स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय का गौरवमयी इतिहास व विशिष्ट सम्मतियाँ
On
पूज्य स्वामी दर्शनानंद ने 1118 वर्ष पूर्व गुरुकुल ज्वालापुर के रूप में एक पौधा रोपित किया था जो आज वट वृक्ष का रूप ले चुका है और पुष्पित, पल्लवित होकर समाज व राष्ट्र की सेवा कर रहा है। समय केसाथ गुरुकुल की आभा मन्द पडऩे लगी, तो गुरुकुल के शुभचिंतकों के आग्रह पर वर्तमान में इसके संचालन का दायित्व पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज व श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के कुशल निर्देशन में पतंजलि योगपीठ के कांधों पर है। पतंजलि योगपीठ के 29वें स्थापना दिवस, पतंजलि योगपीठ महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जयन्ती एवं गुरुकुल के संस्थापक पूज्य स्वामी दर्शनानन्द जी की जयन्ती के अवसर पर पतंजलि योपगीठ परिवार ने ‘स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय’व आचार्यकुलम् का शिलान्यास किया। इस परियोजना में 250 करोड़ की लागत से गुरुकुल व 250 करोड़ की लागत से आचार्यकुलम् स्थापित किया जाएगा जिसके गवाह देश के जननायकों- माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह, मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव, उत्तराखण्ड के युवा मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी, माननीय केन्द्रीय कानून एवं न्याय मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल, माननीय राज्य सभा सांसद श्री सुधांशु त्रिवेदी, संत समाज, आर्य समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति व आर्य भजनोपदेशक व विद्वान रहे।
स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल, ज्वालापुर का अपना गौरवमयी इतिहास रहा है। गुरुकुल की इस धरा को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति तथा 5-5 प्रधानमंत्रियों ने प्रणाम कर आशीर्वाद लिया है। महर्षि दयानंद के स्वप्र को पूरा करने तथा गुरुकुल की इस परम्परा को पूरे विश्व में प्रचारित -प्रसारित करने का बीड़ा अब पूज्य योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज के दिशानिर्देशन में पतंजलि योगपीठ ने उठाया है। गुरुकुल ज्वालापुर की भूमि को प्रणाम कर विशिष्ट गणमान्यों ने विशिष्ट सम्मतियाँ दी हैं जिन्हें यहाँ आपके सक्षम प्रस्तुत किया जा रहा है-
मैं महाविद्यालय ज्वालापुर की हृदय से उन्नति चाहता हूँ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (अप्रैल 1920)
ज्वालापुर महाविद्यालय एक पवित्र एवं आदर्श स्थान है।
- पण्डित जवाहर लाल नेहरू, प्रधानमंत्री भारत सरकार (13 अप्रैल 1962)
श्री प्रकाशवीर शास्त्री का बहुत समय से आग्रह था कि मैं गुरुकुल महाविद्यालय जाऊँ। इच्छा रहते हुए भी मुझे इसका जल्दी अवसर नहीं मिला। इस बार अप्रैल 1961 में इसके दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला। मुझे और भी अधिक खुशी इसलिए होती है, क्योंकि मेरा सम्पर्क उस समय से रहा है, जब स्वर्गीय पंडित पद्मसिंह शर्मा यहाँ रहा करते थे। इसलिए यहाँ आकर पुराने संस्मरण ताजा हो गए।
ऐसे स्थान हमारी प्राचीन संस्कृति के आदर्श बन सकें, आंखों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं। आधुनिक शिक्षण पद्धति के साथ गुरुकुल प्रणाली का समन्वय यदि हम कर सकें तो मुझे इसमें संदेह नहीं कि इस प्रकार के समन्वय से हमारे देश को फायदा होगा। मैं इस महाविद्यालय की दिनोंदिन उन्नति चाहता हूँ और अध्यापकों तथा छात्रों को बधाई देता हूँ।
- डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, राष्ट्रपति भारत सरकार (20 मई 1961)
मैंने आज गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर को देखा। मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि यह गुरुकुल 42 वर्षों से लगातार सैकड़ों विद्यार्थियों को बिना किसी प्रकार के शुल्क के संस्कृत और हिन्दी की उच्चतम शिक्षा दे रहा है। इस संस्था से निकले हुए स्नातकों ने विशेष रूप से राष्ट्रीय सेवा और असहयोग आन्दोलनों में भाग लिया है, यह हर्ष की बात है। इस संस्था के अधिकारियों से मुझे विशेष रूप से यह कहना है कि वे इसको स्वावलम्बी संस्था बनावें। विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ ही शिल्प और उद्योग की भी पूरी शिक्षा दें। आर्थिक सहायता के सम्बन्ध में सरकार विचार करेगी। इस संस्था के पास जो भूमि कृषि योग्य है, उसको कृषि के नवीन साधनों का उपयोग करके, अधिक से अधिक उपजाऊ बनाया जाए। मैं इस शिक्षा-संस्था की हृदय से उन्नति चाहता हूँ।
- गोविन्द वल्लभ पन्त, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार (13 अप्रैल 1950)
यह गुरुकुल नि:स्वार्थ सेवी विद्वानों और कर्मठ कार्यकर्ताओं द्वारा चलाया जा रहा है। यह उत्तम कार्य कर रहा है।
- क.मा. मुन्शी, राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार (17 अप्रैल 1953)
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर अच्छा कार्य कर रहा है। यह तपस्वी विद्वानों और कार्यकर्ताओं से संचालित है। इसको प्रोत्साहन अवश्य मिलना चाहिए।
- क.मा. मुन्शी, राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार (27 अप्रैल 1953)
श्री नरदेव जी की तपस्या और लगन का फल है कि इतनी कठिनाइयों के होते हुए भी इतने लम्बे अर्से तक यह संस्था समाज की सेवा करती रही। संस्था पर और यहाँ के कार्यकर्ताओं और ब्रह्मचारियों पर कुलपति की और मेरी यह कामना है कि यह संस्था निरंतर फलती-फूलती रहे और यहाँ के निकले हुए छात्र समाज के सच्चे सेवक बनें।
- कालूलाल श्रीमाली, शिक्षा मंत्री, भारत सरकार (9 अप्रैल 1960)
आज इस गुरुकुल में दीक्षान्त भाषण देने के लिए मुझे अवसर मिला, तब मुझे इस सुन्दर संस्था का कुछ परिचय हुआ। इस संस्था का हमेशा विकास होता रहे, यही मेरी परमात्मा से प्रार्थना है।
- मोरारजी देसाई, प्रधानमंत्री, भारत सरकार (11 अप्रैल 1960)
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है।
- वी० सत्यनारायण रेड्डी, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश (13 अप्रैल 1960)
आज इस विद्यामन्दिर में आने का अवसर मिला। मैं अपने को धन्य मानता हूँ। इन संस्थाओं से एक प्रेरणा मिलती है। उदात्त भावनाएँ, संकल्प शक्ति, निष्ठा और कर्मठता के सन्देश का उद्भव इन्हीं विद्यामन्दिरों से होता है, इसी कारण ये पूजनीय हैं, दर्शनीय हैं। मेरी शुभकामना है कि यह विद्यालय भविष्य में निरन्तर उन्नति के पथ पर अग्रसर होता रहे।
- चन्द्रशेखर, प्रधानमंत्री, भारत सरकार (13 अप्रैल 1991)
आज गुरुकुल ज्वालापुर देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दीक्षान्त अभिभाषण भी देने का सौभाग्य मिला। मेरी शुभकामनाएँ।
- यशवंतराव चव्हाण, गृहमंत्री, भारत सरकार (14 अप्रैल 1964)
बालक-बालिकाओं को संस्कृत के मूल्य से परिचित कराना चाहिए। शिक्षा का माध्यम यदि महाविद्यालय जैसी संस्थाओं में संस्कृत ही हो तो अत्युत्तम है। विज्ञान के नये-नये शब्दों का समावेश संस्कृत में उदारता से करना चाहिए।
- श्री मा० डॉ० चिन्तामणि द्वारकानाथ देशमुख, शिक्षा मंत्री, भारत सरकार (15 अप्रैल 1957)
आज जो कुछ भी देखा है, उससे बड़ी प्रेरणा मिली है। जिन कठिनाइयों का सामना इस संस्था ने किया है, वही इस बात का विश्वास दिलाता है कि इसकी भाग्यरेखा अमिट है।
- तारकेश्वरी सिन्हा, मंत्री भारत सरकार (11 अप्रैल 1960)
ये मेरा सौभाग्य है कि मैं आज गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर आ सका हूँ, ये विश्वविद्यालय जल्दी बनना चाहिए क्योंकि यहाँ सनातन वेदों का ज्ञान सिखाते हैं, इससे सनातन धर्म को प्रोत्साहन मिलता है।
- जी०वी०जी० कृष्णमूर्ति, पूर्व निर्वाचन आयुक्त, भारत सरकार (29 जनवरी 2001)
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को जीवित रखकर इस संस्था द्वारा समाज की जो सेवा की जा रही है, उसका मूल्यांकन आज की भोगवादी सभ्यता नहीं कर सकती।
- सुन्दरलाल बहुगुणा (17 जनवरी 1996)
महाविद्यालय के स्नातकों ने जो वेद प्रचार-प्रसार और आर्यसमाज दर्शन को जन-जन तक पहुँचाने का प्रशंसनीय कार्य किया है। उसके लिए हम सब ऋणि रहेंगे।
- अमर ऐरी, प्रधान, आर्य समाज ट्रस्टी, टोरंटो, कनाडा (29 अप्रैल 2002)
बहुत दिनों के बाद आज गुरुकुल महाविद्यालय में आकर और अपने पुराने सम्मानित सहयोगी पं० नरदेव शास्त्री जी से मिलकर परमानंद हुआ। इस सुन्दर और उपयोगी संस्था की इतनी समृद्धि और उन्नति देखकर बड़ा संतोष हुआ। पं० नरदेव शास्त्री जी का उत्साह वैसा ही है जैसा पहले था।
- श्रीप्रकाश, राज्यपाल, महाराष्ट्र प्रदेश (18 सितम्बर 1960)
स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय को लेकर पतंजलि की भावी योजना
शिलान्यास कार्यक्रम में पूज्य स्वामी जी महाराज ने बताया कि गुरुकुल ज्वालापुर से तीन बड़े प्रकल्प संचालित किए जाने की योजना है जिसमें पहला लक्ष्य लगभग 250 करोड़ की लागत से तैयार होने वाला 7 मंजिला भव्य पतंजलि गुरुकुलम् होगा। इस गुरुकुल में लगभग 1500 विद्यार्थियों की आवासीय व्यवस्था होगी। नालंदा तथा तक्षशिला की भांति इस गुरुकुल में पूरे विश्व से विद्यार्थी भारतीय शिक्षा, संस्कृति तथा परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त कर पूरे विश्व में सनातन व भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बनेंगे।
इसके अतिरिक्त यहाँ लगभग 250 करोड़ की लागत से आचार्यकुलम् की शाखा स्थापित की जाएगी जिसमें लगभग 5000 बच्चे डे-बोर्डिंग का लाभ ले सकेंगे। साथ ही यहाँ महर्षि दयानन्द अतिथि भवन बनाने की भी योजना है।
यहाँ बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ वो संस्कार दिए जाएँगे जिससे वे अपनी संस्कृति व अपनी जड़ों से जुड़ सकें। पूरे देश में सनातन के गौरव का कालखण्ड चल रहा है। एक ओर सनातन का बोध, भारत का बोध और दूसरी तरफ आधुनिक विषयों का बोध, यानि देश की सर्वश्रेष्ट आध्यात्मिक शिक्षा, सनातन की शिक्षा, भारत बोध, चरित्र निर्माण के साथ राष्ट्र निर्माण का, गौरव व स्वाभिमान का भाव बच्चों के भीतर जागृत किया जाएगा। यहाँ श्रेष्ठतम आधुनिक शिक्षा और श्रेष्ठतम प्राच्य विद्या दोनों का संगम होगा। हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत से लेकर कम से कम विश्व की 5 भाषाओं का बोध पतंजलि गुरुकुलम् व आचार्यकुलम् के बच्चों को होगा।
स्वामी जी ने बताया कि चौहान समाज के लोगों ने गुरुकुल की सुरक्षा करने में बड़ी भूमिका रही है, अत: यहाँ सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी की प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी। उन्होंने कहा कि यहाँ 1 से 2 वर्ष के भीतर एक कम्यूनिटी सेन्टर बनाया जाएगा जिसका लाभ हरिद्वार के लोगों को मिलेगा।
गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के यशस्वी स्नातक
1 . पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य (प्रखर वक्ता एवं दार्शनिक, 20 सितम्बर 1911 - 20 जून 1990)
आपने महान व्यक्तित्व मदन मोहन मालवीय जी से यज्ञोपवीत एवं गायत्री मन्त्र की दीक्षा ली थी। आचार्य जी एक युग द्रष्टा मनीषी थे जिन्होंने अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना की। उन्होंने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिए समर्पित किया। आपका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, अध्यात्मविज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व द्रष्टा का समन्वित रूप था।
2. पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी (प्रखर वक्ता एवं सांसद, 30 सितम्बर 1923 - २३ नवम्बर 1977 (रेल दुर्घटना में निधन))
निवास ग्राम रहरा, जिला मुरादाबाद। तीन बार लोक सभा के निर्दलीय सांसद रहे। आर्य समाज के प्रखर वक्ता, विलक्षण तर्कशक्ति के धनी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था कि प्रकाशवीर जी उनसे भी बेहतर वक्ता थे।
3. आचार्य देवव्रत जी (जन्म 18 जनवरी, 1951)
आप भारतीय राजनीतिज्ञ एवं शिक्षाविद् हैं। आर्य समाज के प्रबल प्रचारक हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र गुरुकुल में प्राचार्य थे। आप अगस्त 2015 से 21 जुलाई 2019 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किए गये थे। वर्तमान में आप गुजरात प्रान्त के २०वें राज्यपाल के रूप में अपनी सेवायें प्रादान कर रहे हैं। आप गुजरात प्रान्त के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के सम्मानित पद को सुशोभित कर रहे हैं।
4. आचार्य सुधांशु जी (कथावाचक)
आप सम्मानित आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं जो अपनी गहन शिक्षाओं और मानवीय प्रयासों के लिए प्रसिद्ध हैं। आप विश्व जागृति मिशन के संस्थापक हैं। आपका मुख्य सन्देश आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग के रूप में प्रेम, शांति और एकता के महत्व को प्रकाशित करना है। आपके वैश्विक स्तर पर अनेकों अनुयायी हैं जो आपके समावेशी और अन्तर-धार्मिक संवाद से प्रेरित हैं।
5. प्रो. विजयपाल प्रचेता शास्त्री जी (जन्म 30 दिसम्बर, 1959)
आपका जन्म झुंझुनु, राजस्थान में हुआ। आपने 1982 में गुरुकुल महाविद्यालय में वैदिक सिद्धान्त विषयक अध्ययन किया। वर्तमान में आप केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, देवप्रयाग में आचार्य पद पर विद्यमान हैं। आप साहित्य, आयुर्वेद, व्याकरण व इतिहास आदि विषयों के अतिमहनीय व्यक्तित्व हैं।
6. स्वामी जयंत सरस्वती जी (आधुनिक भीम, जन्म 19 अगस्त 1947)
आपका जन्म मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। आपने गुरुकुल महाविद्यालय में प्रामाणिक अध्ययन किया, तदनन्तर कण्व आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान की स्थापना करके भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणा का देश-विदेश में प्रचार किया।
विश्व योग संस्थान के संस्थापक और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय कार्यवाहक निदेशक तथा केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के निदेशक आदि पदों पर सेवा किया। आपकी मुख्य उपाधियाँ- व्यायाम विशारद् (गुरुकुल), आधुनिक भीम (राष्ट्रपति वी.वी. गिरि), हिन्दु रत्न (हिन्दु फेडरेशन ऑफ कनाडा)।
7. डॉ. सूर्यकान्त जी (वैदिक विद्वान्)
सन् 1919 में स्नातक बने। सन् 1937 ई. में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लंदन से डी-फिल् की उपाधि प्राप्त की। 70 कृतियों के लेखक। ‘वैदिक कोष’ के प्रणेता। डॉ. ए.वी. कालेज, लाहौर, पंजाब विश्वविद्यालय के ओरियन्टल कालेज जालंधर, अलीगढ़ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रोफेसर तथा अध्यक्ष रहे।
8. आचार्य रामावतार शास्त्री जी (संस्कृत विद्वान्)
निवास-ग्राम रतनगढ़ (बिजनौर), गुरूकुल ज्वालापुर के यशस्वी स्नातक, शासकीय पुरस्कार प्राप्त। ‘सिद्धान्तसार’ तथा ‘गीता’ की टीका, श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य के भाष्यकार सन् 1958 में निधन।
9. डॉ. चन्द्रभानु अकिंचन जी (प्रख्यात साहित्यकार)
गुरूकुल के होनहार स्नातक, हिन्दी, संस्कृत , अंग्रेजी के विशिष्ट विद्वान्। पी.जी. कालेज, गुरुकुल म. नि. के पूर्व प्राचार्य, मुख्याधिष्ठाता रहे तथा गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय पूर्व कुलसचिव, आचार्य एवं उपकुलपति (प्रो. वाइस चांसलर) रहे। प्रख्यात साहित्यकार, कवि रहे।
10. डॉ. हरिदत्त शास्त्री जी (संस्कृत विद्वान)
पं. भीमसेन शर्मा (मुख्याध्यापक) के सुपुत्र। वेद, संस्कृत व्याकरण दवं दर्शनशास्त्र के मर्मज्ञ। षोड्शतीर्थ उपाधि प्राप्त। बी.आर. कालेज आगरा एवं डी.ए.वी.कालेज, कानपुर के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष रहे। गुरुकुल के आचार्य, कुलपति आदि सभी पदों पर रहकर वर्षों तक गुरुकुल का उत्थान किया। अनेक ग्रंथों के प्रणेता। सन् 1980 में निधन।
11. आचार्य पं. दिलीपदत्त उपाध्याय जी
पं. भीमसेन शर्मा जी के परम शिष्य, संस्कृत कवि, गुरुकुल के शिक्षक, ‘मुनिचरितामृतम्’महाकाव्य के प्रणेता।
12. डॉ. मंगलदेव शास्त्री जी (वेद एवं संस्कृत के विद्वान्)
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार, वेद, संस्कृत तथा भाषा विज्ञान के सुप्रसिद्ध विद्वान् ऋक्प्रातिशाक्य के कुशल संपादनकत्र्ता।
13. आचार्य लक्ष्मीनारायण चतुर्वेदी जी (संन्यस्तनाम-डॉ. नारायण मुनि चतुर्वेद:) (वैदिक विद्वान्)
गुरुकुल महाविद्यालय में वर्षों तक अध्यापन कार्य किया। व्याकरण, दर्शन, सांख्य आदि के अतिरिक्त आयुर्वेद के विशिष्ट ज्ञाता। सुतिशतक, श्रुतिसुधा, मनप्रसाद आदि के प्रणेता। पं. प्रकाशवीर शास्त्री यश, प्रशस्ति, सांस्कृतिक विचार आदि के प्रणेता।
14. डॉ. सत्यव्रत शास्त्री जी (संस्कृत, धर्मशिक्षा के विद्वान्)
जन्म सन् 1900 में ग्राम ऊमरी, तहसील धामपुर, बिजनौर, उत्तर प्रदेश। गुरुकुल की सेवा की। सन् 1919 में स्नातक हुए। समर्पित भाव से गुरुकुल की सेवा की। उपासना विधि, गायत्री संदेश के लेखक, गुरूकुल में वर्षों तक शिक्षण कार्य किया। 28 अगस्त 1981 में निधन।
15. आचार्य क्षेमचन्द्र ‘सुमन’जी
सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार, कवि एवं लेखक, स्वतंत्रता सेनानी सन् 1984 में ‘पद्मश्री’से सम्मानित, अनेक ग्रंथों के प्रणेता।
16 दिसम्बर 1916 में मेरठ जनपद में जन्म, अब गाजियाबाद की हापुड़, तहसील के बाबूगढ़ नामक गांव में निवास।
गुरुकुल के वर्षों तक प्रधान पद पर सुशोभित रहे, काव्य, समीक्षा, इतिहास, जीवनी, संस्मरण, निबन्ध तथा बाल सहित्य के रचयिता।
16. डॉ. गौरीशंकर आचार्य जी (पूर्व शिक्षामंत्री, राजस्थान)
राजस्थान के पूर्व शिक्षामंत्री। आयुर्वेद, दर्शन तथा ज्योतिष के विशिष्ट विद्वान्। गुरुकुल ज्वालापुर के वर्षों तक प्रधान, कुलपति आदि पदों पर रहे। नि:स्वार्थ भाव से सेवा की।
17. आचार्य उदयवीर शास्त्री जी
जन्म-पौष शुक्ला दशमी, दिन रविवार संवत् 1952 वि., तदनुसार 6 जनवरी सन् 1895 ई. ग्राम बनैल (बुलन्दशहर) सन् 1910 में गुरुकुल ज्वालापुर में प्रविष्ट हुए। और सन् 1917 ई. में स्नातक हुए।
सरादार भगत सिंह के गुरु/ स्वतंत्रता सैनानी, गुरुकुल के आचार्य। पाँच दर्शन शास्त्रों के विद्योदय भाष्य के रूप में विख्यात।
18. श्री ओमप्रकाश शास्त्री जी (शास्त्रार्थ महारथी)
ओजस्वी वक्ता एवं शास्त्रार्थ महारथी रहे। वैदिक सिद्धान्तों के प्रबल पक्षधर रहे। आर्य समाज के प्रमुख कार्यकत्र्ता तथा बालिकाओं की वैदिक शिक्षा के प्रबल समर्थक।
19. डॉ. श्रुतिकांत जी (हिन्दी के विशिष्ट विद्वान्)
जन्म 9 सितम्बर 1922 ई.। एम.ए., पी.एच.डी. हिन्दू कॉलेज मुरादाबाद तथा पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग में हिन्दी प्रवक्ता रहे। आधुनिक हिन्दी व्याकरण, साहित्य और भारतीय देव-भावना और मध्यकालीन हिन्दी साहित्य आदि ग्रंथों के प्रणेता। गुरुकुल ज्वालापुर के कई वर्षों तक मुख्याधिष्ठाता रहे।
20. डॉ. सच्चिदानंद शास्त्री जी (महोपदेशक)
स्वतंत्रता सेनानी, आर्य महोपदेशक तथा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के कई वर्षों तक मंत्री रहे। सार्वदेशिक (दिल्ली), आर्यमित्र (लखनऊ) के सम्पादक रहे। जेल यात्रा भी की। गुरुकुल ज्वालापुर के मुख्य अधिष्ठाता तथा अन्तरंग सदस्य भी रहे।
21. श्री वाचस्पति शास्त्री जी (वैदिक विद्वान्)
वैदिक धर्म व संस्कृत शिक्षा के प्रचारक, यज्ञादि कर्मकाण्ड में दक्ष, वैदिक विद्वान रहे। सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। ब्रह्मचारियों से पुत्रवत् स्नेह।
22. आचार्य भूदेव शास्त्री जी (संस्कृत विद्वान्)
डी.ए.वी. कॉलेज अम्बाला एवं गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के अध्यापक, गूढ़ वक्ता एवं लेखक तथा स्वतंत्रता सेनानी भी रहे। १०२ वर्ष की आयु में निधन।
23. श्री विद्यासागर शास्त्री जी (संस्कृत विद्वान्)
निवास- अल्वर, राजस्थान। संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ विद्वान, संस्कृत भाषा में लेखन कार्य में निपुण एवं शास्त्रों के प्रवचनकत्र्ता।
24. श्री छेदी प्रसाद व्याकरणाचार्य जी
(संस्कृत व्याकरण विद्वान्)
व्याकरण शास्त्र के धुरंधर व शास्त्र मूर्ति थे। गुरुकुल के प्राध्यापक रहे। अनेक व्याकरण शास्त्र के ग्रंथों का प्रणमय किया।
25. आचार्य नन्दकिशोर शास्त्री जी
(वैदिक संस्कृत विद्वान्)
पूर्व आचार्य, मुख्य अधिष्ठाता एवं वर्षों तक आचार्य रहे। प्रसिद्ध शिक्षाविद् रहे। न्यायकुसुमांजली, तर्कभाषा सार आदि रचनाओं के प्रणेता।
26. आचार्य हरिसिंह जी (साहित्याचार्य, संस्कृत विद्वान्)
चार दशकों से भी अधिक गुरुकुल ज्वालापुर की नि:स्वार्थ एवं त्यागपूर्ण सेवा की। आचार्य, संयुक्त मुख्याधिष्ठाता, मुख्याध्यापक, आश्रमाध्यक्ष (छात्रावास) आदि पदों पर रहकर छात्रों का सर्वांगीण विकास कर निर्माण किया। वैदिक सूक्तिसुधा, हरीतिमा (कविता संग्रह) आदि पुस्तकों के प्रणेता।
27. प्रो. वेदप्रकाश शास्त्री जी (संस्कृत के विशिष्ट विद्वान्)
आप गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य एवं कुलपति तथा संस्कृत विभाग के अध्यक्ष एवं प्रोफेसर रहे।
28. स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती जी
(पूर्व नाम- आचार्य धर्मपाल)
आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश के मंत्री, गुरुकुल ततारपुर के प्राचार्य तथा आर्य समाज के विशिष्ट वक्ता, लेखक।
29. आचार्य रामदत्त शास्त्री जी (संस्कृत विद्वान्)
संस्कृत के विशिष्ट विद्वान्, गुरुकुल ज्वालापुर के आचार्य तथा पं. प्रकाशवीर शास्त्री जी के गुरु एवं डी.ए.वी. कॉलेज, अनूपशहर के प्राध्यापक तथा मुख्याधिष्ठाता भी रहे।
लेखक
Related Posts
Latest News
परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य........
01 Mar 2024 15:59:45
निर्भ्रान्त जीवन का मार्ग 1. वैयक्ति, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक व वैश्विक सन्दर्भों में हमारी बहुत प्रकार की भ्रान्तियां, संशय, उलझन,...