छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक
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शक्ति, मर्यादा व साधना का महापर्व चैत्र नवरात्रि व रामनवमी के उपलक्ष्य में वेदधर्म व ऋषिधर्म के संवाहक परम पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के 30वें संन्यास दिवस के पावन अवसर पर परम पूज्य स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरि जी महाराज के श्रीमुख से हिन्दवी स्वराज के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज की यशोगाथा ‘‘छत्रपति शिवाजी महाराज की ९ दिवसीय कथा'' का समापन पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ। पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने सभी देशवासियों को रामनवमी की शुभकामनाएँ दीं और व्यासपीठ को प्रणाम करते हुए पूज्य गोविन्ददेव गिरि जी महाराज से कथा प्रारंभ करने का अनुरोध किया।
''छत्रपति शिवाजी महाराज कथा'' के समापन अवसर पर पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने कहा कि जितना मैं कथा कह रहा हूँ, उतनी ही अगाध ज्ञानश्रुति का श्रवण भी कर रहा हूँ। इसलिए यह कथा नहीं अपितु शिव कथा का संवाद हो गया। भगवद्गीता संवाद है, इसमें दोनों ओर से बोला जाता है। इसलिए भगवद्गीता के मंथन में सच्चा आनंद आता है। उन्होंने कहा कि वेद में वाणी की बड़ी महिमा है और उसी का आधार लेकर राष्ट्र को जागृत किया जाता है।
पूज्य स्वामी गोविन्द देव जी ने कहा कि शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किसी राजा का राज्याभिषेक नहीं था तथापि वह भारतीय इतिहास का सर्वोत्तम स्वर्ण क्षण था। इसके उपरान्त भारतीय इतिहास का दूसरा स्वर्ण क्षण 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का क्षण था। आयु के 15वें वर्ष में छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हेतु प्रतिज्ञा ली। उसके बाद अनेक प्रकार की आपदाओं को झेलते हुए, संघर्ष करते हुए, शत्रुओं से घिरे रहने पर भी युद्ध नीति का आश्रय लेते हुए उन्हें परास्त करके लगभग 350 किलों का आधिपत्य निर्माण किया।