पतंजलि योगपीठ के नाम एक ओर उपलब्धि अनाम, अनारोहित दो हिमशिखरों का आरोहण

पतंजलि योगपीठ के नाम एक ओर उपलब्धि अनाम, अनारोहित दो हिमशिखरों का आरोहण

  • 17,500 फुट पर स्थित शिखर का नाम   कैलाश शिखर 16,500 फुट पर स्थित शिखर का नंदी शिखर के रूप में किया नामकरण
   प्राचीनकाल से ही हमारे ऋषि-मुनि हिमालय में आनन्द की खोज करते रहे हैं। उसी प्रकार हम भी हरिद्वार से हिमालय की यात्रा पर निकले उन अनारोहित शिखरों का आरोहण करने जिनकी पहचान अभी बाकी है, उन पर्वत शृंखलाओं की खोज में जहाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ हैं जो प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ मानव जीवन को उत्कृष्टता प्रदान करने वाली दैवीय ऊर्जा के साथ विद्यमान है।

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इस यात्रा में शामिल थी गगनचुम्बी पर्वतों की चढ़ाई जिसमें हिमालय के दुर्गम इलाकों तक पहुँचने में आने वाली सैकड़ों मुश्किलों का सामना करते हुए हम आगे बढ़ते रहे। इस यात्रा का उद्देश्य अनाम पर्वत शृंखलाओं का आरोहण और साथ ही नई-नई जड़ी-बूटियों पादपों की खोज करना ताकि हिमालय की इन अनाम वनस्पतियों की पहचान सुनिश्चित हो सके।
श्रद्धेय स्वामी जी के मार्गदर्शन में पतंजलि के वैज्ञानिकों ने अभी तक 17 ऐसे पौधों को पहचान दिलाई जो अभी तक अनाम थे, जिनको आयुर्वेद में शामिल नहीं किया गया था और जिनको फ्लोरा में भी स्थान नहीं मिला था।

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ब्रह्मकमल मानवता के लिए वरदान
हिमालय अपने गर्भ में विभिन्न प्रकार के रत्नों को संजोए है और उन्हीं रत्नों में एक है- ब्रह्मकमल। यात्रा के शुरूवाती पड़ाव में हमें ब्रह्मकमल के दर्शन हुए। उत्तराखण्ड की लगभग ३००० से ५००० मीटर की ऊँचाई पर यह पुष्प बहुतायत में पाया जाता है। इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है। इसका प्रयोग बुखार, सर्दी-जुकाम, घाव भरने, हड्डी जोडऩे तथा पाचन सम्बंधी रोगों में किया जाता है।
12,465 फुट की ऊँचाई पर यज्ञ का अनुष्ठान
यज्ञ भारतीय परम्परा में शुद्धिकरण की वैज्ञानिक परम्परा है। ये आत्मशुद्धि से लेकर वातावरण शुद्धि तक का मार्ग है। हमने विश्वकल्याणकी कामना के साथ हिमालय की लगभग 12,468 फुट की ऊँचाई पर यज्ञ का अनुष्ठान किया।

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देवभूमि है उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड को यूं ही देवभूमि नहीं कहते। यात्रा के दौरान हम उस पड़ाव पर पहुँचे जहाँ हिमशिखरों की ऊंचाई लगभग 17,500 फुट होगी। यहाँ का नजारा एकदम अद्भुत, मनमोहक अप्रतिम था। ये वो दृश्य था जिसकी कल्पना मात्र से मनुष्य मंत्रमुग्ध हो जाता है। इस सुंदर दृश्य को देखकर बाल उत्तेजना जागृत हो जाती है। हिमालय की पर्वत शृंखलाओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों देवात्माएँ यहाँ खड़ी होकर साधना तप कर रही हैं।
हिमशिखरों पर हुए नंदी के दर्शन
 जब किसी को कैलाश के दर्शन के साथ में नंदी के भी दर्शन हो जाएँ तो वह सहसा कह उठेंगे, असंभव! अद्भुत! अकल्पनीय! कुछ ऐसे ही भाव सहसा हमारे मन में भी उठे जब अनाम, अनारोहित शिखर के आरोहण के लिए पतंजलि योगपीठ तथा नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की संयुक्त टीम श्रीकंठ पर्वत हर्षिल हॉर्न पीक-2 के मध्य में स्थित हिमशिखर पहुँची।
जब हम वहाँ पहुँचे तो प्रकृति की इस अद्भुत छटा को अपलक निहारते रह गए। वहाँ साक्षात का दर्शन हो रहा था, वहाँ शिखर की आकृति के साथ ही साक्षात कैलाश का भी दर्शन हो रहा था जिससे अनाम, अनारोहित हिमशिखर के आरोहण की हमारी उत्कंठा ऊर्जा उत्साह से कई गुणा भर गई। इतना ही नहीं हमारे अचरज की तब सीमा ही नहीं रही जब उसके सम्मुख नंदी की आकृति का हिमशिखर भी साक्षात विद्यमान दिखाई दिया जिसकी ऊंचाई लगभग 16,500 फुट थी।
अनाम, अनारोहित शिखरों का नामकरण
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIMS) के प्रिंसिपल कर्नल भदौरिया पतंजलि की टीम ने यह तय किया कि दो अलग-अलग दल कैलाश पर्वत नंदी पर्वत का आरोहण करेंगे। पतंजलि परिवार को गर्व है कि पतंजलि ने केवल सफलतापूर्वक अनाम, अनारोहित दो हिमशिखरों का आरोहण किया अपितु प्रभु कृपा से उन्हें देवात्म हिमालय में साक्षात कैलाश नंदी के दर्शन एक साथ करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। इसलिए हमने उन अनाम अनारोहित शिखरों का नामकरण कैलाश शिखर नंदी शिखर के रूप में किया।
आध्यात्मिक चेतना की जागृति
हिमालय की यह यात्रा हमारे उत्तराखण्ड की देवभूमि तथा देव संस्कृति को विश्वव्यापी बनाने में एक मील का पत्थर साबित होगी और लोगों की आध्यात्मिक चेतना की जागृति के लिए यह नूतन मार्ग प्रशस्त करेगी।
पर्वतारोहण की टीम में मुख्य रूप से डॉक्टर राजेश मिश्र, डॉक्टर भास्कर जोशी, सूरज लोकेश पंवार थे। वहीं नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIMS) की ओर से कर्नल भदौरिया, सौरव रौतेला, गिरीश रणकोटी, रविंद्र सिंह, गोविंद राम, अनूप पंवार आदि सम्मिलित रहे।

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