स्वास्थ्य समाचार

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सावधान : ज्यादा मीठा खाने से किडनी में पथरी भी हो सकती है
कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, केक के ज्यादा शौकीन हैं, तो सावधान हो जाइए। ज्यादा चीनी वाली चीजें खाने से डायबिटीज का ही खतरा नहीं है, बल्कि इससे किडनी की पथरी होने की आशंका ४०त्न तक बढ़ जाती है। शोध पत्रिका फ्रंटियर्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी और एशियाई मूल के लोगों में ज्यादा चीनी वाली चीजें खाने से किडनी में पथरी होने की आशंका दूसरी जगहों के लोगों से ज्यादा होती है। इस शोध के प्रमुख डॉक्टर शान ईन बताते है कि यह पहली बार है, जब मीठे की वजह से किडनी की पथरी का पता चला है। सीमित मात्रा में मीठा खाने से किडनी की पथरी होने से रोक सकते है।
शोधार्थियों ने पाया कि जो लोग अपनी ऊर्जा का 25% शुगर से हासिल करते हैं, उन्हें किडनी की पथरी होने की आशंका 88% ज्यादा होती है, जबकि जिन्हें ऊर्जा का सिर्फ 5% चीनी से लिया है, उनमें इसकी आशंका बहुत कम थी।
गरीबों को किडनी की पथरी की आशंका अमीरों से ज्यादा है
डॉक्टर शान ईन के अनुसार, गरीबों को किडनी की पथरी होने की आशंका अमीरों से ज्यादा होती है। इसकी वजह उनका खाना है। गरीबों का खाना अनियमित होता है और उसमें मीठा की मात्रा ज्यादा होती है। दरअसल उनकी ऊर्जा का बड़ा हिस्सा मीठी चीजों से आता है। इससे उनमें किडनी की पथरी होने की आशंका बढ़ जाती है।
साभार : दैनिक भास्कर
ओवर थिंकिंग से बचने के तरीके : यह डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी मानसिक बीमारियों का संकेत हो सकता है
लेटते ही दिमाग चलने लगता है तो अच्छा पढ़ें या सुनें
बिस्तर पर लेटते ही यदि दिमाग भविष्य की योजनाएं बनाने लगता है, पेडिंग पड़े कामों को लेकर इतनी तरीके और विचार पैदा कर देता है कि नींद आना मुश्किल हो जाता है तो इसे ओवर थिंकिंग कहते है। आमतौर पर यह दो तरह की होती है। पहली- अतीत के बारे में सोचना और दूसरी- भविष्य के बारे में चिंता करना। ओवर थिंकिंग से बड़े निर्णय लेने की क्षमता घटती है। व्यक्ति विचारों के चक्र में फंस कर रह जाता है। हालांकि यह खुद में कोई मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन कई मानसिक रोगों जैसे कि डिप्रेशन, एंग्जाइटी, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर आदि संकेत हो सकता है। कई बार तनाव, परफेक्शनिज्म, असुरक्षास की भावना और दिन की किसी घटना के कारण भी हो सकती है।
ओवर थिंकिंग की पहचान और उसे बाहर निकलने में ये तरीके मददगार हो सकते हैं, ऐसे पहचानें
पीडि़त एक ही विचार, चिंता या भय के बारे में बार-बार सोचता है। स्वयं के लिए सबसे खराब स्थिति की कल्पना करता है। अतीत में हुई किसी बुरी घटना को बार-बार दोहराता है। नकारात्मक विचार सोचने में समय व्यतीत करता है। इसके अलावा पीडि़त एक ही विषय पर अटक जाता है, जिससे अन्य महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान नहीं देता है।
 दिमाग को शांत करें
मस्तिष्क एक साथ दो विचार धाराओं पर काम नहीं कर सकता है। ऐसे में दिमाग को शांत करने वाला कोई प्रोग्राम सुनें या मन शांत करने वाली कहानियां पढ़े। इस दौरान रोशनी कम रखें। हालांकि अनचाहे विचार अब भी आएंगे, लेकिन उन्हें दूर हटाने का प्रयास करें। बैकग्राउण्ड में चलने दें। अपना ध्यान पुस्तक या प्रोग्राम में लगाएं।
स्नैप जजमेंट टेस्ट
जो भी विचार परेशान कर रहा है उसे कागज पर लिखें, जैसे या जॉब बदलनी चाहिए या नहीं? प्रश्न के नीचे हां या नहीं लिखें। पेन वहीं छोड़ दें। कुछ समय बाद, वापस आएं और उत्तर पर गोला लगाएं। हो सकता है कि यह वह उत्तर हो जो आपको पसंद हो, लेकिन अच्छी संभावना है कि खुद को ईमानदारी से जवाब दे पाएं और विचार शांत हो जाएं।
खुद को सक्रिय करें
फिजिकल एक्टिविटी डिप्रेशन, एंग्जाइटी सहित विभिन्न मेंटल डिसऑर्डर घटाती है। इसके अलावा एक्सरसाइज क्रोनिक ओवरथिंकिंग में भी फायदेमंद है। केवल से १० मिनट की तेज वॉक भी दिमाग शांत करने वाले हार्मोंन एंडॉर्फिन रिलीज करती है। इसके अलावा एक्सरसाइज नर्वस सिस्टम को अति सक्रिय स्टेज से हटाकर उसे शांत करती है।
साभार : दैनिक भास्कर
 
अंधाधुंध पेन किलर खाना छोड़ें, लिवर कर रहा खराब
दवाओं की ओवरडोज और बार-बार पेन किलर का इस्तेमाल घातक हो सकत है। सच्चाई यह है कि अंधाधुंध पेन किलर लिवर को तबाह कर रहा है। एक साल में 379 मरीजों में लिवर डैमेज की स्थिति सामने आई है। यह सभी मरीज प्रोफेशनलस हैं और जरा सी तकलीफ से उबरने को सिरदर्द तो कभी बदन दर्द में बिना डॉक्टरी सलाह के पेन किलर ले रहे हैं।
इसका खुलासा जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रोइंट्रालॉजी विभाग की एक रिर्पोट में किया गया है। रिर्पोट की मानें तो बीते साल में पेन किलर से लिवर खराब के मामलों में काफी तेजी से इजाफा हुआ है, पहले यह सौ से कम रहा है। इन मरीजों के केस हिस्ट्री के साथ पैथोलॉजी टेस्ट में अलग-अलग बीमारियां सामने आई। पेन किलर के कारण आधे से ज्यादा मरीजों में लिवर के एंजाइम्स बढ़े मिले। ५६ फीसदी में गैस्ट्राइटिस तो 22 फीसदी में गैस्ट्रिक अल्सर भी पाया गया। अधिकांश में लीवर की सुरक्षात्मक लेयर की क्षतिग्रस्त मिली।
क्यों नुकसान पेन किलर का : जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन प्रो. एस. के. गौतम का कहना है कि बार-बार खासकर सिरदर्द वाली पेन किलर सबसे पहले लीवर की ऊपरी सतह के सिस्टम को बिगाड़ देती है। हाइड्रोक्लोरिक अमल भोजन के संरक्षक के रूप में भी काम करता है। गैस्ट्रिक जूस में हाइड्रोक्लोरिक एसिड भोजन को तोड़ता है और पाचन एंजाइम प्रोटीन को विभाजित करता है। यह अमाशय कवर के रूप में भी काम करता है, ताकि पेप्सिन पूरे पेट को पचाने से बच सके। पेन किलर से यह प्रक्रिया अस्त-व्यस्त हो जाती है। प्रो. गौतम के अनुसार, जब आप एक समय में एक से अधिक पदार्थ लेते हैं, या यदि आपका शरीर किसी पदार्थ को लेने का आदी नहीं है, तो ओवरडोज का जोखिम बढ़ जाता है। दवाओं का ओरवरडोज एक चिकित्सीय आपात स्थिति है, जिसके लिए तत्काल चिकित्सा ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
ओवरडोज जागरूकता दिवस
  • जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रोइंट्रालॉजी विभाग की रिर्पोट।
  • एक साल में 371 मरीजों में इससे लिवर डैमेज की स्थिति सामने आई।
  • केस हिस्ट्री के साथ पैथोलॉजी टेस्ट में अलग-अलग बीमारियां सामने आई।
  • सिरदर्द, शरीर में दर्द में बार-बार पेन किलर ने लिवर के एंजाइम्स बढ़ाए।
  • 53 फीसद में गैस्ट्राइटिस तो 22 फीसद में गैस्ट्रिक अल्सर मिला।
ओवरडोज या पेन किलर के दुष्प्रभाव
उल्टी, गंभीर पेट दर्द और पेट में ऐंठन, दस्त, छाती में दर्द, चक्कर आना, संतुलन और समन्वय की हानि, अनुत्तरदायी होने लगना, दौरे (फिटिंग)
यह भी नुकसान
गैस्ट्रोइंट्रालॉजी विभाग की एक रिर्पोट में यह भी सामने आया कि पेट में गांठ होने पर मरीजों को झोलाछापों ने टीवी को दवाएं खिला दी, इससे लीवर चौपट हो गया है क्योंकि टीबी की दवाएं लिवर को नुकसान पहुंचाती है।
पेन किलर और दवाओं का ओवर डोज लिवर के बाद किडनी पर सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव डालता है। पेन किलर की जगह पैरासिटामॉल का प्रयोग लिवर के मुफीद है।
डॉ. विनय कुमार- हैड, गैस्ट्रोइंट्रालॉजी विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज
साभार : दैनिक भास्कर
 
एसिड रिफ्लक्स दवाएं लंबे समय तक लेने से डिमेंशिया का खतरा
नए शोध में बताया गया है कि कुछ निश्चित एसिड रिफ्लक्स दवाएं लंबे समय तक लेने से डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है। एसिड रिफ्लक्स तब होता है जब पेट का एसिड आहार नली में पहुँचा जाता है। ऐसा अधिकतर तब होता है जब हम भोजन करने के बाद लेटते है, इससे पाचन समस्याएं पैदा होती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि उनका अध्ययन यह नहीं स्थापित करता है कि एसिड रिफ्लक्स दवाएं लेने से डिमेंशिया हो जाता है बल्कि वे केवल उनके बीच सह-संबंध बता रहे हैं।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी जर्नल में यह अध्ययन हाल में में प्रकाशित हुआ है। एसिड रिफ्लक्स की समस्या से सीने में जलन और दर्द का अनुभव होता है। बार-बार एसिड रिफ्लक्स होने से गैस्ट्रोएसोफेजिएल रिफ्लक्स डिजीज अथवा जीईआरडी विकसित हो सकता है, जो बाद में आहार नली में कैंसर में बदल सकता है। प्रोटान पम्प अवरोधक पेट की परत में ऐसे एसिड को उत्पन्न करने वाले एंजाइम को लक्षित करते हैं। यानि ये इनको नियंत्रित करने में सहायक हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की सदस्य अध्ययन की लेखिका डॉ. कामाक्षी लक्ष्मीनारायण कहती हैं कि हमने इनका परीक्षण किया हैं कि क्या इन दवाओं का लगातार लंबे समय तक उपयोग करने से डिमेंशिया का उच्च जोखिम हो सकता है।
अध्ययन में 5712 एसिड रिफ्लक्स पीडि़तों को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 45 वर्ष या उससे अधिक औसत 75 वर्ष थी। विश्लेषण में पाया गया कि 4.4 वर्ष से अधिक समय तक एसिड रिफ्लक्स दवाएं लेने वाले में उन लोगों की तुलना में जिन्होंने ये कभी नहीं ली, डिमेंशिया का खतरा ३३ प्रतिशत तक बढ़ गया। हालांकि शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन की सीमाएं भी बताई, क्योंकि प्रतिभागियों से साल में एक बार फोन से फालोअप लिया गया। (एएनआई)
यूपी में फल-सब्जी के 11 प्रतिशत नमूने फेल, कीटनाशक ज्यादा मिला
चाव से फल सब्जी खाने वाले होशियार रहें। शिमला मिर्च, बैंगन, टमाटर सेब आदि में तय मानक से अधिक कीटनाशकों की मात्रा पाई गई है।
राज्यभर से लिए गए इनके नमूनों में 11 प्रतिशत से अधिक नमूने फेल हुए हैं। अब यूपी सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए तय किया गया कि हर महीने राज्य की सभी सब्जी-फल मंडियों आढ़तियों के पास से बिना प्रिजवेंटिव मिलाए नमूने एकत्र कर इनकी जांच कराई जाएगी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कई राज्यों में फलों सब्जियों में तय मात्रा से अधिक कीटनाशक पाए जाने को गंभीरता से लिया। इस आधार पर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी। यूपी सरकार ने फल सब्जियों के 157 नमूनों की जांच कराई। इसमें 18 नमूने फेल हुए। अब यूपी सरकार द्वारा फल और सब्जी पर सर्विलांस अभियान शुरू  किया जा रहा है। 18 मण्डलों के तहत आने वाले जिलों की मंडिय़ों से सर्विलांस नमूना लिया जायेगा और उसे लखनऊ और मेरठ की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा जायेगा।
कीटनाशक की अधिकता से नुकसान
इस तरह के फल-सब्जियों को खाने से त्वचा संबंधी रोग होने की आशंका रहती है। कैंसर को भी इससे बढ़ावा मिलता है। इस तरह के कीटनाशकों की अधिकता का प्रभाव बच्चों पर ज्यादा पड़ता है। उल्टी दस्त की शिकायत हो जाती है।
खाद्य सुरक्षा में उत्तरप्रदेश पांचवें स्थान पर
स्टेट फूड सेफ्टी इंडेक्स 2022-23 के मुताबिक यूपी, केरल, पंजाब, तमिलनाडु मध्यप्रदेश के बाद पांचवें स्थान पर हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्य यूपी से काफी पीछे हैं। यूपी को मानकों पर 100 मे से 52.5 अंक मिले हैं।
नमूनों में पाये जाने वाले रसायनों की स्थिति
फल सब्जी कीटनाशक परिणाम एफएसएसएआई सीमा
शिमला मिर्च
 कार्बेडाजिम
1.35

0.5

बैंगन     
थियामेथोक्सम
1.13 0.3
टमाटर 
साइजोफेमिड
0.11 0.01
 
डिफेनोकोनाजोल
0.24 0.2
 
मेथोमिल 
1.19

01

 
  मेट्रीब्यूजिन
3.36 0.5
 
थियामेथोक्सम
0.93 0.7
सेब  
डिफेनोकोनाजोल
0.22 0.2
लीची
फ्लुबेन्डियामाइड
0.896 0.011
(परिणाम में मात्रा मिलीग्राम प्रतिकिलो)
अधिकारियों की जांच अभियान, नमूनों की संख्या आदि पर रिपोर्ट २३ अगस्त तक भेजने के निर्देश है। तय हुआ कि फसलों पर कीटनाशक के प्रयोग में एआई से युक्त ड्रोन के उपयोग के बढ़ावा दिया जाएगा।
साभार : हिन्दुस्तान

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