हाल के वर्षों में, दुनिया में उच्च रक्तचाप और मधुमेह या डायबिटीज़ जैसे मेटाबोलिक डिसऑर्डर विकारों के प्रसार में नाटकीय वृद्धि देखी गई है। बदलती जीवनशैली और बढ़ती आबादी कि वजह से इन बीमारियों ने पूरे विश्व में अपनी जड़े जमा ली हैं, और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में अनुमानित 53.7 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, यह संख्या 2045 तक 78.0 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान है। 140 करोड़ की घनी आबादी वाले भारत में, लगभग 11% वयस्क इस समस्या से जूझ रहे हैं, और लगभग 15% आबादी प्री-डायबिटिक स्टेज तक पहुंच चुकी है। चिंताजनक रूप से, भारत और विश्व स्तर पर, 50% व्यक्ति इस स्वास्थ्य समस्या और आने वाले समय में इससे होने वाले भयंकर दुष्परिणामों से अनजान हैं।
आज, पूरे विश्व के लिए डायबिटीज़ एक चिंताजनक और अति महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौती है। वर्ष 2021 में, मधुमेह से संबंधित स्वास्थ्य देखभाल पर लगभग 966 अरब अमेरिकी डॉलर का चौंका देने वाला खर्च किया गया, वह भी तब, जब इससे प्रभावित हर चार में से तीन व्यक्ति निम्न-आय समूह में आते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, इस संकट से निपटने के लिए वैकल्पिक उपचारों का पता लगाना जरूरी है जो पारंपरिक चिकित्सा के पूरक साबित हों।
मधुमेह : प्रकार और जटिलताएँ
मधुमेह या डायबिटीज़, जिसे अक्सर (शुगर) कहा जाता है, के दो प्रकार हैं : टाइप-1 और टाइप-2।
टाइप-1 मधुमेह में, प्रतिरक्षण प्रणाली गलती से अग्न्याशय (Pancreas) में इंसुलिन-उत्पादक आइलेट कोशिकाओं पर हमला करती है और उन्हें नष्ट कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप इंसुलिन उत्पादन बंद हो जाता है। यह स्थिति वैश्विक स्तर पर लगभग 10 मिलियन बच्चों और युवाओं को प्रभावित करती है और अनुवांशिकी, वायरल संक्रमण, आहार या रासायनिक कारणों जैसे मुख्य कारकों से उत्पन्न होती है।
दूसरी ओर, अग्न्याशय द्वारा अपर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने पर या शरीर द्वारा इंसुलिन के प्रभावों के प्रति प्रतिरोधी हो जाने पर टाइप 2 मधुमेह की समस्या उत्पन्न होती है। इसका मतलब है कि इंसुलिन शरीर में मौजूद तो है, लेकिन शरीर द्वारा इसका प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया जा रहा है। टाइप 2 मधुमेह अक्सर मोटापे, खराब खान-पान और गतिहीन जीवन शैली के कारण होता है।
मधुमेह से जुड़ी जटिलताएँ असंख्य और गंभीर हैं। इनमें गुर्दे की समस्या, नेत्र विकार, तंत्रिका संबंधी समस्याएं और सूजन, थकान, बार-बार प्यास लगना, घाव भरने में देरी, मूत्र पथ में संक्रमण, प्रतिरक्षण क्षमताओं में कमी, भूख न लगना, अपच और दस्त जैसे कई लक्षण शामिल हैं। मधुमेह के रोगियों में वजन कम होना भी एक आम बात है। इसके अलावा, अनियंत्रित डायबिटीज़ से पीड़ित व्यक्तियों में फ्रोजन शोल्डर और गैंग्रीन जैसी जटिलताएं भी विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, जिन्हें एलोपैथिक दवाओं से आंशिक रूप से कम किया जा सकता है।
एलोपैथिक चिकित्सा की भूमिका
एलोपैथिक चिकित्सा के अंतर्गत मधुमेह के लिए आमतौर पर इंसुलिन, मेटफॉर्मिन, ग्लीपीजाइड और सीटाग्लिप्टिन जैसी दवाओं का उपयोग किया जाता है। इन दवाओं का लक्ष्य रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना और मधुमेह से जुड़े लक्षणों का प्रबंधन करना है। हालाँकि, इन एलोपैथिक दवाओं के लंबे समय तक उपयोग से कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं, जैसे बार-बार खुराक बदलना। इसके अलावा, इन दवाओं के लगातार सेवन से कैंसर, दिल के दौरे, स्ट्रोक और गुर्दे, लीवर और धमनियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिससे अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
डायबिटीज़ के लिए एक आयुर्वेदिक समाधान : 'मधुग्रिट'
मधुग्रिट टैबलेट 29 प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और खनिजों के मिश्रण से बनी हैं, जिनमें चंद्रप्रभा वटी, शिलाजीत, गिलोय, इंद्रायण, करेला, चिरायता, शतावर, अश्वगंधा आदि शामिल हैं। यह अनूठा संयोजन रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करके, मधुमेह से संबंधित लक्षणों जैसे थकान, अनिद्रा, तनाव, अत्यधिक प्यास लगना, वजन घटना, धुंधली नज़र और त्वचा सम्बन्धी समस्याओं को कम करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त, यह ऊर्जा के स्तर और प्रतिरक्षण प्रणाली को बढ़ाता है और अतिरिक्त ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित करने में सहायता करता है।
मधुग्रिट की उपयोगिता को प्रमाणित करने के उद्देश्य से एमाइलेज स्राव (स्टार्च को तोड़ने वाला एंजाइम), ग्लूकोज नियंत्रण और सूजन जैसे महत्वपूर्ण मापदंडों को ध्यान में रखते हुए प्री-क्लीनिकल परीक्षण शुरू किए गए। इस शोध के लिए चूहे के अग्न्याशय की एक्सोक्राइन कोशिकाएं, चूहों की मांसपेशी की कोशिकाएं, मानव मैक्रोफेज कोशिकाएं (White Blood Cell) और त्वचा की कोशिकाओं को चुना गया। स्टार्च पाचन में शामिल एक प्रमुख एंजाइम एमाइलेज स्राव ने इन अध्ययनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, शोध का उद्देश्य मैक्रोफेज (White Blood Cell) और केराटिनोसाइट्स (Skin Cell) का अध्ययन करके यह समझना था कि मधुग्रिट सहित विभिन्न दवाएं, सूजन और घाव भरने में कैसे प्रभावी हैं।
इन अध्ययनों के निष्कर्षों से मधुमेह प्रबंधन में मधुग्रिट की आश्चर्यजनक क्षमता का पता चला। इसने विभिन्न प्री-क्लीनिकल शोधों के अंतर्गत मेटफॉर्मिन जैसी एलोपैथिक दवा को पीछे छोड़ते हुए असाधारण परिणाम दिखाए। यह अल्फा-एमाइलेज़ (α-Amylase) स्राव को कम करने, ऐज (Advanced Glycation End Products) घटकों के गठन को रोकने, जिसके बढ़ने से किडनी, दिल आदि की समस्या साथ ही सूजन जैसी समस्याएं हो जाती है और घाव भरने की प्रक्रिया को सामान्य में उपयोगी पाई गई।
मधुग्रिट की प्रभावशीलता को और अधिक प्रमाणित करने के लिए, 'इन वीवो' मॉडल का प्रयोग किया गया जिसमें सी. एलिगेंस (एक प्रकार का पारदर्शी केंचुआ) का उपयोग किया गया। यह बहुकोशिकीय यूकेरियोटिक जीव (Multicellular Eukaryotic Organism) मानव विकास के बुनियादी आनुवंशिक और आणविक तंत्र का अध्ययन करने के लिए और 21 दिनों के अपने छोटे जीवनचक्र के कारण एक आदर्श 'मॉडल जीव' है। उच्च-ग्लूकोज वातावरण के संपर्क में आने पर, इन जीवो पर वसा जमा हो जाती है और ये घुमावदार (Curling) होने लगते हैं।
शोध का उद्देश्य यह निर्धारित करना था कि मधुग्रिट टैबलेट इन जीवों को कैसे प्रभावित करती है। व्यापक अध्ययन के बाद, यह निष्कर्ष निकाला गया कि मधुग्रिट वास्तव में मधुमेह की रोकथाम के लिए एक प्रभावी आयुर्वेदिक औषधि है और इसमें ऐसे गुण हैं जो मधुमेह रोगियों को बहुत लाभ पहुंचा सकते हैं। यह शरीर में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है और मधुमेह के कारण होने वाली अन्य बिमारियों, जैसे- किडनी रोग और हृदय संबंधी समस्याओं को भी रोकने में असरदार है।
इसके अलावा, क्लिनिकल परीक्षणों के द्वारा भी मधुग्रिट की प्रमाणिकता को सिद्ध किया जा रहा है। हाल ही में 150 रोगियों पर किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि यह रक्त ग्लूकोज मापदंडों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
यह सभी साक्ष्य मधुमेह कि रोकथाम के लिए मधुग्रिट को पूरक या वैकल्पिक दवा के रूप में मानने के मामले को मजबूती प्रदान करते हैं।
मधुमेह प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता
वैश्विक महामारी मधुमेह एक जटिल और बहुआयामी स्वास्थ्य चुनौती है जिसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की ही आवश्यकता है। एलोपैथिक चिकित्सा दशकों से मधुमेह प्रबंधन की आधारशिला रही है, लेकिन इससे जुड़ी सीमाओं और संभावित खतरों ने वैकल्पिक उपचारों की जरुरत में रुचि बढ़ा दी है।
एलोपैथिक दवाइयों से होने वाले दीर्घकालिक नुकसान से बचने के लिए अब समय आ गया है कि हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स अल्टेरनेट मेडिसिन पद्धति को भी बीमारी के प्रबंधन में शामिल करें।
मधुग्रिट विभिन्न शोधों के दौरान मधुमेह की रोकथाम में एक प्रभावी आयुर्वेदिक दवाई के रूप में सामने आई है। शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने, लक्षणों को कम करने और जटिलताओं को कम करने की इसकी क्षमता मधुमेह से प्रभावित लाखों व्यक्तियों को आशा प्रदान कर रही है।
जैसे-जैसे इस क्षेत्र में नित नए शोध हो रहे हैं, यह स्पष्ट है कि आयुर्वेद का प्राचीन ज्ञान मधुमेह के खिलाफ आधुनिक लड़ाई में एक मूल्यवान भूमिका निभा रहा है, जो इस भयावह बीमारी से ग्रसित लोगों को नई आशा और समाधान प्रदान कर रहा है।