परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य........
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निर्भ्रान्त जीवन का मार्ग
1. वैयक्ति, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक व वैश्विक सन्दर्भों में हमारी बहुत प्रकार की भ्रान्तियां, संशय, उलझन, कन्फ्यूजन्स या अर्निर्जय की स्थितियां होती हैं। शिक्षा चिकित्सा से लेकर कृषि, उद्यमिता, सेवा क्षेत्र, व्यापार एवं व्यवहार के विभिन्न पहलुओं को लेकर अधिकांश व्यक्ति भ्रम के शिकार होते हैं। आहार, विचार, वाणी से लेकर हिंसा-अहिंसा, सच-झूठ, सही-गलत, न्याय-अन्याय, कर्तव्य-अकर्तव्य, धर्म-अधर्म को लेकर अधिकांश लोग भ्रम के शिकार होते हैं।
इसलिए गुरुशास्त्र, तर्कतथ्य युक्तिप्रमाण अनुभव एवं प्रामाणिक आप्त पुरुषों, बड़ों के वचनों अनुभूतियों व निष्कर्षों को सदा सम्मुख रखकर महाजनोयेनगता सपंथा का अनुसरण करते हुए हमें निर्भ्रान्त रहना चाहिए तथा सौ प्रतिशत भ्रम, भय भ्रान्ति व अशान्ति से मुक्त जीवन जीना चाहिए, भ्रान्ति हमारे जीवन की शान्ति को हर लेती हैं।
2. इस्लाम, ईसायत व काम्युनिज़म आदि को फोलो करने वाले अधिकांश लोगों को मैंने देखा है मात्र विश्वास केवल पर सैकिंड थोट या विकल्प से मुक्त रहते हैं यहाँ तक कि कई सन्दर्भों में युक्तिसंगत तथ्यों से भी पूर्णत: विमुख रहते हैं। हम सनातन धर्मियों को अपने पूर्वजों की महान विरासत पर पूर्ण गौरव विश्वास व उसमें पूर्ण दृढ़ता, प्रतिबद्धता विश्वास रखकर जीवन व जगत् के सभी भौतिक, व्यवहारिक व पारमार्थिक तथ्यों, सत्यों व तत्वों के संदर्भ में निभ्रांत रहकर अपना सर्वस्व आहूत करके अपने स्वधर्म के निर्वहन में अखंड-प्रचण्ड पुरुषार्थ करते हुए ध्येेय की सिद्धि करनी चाहिए।
3. भ्रम या भ्रान्ति की स्थिति में रहने से हम पूर्ण उत्साह शौर्य, वीरता, पराक्रम में रहकर अपने कार्यों का निष्पादन नहीं कर पाते। परिणामत: हम जीवन के किसी भी क्षेत्र या संदर्भ में पूर्ण विजय प्राप्त नहीं कर सकते। जीवन में विजय, सफलता या किसी भी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति या सिद्धि हेतु 100% विवेकशीलता, 100% विश्वास एवं 100% पुरुषार्थ व पराक्रम की अपेक्षा होती है।
4. मुझे योग, आयुर्वेद स्वदेशी, शिक्षा, चिकित्सा, अनुसंधान, व्यक्ति निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण आदि कार्यों, सेवाओं या इन वैश्विक लक्ष्यों को लेकर रत्ती भर की कोई भ्रान्ति नहीं है। मुझे अपने सनातन धर्म समस्त दिव्य वैज्ञानिक सार्वभौमिक महान् परम्पराओं को लेकर एक क्षण के लिए भी संशय, उलझन या अविश्वास नहीं है इसीलिए मैं पूर्ण विश्वास विकल्प रहित संकल्प व अंखड प्रचंड पुरुषार्थ के साथ अपने संन्यास धर्म, सनातन धर्म व राष्ट्रधर्म के साथ युगधर्म के निर्वहन में पूर्ण प्रतिबद्ध रहता हूँ।
मैं सभी ऋषि-ऋषिकाओं, सभी गुरुओं एवं भारत के महान वीर-वीरागंनाओं के प्रति समान रूप से पूर्ण श्रद्धा रखते हुए सभी महापुरुषों के सपनों का भारत बनाने एवं वेद भगवान् के विधान के अनुसार कृष्वन्तोविश्वार्मयम् के उद्घोष को पूर्ण करने हेतु 100% संकल्पित हूँ।
5. अन्त में सभी आर्याव्रतवासियों से यही अपेक्षा रखता हूँ कि हम स्वधर्म, स्वकर्म एवं सनातन धर्म को रोम-रोम से जीयें। सनातन धर्म को पूर्ण प्रामाणिकता से जीने वाला एक भी व्यक्ति जब तक इस ब्रह्माण्ड में रहेगा तब तक पूरी दुनियां सारी आसुरी शक्तियां हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकती।
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