्ड पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय के माध्यम से खत्म करेंगे। राजनैतिक आजादी के आंदोलन को खत्म करने के बाद शिक्षा, चिकित्सा, वैचारिक सांस्कृतिक आजादी का उद्घोष इसी पतंजलि योगपीठ से हो रहा है, और हम इसमें भी विजयी होंगे। ये धूर्त, कुटिल एक्ट बना गए, इन्होंने पहले पॉलिटिकल कोलोनाइजेशन स्थापित किया, फिर इकोनॉमिकल कोलोनाइजेशन तथा बाद में कल्चरल कोलोनाइजेशन स्थापित कर दिया। 1940 में ड्रग एण्ड मेजिक रेमेडिज एक्ट बना। अंग्रेजों के समय बने गलत कानूनों को खत्म करने के लिए चाहे हजारों क्रांतिकारियों को फांसी के फंदों पर लटका दिया हो, जेलों में ठूंस दिया हो, 5 लाख से ज्यादा वीर-वीरांगनाओं के बलिदान हो गए हों, वह अभियान रूका नहीं और हम उसे आगे भी जारी रखेंगे। गलत कानूनों में संशोधन नहीं होना चाहिए क्या? उसके लिए युद्ध चलता रहेगा।
देश में शिवाजी महाराज जैसे महापुरुष सनातनधर्मी जगें और इस देश को शिक्षा, चिकित्सा, आर्थिक वैचारिक सांस्कृतिक गुलामी से आजादी दिलाएँ। बहुमत के आधार पर देखा जाए तो हमारा संकल्प है कि पूरे विश्व में लगभग 500 करोड़ से अधिक सनातनधर्म को मानने वाले लोग तैयार हों। इस रामनवमी पर हमारा संकल्प है कि इस राष्ट्र में रामराज्य आए और पूरे विश्व में रामराज्य के मूल्य, आदर्श और प्रतिमान गढ़े जाएं और रामराज्य हमारे आचरण की श्रेष्ठता से ही आएगा। राम हमारे आचरण की पवित्रता, अवतारी सत्ता और उपास्य देव हैं, हम राम-कृष्ण ऋषि-ऋषिकाओं की संतान हैं। हमारे मन के भीतर राम और सीता का विग्रह है। हम राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण, भगवती, उमा-महेश्वर के साक्षात विग्रह, मूर्त रूप उनके उत्तराधिकारी बनकर उन सबके सपनों को साकार करने वाले बनें।
इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि आज राम नवमी का पावन पर्व है, भगवान् श्री राम आपके जीवन में प्रसन्नता, उल्लास, निरोगता और जीवन की सम्पूर्ण खुशियां प्रदान करें। उन्होंने कहा कि आज पतंजलि योगपीठ के अभिभावक, संकल्प, शिल्पी श्रद्धेय स्वामी जी का 30वाँ संन्यास दिवस है। उन्होंने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम् पतंजलि संन्यासाश्रम में हमारे ऋषियों के वंशधर, ऋषि परम्परा के भविष्य तैयार किए जा रहे हैं। उस ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाना है, जीवित और जागृत रखना है। श्रद्धेय स्वामी जी ने ऋषि परम्परा, योग परम्परा, आयुर्वेद परम्परा को गौरव प्रदान किया है। आज हमारे सैकड़ों तपस्वी, ब्रह्मचारी, तपस्वी साधु, तपस्वी संन्यासिनी बहनें उस मिशन, उस जन अभियान को अपना अभियान बनाकर पूरे विश्व का नेतृत्व करने के लिए निकल पड़े हैं।
कथा के अंत में छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज के कर-कमलों द्वारा किया गया। पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा शिवाजी महाराज के चरित्र पर आधारित नाट्य प्रस्तुति का प्रदर्शन किया गया जिसमें छत्रपति के नेतृत्व में मराठा मावलों के शौर्य, वीरता पराक्रम ने युवाओं के मन में राष्ट्रवाद की भावना का संचार किया। श्री राम जी की आरती के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
दिवसीय कथा में समय-समय पर भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष श्री एन.पी. सिंह, पतंजलि ग्रामोद्योग के उपाध्यक्ष डॉ. यशदेव शास्त्री, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल, मानविकी संकायाध्यक्षा साध्वी आचार्या देवप्रिया, आचार्यकुलम् की उपाध्यक्षा डॉ. ऋतम्भरा, पतंजलि योगपीठ की क्रय समिति अध्यक्षा बहन अंशुल, संप्रेषण विभाग की विभागाध्यक्षा बहन पारूल, भारत स्वाभिमान के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भाई राकेशभारत स्वामी परमार्थदेव, मुख्य महाप्रबंधक (ट्रस्ट) ब्रिगेडियर टी.सी. मल्होत्रा, आचार्यकुलम् की प्रधानाचार्या आराधना कौल, पतंजलि विश्वविद्यालय के आई.क्यू..सी. सैल के अध्यक्ष प्रो. के.एन.एस. यादव, कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव सहित सभी शिक्षण संस्थान यथा- पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्यगण विद्यार्थीगण, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई साध्वी बहनें तथा पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे।
 

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