पतंजलि गुरुकुलम् शिलान्यास समारोह में माननीय रक्षा मंत्री जी का उद्बोधन
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पतंजलि योगपीठ भारतीय ऋषि-महर्षियों के प्राच्य ज्ञान योग, आयुर्वेद, भारतीय संस्कृति, सनातन परंपराओं व मूल्यों तथा गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को विस्तार और गौरव प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। पतंजलि योगपीठ ने अपनी सेवाओं के तीन दशक पूर्ण होने पर तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती एवं गुरुकुल ज्वालापुर के संस्थापक पूज्य स्वामी दर्शनानंद जी की जयंती के अवसर पर स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर के रूप में विश्व के श्रेष्ठतम गुरुकुल तथा प्राच्य व आधुनिक विद्या के संगम आचार्यकुलम् के निर्माण की आधारशिला रखी, जिसका शिलान्यास देश के माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह व मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव के साथ देश के जननायकों, पूज्य संतगणों तथा आर्य समाज के वरिष्ठजनों द्वारा किया गया।
इस अवसर पर माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने ओजपूर्ण उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि सचमुच आज इस भव्य कार्यक्रम में उपस्थित होकर मैं अपने आप को गौरवान्वित व कृतार्थ महसूस कर रहा हूँ।
स्वामी दर्शनानंद गुरुकुल महाविद्यालय की इस पुण्य भूमि पर आज सभी आचार्यों, गुरुओं व उनके शिष्यों और आप सभी बहनों-भाईयों के बीच उपस्थित होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है। सर्वप्रथम मैं इस ऐतिहासिक गुरुकुल से जुड़े सभी व्यक्तियों को गुरुकुल के गौरवशाली ११८ वर्ष का इतिहास पूरा करने पर मैं तहे-दिल से हार्दिक बधाई देता हूँ। स्वामी दर्शनानंद जी के विचारो और उनके आदर्शों पर स्थापित किया महाविद्यालय जिस प्रकार शिक्षा के तीर्थ के रूप में काम कर रहा है, वह अपने-आप में प्रशंसनीय है। मैं इस गुरुकुल के संस्थापक स्वामी दर्शनानंद जी को उनकी जयंती के पावन अवसर पर नमन करता हूँ। उनकी जयंती के शुभ अवसर पर पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट ने इस नवीन गुरुकुल निर्माण की आधारशिला रखने का जो संकल्प लिया है उस संकल्प की पूर्ति के लिए भी मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ।
जब भी गुरुकुल परम्परा का जिक्र आता है तो हमारे जहन में इतिहास के झरोखे स्वाभाविक रूप से खुल जाते हैं कि कैसे एक समय भारत में गुरु-शिष्य की परम्परा थी जहाँ शिष्य एक निश्चित आयु तक गुरु के आश्रम में जाकर उनकी सेवा करते हुए शिक्षा ग्रहण करता था। यह गुरुकुल की परम्परा शिक्षार्थी को शिक्षा तो प्रदान करती थी, लेकिन साथ ही साथ समाज में शुचिता और नैतिकता का समावेश भी करती थी। और मैं समझता हूँ कि यह गुरुकुल भी उसी लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में प्रयत्नशील है और उसमें उसे कामयाबी हासिल होगी।
भारत में सनातन धर्म के संस्कारों में गौत्र की व्यवस्था बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस देश में सप्त ऋषियों के नाम के आधार पर गौत्र का प्रचलन प्रारंभ हुआ। उदाहरण के लिए यदि कोई अब व्यक्ति कहे कि हमारा गौत्र भारद्वाज है तो इसका अभिप्राय यह है कि उसकी पहचान ऋषि भारद्वाज से जुड़ी है।
हम सब किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के दौरान या महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों के दौरान भी गौत्र को वरीयता देते हैं। शादी-विवाह में भी गौत्र की पहचान की जाती है और जब हम किसी गौत्र व्यवस्था की जड़ तक जाते हैं तो हमें पता चलता है कि इस देश के ऋषियों, मुनियों और गुरुओं की ही देन है। सनातन धर्मावलंबियों की पहचान ही गुरुओं के नाम पर आधारित है।