‘नारी’समाज की आदर्श शिल्पकार

‘नारी’समाज की आदर्श शिल्पकार

वंदना बरनवाल

राज्य प्रभारी-महिला पतंजलि योग समिति, .प्र.(मध्य)

     अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्रतिमा स्थापित हो चुकी है और राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह भी संपन्न हो चुका है, इस दौरान हम सबने मैसूर के शिल्पकार अरुण योगीराज का नाम खूब सुना, क्योंकि रामलला की जिस मूर्ति की प्रतिस्थापना हुई उसके शिल्पकार अरुण योगीराज ही हैं जिनकी रगों में हथौड़े और छेनी की लय दौड़ती है। ऐसी ही विशेषता होती है एक शिल्पकार में जिसकी साधना और कुशलता पत्थर से भगवान की प्रतिमा तैयार कर देती है। भारत की प्रत्येक नारी भी एक ऐसी ही शिल्पकार है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आइये! भारत की ऐसी ही शिल्पकार को नमन करें। 
कुशल शिल्पकार है नारी
शिल्पकार अर्थात् एक बहुआयामी भूमिका का निर्वहन करने वाला असीमित क्षमताओं वाला व्यक्तित्व, एक ऐसा व्यक्ति जिसे यदि केवल एक श्रमिक के रूप में या केवल एक निर्माता के रूप में मत देखिये क्योंकि यदि कोई ऐसा करते हैं तो उसके लिए यही कहना उचित होगा कि उसे ना तो शिल्प की समझ है और ना ही शिल्पकारी की। अयोध्या धाम जाकर ना सही टीवी पर ही सही, प्रभु श्रीरामलला की मूर्ति के दर्शन सभी ने किये होंगे, क्या लगता है शिल्पकार कौन होता है? दरअसल एक वास्तविक शिल्पकार केवल श्रमिक या केवल निर्माता ही नहीं होता वरन जब वह अपने शिल्प को गढऩे की शुरुआत करता है तब से लेकर अंत तक अपने शिल्प के अभिकल्प से लेकर सर्जक और अन्वेषक से लेकर गढऩे में आने वाली समस्याओं को हल करने वाली प्रत्येक भूमिका भी वही निभाता है, इसीलिए नारी को भी समाज की आदर्श शिल्पकार कहना उचित होगा। नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति, अपनी कई भूमिकाओं के साथ ही जिस प्रकार शिल्पकार एक समस्या समाधानकर्ता के रूप में भी कुशल भूमिका निभाता है। परिवार एवं समाज के निर्माण में एक नारी की भूमिका भी कुछ वैसी ही होती है, एक बेहतरीन शिल्पी की तरह ही भारतीय नारी भी स्वभाव से अडिग और कर्तव्यनिष्ठ ही नहीं होती अपितु उसके स्वभाव में प्रेम, त्याग, करुणा धैर्य आत्मविश्वास, समर्पण जैसे अनेकों गुणों का सम्मिश्रण होता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण भारतीय समाज में हमेशा से नारी को परिवार एवं समाज की केंद्र बिंदु में रखा जाता रहा है जिसके बिना परिवार और समाज दोनों का ही विकास अधूरा रहता है।
भारतीय संस्कृति में विशेष सम्मान
जिस प्रकार नर्तक के बिना नृत्य और गायक के बिना गायन संभव नहीं है, उसी प्रकार इस ब्रह्मांड का सृजन सृजनकर्ता के बिना नहीं हो सकता है। ईश्वर ब्रह्मांड का सृजनकर्ता है लेकिन पृथ्वी पर तो एक नारी ही जीवन के सृजन में सक्षम है। हमारे पूर्वज इस तथ्य को भली-भांति समझते थे इसीलिए उन्होंने स्त्री को देवी का रूप दिया। अनादि काल से ही भारत की नारियां मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। हमेशा से ही वे ऊर्जा से भरी हुई, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम रही हैं। भारतीय संस्कृति में नारी का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि धरती और विशेष रूप से भारत को माता के रूप में पूजा जाता है। हमारा देश तो वैसे भी एक सम्पन्न परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश रहा है जहां नारी को केवल प्रमुख स्थान ही नहीं दिया गया बल्कि उसे सम्मान के साथ कभी जगत का पालन करने वाली मां दुर्गा कहा गया तो कभी विश्व कल्याण की प्रणेता और दुष्टों का संहार करने वाली अधिष्ठात्री देवी माना गया।या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: देवी की शक्तियों को नमन करता यह श्लोक भारत की सशक्त नारियों को ही तो प्रतिबिंबित करता है। जिस प्रकार से मां दुर्गा दृढ़ हैं तो शांत भी हैं, वीर हैं तो संघर्षशील और संहारक भी हैं, यदि उनमें सृजनात्मक शक्ति है तो ज्ञान विवेक से बुराइयों पर जीत पा लेने का दम भी है उसी प्रकार भारत की प्रत्येक नारी भी इन शक्तियों और गुणों की खान है। 
शक्ति स्वरूपा नारी
भारतीय संस्कृति में सदैव से यह मान्यता रही है कि नारी में इतनी शक्ति है कि यदि उसे पहचान लें और जीवन में उतार ले तो शक्ति स्वरूप बन सकती है। समय और काल के अनुसार जब जैसी आवश्यकता हुई उसने अपने रूप और तेवर को दिखलाया भी। इतिहास की बात करें या फिर वर्तमान की, आधुनिक भारतीय समाज में महिलाओं का योगदान हमेशा से अतुलनीय और गहरा रहा है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर अब तक अनेकों भारतीय नारियों ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के कई उदाहरण स्थापित किए हैं। शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की, नौ शक्तियां केवल धार्मिक मान्यता भर नहीं हैं बल्कि ये शक्तियां प्रत्येक भारतीय नारी में जन्म से ही पाई जाती हैं। राजनीति से लेकर शिक्षा तक, व्यवसाय से लेकर सामाजिक सेवाओं तक, कला और संस्कृति से लेकर खेल तक, एयरोस्पेस से लेकर पत्रकारिता और मीडिया तक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर साहित्य तक, मनोरंजन का क्षेत्र हो या फिर आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व की बात हो, उद्यमिता, सामाजिक सक्रियता हर ओर वे अपना योगदान दे रही हैं। हर क्षेत्र में उनका असर उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प उनकी उल्लेखनीय ताकत और लचीलेपन का प्रमाण है। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए जिस खूबी के साथ वे नित नयी उपलब्धियों में स्वयं को स्थापित करती जा रही हैं, वह यही साबित करता है कि नारी सचमुच नारायणी ही है।
नारी कलम है, दवात है, स्याही है,
नारी परमात्मा की स्वयं एक गवाही है।
जन्मजात है नेतृत्व गुण
भारतीय की महिलाओं ने भारतीय समाज में मूल्यों और नैतिकता को स्वरूप देने में हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भी अवसर मिला उन्होंने सिद्ध किया कि वे हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर नहीं बल्कि पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। यह कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं है पर ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके भीतर नेतृत्व का जन्मजात गुण होता है। महिलाओं का यही जन्मजात नेतृत्व का गुण समाज के लिए संपत्ति है, इसीलिए महिला पतंजलि योग समिति की नारी शक्ति ने भी अपनी क्षमताओं को केंद्र में रखकर हर घर योग पहुँचाने के संकल्प के साथ भारतीय मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास अग्रिम पंक्ति में रहकर किया है। आज देखते-देखते अनेक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ चुकी है पर पारिवारिक दायित्व के कारणों से महिलाओं के लिए चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। होम मेकर महिलाओं के लिए योग कक्षाओं के संचाालन तक तो कोई समस्या नहीं आती, परन्तु अन्य कामकाजी महिलाओं को ऑफिस के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है। ऐसे में परिवार के लोगों को इस सोच को थोड़ा परिवर्तित करना होगा कि बच्चों और घर की जिम्मेदारी केवल महिलाओं की है। यदि महिलाओं के नेतृत्व के गुणों को और उभारना है तो इसके लिए उन्हें परिवार से इस सहयोग की जरुरत है। यह छोटा सा प्रयास परिवार, समाज और राष्ट्र को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगा।
रोशनी भी रौशनी की लौ भी
राष्ट्र के निर्माण और समाज को गढऩे में महिलाओं की अहम भूमिका की कभी भी अनदेखी नहीं की जा सकती है। आजादी के समय से लेकर आज तक समाज राष्ट्र के नव निर्माण में महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सक्रिय सहभागिता निभाते हुए खुद को साबित किया है। विश्व के प्रत्येक भूभाग पर समाज और राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका अद्वितीय रही है। इस हेतु नारी शक्ति ने स्वयं का श्रेष्ठतम देश-दुनियां को दिया। वात्सल्य, स्नेह, करुणा, त्याग और तपस्या सदा से ही नारी के आभूषण रहे हैं। यह नारी शक्ति ही है जो घनघोर अंधकार में भी अपनी मुस्कान बिखेरकर उजाला करती है। भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता और राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर ने शायद इसे ही पहचानकर लिखा होगा कि हमारे लिए महिलाएं केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं। टैगोर की इस बात को बस समझने और समझाने की जरुरत है क्योंकि एक महिला जब बच्चों का पालन-पोषण करती हैं, उन्हें संस्कारवान बनाती है तभी तो वो बच्चे देश के कर्णधार बनते हैं, ऐसे में समझा जा सकता है कि राष्ट्र को रोशन करने के लिए एक महिला की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
सशक्त नारी सशक्त राष्ट्र
किसी भी राष्ट्र या संगठन के विकास एवं निर्माण के लिए स्त्री एवं पुरुष दोनों की ही सहभागिता अनिवार्य होती है, परन्तु पितृसत्तात्मक रवैये और पुरुष प्रधान समाज के कारण आज भी महिलाओं को अपने अस्तित्व को बचाने से लेकर किसी भी प्रकार का निर्णय लेने के लिए संघर्ष का सामना करना पड़ता है। किसी ने सही कहा है, सदियाँ बदली, युग बदला लेकिन नहीं बदली तो मानसिकता समाज की। एक महिला के कन्धों पर आने वाली पीढिय़ों का भविष्य और दो परिवारों की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में जब महिलाएं सबल एवं सशक्त होंगी तभी परिवार, क्षेत्र, गाँव, शहर और राष्ट्र प्रगति के पथ पर अग्रसर हो पाएंगे। यह कोई सतयुग नहीं इसलिए समाज ही नहीं अपितु विश्व की कोई भी सभ्यता सर्वोत्तम या निष्कलंक नहीं हो सकती, फिर भी आशान्वित रहिये कि भारत की नारी ऐसी सभी समस्याओं के समाधान में हमेशा अग्रणी रहेंगी क्योंकि जिस प्रकार से हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का योगदान माना गया है उसी प्रकार से सफल राष्ट्र के पीछे राष्ट्र की नारी शक्ति का योगदान होता है।
दिव्य आध्यात्मिक नेतृत्व
भारत में महिलाओं ने अनेकों बाधाओं को तोडक़र और प्रमुख पदों पर रहकर आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देने में सहायक रही हैं और महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने कार्यों से हमेशा प्रेरित करती रही हैं। महिला पतंजलि योग समिति की मुख्य केन्द्रीय प्रभारी और हम सबकी मार्गदर्शिका श्रद्धेय डॉ. साध्वी देवप्रिया जी का ही उदाहरण लीजिये। आज वे एक प्रमुख आध्यात्मिक गुरु और परोपकारी, प्रेम, करुणा और निस्वार्थता पर अपनी शिक्षाओं के लिए जानी जाती हैं। अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्पूर्ण भारत में हजारों नहीं बल्कि लाखों लोगों को वे आज प्रेरित कर रही हैं। उनके दिव्य मार्गदर्शन में देशभर में महिला पतंजलि योग समिति की हजारों बहनें ना केवल ज्ञानवान ही बन रही हैं बल्कि उनकी उपस्थिति से उर्जावान और सामथ्र्यवान भी बन रही हैं।
जिन्दगी जीने का कोई तजुर्बा नहीं, पर ऐसा नहीं कि हममें हौसला नहीं,
देखे हैं जो सपने हमने, उनको तो पूरा करना होगा,
सूरज चाहे बनें ना बनें, उजियारा फैलाना होगा,
स्वयं बनाये पथ पर आगे तो बढऩा ही होगा।।
योग ने बढ़ाई सामाजिक सक्रियता
हम सभी जिस संस्कृति से जुड़े हैं उसमें हम मानते हैं कि स्त्री देवी का रूप है, उसके पास शक्ति है और वह परिवार के हर सदस्य को संभालती है। महिला पतंजलि योग समिति से जुडऩे के पश्चात आज मैं जैसे-जैसे लोगों से जुड़ी, अपनी संस्कृति के पास गई, पूज्या दीदी के मार्गदर्शन में वेद पाठ किये, तब मैंने भी महसूस किया कि सच में स्त्री से ज्यादा मजबूत कोई नहीं। समिति से जुड़ी सैकड़ों घरेलू महिलाओं खासतौर पर योग शिक्षिकाओं ने लोगों के स्वास्थ्य ही नहीं अपितु उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक और कई अन्य सामाजिक दोषों के निवारण के लिए अपनी सक्रियता से मेरी इस सोच पर और भी सार्थक प्रभाव डाला, उन्होंने महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपनी आवाज़ और समिति के मंच का उपयोग करते हुए अपने आसपास परिवर्तन और प्रगति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बैठकों के दौरान जब भी उनसे वार्ता होती है तो ज्यादातर बहनों के कथन यही होते हैं कि योग सीखकर सिखाने के लिए जब घर से बाहर निकलकर उन्होंने संसार देखा तो आत्मसंतुष्टि के साथ आत्मसंबल भी मिला। सबने यही माना कि हर घर योग पहुँचाने के पूज्य स्वामी जी के आह्वान पर शुरुआत में वो भले ही अकेली घर से निकलीं पर आज उनसे अनेकों लोग जुड़ चुके हैं। योग कक्षा का संचाालन करते हुए आज जिस पड़ाव पर वे पहुँचीं हैं उन्हें ऐसा महसूस होता है कि अब तो बड़े से बड़े कार्य के लिए भी उन्हें किसी सहारे की जरूरत नहीं।
महिलाओं में नेतृत्व की भावना
जब भी बात नारी सशक्तिकरण की होती है तब हमारे समाज में उन महिलाओं का उदाहरण दिया जाता है जिन्होंने किसी भी क्षेत्र में महान उपलब्धि हासिल की हो, लेकिन सही मायनों में यह तब सार्थक है जब यह आधी आबादी अपने घरों से निकलकर अपनी जिन्दगी के निर्णय स्वयं लेने में सक्षम होंगी। किसी समाज या देश का नेतृत्व उसकी दिशा को तय करता है। इसलिए महिलाओं को स्वयं के अस्तित्व को प्रकाश में लाना होगा, स्वयं को जागरूक बनाना होगा, समाज में बदलाव लाने के पहले स्वयं उस बदलाव को मजबूत करना होगा। यह तभी संभव है जब उनमें आत्मविश्वास और नेतृत्व की भावना पैदा की जाये और महिला पतंजलि योग समिति से जुडऩे के बाद से मेरा अनुभव तो यही कहता है कि योग कक्षाओं का संचालन करने के लिए जब एक महिला योग शिक्षिका भोर के पांच बजे अपने घर परिवार की जिम्मेदारी को पूर्ण कर परम पूज्य गुरुवर द्वारा सिखाये गए योग के सूरज की रोशनी से सबको रोशन करने के लिए निकलती है तब उसमें वही आत्मविश्वास और नेतृत्व की भावना जागृत रहती है जिसकी चर्चा नारी सशक्तिकरण के लिए की जाती है।    
अंत में ऐसी समस्त योग शिक्षिकाएं जो परम पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद एवं श्रद्धेया डॉ. साध्वी देवप्रिया जी के मार्गदर्शन में अपने घर, परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिन योग की नि:शुल्क कक्षाएं चला रही हैं और अपने सद्कर्म से परिवार और राष्ट्र का नाम रोशन कर रही हैं, सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर शत् शत् नमन।
नारी तू नारायणी, कभी माने हार,
तेरी साहस से होती रहे हमेशा तेरी जय जयकार।

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