राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर राम की पैड़ी, अयोध्या में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का उद्बोधन
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जय श्रीराम, जय-जय श्रीराम, मर्यादा पुरुषोत्तम सियावर रामचन्द्र की जय। सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय। आज चारों ओर राममय वातावरण हो रहा है। यह राष्ट्र राममय हो रहा है। जैसे महर्षि वाल्मीकि जी ने कहा था ‘सर्व लोक हितकारी’प्रिय, अर्थात् सर्व लोक में सबके हितकारी एवं पूरे विश्व में लोकप्रिय मर्यादा पुरुषोत्तम राम जिनके आदर्श, जिनका तप, जिनका त्याग, पूरे विश्व के लिए आदर्श है। वह मात्र भारत ही नहीं, पूरे विश्व के लिए वंदनीय हैं। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम रामजी की प्राण-प्रतिष्ठा का एक बहुत बड़ा सौभाग्य हम सबको अपने आंखों से देखने को मिल रहा है और ये सौभाग्य जिनकी बदौलत हमें उपलब्ध हुआ है ऐसे उन रामजी के चरणों में जिन्होंने आहूतियां दी। जिन्होंने संघर्ष किया, तप किया उन सबको प्रणाम करते हैं।
धर्म के साक्षात विग्रह हैं राम
‘रामो विग्रह: धर्मो:’, राम धर्म के साक्षात विग्रह हैं। राम हमारे लिए राम भी हैं, राम हमारे लिए भारत के विग्रह भी हैं, राम हमारे पूर्वज भी हैं, राम ब्रह्म भी हैं और राम हिन्दूओं के आराध्य भी हैं, जैनियों के, सनातन धर्मियों के, सिखों के आराध्य, बौद्धों के आराध्य भी हैं। हमारे यहां तो परम्परा बहुत बड़ी है। सनातन धर्म के सभी मत, पंथ, सम्प्रदाय और महापुरुष राम जी से प्रीति करते हैं और राम मंदिर में रामलला विराजमान होना, टेंट में कितने वर्षों से संघर्ष चल रहा था। कुछ लोग कह रहे कि रामजी का शिखर पूरा नहीं बना, टेंट से रामजी इतने भव्य मंदिर में आ रहे हैं, उस पर दुर्विवाद क्यों?
जो राम का विरोधी, वो साधु हो ही नहीं सकता
मैं तो एक बात और कहता हूँ, जो साधु है, जो सच्चा संत है किसी भी मत, पंथ, सम्प्रदाय का हो। जो संत है वह किसी भी प्रकार का राम से विरोध नहीं कर सकता और जो राम का विरोध करता है, वो साधु हो ही नहीं सकता। फिर बात विरोध की आती ही नहीं, आजादी के 75-76वें वर्षों बाद, वो राजनीति की आजादी थी जो हमने 15 अगस्त 1947 को प्राप्त की थी। 22 जनवरी 2024 से भारत की सनातन संास्कृतिक आजादी का ये महापर्व है। ये सनातन संस्कृति आजादी का महापर्व है ये हमारे सांस्कृतिक लोक तंत्र का महापर्व है। एक हमारा राजनैतिक लोकतंत्र, तो एक हमारा राजनैतिक संविधान है। लेकिन अयोध्या में दिव्य, भव्य राम मंदिर बनना ये हमारे सांस्कृतिक संविधान का, हमारे धर्म तंत्र का लोकंतत्र के द्वारा दिया गया सबसे बड़ा सम्मान है। अभी तक कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं हुआ, जो मुखर रूप से अपने सनातन धर्म की श्रद्धा एवं भक्ति रखता हो। भारत में धर्मनिरपेक्ष नाम का कोई तत्व है ही नहीं, मूलत: तत्व है पंथ निरपेक्षता उसको तो हम सब मानते है। ना कि इस देश को धर्मनिरपेक्षता की छद्म एवं जाल में फसाया गया, बल्कि लोगों को राम से विमुख किया गया।
देश में राम राज्य आ चुका है
हमारा सौभाग्य कि एक तरफ राम मंदिर का दिव्य, भव्य निर्माण हो चुका है और राम मंदिर के निर्माण के साथ चरित्र निर्माण, राष्ट्र निर्माण की एक नई आधाशिला रखी जा रही है। इससे बड़ा और कोई सौभाग्य हो ही नहीं सकता। ये राम मंदिर निर्माण इस राष्ट्र के चरित्र निर्माण का और एक नये युग के निर्माण का एक बहुत बड़ा शंखनाद है।