स्वास्थ्य समाचार
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कम मेलजोल रखने वाले बुजुर्गों में होता है मस्तिष्क सिकुड़ने का खतरा
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि कम सामाजिक संपर्क रखने वाले बुजुर्गों के मस्तिष्क का आकार अधिक मेलजोल रखने वाले बुजुर्गों की अपेक्षा सिकुड़ जाता है। शोध का यह परिणाम लोगों को सामाजिक संपर्क बढ़ाकर मस्तिष्क के अपक्षय को रोकना और डिमेंशिया के विकास से सुरक्षा का सुझाव देता है।
शोधकर्ताओं का यह अध्ययन बीते बुधवार को न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। जापान के फुकुओका में क्यूशू विश्वविद्यालय से जुड़े शोध के लेखक तोशिहारु निनोमिया ने कहा कि अध्ययन यह नहीं सिद्ध करता है कि सामाजिक अलगाव से मस्तिष्क का आयतन कम हो जाता है, बल्कि यह केवल दोनों के बीच एक संबंध दिखाता है। शोध दल ने अध्ययन में 8896 ऐसे प्रतिभागियों को शामिल किया है जिनकी औसत आयु 73वर्ष थी और वे डिमेंशिया से पीड़ित नहीं थे। उनका एमआरआई कर बे्रन स्कैन किया गया।
प्रतिभागियों के सामाजिक संपर्क को जानने के लिए उनसे एक सवाल किया गया कि वे अपने साथ न रहने वाले ऐसे रिश्तेदारों और दोस्तों से कितनी बार मुकालात या फोन पर बातचीत करते हैं। उन्हें विकल्प दिए गए थे, हर दिन, सप्ताह में कई बार, महीने में कई बार और कभी-कभी। शोधकर्ताओं ने विश्लेषण में पाया कि जिनका सामाजिक संपर्क कम था उनके मस्तिष्क का आयतन उन लोगों की तुलना में कम था जिनका लोगों से मेलजोल अधिक था। शोधकर्ताओं ने बताया कि मस्तिष्क का सिकुड़ना स्मृति को प्रभावित करने के साथ डिमेंशिया के जोखिम को भी बढ़ाता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि मस्तिष्क के आयतन पर प्रभाव डालने में अन्य कारक जैसे उम्र, डायबिटीज, ध्रूमपान और व्यायाम जैसे कारक भी हो सकते हैं।
साभार : हिन्दुस्तान
दिमाग की नसें कमजोर कर रहा 'ठंडा तेल'
तेल में कपूर के बेतहाशा प्रयोग से आंखों की रोशनी कम होने के साथ दिमाग संबंधी बीमारियां हो रहीं
सिरदर्द, थकान व अनिद्रा दूर करने को अगर आप ठंडे तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बंद कर दीजिए। यह तेल दिमाग की नसों को कमजोर कर रहे हैं। इससे सिर दर्द, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन स्ट्रोक, आंखों की रोशनी कम होने जैसी समस्या हो रही है।
ऐसे रोगों से ग्रसित रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इससे महिलाएँ ज्यादा पीड़ित हैं। बाजार में कई ब्रांड के ठंडे तेल हैं। कई सेलिब्रिटी इनका प्रचार भी कर रहे हैं, लेकिन इसका साइड इफेक्ट काफी घातक हैै। तेल में कपूर के बेतहाशा प्रयोग से आंखों की रोशनी कम होने के साथ दिमाग में कई तरह की बीमारियां सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ठंडे तेल का इस्तेमाल नशे की लत जैसा है। इसमें कपूर की मात्रा ज्यादा होती है।
50 मामले हर माह आ रहे बीएचयू अस्पताल में मानक से ज्यादा कपूर
बीएचयू के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. वीएन मिश्र ने कहा कि मानक के अनुसार तेल मेंकपूर की मात्रा 11 एमईक्यू (मिली इक्वीवेलेंट/ली.) होनी चाहिए। लेकिन इससे ज्यादा कपूर का उपयोग किया जा रहा है। कई तेल में तो २० से २५ एमईक्यू कपूर का उपयोग हो रहा है।
केस 1 : अब नींद नहीं आती
बलिया निवासी प्रेमवती देवी १५-२० साल से ठंडा तेल लगा रही हैं। उन्होंने बताया कि सिरदर्द हेने पर तेल लगाने लगीं। अब अगर रोज ठंडा तेल नहीं लगाती हैं तो उनका सिर भारी-भारी रहता है। रात में नींद भी नहीं आती है।
केस-2 : आधे सिर में दर्द
सोनभद्र की कुंती देवी दस साल से ठंडा तेल सिर पर लगा रही हैं। पहले उन्हें कभी-कभी सिरदर्द होता था, अब लगातार आधे सिर में दर्द बना रहता है। बीएचयू पहुंची तो डॉक्टर ने ठंडा तेल के प्रयोग से मना किया है।
साभार : हिन्दुस्तान टाइम्स
https://www.magzter.com/es/stories/newspaper/Hindustan-Times-Hindi/1696830098775
सांस लेने में तकलीफ, हृदय रोगों से हो सकता है जुड़ाव
दिल के रोग जैसे एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथमिया आदि के कारण भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
शरीर में जितनी भी कोशिका है, उन्हें जीवित और स्वस्थ रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसके अलावा आपके शरीर को कार्बन डाइऑक्साइड से छुटकारा पाने की भी आवश्यकता होती है। इन दोनों कार्यों को करने के लिए फेफड़ों का स्वस्थ्य रहना बहुत ही जरूरी है। सांस नली के जाम होने या फेफड़ों में छोटी-मोटी परेशानी होने पर सांसें छोटी आने लगती हैं। ध्यान दें यदि आपको यह समस्या लंबे समय से है तो यह किसी दूसरी बीमारी का लक्षण हो सकता है, जैसे अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी (सीओपीडी) और निमोनिया।
सांस लेने में तकलीफ हृदय रोग भी हो सकता है
दिल के रोग जैसे, एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेलियर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथमिया आदि दिल की बीमारियों के चलते भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। दरअसल, दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर वे सामान्य गति से पंप नहीं कर पातीं। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। ऐसे लोग रात में जैसे ही सोने के लिए लेटते हैं, उन्हें खांसी आने लगती है। इसके अलावा इसमें पैरों या टखनों में भी सूजन आ जाती है और व्यक्ति को सामान्य से ज्यादा थकान रहती है।
बेचैनी भी है एक कारण
तनाव और डर की स्थिति में व्यक्ति सबसे ज्यादा बेचैन होता है और ऐसी स्थिति में वह कई बार गलत निर्णय भी ले लेता है। दरअसल, बेचैनी हाइपर-वेंटिलेशन की वजह से होती है यानी जरूरत से ज्यादा सांस लेना। सामान्य स्थिति में हम दिन में 20,000 बार सांस लेते और छोड़ते हैं। ओवर-ब्रीदिंग में यह आंकड़ा बढ़ जाता है। ज्यादा ऑक्सीजन लेते हैं और उसी के अनुसार कार्बन डाईऑक्साइड भी छोड़ते हैं। शरीर को यही महसूस होता रहता है कि हम पर्याप्त सांस नहीं ले रहे।
वजन ज्यादा होना
जिसका वजन जितना ज्यादा होगा, उसे सांस लेने में उतनी ही तकलीफ होगी। आपको बता दें कि मोटे लोगों को सांस फूलने की बहुत ही ज्यादा समस्या रहती है। सांस के लिए मस्तिष्क से आने वाले निर्देश का पैटर्न बदल जाता है। वजन में इजाफा और सक्रियता की कमी रोजमर्रा के कामों को प्रभावित करने लगते हैं। ऐसे में थोड़ा सा चलने, दौड़ने या सीढ़ियां चढ़ने पर परेशानी होने लगती है।
यूं पाएं सांस में तकलीफ से राहत
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अपने घर को साफ रखने के अलावा अपने बिस्तर को भी साफ रखें। घर में वेंटिलेशन का पूरा ध्यान दें।
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सिगरेट पीते हैं तो इसे जल्दी से छोड़ दें। धूम्रपान की वजह से न केवल आपको सांस लेने में दिक्कत होगी बल्कि कैंसर जैसी कई गंभीर समस्याओं का भी आपको सामना करना पड़ सकता है।
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खाने में ब्रोकोली, गोभी, पत्ता गोभी, पालक और चौलाई को शामिल करें।
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व्यायाम नहीं करते हैं तो आप सुबह-शाम व्यायाम करना शुरू कर दें। ध्यान दें, अगर आप प्रदूषित शहर में रहते हैं, तो कोशिश करें कि आप घर पर ही व्यायाम करें।
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वजन कम करने की कोशिश करें। अमेरिकी डायबिटीज एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, मोटापा फेफड़े को सही ढंग से काम करने से रोकता है। इसके लिए आप अपने खाने-पीने पर ध्यान दें।