क्या आप भी हैं जोड़ो के दर्द से परेशान?

ऑर्थोग्रिट पर पतंजलि के वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च

क्या आप भी हैं जोड़ो के दर्द से परेशान?

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

   बढ़ती उम्र के साथ घुटनों, जोड़ों में दर्द होना आम बात है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 528 मिलियन लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं, जोकि वर्ष 1990 की पिछली रिपोर्ट से 113% अधिक है, उनमें भी 73% लोग 55 साल से अधिक उम्र के हैं जिसमें महिलाओं की संख्या लगभग 60% है। भारत में भी लगभग 20-22% लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। जैसे-जैसे पूरी दुनिया में बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे ही इसकी भयावहता भी बढ़ रही है और वर्तमान में विश्व भर में लगभग 377 मिलियन लोग इस भयंकर बीमारी के गंभीर परिणामों को भुगत रहे हैं। इस बीमारी में घुटने सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले जोड़ हैं उसके बाद कूल्हों और हाथों की बारी आती है।
लक्षण और संरचना
ज्यादातर लोग जोड़ों में होने वाले दर्द के चिकित्सकीय नामों से अनभिज्ञ हैं और इससे जुड़ी विभिन्न प्रकार की बीमारियों में अंतर नहीं समझ पाते हैं। ऑस्टिओपोरोसिस (Osteoporosis), रूमेटाइडऑर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और ऑस्टिओऑर्थराइटिस (Osteoarthritis) हड्डियों से सम्बंधित तीन बड़ी बीमारियाँ हैं। स्वस्थ्य घुटनों की हड्डियों के बीच में एक जेल जैसा द्रव्य होता है, जिसे साइनोवियल फ्लूइड कहते हैं, यह जोड़ों की हड्डियों को एक दूसरे से रगड़ने से बचाव करता है। ऑस्टिओपोरोसिस के दौरान बोन डेंसिटी कम हो जाती है, रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के दौरान साइनोवियल फ्लूइड मेम्ब्रेन के आसपास सूजन जाती है। यह एक ऑटोइम्यून डिसीज़ है। वहीं ऑस्टिओऑर्थराइटिस में जोड़ों की हड्डियों के किनारे खराब होने लगते हैं, वह स्पाइकी हो जाती हैं और कई बार उभरी-उभरी भी दिखती हैं। इस वजह से हड्डियां घिसने लगती हैं और जोड़ों में दर्द रहने लगता है।
ऑस्टिओऑर्थराइटिस में घुटनों के बीच में घिसाव शुरू हो जाता है, जिससे दर्द होता है। यह हड्डियों को खराब करने के साथ-साथ कार्टिलेज पर भी प्रभाव डालता है। कार्टिलेज में एक प्रकार के कोलेजन या प्रोटीन फाइबर होते हैं जो हड्डियों के बीच में गद्देदार सतह की तरह कार्य करते हैं। इन कार्टिलेज के नीचे कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें कोन्ड्रियोसाइट्स कहते हैं। यह कोशिकाएं कार्टिलेज को बनाती हैं जिनकी मदद से हड्डी के ऊपर सॉफ्ट लेयरिंग आती है। कार्टिलेज के ऊपर अलग टाइप के कंपाउंड और स्ट्रक्चर होते हैं जिनको प्रोटोग्लाइकन्स कहते हैं, यह पंख जैसे होते हैं और पूरे टिश्यू को सॉफ्टनेस देते हैं। इन कोशिकाओं के बीच में किसी भी प्रकार की दिक्कत आने पर इनमें सूजन आने लगती है। जब कोन्ड्रियोसाइट्स पर सूजन आती है और उनका आकार बढ़ जाता है तो उसे हाइपरट्रॉफिक आर्टिकुलर कोन्ड्रियोसाइट्स कहते हैं।
मॉडर्न चिकित्सकीय कार्यप्रणाली
मॉडर्न चिकित्सा पद्धति में ऑस्टिओऑर्थराइटिस की जांच के दौरान प्रभावित जोड़ का लचीलापन, कोमलता, सूजन को ऊपरी तौर से देख कर, एक्स-रे या कुछ जटिल रोगों में एमआरआई की सलाह दी जाती है। तत्पश्चात, स्टेरॉयड युक्त दर्द निवारक दवाइयां दी जाती हैं, जिनके अपने साइड इफेक्ट्स हैं। अधिक दर्द की स्थिति में जोड़ों के बीच में इंजेक्शन भी दिए जाते हैं। एलोपैथिक में इसका इलाज, दवाइयां और आखिर में सर्जरी है। कुछ उन्नत तकनीकों जैसे लेज़र गाइडेड तकनीक से उन कोशिकाओं को ही समाप्त कर दिया जाता है जिसके वजह से यह बीमारी उत्पन्न हुई है। 
आयुर्वेद दर्शन
इस भयंकर बीमारी से ग्रसित लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए एक ऐसी औषधि बनाने की कोशिश की गई जिसका कोई साइड इफ़ेक्ट हो। परिणामस्वरूप, प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों को आधार बनाकर ऑर्थोग्रिट का निर्माण किया गया। यह 32 जड़ी बूटियों का मिश्रण है जिसमें प्रमुख है - वाचा, मोठ, देवदार, हल्दी, दारूहल्दी, पिप्पलमूल, चित्रक, निशोथ, दांती, तेजपत्र, दालचीनी, इलाइची, धनिया, हरड़, चिरायता, बहेड़ा, अमला, गजपीपल, सोंठ, मारीच, पिप्पली, पुनर्नवा, निर्गुन्डी, अश्वगंधा, गिलोय, हथजोड़, गुग्गुलु, मुक्ता शुक्ति भस्म, शुद्ध शिलाजीत, मंडूक और लौह भस्म। यह औषधि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ों को रेजुविनेट करने में सहायक है, साथ ही इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है। 
शोध एवं निष्कर्ष
तत्पश्चात, आयुर्वेद के ज्ञान को प्रमाणित करने एवं साक्ष्य एकत्रित करने के लिए, मॉडर्न तकनीकों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के शोध किये गए। सबसे पहले तो एचपीएलसी तकनीक के माध्यम से ऑर्थोग्रिट में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के फाइटोकेमिकल कंपाउंड्स को देखा गया, जो यह सुनिश्चित कर रहा था कि इसमें फाइटो स्टेरॉइड्स हैं, जो जोड़ों के दर्द में राहत प्रदान करते हैं। 
इन - विट्रो परिक्षण
उसके बाद, इंसानों के घुटनों के बीच की कोशिकाओं/ कॉन्ड्रियोसाइट्स को प्रयोगशाला में उन्नत किया गया, और शोध को आगे बढ़ाते हुए 3डी बायोलॉजी तकनीक के अंतर्गत एक बॉलनुमा कोशिकाओं की आकृति बनाई गई, जिसमें लगभग 10,000 कोशिकाएं थी। यह बॉलनुमा कोशिकाओं की आकृति लगभग 15 दिन तक स्थिर रह सकती है, अर्थात इस आकृति पर इतने दिन तक शोध किया जा सकता था। हमारे शरीर में सूजन साइटोकाइन्स की वजह से आती है, इन कोशिकाओं में सूजन उत्पन्न करने के लिए 20-20 नैनो ग्राम प्रति एमएल टीएनएल अल्फा, और आईएल वन बीटा दिया गया जोकि एक प्रकार के साइटोकाइन्स हैं और सूजन के प्रमुख कारक है। परिणामस्वरूप कोशिकाओं की संख्या कम होने लगी, दूसरे शब्दों में वह मरने लगी जो एक प्राकृतिक अवस्था थी। आयुर्वेदिक औषधि ऑर्थोग्रिट की प्रमाणिकता के लिए इन कोशिकाओं को यह औषधि दी गई, जिससे समय और खुराक के आधार पर बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त हुए। इससे कोशिकाओं की संख्या कम होना बंद हुई और उनका स्वास्थ्य भी बेहतर हुआ। इसके साथ ही साथ एक सिंथेटिक स्टेरॉयड डेक्सामेथासोम का प्रयोग किया और उसके परिणामों का ऑर्थोग्रिट के परिणामों से तुलनात्मक अध्ययन किया गया, जिसके निष्कर्ष में यह पता लगा कि ऑर्थोग्रिट जोड़ों के दर्द को कम करने में उतना ही सहायक है जितना एलोपैथिक दवाइयां।
यह शोध इस बात कि भी पुष्टि करता है कि फाइटोस्टेरॉयड के माध्यम से काफी सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
उसके बाद इनके ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसिज़ और माइटोकॉन्ड्रियल मेम्ब्रेन पोटेंशिअल के बारे में शोध किया गया। हमारे कोशिकाओं के पॉवर हाउस माइटोकॉन्ड्रिया पर एक तरह का आवेग (चार्ज) रहता है, अगर वह चार्ज कम हो जाता है तो कोशिकाओं के ऊपर स्ट्रेस या दबाव बढ़ता है। शोध में यह पाया गया कि ऑर्थोग्रिट के प्रयोग से उस चार्ज को भी वापिस पाया जा सकता है। कोशिकाओं के स्तर पर शोध करने के बाद एक बड़े पैरामीटर एग्रीकैन के स्तर को भी नापा गया जिसके द्वारा यह पता चलता है कि उन कोशिकाओं पर कितना दबाव या स्ट्रेस है। इन बॉलनुमा आकृति में एग्रीकैन को इंजेक्ट करने के बाद ऑर्थोग्रिट पर इसके प्रभाव देखे गए। निष्कर्ष स्वरूप प्रमाणित हुआ कि यह औषधि सिर्फ कोशिकाओं के स्तर पर बल्कि अन्य पैरामीटर्स को भी मात्रा के आधार पर कम करती है।
अलग-अलग बायो मार्कर्स जैसे पीजी-2 और सीएक्सइ-2 पर भी शोध किया गया, जिनका स्तर ऑस्टिओ आर्थराइटिस में बढ़ता है, उसे भी ऑर्थोग्रिट द्वारा मात्रा के आधार पर कम किया गया। इसके अलावा दो और साइटोकाइन्स, आईएल-6 और आईएल-1 बीटा के स्तर की भी जांच की गई, जिसे ऑर्थोग्रिट ने भी खुराक के आधार पर कम किया। यह शोध और परिणाम इसलिए भी आवश्यक थे क्योंकि अधिक स्ट्रांग एंटी-इंफ्लेमेटरी होने के कारण अप्राकृतिक स्टेरॉयड इन पर काम नहीं करते हैं। उसके बाद जींस के स्तर पर शोध किये गए, और पाया कि 2 बड़े पाथवेज़, पहला जैक 2 पाथवे, जिसे मॉडर्न चिकित्सा पद्धति में मिलियन बिलियन पाथवे भी कहा जाता है क्योंकि जो औषधि इसको मोडिफाइड कर सकती है उसकी बिक्री उस संख्या तक पहुँचती है। जैक 2 पाथवे के जींस एक्सप्रेशन को कम करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि यह माना जाता है कि अगर इस प्रक्रिया को संशोधित कर दिया गया तो पूरी प्रक्रिया को संशोधित किया जा सकता है। ऑर्थोग्रिट के साथ किये गए शोध में यह स्पष्ट हुआ कि यह औषधि जैक 2 पाथवे को भी डोज़ डिपेंडेंट तरीके से मोडिफाइड कर सकती है। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है कि एक पॉली-हरबो मिनरल मेडिसिन जैक 2 पाथ वे को मोडिफाइड कर पा रही थी। साथ ही साथ सीओएक्स2 पाथवे का जींस एक्सप्रेशन भी मोडिफाइड करने में सफलता मिली और इनके टार्गेट्स जींस एमएमपी 1 और एमएमपी 3 जो कि एक तरीके के प्रोटीएज हैं उनका लेवल भी अच्छे से कण्ट्रोल हो पा रहा था। इस प्रकार का अनुसंधान आयुर्वेद के क्षेत्र में पहली बार किया गया, जिसमें सफलता प्राप्त हुई।
इन-वीवो परिक्षण
अधिक प्रामाणिकता के लिए सी. एलेगन्स के विशिष्ट मॉडल तैयार किये गए। वैसे तो सी. एलेगन्स एक बिना हड्डी वाला जीव है, लेकिन सूजन के कारण इनके शरीर में इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं जैसे कि ऑर्थराइटिस में दिखते हैं। उन पर किये गए शोध से यह जानने का प्रयास किया गया कि क्या हम ऑर्थोग्रिट की सहायता से ऑर्थराइटिस की समस्या में लाभ ले सकते हैं या नहीं।  
इस शोध के लिए सबसे पहले सी. एलेगन्स को ऑर्थोग्रिट के साथ 24 घंटे रखा गया, तत्पश्चात इसमें इन्फ्लेमेशन पैदा किया। इससे यह जानने का प्रयास किया गया कि किस प्रकार के बदलाव रहे हैं, और अगर इन्हे ऑर्थोग्रिट की सहायता से प्री-ट्रीट किया गया तो क्या वह बदलाव नॉर्मलाइज़ हो सकते हैं। एक प्रकार के बैक्टीरियल सरफेस मॉलिक्यूल एलपीएस सी. एलिगेंस को देने से निष्कर्ष स्वरूप एक प्रकार की स्ट्रेस पैदा हुई जिससे उनकी जनसंख्या कम हुई। उसके बाद जब इन सी. एलिगेंस को ऑर्थोग्रिट की एक उचित मात्रा दी गयी तो जनसंख्या का कम होना रुका और निष्कर्ष निकला कि इन जीवों पर आये हुए स्ट्रेस को समाप्त किया जा सकता है। साथ ही साथ कुछ और शोध भी किये गए जिनमें सी. एलिगेंस की चाल को आधार बनाया गया। एलपीएस की वजह से स्ट्रेस बढ़ने से यह जीव ओमेगा (Ω) आकार में घूमने लगता है, वहीं कुछ-कुछ में रिवर्स मूवमेंट भी देखी जाती है। ऑर्थोग्रिट ने इस बदलाव को समय और खुराक के आधार पर कम किया जोकि एक सकारात्मक परिणाम था। तत्पश्चात सी. एलिगेंस के जींस में म्यूटेशन पैदा कर आरओएस के स्तर को भी मापा गया, जिससे वह बढ़े हुए दिखाई दिए, इसको भी ऑर्थोग्रिट की सहायता से टाइम और डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम किया गया। ऑर्थोग्रिट जिस प्रकार जींस के स्तर से लेकर सेल्स तक प्रतिक्रिया कर रहा था, उस प्रकार के रिस्पांस एलोपैथिक औषधि डेक्सामेथासोम नहीं दिखा पा रहा था जोकि आयुर्वेद जगत में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इन सभी शोधों से यह निष्कर्ष निकला कि ऑर्थोग्रिट उम्र के साथ होने वाली जोड़ों की समस्या को रेजुविनेट करने में सहायक है।
भारतीय प्राचीन ग्रंथो में हर प्रकार की बीमारी की चिकित्सा का वर्णन है, बस आवश्यकता है उस ज्ञान को उन्नत तकनीकों के माध्यम से प्रमाणित करके की जिसके लिए पतंजलि अनुसंधान संस्थान नि:स्वार्थ भाव से प्रगतिशील है। जोड़ों के दर्द जैसी आम जीवन में होने वाली बीमारी से लाखों लोग ग्रसित हैं, इस रोग में ऑर्थोग्रिट के सकारात्मक परिणाम देखे गए हैं। ऑर्थोग्रिट भारत के प्राचीनतम ज्ञान आयुर्वेद पर आधारित है। यह सिर्फ पतंजलि की नहीं, पूरे भारत की, आयुर्वेद की जीत है।

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