प्रथम प्रवेश के लिए, नव-उन्मेष के लिए।
सर्वोत्कृष्ट संस्थान, पतंजलि गुरुकुलम्।।1।।
लव-कुश-सरिस बालकों! विवकेशील पालकों!!
प्रशस्त, दिव्य कर सको! भारती के भाल को!!
ज्ञान, भाव, कर्म, ध्येय, अखण्ड एकनिष्ठ हो।
गुरु-ऋषि परंपरा से, वेदों में प्रतिष्ठ हो।।
अज्ञान, तम, विफल, निराश, दुर्भावना न पास हो।
दुर्गुण, अशुभ विलीन हो, दिव्यता, प्रकाश हो।।
नए प्रवेश के लिए, नव ''हिन्देश' के लिए।
ज्ञान-पीठ सर्वश्रेष्ठ, पतंजलि गुरुकुलम्।।2।।
हर भोग, भीड़, वाद से, भौतिकी विवाद से।
सहाय! न्याय कीजिए!! आत्मजा-औलाद से।।
समग्र, संतुलित विकास, नव्य-भव्य चेतना।
शरीर, बुद्धि, आत्मा की साधना, उपासना।।
विद्या, योग, श्रेष्ठ व्रत, अहर्निश अभ्यासरत
चरित्र में सचित्र हो, सर्वांगी विकास रत ।।
भारती की जय सदा, बोल ''वन्दे मातरम्'।
नयन-सुमन खिलाइये, पतंजलि गुरुकुलम्।।3।।
सत्य-नित्य तत्व का, मनुष्य में देवत्व का।
ऋषित्व का, द्विजत्व का, प्रयोग है महत्व का।।
आयुष्मान, कीर्त्तिमान, आसमान भासमान।
संस्कृत विषय प्रधान, समाविष्ट आँग्ल-विज्ञान।।
सर्वगुण, होकर निपुण, हर शास्त्र में, पुराण में।
महान कार्य कर सकें, स्वदेश में, जहान में।।
विश्वदृष्टि में प्रथम, गुणवत्तायुत् पाठ्यक्रम।
सुगम प्रवेश के नियम, पतंजलि गुरुकुलम्।।4।।
संगीत, कला, वक्तृता, शोध में नवीनता।
प्रबंधन-व्यवसाय में, नेतृत्व की प्रवीणता।।
आचरण हर आर्य का, शिक्षण परमाचार्य का।
प्रेम का, औदार्य का, मूल्यांकन हर कार्य का।।
समृद्धि-ऐश्वर्य का, उसके लिए महत्व क्या?
एकलक्ष्य, एकलव्य, आरुणि, साचिसव्य का।।
संन्यास पर विश्वास कर, सज्जनों! स्वागतम्!!
पठाइये! पढ़ाइये!! पतंजलि गुरुकुलम्।।5।।
योग्यता पा योग से, मुक्त सारे रोग से।
शिक्षकी सहयोग से, विज्ञान के प्रयोग से।।
ऋषि-कृषि परंपरा, उतरे पुन: वसुंधरा।
मैकालियन प्रेत से, धर्मयुद्ध विकट छिड़ा।।
हो भीड़तंत्र से पृथक्, दिव्यता चयन करें।
खो न जाये तव संतति, शिव्य का वरण करें।।
शिविर के संस्कार से, प्रवेश साधिकार से।
हरपल विशेष के लिए, पतंजलि गुरुकुलम्।।6।।
आर्षज्ञान पूर्ण हो, फिर विश्व में प्रकीर्ण हो।
शिक्षा त्रिविध, भाषा विविध, योग्यता संपूर्ण हो।।
ऐसे ही युवा-युवतियाँ, विश्व-इतिहास में।
गढ़ चुके कीर्त्तिमां, तारक बने आकाश में।।
जो दिव्य तेजपुंज था, जिसमें संस्कार था।
पढ़ा ऋषि-निकुंज था, ढला इसी प्रकार था।।
सच्चरित्र का सृजन, सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्।
नव्य-भव्य भारती ''विजन'', पतंजलि गुरुकुलम्।।7।।
मेधा में मूर्द्धन्य जो, मध्यम, सामान्य हो।
गुरुकुलम् से धन्य हो, वसुधा अग्रगण्य हो।
योग के ऋषि-द्वय, धुनी, आयुर्वेद-शिरोमणि।
मार्गदर्शन स्वयं करें, शिष्यगण का पुनि-पुनि।।
बालक्रीड़ा स्वेद की, मेटे भित्ति भेद की।
आवास प्रकृति गोद में, संस्कृति हर वैदिकी।।
मंत्र, यज्ञ, ध्यान, संयम, ज्ञान-दृष्टि विहंगम।
आधुनिक-प्राचीन संगम, पतंजलि गुरुकुलम्।।8।।
पुरुषार्थ से प्रारब्ध, भेद को हर मेटने।
प्रथम कोटि की कोटि-कोटि, आत्मा समेटने।।
व्यक्तित्व के उत्कर्ष हित, शिक्षण आदर्श नित।
प्रतिवर्ष हर्ष से चकित, विमर्श की धरा शुचित।।
सुसंस्कृति की कामना, बहुविकृति से सामना।
देशहित ही भावना, विश्वजित् संभावना।।
पुत्री-पुत्र के लिए, कि योगसूत्र के लिए।
निशिदिन स्वदेश के लिए, पतंजलि गुरुकुलम्।।9।।