शाश्वत प्रज्ञा योग संदेश 2023 दिसम्बर परम पूज्य योग-ऋषि स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य...........
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वैदिक सनातन संस्कृति पूर्णता का दर्शन हैं
विधि एवं निषेध डूज एंड डोंट्स पर ही हमारे जीवन के समस्त कर्त्तव्य, अकर्त्तव्य, शुभ-अशुभ, धर्म-अधर्म, सुख-दुःख, पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा, लाभ-हानि, सफलता-विफलता सब कुछ इन दो शब्दों पर टिका हुआ है। इसलिए जीवन में जो करना है वह किसी भी कीमत पर करना है तथा जो नहीं करना वह किसी भी कीमत पर नहीं करना।
जैसे जो आहार-विचार, वाणी-व्यवहार, स्वभाव, सम्बंध, आचरण हमें किसी भी प्रकार से दुःख देने वाले तत्व हैं, उनसे बचना है। तात्कालिक या दीर्घकालिक रूप से, वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक रूप से हमें क्या लाभ-हानि है, यहां तक की वैश्विक लाभ-हानि का भी हमें विचार करके ध्यान रखते हमें कार्य करना चाहिए। ऐसा न करने पर हमें इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
इसलिए आधा अधूरा ज्ञान, आधी अधूरी भक्ति, आधे अधूरे काम हमें अत्यंत दुःख देते हैं। अतः पूर्ण भक्ति, पूर्ण विवेक, पूर्ण पुरुषार्थ से हमें जो करना है उसी करना ही है तथा जिसे नहीं करना वो नहीं करना। जैसे मुझे एक भी विदेशी प्रोडक्ट का उपयोग नहीं करना तभी M.N.C. की आर्थिक, वैचारिक व सांस्कृतिक लूट व गुलामी से हम खुद को व देश को बचा पायेंगे। जैसे हमें अपने बच्चों को गुरुकुलम्, आचार्यकुलम् में ही पढ़ाना है। विश्वविद्यालय में अपवाद रूप में यदि विद्यार्थियों को, अपनी सन्तानों को देशकाल परिस्थिति, प्रकृति, संस्कृति एवं युगधर्म के अनुरूप हमें देश-विदेश के किसी भी विश्वविद्यालय पढ़ाना पड़े तो पढ़ा सकते हैं। 10-12वीं तक तो पतंजलि गुरुकुलम्, या आचार्यकुलम् में भारतीय शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध विद्यालय में ही हम अपनी सन्तानों को शिक्षा-दीक्षा व संस्कार देंगे। यह पूर्ण दृढ़ आग्रह होना ही चाहिए। शिक्षा की तरह ही चिकित्सा के क्षेत्र में भी सामान्य रूप से बी.पी., शुगर, थायराइड से लेकर वात, पित्त, कफ, आर्थराइटिस, अस्थमा, एसिडिटी आदि से लेकर 99% रोगों को सस्ता सरल पूर्णतः - निर्दोष समाधान क्योर योगायुर्वेद व नेचरोपैथी में है। अपवाद रूप में कोई दवा या ऑपरेशन हो सकता है।
मैकाले की शिक्षा व सिंथेटिक एलोपैथिक की जहरीली चिकित्सा इन दोनों का 100% बहिष्कार करना ही पडे़गा या करना ही चाहिए। ये दोनों ही बहुत खतरनाक, विध्वंसक, विस्फोटक डिजास्टर हैं व प्रलयंकारी हैं।
जैसे शुगर में चीनी, बी.पी. में नमक, वात में खटाई, कफ में चिकनाई, पित्त में मिर्च प्राणघातक है जैसे आहार में नशा, मांसाहार, वाणी में झूठी वाणी, व्यवहार में क्रूरता, हिंसा, सम्बंधों में अविश्वास 100% वर्जित है वैसे ही शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्र में हमें निषेध वाले तत्वों से बचना ही पडे़गा, नहीं तो शिक्षा, चिकित्सा के इस पाप, अधर्म, अन्याय, शोषण या महाविध्वंस व महाविनाश से ये मानवता नहीं बचेगी।
आईये! विधि निषेध अभ्यास व वैराग्य के इस दर्शन को खुद जानिये व सबको इस मर्म को बताइये।