क्रोनिक किडनी रोग क्या है?
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स्वामी समग्रदेव
पतंजलि संन्यासाश्रम, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार
क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) एक प्रगतिशील स्थिति है जो किडनी को प्रभावित करती है। इससे समय के साथ किडनी की कार्य करने की क्षमता खऱाब हो जाती है। CKD एक दीर्घकालिक स्थिति है जहां किडनी समय के साथ धीरे-धीरे अपना कार्य खो देती है। यह मूक लेकिन सम्भावित रूप से गम्भीर बीमारी है जो अक्सर अपने प्रारम्भिक चरण में कोई लक्षण नहीं प्रकट करती है। इस कारण इससे जागरूकता और समय पर हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हो जाता है। इसकी प्रगति को धीमा करने के लिए शीघ्र पता लगाना और प्रबन्धन महत्वपूर्ण है।
सीकेडी हल्के से लेकर गंभीर चरणों में बढ़ता है, जिससे गुर्दे की रक्त से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को फि़ल्टर करने की क्षमता प्रभावित होती है। यह आमतौर पर धीरे-धीरे और स्तरबद्ध रूप से विकसित होता है।
क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) तब होता है जब किडनी समय के साथ (कम से कम 3 महीने के लिए) क्षतिग्रस्त हो जाती है और उन्हें अपने सभी महत्वपूर्ण काम करने में कठिनाई होती है। सीकेडी से हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है। सीकेडी का विकास आमतौर पर एक बहुत धीमी प्रक्रिया है जिसमें शुरुआत में बहुत कम लक्षण होते हैं।
कारण
CKD, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, एलोपैथिक दवाईयां, एल्कोहल, हानिकारक प्रोटीन सप्लीमेंट्स, स्टेरॉयड, फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड्स आदि कीटनाशक, यूरिया, DAP, किडनी से संबंधित अन्य स्थितियों और आनुवंशिक प्रवृत्ति सहित विभिन्न कारकों का परिणाम हो सकता है। अन्य योगदान देने वाले कारकों में किडनी संक्रमण और ऑटोइम्यून रोग शामिल हैं। प्रभावी प्रबन्धन के लिए मूल कारण को समझना महत्वपूर्ण है।
क्रोनिक किडनी रोग के लक्षण क्या हैं?
क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) प्रारंभिक अवस्था में लक्षण नहीं दिखा सकता है। हालाँकि, जैसे-जैसे यह बढ़ता है तब निम्नलिखित लक्षणों से समझा जा सकता है—
अच्छा महसूस न करना, उच्च रक्तचाप, थकान, पानी-इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन, लगातार खुजली, भूख न लगना, सोने में कठिनाई।
सुस्ती और थकान : बेहतर किडनी काम करने में सहायक होती हैं, और यदि ये सही रूप से काम नहीं कर रहीं हैं, तो व्यक्ति में सुस्ती और थकान महसूस हो सकती है।
मूत्र की आवृत्ति या रंग में परिवर्तन : गुर्दे की विफलता में मूत्र में अपशिष्ट उत्पादों के निर्माण या सामान्य से कम बार और कम मात्रा में पेशाब करने के कारण गहरे भूरे रंग का मूत्र होता है, जिसमें दुर्गन्ध भी हो सकती है। पेशाब में झाग आना भी गुर्दे की विफलता का संकेत हो सकता है, हालांकि झाग कोई रंग नहीं है और आमतौर पर मूत्र में प्रोटीन बढऩे या गुर्दे की बीमारी के कारण होता है।
उच्च रक्तचाप : अधिकतम मामलों पर रक्तचाप की स्थिति की जाँच करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह एक CKD का लक्षण हो सकता है।
पैरों या टखनों में सूजन (Oedema swelling)
यह होना भी आम है : किडनी डैमेज, खुजली, गुर्दे की विफलता, दिल धडक़ने की असामान्य ताल, पेशाब कम बनना, फेफड़ों में तरल, बिना कारण वजऩ में बहुत ज़्यादा कमी होना, सूजन, या स्वास्थ्य गिरना।
यदि ऐसे लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो चिकित्सक से मिलकर सही जाँच और उपचार के लिए सलाह लेना चाहिए। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये लक्षण सूक्ष्म हो सकते हैं, और सीकेडी का निदान अक्सर प्रयोगशाला परीक्षणों के माध्यम से किया जाता है जो किडनी के कार्य को मापते हैं।
निदान
क्रोनिक किडनी रोग के निदान में आमतौर पर रक्त और मूत्र परीक्षण के माध्यम से किडनी की कार्यप्रणाली का आकलन करना शामिल होता है। सामान्य परीक्षणों में सीरम क्रिएटिनिन (Creatinine), ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (जीएफआर), और मूत्र एल्ब्यूमिन-टू-क्रिएटिनिन अनुपात शामिल हैं। चिकित्सा इतिहास, शारीरिक परीक्षण और इमेजिंग अध्ययन पर भी विचार किया जा सकता है। शीघ्र पता लगने से स्थिति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिलती है। यदि आपको सीकेडी पर संदेह है, तो उचित मूल्यांकन और निदान के लिए किसी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श लें।
क्रोनिक किडनी रोग के चरण (Stages) क्या हैं?
क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) को आमतौर पर अनुमानित ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (ईजीएफआर) के आधार पर पांच चरणों या अवस्थाओं में वर्गीकृत किया जाता है। चरणों का निर्धारण गुर्दे की कार्य प्रणाली में हानि की सीमा के आधार पर किया जाता है-
चरण 1 : ईजीएफआर > 90 एमएल/मिनट/1.73 वर्ग मीटर - सामान्य या उच्च निस्पंदन दर के साथ गुर्दे की क्षति। किडनी की क्षमता में कुछ हानि होती है, लेकिन यह अभी भी सामान्य रूप से किडनी का कार्य कर सकती है, आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखता।
चरण 2 : ईजीएफआर 60-89 एमएल/मिनट/1.73 वर्ग मीटर - निस्पंदन दर में मामूली कमी और सामान्यत: ब्लड टेस्ट में कुछ असामान्यता हो सकती हैं। किडनी की क्षमता में और भी घातकता होती है, लेकिन यह भी कार्य कर सकती है और अधिकतम लोग इस स्टेज पर सिम्पटम्स महसूस नहीं करते हैं.
चरण 3 : ईजीएफआर 30-59 एमएल/मिनट/1.73 वर्ग मीटर - मध्यम रूप से कम निस्पंदन दर। किडनी की क्षमता में गम्भीर कमी होती है, जिससे सिम्पटम्स महसूस होने शुरू होते हैं।
चरण 4 : ईजीएफआर 15-29 एमएल/मिनट/1.73 वर्ग मीटर - गंभीर रूप से कम निस्पंदन दर। किडनी की क्षमता बहुत अधिक कम हो जाती है और व्यक्ति को आवश्यकता पूरी करने के लिए किडनी की सहायक उपकरणों की आवश्यकता हो सकती है।
चरण 5 : ईजीएफआर <15 एमएल/मिनट/1.73 वर्ग मीटर - अंतिम चरण की गुर्दे की बीमारी (ईएसआरडी), गुर्दे की विफलता या विफलता के करीब जिसके लिए डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।
यदि इन स्टेजेस में से किसी की जाँच के बाद क्रोनिक किडनी रोग की पुष्टि होती है, तो उपचार आवश्यक हो सकता है जो रोग को सम्भालने और बढऩे से रोकने में मदद कर सकता है।
एलोपैथी में क्रोनिक किडनी रोग का इलाज क्या है?
एलोपैथी में अन्य रोगों की तरह इस बीमारी का भी कोई इलाज नहीं है। एलोपैथी में, क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) का उपचार अंतर्निहित स्थितियों के प्रबंधन, लक्षणों को नियंत्रित करने और जटिलताओं को रोकने पर केंद्रित है। सामान्य तरीकों में रक्तचाप नियंत्रण, प्रोटीनुरिया को प्रबन्धित करने के लिए एलोपैथिक दवा दी जाती है जिसके कारण फिर अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।
उन्नत चरणों में, डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण जैसे उपचार पर विचार किया जाता है।
क्रोनिक किडनी रोग का उपचार, पथ्य कुपथ्य
क्रोनिक किडनी रोग का उपचार मुख्यत: रोग की स्थिति और उसके कारण पर निर्भर करता है, लेकिन कुछ सामान्य उपाय शामिल हो सकते हैं-
आयुर्वेदिक औषधि : चिकित्सक द्वारा निर्धारित आयुर्वेदिक ओषधियों का सेवन करना, जो किडनी स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकती हैं।
आहार और प्रबन्धन : कम नाट्रियम, कम प्रोटीन, और ऊर्जा संतुलित आहार का सेवन करना, सही तरीके से समुचित पानी पीना, नमक और दाल बन्द।
योग और प्राणायाम : किडनी स्वास्थ्य को सुधारने के लिए विशिष्ट योगासन और प्राणायाम का अभ्यास करना भी लाभकारी हो सकता है।
रक्तचाप की निगरानी : उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए औषधि और बदलती जीवनशैली की आवश्यकता हो सकती है।
व्यायाम : स्वस्थ रखने के लिए सप्ताह में कम से कम 150 मिनट की मात्रा में उचित व्यायाम करना।
क्रोनिक किडनी रोग हेतु आहार
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जौ की रोटी।
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नीम पीपल जूस सुबह शाम ।
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सब्जियों में लौकी, टिंडा, परवल, कद्दू, तोरई, आदि हरी सब्जियां।
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शराब, नमक, जंक फूड, फास्ट फूड का सेवन कभी न करें।
क्रोनिक किडनी रोग के लिए योग- आसन प्राणायाम
किडनी स्वास्थ्य को सुधारने के लिए योग एक सुधारक योगदान कर सकता है, लेकिन इससे पहले चिकित्सक से सुनिश्चिति प्राप्त करें। यहां कुछ प्राणायाम, योगासन दिए जा रहे हैं जो किडनी स्वास्थ्य में मदद कर सकते हैं-
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कपालभाति।
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अनुलोम विलोम- यह श्वास को नियंत्रित करने और तनाव को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे किडनी पर दबाव कम हो सकता है।
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वक्रासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन।
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ताड़ासन- यह योगासन कमजोरी को दूर करने और पोषण को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
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भुजंगासन- कमर की मांसपेशियों को मजबूत करने और किडनी की स्थिति में सुधार करने में सहायक हो सकता है।
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पश्चिमोत्तानासन- इससे कमर की मांसपेशियाँ और पेट की कच्ची मांसपेशियों को स्थिर करने में मदद हो सकती है।