आज से लगभग 1500 वर्ष पहले तक इस देश में कितने बड़े-बड़े विश्वविद्यालय थे, जहाँ गुरुकुल परम्परा प्रचलित थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से लेकर विक्रम शिला विश्वविद्यालय होते हुए नालंदा विश्वविद्यालय तक इस देश में अनेक ऐसे शैक्षणिक संस्थान थे, जिन्होंने शिक्षा की ऐसे अलख जगाई थी जिससे समूचा विश्व ही दीप्तमान हो उठा था। जहाँ दर्शन, गणित, विज्ञान, चिकित्सा, कला आदि विद्याओं का ज्ञान भी दिया जाता था। फिर देश में शैक्षणिक गुलामी की एक लम्बी शृंखला प्रारम्भ हुई। एक ब्रिटिश अधिकारी मैकाले को ब्रिटेन से भारत इसलिए भेजा गया ताकि वह भारतीयों को मानसिक रूप से गुलाम बनाया सके।
जो भी बाबा रामदेव कर रहे हैं, वह अपने में क्रान्ति है। बाबा रामदेव जी के पास विशेष क्षमता है कि इन्होंने इतनी पुरातन व्यवस्था को आधुनिक समाज के हिसाब से modify करके, परिवर्तन करके जनता तक पहुँचाया है। इस देश में अनेक लोगों ने कई छोटे-बड़े रोगों के उपचार में बाबा रामदेव द्वारा सिखाये गये योग का सहारा भी लिया है, विदेश में भी ले रहे हैं। ज्ञान का उद्गम एक जगह हो रहा है, लेकिन इसका प्रसार कई जगह पर हमें दिख रहा है।
जिस संगठन और जिस कार्य में राम और कृष्ण स्वयं संलग्न हों उस कार्य की सफलता पर भला कोई संदेह कैसे कर सकता है। आपके गुरुकुल के इस पवित्र प्रोजेक्ट के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।
श्री राजनाथ सिंह, माननीय रक्षा मंत्री, भारत सरकार
हमने महर्षि दयानंद के पदचिन्हों पर चलकर योगधर्म से राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि रखा है। महर्षि दयानंद ने एक ओर वेद धर्म, सनातन धर्म की बात की तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्र धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले बलिदानी तैयार किए। पतंजलि गुरुकुल सनातन के ध्वजवाहक तैयार करेगा जो पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगे।
हमने गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त कर मानव सेवा के लिए विशाल अर्थ साम्राज्य स्थापित किया। अभी 500 करोड़ की लागत से पतंजलि गुरुकुलम् तथा आचार्यकुलम् तैयार करने की योजना है तथा साथ ही अगले 5 सालों में 5 से 10 हजार करोड़ रुपए शिक्षा के अनुष्ठान में खर्च करने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि जो देश से पाया, उसे इस देश को वापस लौटाना है।
पूज्य स्वामी रामदेव जी, संस्थापक अध्यक्ष- पतंजलि योगपीठ
पूज्य स्वामी दर्शनानंद जी ने अल्प संसाधनों से यह संस्था प्रारंभ कर एक स्वप्न देखा था जिसे श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज साकार कर रहे हैं। कहीं न कहीं यह संस्था अपनी वृद्धावस्था की तरफ जा रही थी किन्तु श्रद्धेय स्वामी जी के तप व पुरुषार्थ से यह पुन: अपने अतीत के गौरव को समेटे हुए वैभव प्राप्त करेगी। अतीत में देखें तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, राष्ट्रपति तथा पाँच प्रधानमंत्रियों ने भी गुरुकुल ज्वालापुर की भूमि को प्रणाम किया है, भविष्य में इस भूमि से नए-नए कीर्तिमान स्थाापित किए जाएँगे जिसके साक्षी दुनिया के प्रतिष्ठित लोग होंगे।
पतंजलि द्वारा संचालित इस गुरुकुल से विद्यार्थी वेद, पुराण, अष्टाध्यायी, व्याकरण, पंचोपदेश, गीता, महाभाष्य आदि की शिक्षा लेकर पूरे विश्व में भारत व भारतीयता की पताका फहराएँगे। भारत पुन: विश्वगुरु की भूमिका में होगा और पूरा विश्व भारत का अनुसरण करेगा।
आचार्य बालकृष्ण जी, महामंत्री- पतंजलि योगपीठ
त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम तथा द्वापर में योगेश्वर कृष्ण ने गुरुकुलों में शिक्षा ग्रहण की। स्वामी रामदेव जी उसी गौरवशाली गुरुकुलीय परम्परा के संवाहक बन गुरुकुलीय परम्परा को गौरव प्रदान कर रहे हैं। मुझे ये जानकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि स्वामी दर्शनानंद गुरुकुलम् ज्वालापुर में आधुनिक विषयों के साथ सनातन वैदिक परम्परा के परिचायक वेद, दर्शन, उपनिषद्, श्रीमद्भगवतगीता, पंचोपदेश आदि के अध्ययन की व्यवस्था होगी।
मैं आशा करता हूँ कि ये गुरुकुलम् शिक्षा की क्रांति का बड़ा केन्द्र बनेगा और इस भूमि से शिक्षा के क्षेत्र का नया इतिहास लिखा जाएगा। पूज्य स्वामी जी व पतंजलि योगपीठ उज्जैन, मध्य प्रदेश में गुरुकुल स्थापित करने तथा मध्य प्रदेश से पतंजलि के सभी प्रकल्पों को संचालित करने के लिए आमंत्रित हैं।
महर्षि पतंजलि ने विश्व को योग के रूप में वरदान दिया है। उसी परम्परा को आगे बढ़ाया है पूज्य स्वामी रामदेव जी ने। आज की पीढ़ी योग की प्राचीन परम्परा योगगुरु स्वामी रामदेव जी को देखकर ही जी रही है। योग के रूप में जो उपहार महर्षि पतंजलि हमें देकर गए हैं, उसका सही मायने में संरक्षण और संवर्धन बाबा रामदेव ने किया है। आपने योग को बढ़ावा देने के लिए पतंजलि योगपीठ की स्थापना की। तन और मन को स्वस्थ रखने के लिए योग क्रांन्ति शुरू करने का जो योगदान आपने दिया है, उसका जितना धन्यवाद कहा जाए, उतना कम है।
श्री मोहन यादव, माननीय मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश
गुरुकुल शिक्षा का एक विशिष्ट स्थान है, जहाँ गुरु शिष्य को कुलवाहक मानकर शिक्षित कर उसका मार्ग प्रशस्त करता है। स्वामी रामदेव जी महाराज महर्षि दधिचि के समान अपना सर्वस्व देश व समाज की सेवा में न्यौछावर कर रहे हैं। यह गुरुकुल बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी प्रदान करेगा जिससे वे आदर्श नागरिक बनकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योगदान देंगे। पतंजलि की गंगोत्री से भारतीय संस्कृति की गंगा बहेगी और यह गुरुकुल व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना को साकार करेगा। निश्चित तौर पर भारतीय सनातन संस्कृति, अध्यात्म, योग के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा प्रदान करने में पतंजलि गुरुकुलम् अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
पतंजलि गुरुकुलम् एवं आचार्यकुलम् के शिलान्यास पर पूज्य स्वामी रामदेव जी, पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी समेत पतंजलि योगपीठ परिवार के सभी सदस्यों को अनंत शुभकामनाएं।
श्री पुष्कर सिंह धामी, माननीय मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड
महर्षि दयानन्द सरस्वति का राजस्थान से गहरा संबंध है। इन्होंने सत्यार्थ प्रकाश सज्जन निवास, उदयपुर में लिखना शुरू किया। ये बाद में जोधपुर होते हुए अजमेर और अजमेर से हरिद्वार आए। यहाँ इन्होंने अपनी यात्रा पाखंडी खंडनी पताका की शुरुआत की तथा हरिद्वार की धरती पर पताका फहराई। आज जो ये आधारशिला रखी जा रही है, इससे भारतीयता का भाव तेजी से बढ़ रहा है।
ऐसे कालखंड में ये जो कार्यक्रम हो रहा है मैं उसकी शुभकामनाएँ देता हूँ और पुन: कहता हूँ कि देश के नागरिकों में भारतीयता का भाव जागृत करने वाला यही सही समय है, यह भारत का अनमोल समय है।
आज पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाती है लेकिन आज विश्व के कोने-कोने में योग की जो प्रतिष्ठा हुई है तो उसमें पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का बड़ा योगदान है। योग को प्रतिष्ठा दिलाने वाले पूज्य स्वामी जी महाराज का मैं अभिनन्दन करता हूँ।
श्री अर्जुन राम मेघवाल, माननीय कानून एवं न्याय मंत्री, भारत सरकार
हमारे भारत के संतों की संस्कृति अत्यंत प्राचीन है जिसकी एक कड़ी के रूप में आज स्वामी दर्शनानंद महाविद्यालय जुडऩे जा रहा है। पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने एक ऐसे अभियान को उठाया है जो भारत की शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति पैदा करेगा। स्वामी दर्शनानंद जी महाराज ने तीन बालकों और थोड़ी सी भिक्षा में यह गुरुकुल प्रारंभ किया था और आज इसका यह प्रारूप है। मुझे आशा है कि आज माननीय रक्षा मंत्री और हमारे उत्तराखण्ड व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री व सभी पूज्य संतों के हाथ से एक बहुत बड़े गुरुकुल परिसर का शिलान्यास होने जा रहा है। संतों का जीवन परमार्थ व पुरुषार्थ के लिए है। स्वामी रामदेव जी को मैं पिछले 30 वर्षों से देख रहा हूँ। आज भारत में अगर संन्यासियों की पताका को किसी ने फहराया है तो इसमें एक नाम स्वामी रामदेव जी का है। स्वामी रामदेव जी, आचार्य बालकृष्ण जी व पतंजलि की पूरी टीम को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
पूज्य स्वामी रवीन्द्रपुरी, अध्यक्ष-अखाड़ा परिषद
1837 में महर्षि दयानंद सरस्वती ने इस गंगा के किनारे पाखण्ड खण्डनी पताका लहराई थी और आज स्वामी रामदेव जी की अध्यक्षता में, उनके नेतृत्व में यहाँ एक वैदिक पताका लहराई जा रही है। यह इतिहास महर्षि दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद जी, स्वामी दर्शनानंद जी और स्वामी रामदेव को कभी विस्मृत नहीं होने देगा। श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज और आचार्य बालकृष्ण बालकृष्ण जी के नेतृत्व में आज पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम् का यहाँ शिलान्यास ऐतिहासिक कार्य है। ये इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए। इस कलयुग में राम व कृष्ण की यह जोड़ी निश्चित रूप से इस कलयुग को भी सतयुग बनायेगी और आने वाले समय में इस गुरुकुलम् से पढऩे वाले स्नातक भी हमारी वैदिक पताका को देश व दुनिया में लहराएँगे। इस पवित्र दिन परम श्रद्धेय स्वामी जी, आचार्य जी व उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई व अभिनंदन।
श्री सत्यपाल सिंह, सांसद एवं कुलाधिपति- गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय
पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति को युवानुकूल परिवेश में स्थापित करने में युगान्तकारी भूमिका निभाई है। गुरुकुल के इस शिलान्यास कार्यक्रम में धर्म व कर्म का अद्भुत संयोग है। हरिद्वार की यह भूमि धर्म क्षेत्र है तथा मुख्यमंत्री व रक्षा मंत्री कर्म के प्रतिनिधि के रूप में हमारे मध्य उपस्थित हैं। भारत की साख मोक्षदायिनी नगरियों में से एक हरिद्वार है। तो मैं कह सकता हूँ कि धर्म, कर्म और मोक्ष की यह त्रिवेणी आज इस स्थान पर हमें दिखाई पड़ रही है जिसकी सुखद अनुभूति हमें हो रही है।
मैं पूज्य स्वामी रामदेव जी का बड़ा प्रशंसक हूँ क्योंकि इन्होंने वैदिक संस्कृति और वैदिक शिक्षा को युगानुकूल परिवेश में प्रस्तुत किया तो इन्होंने अपने संस्थान का नाम इन्होंने पतंजलि योगपीठ ही रखा, कोई नया नाम देने का प्रयास नहीं किया। यदि भारत को विश्वगुरु बनना है और एक सकारात्मक ऊर्जा द्वारा विश्व का नेतृत्व करना है तो एक सौ सत्तर देशों में जो-जो क्रान्ति जहाँ-जहाँ योग करता होगा तो कहीं न कहीं भारतीय संस्कृति के प्रति श्रद्धा का भाव उसके मन में स्वत: ही उत्पन्न हो जाता होगा।
श्री सुधांशु त्रिवेदी, माननीय सांसद राज्य सभा