इस दुनियां में आए हर एक इंसान की इच्छा है कि वह सदैव जवान बना रहे। इसके लिए लोग बहुत से प्रयास करते हैं। पुराने जमाने में चन्दन, हल्दी, दूध, एलोवेरा, शहद, मुल्तानी मिट्टी से लेकर आजकल बोटॉक्स इंजे क्शंस और अन्य नवीन तकनीकी को लोग इस कारण प्रयोग करते आ रहे हैं। एजिंग या उम्र या आयु बढऩा या बूढ़ा होना एक प्रोग्रेसिव चेंज है जो वक्त के साथ-साथ आगे बढ़ता है। यह एक धीरे-धीरे कई अवस्थाओं में होने वाला परिवर्तन है। आयु बढऩा शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ कोशकीय, ऊतकों और अंगो में होने वाला परिवर्तन भी हैं। विज्ञान की भाषा में कोशिकाओं की आयु बढऩे को सेनेसेन्स कहते हैं। बूढ़े होने का एक स्पष्ट लक्षण शरीर में झुर्रियां पडऩा तथा त्वचा का ढीला पडऩा या खिंचाव कम होना है। कम उम्र या जवान त्वचा मुलायम और हाइड्रेटेड रहती है, उसमे कोलेजन और इलास्टिसिटी रहती है, साथ ही टोनिसिटी या खिंचाव बना रहता है। उम्र बढऩे के साथ त्वचा पर झुर्रिया आ जाती हैं, साथ ही शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिससे डिहाइड्रेशन होता है। कोलेजन और इलास्टिन प्रोटीन का लेवल कम हो जाता है और वह टूट कर छोटे-छोटे टुकड़ो में विभाजित हो जाती है।
कारक
शरीर का समय से पहले बूढ़ा होना विभिन्न कारणों से हो सकता है जैसे - सूरज की पराबैंगनी किरणे, वायु प्रदुषण, लाइफ स्टाइल बदलाव जैसे तंबाकू या शराब का सेवन करना। मधुमेह भी बूढ़ा होने की गति को तेज करता है। विभिन्न शोधों के दौरान यह भी देखा गया है कि अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट का सेवन भी आयु बढऩे का एक महत्वपूर्ण कारक है।
अनुसन्धान पूर्व रणनीति
कोशिकाओं की आयु को नापना एक कठिन कार्य है, क्योंकि आयु बढऩा एक धीमी प्रक्रिया है और सामान्य परिस्थितियों में शोध के लिए इतना समय मिलना एक प्रकार से असंभव काम है। इस प्रक्रिया को गति देने के लिए अलग-अलग टाइप के सेल्युलर मॉडल डेवेलप किये गए जहां कोशिकाओं की आयु को नापने के लिए विभिन्न प्रकार के टेस्ट का प्रावधान किया गया। शरीर में एक प्रकार के कार्बोहायड्रेट डी-गैलक्टोज़ की मात्रा बढऩे से बूढ़े होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। प्रयोगशाला में बनाई गई मानव त्वचा की कोशिकाओं पर प्रयोग करके यह पाया गया कि वह समय के साथ-साथ भी बूढ़ी हो जाती है। इन कोशिकाओं को अलग-अलग मात्रा में डी - गैलक्टोज़ दिया गया और यह पाया कि यह कोशिकाएं समय से पहले बूढ़ी हो रही है। डी-गैलक्टोज़ त्वचा में कोशिकाओं की आयु को बढ़ाता है, यह पुष्टि करने के लिए एक नीले रंग के मार्कर का प्रयोग किया गया और जैसे-जैसे डी-गैलक्टोज़ का लेवल बढ़ाया गया शरीर की कोशिकाओं की उम्र बढ़ी और वह नीले रंग की दिखाई दी। अलग-अलग जींस के जेनेटिक एक्सप्रेशंस के पाथवेज़ को भी मापा गया जिसमें प्रमुख है पी16 और पी21 पाथवेज़। ये पाथवेज़ हमारे जेनेटिक एक्सप्रेशन को कंट्रोल करते हैं। रिसर्च में पाया गया कि डी-गैलक्टोज़ की मात्रा कोशिकाओं में बढऩे से, जेनेटिक लेवल पर भी इसका प्रभाव पड़ा अर्थात् जींस एक्सप्रेशन पर बदलाव दिखाई दिए और यह बदलाव समय और डी-गैलक्टोज़ की मात्रा पर केंद्रित थे।
बूढ़ा होना कोशिकाओं और जींस के अलावा क्या प्रोटीन के स्तर पर भी अपना प्रभाव डालता है, यह जानने के लिए वेस्टर्न ब्लॉटस तकनीक को माध्यम चुना गया, जिससे सकारात्मक परिणाम सामने आये। जांच में पाया गया कि डी-गैलक्टोज़ जिस प्रकार जींस एक्सप्रेशन में बदलाव कर रहा था उसी प्रकार प्रोटीन लेवल पर भी कर रहा था, और जिस प्रकार सामान्य एजिंग की प्रक्रिया होती है उसी प्रकार एजिंग को शरीर में बढ़ा रहा था। इन शोधो से यह ज्ञात करने की कोशिश की गई कि अगर एजिंग को समय से पहले ले आया गया तो कोशिकाओं में किस प्रकार के बदलाव आ रहे हैं। इस प्रक्रिया को एक मॉडल सिस्टम के रूप में तैयार किया गया।
आयुर्वेद दर्शन
तत्पश्चात, आयुर्वेद ग्रन्थ, भाव प्रकाश निघण्टु को आधार बनाकर पतंजलि अनुसंधान संस्थान द्वारा इम्यूनोग्रिट औषधि का निर्माण किया गया जोकि 12 अति- विशिष्ट जड़ी-बूटियों का मिश्रण है, जिनमें प्रमुख है- विदारकंद, शतावरी, काकोली, सफेद मूसली, शुद्ध कौंच, अश्वगंधा, रजत भस्म, मुक्ता पिष्टी, स्वर्ण भस्म, वसंत कुसुमाकर रस, बला, गिलोय, आदि। यह जड़ी-बूटियां एंटी-एजिंग के साथ-साथ एंटी- इंफ्लेमटरी और एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल भी है।
अनुसन्धान एवं निष्कर्ष
इम्यूनोग्रिट की व्यापक रासायनिक जाँच करने के बाद यह पाया गया कि इसमें 78 प्रकार के ऐसे घटक या फाइटो कंपाउंड्स मिले जो बूढ़ा होने की प्रक्रिया को धीमा या रिवर्स कर सकते है, इन घटको को सिग्नेचर या केमिकल फिंगर प्रिंटिंग के रूप में प्रयोग किया गया। शोध में यह भी पाया गया कि इनमें अलग-अलग प्रकार के रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसिज़ और पॉजिटिव स्टेन मार्कर्स हैं जो शरीर और कोशिकाओं में होने वाली विभिन्न प्रकार की बायोकेमिकल प्रक्रियाओं को व्यवस्थित रखते हैं।
इसके बाद यह देखने की कोशिश की गई कि क्या डी-गैलक्टोज़ के द्वारा कोशिकाओं, जींस, और प्रोटीन के स्तर पर जो बदलाव दिखाई दिए है और विभिन्न पैरामीटर्स बनाये गए उनको इम्यूनोग्रिट औषधि द्वारा समय और मात्रा के आधार पर रिवर्स किया जा सकता है या नहीं।
पूर्णकालिक परिणाम जेनेटिक लेवल पर ही संभव है, सेल्युलर लेवल पर नहीं। इसको प्रमाणित करने के लिए इस बात पर जोर दिया गया कि शोध जींस के लेवल पर किया जाए जिससे आयु बढऩे के कारणों को पूरी तरह से रिवर्स किया जा सके। एमआरएनए एक्सप्रेशन या जींस के एक्सप्रेशन जोकि एक सिंगल नुक्लिएस से निकलते हैं और वो सही मात्रा में प्रोटीन को सिंथेसाइज़ करते हैं जिसकी वजह से उम्र बढऩे को रेगुलेट या व्यवस्थित किया जा सकता है। इम्यूनोग्रिट के प्रयोग से यह पाया गया कि जो कोशिकाएं और जींस डी-गैलक्टोज़ के प्रयोग से बदल गए और टूट कर बिखर गए थे वह फिर से ठीक होने लगे और एक्सप्रेशन में आये बदलाव सही होने लगे। इन गहन शोध के बाद यह देखा गया कि इम्यूनोग्रिट आयु बढऩे की प्रक्रिया को धीरे और रिवर्स कर रहा है। आयु बढऩे की प्रक्रिया के दौरान कोशिकाओं का बढऩा कम हो जाता है, क्योंकि वह बूढ़ी हो जाती हैं और डिवाइड होना बंद कर देती हैं। इम्यूनोग्रिट की मदद से न सिर्फ कोशिकाओं की आयु बढऩा कम हुआ बल्कि नार्मल सेल्स डिवीजन भी होना शुरू हो गया जिससे कोशिकाओं की संख्या बढ़ी। इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकला कि इम्यूनोग्रिट द्वारा पूरे सेल्युलर प्रोसेस को व्यवस्थित किया जा सकता है जोकि एक टाइम और डोज़ डिपेंडेंट प्रक्रिया है।
आयु बढऩे के प्राथमिक कारक पी16 और पी21 जिनका स्तर डी-गैलक्टोज़ की वजह से बढ़ गया था उनको भी इम्यूनोग्रिट की सहायता से खुराक के आधार पर जींस के लेवल पर कम किया गया। जींस एक्सप्रेशंस ही नहीं अपितु उससे जुड़े प्रोटीन पर इम्यूनोग्रिट के प्रयोग से यह देखा गया कि यह किस प्रकार कार्य करती है? इसके लिए वेस्टर्न ब्लॉटस के द्वारा प्रोटीन के स्पेसिफिक एंटी बॉडीज पर काले रंग के स्टेन का प्रयोग किया गया, जिसमे गहरा काला रंग प्रदर्शित करता था कि वो प्रोटीन कितने एक्सप्रेसिव हैं जो सेनेसेन्स की अवस्था में थे और जैसे-जैसे इम्यूनोग्रिट की मात्रा बढ़ाई गई, प्रोटीन का लेवल भी उसी प्रकार कम हुआ जैसे जींस के लेवल में बदलाव हो रहा था। इम्यूनोग्रिट पर शोध से यह निष्कर्ष निकला कि इसके द्वारा एमआरएनए से लेकर प्रोटीन के पूरे पाथवे को टाइम और डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम किया जा सकता है। स्किन एजिंग का एक बड़ा पैरामीटर है एमएमपी (मैट्रिक्स मैटलो प्रोटीनिएज), जो यह तय करता है कि हमारी स्किन कितने अच्छे तरीके से ग्लो कर रही है। उसमे जो कसाव है, खिंचाव है वह कितना है। उम्र बढऩे के साथ-साथ उनका लेवल मॉडुलैट हो जाता है। इम्यूनोग्रिट के प्रयोग से यह भी सुनिश्चित हुआ कि जो कसाव, खिंचाव उम्र बढऩे की वजह से कम हो गया था वह भी इम्यूनोग्रिट के द्वारा डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम हुआ। उसके बाद आरएनए के एमएमपी लेवल को भी मापा गया और यह पाया कि इम्यूनोग्रिट ने इसे भी डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम किया। साथ ही साथ कोलेजेन फाइबर सिंथेसिस, जिसका प्री कर्सर है हाइड्रोक्सी प्रोलीन जोकि एक तरीके का बिल्डिंग ब्लॉक है, जिससे कोलेजन प्रोटीन बनते हैं, को भी एक पैरामीटर के रूप में जाँच कर पाया गया कि, इम्यूनोग्रिट उसको भी डोज़ डिपेंडेंट तरीके से कम करता है और सेल हेल्थ और प्रोटीन सिंथेसिस कि प्रक्रिया को सुचारु करता है।
उम्र बढऩा एक शाश्वत सत्य है जिसे रोका नहीं जा सकता परन्तु इम्यूनोग्रिट के प्रयोग से इस प्रक्रिया को धीमा किया जा सकता है, जिसे अनुसंधान द्वारा प्रमाणित भी किया गया है। इम्यूनोग्रिट पर किया गया शोध इस बात का प्रमाण है कि आयुर्वेद के इस असीमित ज्ञान को अगर वर्तमान की उन्नत तकनीकों से जोड़ा जाये तो वह दिन दूर नहीं जब प्राचीन ग्रंथो में पढ़ी-सुनी अजरता, अमरता की कहानियां सत्य प्रतीत हों।