पतंजलि से निरंतर जारी है 'आयुर्वेद से आरोग्ता का अभियान’यह व्यापार नहीं, सेवा का संकल्प है
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आचार्य बालकृष्ण
आयुर्वेद को कुचलने का भरसक प्रयास किया गया किन्तु पतंजलि ने कुण्ठित मानसिकता के प्रत्येक कुचक्र को तोड़ा, चुनौतियों का सामना किया और तथ्य व साक्ष्य आधारित अनुसंधान के बल पर दृढ़ता से हर सवाल का सटीक जवाब दिया। इसी का परिणाम है कि आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े शोध संस्थान के रूप में पतंजलि अनुसंधान संस्थान नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।पतंजलि के प्रयासों से लोगों में आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ा है। लोग अपने घर में पूर्ण विश्वास व श्रद्धाभाव से पतंजलि की गुणकारी औषधियों व उत्पाद रखते हैं। |
उपेक्षा का दंश झेल रहे आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता दिलाने के लिए पतंजलि वर्षों से कार्य कर रहा है। जब भी आयुर्वेद को पूर्ण चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया गया तो सबसे पहले तथ्य और प्रमाणों को ढ़ाल बनाया गया। तब हमने यह संकल्प लिया कि पतंजलि के माध्यम से आयुर्वेद को तथ्य एवं साक्ष्य आधारित प्रामाणिक चिकित्सा पद्धति के रूप में स्थापित करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पतंजलि अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई और पतंजलि पहला ऐसा संस्थान बना जिसने सर्वप्रथम आयुर्वेद पर साक्ष्य व तथ्य आधारित अनुसंधान कर आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसा। वैज्ञानिक जगत ने पतंजलि के इस प्रयास की सराहना की तो वहीं विश्वस्तरीय रिसर्च जर्नल्स में पतंजलि द्वारा प्रस्तुत शोध पत्रों को स्थान मिला। गिलोय, अश्वगंधा, सी-बकथॉर्न, पुत्रजीवक, सर्वकल्प क्वाथ, पीड़ानिल क्वाथ, शिवलिंगी बीज, च्यवनप्राश, तुलसी, काकड़ासिंघी आदि पर पतंजलि के वैज्ञानिकों ने शोध किया जिनको Elsevier, Springer, Frontiers, Nature, Molecules, Biomolecules, Journal of Separation Science, Journal of Inflammation Research, Nanoscale Advances आदि रिसर्च जर्नल्स ने प्रमुखता से प्रकाशित किया। इससे देश-विदेश में पतंजलि के आयुर्वेद व अनुसंधान का डंका बजा। आज पूरे विश्व में लोगों की दृष्टि पतंजलि पर है। पतंजलि पूर्ण वैज्ञानिक मापदण्डों के अनुरूप कार्य करता है तथा एनएबीएल मान्यता प्राप्त लैब्स से लेकर एनिमल ट्रायल व अन्य सभी प्रकार की सुविधाएँ पतंजलि अनुसंधान संस्थान में उपलब्ध हैं।
पतंजलि ने साध्य-असाध्य रोगों से त्रस्त मानव जाति को आरोग्य प्रदान करने का संकल्प लिया है। इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म, षट्कर्म, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, फिजियोथेरेपी आदि प्रामाणिक चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय से स्थापित इंटिग्रेटिड चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ पारंपरिक व वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति पर निरंतर अनुसंधान कर इन्हें और अधिक प्रभावी बनाने का वृहद् कार्य किया जा रहा है। पतंजलि के इस अभियान में कई बाधाएँ आईं, हमें कई कसौटियों से होकर गुजरना पड़ा। आयुर्वेद को कुचलने का भरसक प्रयास किया गया किन्तु पतंजलि ने कुण्ठित मानसिकता के प्रत्येक कुचक्र को तोड़ा, चुनौतियों का सामना किया और तथ्य व साक्ष्य आधारित अनुसंधान के बल पर दृढ़ता से हर सवाल का सटीक जवाब दिया। इसी का परिणाम है कि आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े शोध संस्थान के रूप में पतंजलि अनुसंधान संस्थान नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।
पतंजलि के प्रयासों से लोगों में आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ा है। लोग अपने घर में पूर्ण विश्वास व श्रद्धाभाव से पतंजलि की गुणकारी औषधियों मुक्तावटी, बीपी ग्रिट, मधुनाशिनी, मधुग्रिट, मेधावटी, रीनोग्रिट, कार्डियोग्रिट, ऑर्थोग्रिट, इयरग्रिट, आई ग्रिट आदि रखते हैं।
हमने बीपी, शुगर, थायराइड, अस्थमा, आर्थराइटिस व मोटापा से लेकर लीवर, किडनी फेल्यिर व कैंसर जैसे प्राणघातक रोगों से ग्रसित लाखों-करोड़ों लोगों को रोगमुक्त किया। एक करोड़ से अधिक लोगों का डेटा बेस, रियल वर्ल्ड एविडेंस व क्लिनिकल एविडेंस हमारे पास हैं। इनके अतिरिक्त इस वर्ष पतंजलि के नवीन अनुसंधान निम्रवत हैं-
ब्लैक फंगस में अणु तैल दिव्य आयुर्वेदिक औषधि
अनुसंधान के क्रम में इस वर्ष पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने कई गुणकारी औषधियों पर अनुसंधान किया और अपना लोहा मनवाया। इनमें एक है अणु तैल। पतंजलि अनुसंधान संस्थान ने ब्लैक फंगस में अणु तैल को प्रामाणिक औषधि बताते हुए पूरे विश्व में एक बार फिर आयुर्वेद को स्थापित करने का कार्य किया।
आयुर्वेद की हजारों साल पुरानी शास्त्रीय औषधि ‘अणु तैल’ब्लैक फंगस डिजीज के कन्निघामेला बर्थोलेटि (Cunninghamella bertholletiae) के विरुद्ध अत्यंत कारगर पायी गयी। पतंजलि ने इस पर गहन अनुसंधान किया तथा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने पतंजलि के इस अनुसन्धान में पादपों की वैदिक वर्गिकी को ‘संस्कृत भाषा आधारित’देवनागिरी लिपि में पहली बार प्रकाशित किया।
अनुसंधान में पतंजलि के वैज्ञानिकों ने पाया की अणु तैल, एक हर्बल नेज़ल-ड्रॉप है जो बीजाणुओं के अंकुरण को रोकता है। यह cAMP-PKA को कम करके रोगजनक म्यूकोरेल कन्निघामेला बर्थोलेटि के रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीसिज (आरओएस) और एक्सट्रिंसिक आरओएस को बाधित करता है। पतंजलि रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने अनुसंधान में पाया कि अणु तैल फंगस के ऑक्सीडेटिव स्टेट को प्रभावी रूप से बाधित करता है। अणु तैल इस फंगस के स्पोर्स को जर्मिनेट होने से रोकता है, और उसके साथ-साथ हमारी स्वस्थ कोशिकाओं को भी इस इन्फेक्शन से लडऩे का बल प्रदान करता है। यह आधुनिक अनुसंधान ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जर्नल ‘लेटर्स इन एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी’में प्रकाशित हुआ है।
कन्निघामेला बर्थोलेटि दुर्लभ, सबसे तेजी से बढऩे होने वाला, आक्रामक म्यूकोरेल ब्लैक फंगस है, अणु तैल इसके बीजाणुओं को बढऩे से रोकता है। पतंजलि ने वैज्ञानिक प्रमाण के बाद यह प्रस्तुत किया है और विश्व के प्रमुख माइक्रोबायोलॉजी जरनल ने इसे प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है। अणु तैल के ऊपर यह हमारा दूसरा इंटरनेशनल रिसर्च पब्लिकेशन था।
आयुर्वेद से संभव है मोटापे से मुक्ति
मोटापा एक ऐसा अभिशाप है जो आ तो आसानी जाता है किन्तु जाता बड़ी कठिनाई से है। मोटापे से छुटकारा पाने के लिए पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अथक परिश्रम कर ‘दिव्य वेट-गो’औषधि का निर्माण किया है। इस औषधि को पूर्ण रूप से वैज्ञानिक मापदण्ड पर जाँचा परखा गया है। यह रिसर्च बेस्ड मेडिसिन मोटापे से जूझ रहे लोगों के लिए अमृत के समान है।
मोटापे में आयुर्वेदिक औषधि ‘दिव्य वेट-गो’ ने सिद्ध किया है कि यदि योग व व्यायाम के साथ औषधि ‘दिव्य वेट-गो’ को लिया जाए तो व्यक्ति का वजन शीघ्रता से कम होता है। इसका शरीर पर किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
अनुसंधान में हमने पाया कि यदि व्यक्ति बिना व्यायाम के भी औषधि ‘दिव्य वेट-गो’ को लेता है तो भी वजन कम होता है तथा वजन कम होने के साथ में कोलेस्ट्रॉल, ग्लूकोज, सेंस्टिविटी सामान्य होकर इंसुलिन रेसिस्टेंस भी ठीक हो जाता है। पतंजलि का यह अनुसंधान अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल बॉयोमेडिसिन एण्ड फार्मोकोथेरेपी में प्रकाशित हुआ है।
आयुर्वेदिक औषधियाँ बढ़ाती हैं लाभकारी बैक्टीरिया
आयुर्वेद की औषधीय क्षमता के परीक्षण हेतु आस्ट्रेलिया के Swinburne University के प्रोफेसरों व पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान किया गया कि किस प्रकार से आयुर्वेदिक दवाइयां शरीर के अच्छे लाभकारी बैक्टीरिया को बढ़ाने में मदद करती हैं।
पतंजलि के इस नवीन अनुसंधान को विश्व Oxford University Press के FEMS Microbiology Ecology जर्नल ने स्वीकार किया है। आचार्य जी ने कहा कि हमें प्रसन्नता है कि आयुर्वेद की शक्ति को विदेशी वैज्ञानिक न केवल स्वीकार कर रहे हैं अपितु अनुसंधान के लिए भी आगे आ रहे हैं।
आयुर्वेद में किडनी रोगों की सर्वोत्तम चिकित्सा
आयुर्वेद में किडनी रोगों की सर्वोत्तम चिकित्सा संभव है। यह प्रमाणित किया है अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल PLOS ONE ने। अमेरिकी रिसर्च जर्नल ने पतंजलि के शोध में माना है कि एलोपैथिक दवाइयां विशेषकर एंटीबायोटिक वैंकोमाइसिन (Vancomycin) जैसी दवाइयों से किडनी खराब होती है और किडनी ठीक करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद की दवाई ‘रीनोग्रिट (Renogrit) प्रभावशाली व प्रमाणित है।
पतंजलि आयुर्वेद संस्थान के वैज्ञानिकों के गहन शोध का परिणाम है ‘रीनोग्रिट', जो किडनी रोगियों के लिए वरदान है। रीनोग्रिट किडनी रोगों के बायोमार्कर और क्रिएटिनिन/यूरिया क्लीयरेंस को विनियमित करके वैंकोमाइसिन से उत्पन्न नेफ्रोटॉक्सिसिटी को कम करता है। इस शोध से यह सिद्ध हो गया कि एलोपैथिक दवाओं से किडनी खराब होती है जबकि आयुर्वेद में किडनी का दुष्परिणाम रहित सफल उपचार निहित है।
बड़ी-बड़ी ड्रग कम्पनियों ने आयुर्वेद के सामथ्र्य व शक्ति को कुचलने का प्रयास किया। यह प्रचारित किया गया कि गिलोय के सेवन से किडनी खराब होती है। इन कम्पनियों की निगाह आज भारत पर है कि भारत की विशाल जनसंख्या कब हार्ट, लिवर व किडनी आदि के रोगों से ग्रस्त हो और उनका आर्थिक साम्राज्य विस्तार ले। उनका साम्राज्य हमारे दु:ख व रोगों पर ही खड़ा है। हमें ऐसे साम्राज्य को कुचलना होगा, और यह केवल आयुर्वेद से ही सम्भव है। आचार्य जी ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद में वह शक्ति है कि उनके इस कुचक्र को तोड़ सके।
वैंकोमाइसिन का प्रयोग मेथिसिलिन-प्रतिरोधी जीवाणु संक्रमण के विरूद्ध व्यापक रूप से किया जाता है। जबकि वैंकोमाइसिन संचय नेफ्रोटॉक्सिसिटी का कारण बनता है जिससे किडनी का निस्पंदन तंत्र प्रभावित होता है। उन्होंने कहा कि रीनोग्रिट नेफ्रोटॉक्सिसिटी को कम कर किडनी रोगों को ठीक करने में सक्षम है।
माडर्न मेडिकल साइंस में जो अच्छे डॉक्टर्स हैं तथा जो लाइफ सेविंग ड्रग्स, इमरजेंसी ट्रीटमेंट व जरुरी सर्जरी है हम उसका पहले भी सम्मान करते थे, आज भी सम्मान करते हैं...... एलोपैथी से भी एडवांस ट्रीटमेंट जो हमने वेदों आयुर्वेद के महर्षि चरक, महर्षि सुश्रुत व महर्षि धनवन्तरि, पतंजलि से प्राप्त किया है, उसको वैज्ञानिकता व प्रमाणिकता से व्यापार के लिए नहीं, उपचार व उपकार की भावना से आगे बढ़ा रहे हैं व बढ़ाते रहेंगे। |