स्वास्थ्य समाचार

ऑक्सफोर्ड का दावा, सर्दी-जुकाम से जल्द राहत दिलाता है
शहद एंटीबॉयोटिक से कहीं ज्यादा असरदार
अगली बार आपको सर्दी-जुकाम या गले में खराश की शिकायत हो तो एंटीबॉयोटिक खाएं। बड़े-बुजुर्गों के सुझाए सदियों पुराने नुस्खे पर अमल करते हुए शहद का सेवन करें। जी हां, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के हालिया शोध में शहद को श्वास संक्रमण के इलाज में एंटीबॉयोटिक से कहीं ज्यादा असरदार करार दिया गया। दिन में दो बार एक चम्मच शहद खाने से सर्दी-जुकाम, खांसी, गले में खराश, सीने में जकड़न की समस्या हफ्ते भर में दूर हो जाती है।
शोधकर्ताओं ने श्वास संक्रमण के इलाज में शहद और एंटीबॉयोटिक का तुलनात्मक असर बताने वाले १४ शोधपत्रों का विश्लेषण किया। इस दौरान शहद, खांसी, कफ, गले में खराश और सीने में जकड़न की समस्या से राहत दिलाने में कफ सिरप, एंटीहिस्टामाइन दर्द निवारक दवाओं से कई गुना ज्यादा कारगर मिला। यही नहीं, मरीजों को नींद, बेचैनी, सुस्ती, थकान, हाथ-पैर में झनझनाहट और चिड़चिड़ाहट जैसे साईड इफेक्ट भी नहीं झेलने पड़ते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक शहद में हाइड्रोजन पेरॉक्साइड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह यौगिक अपने विषाणुरोधी गुणों के लिए जाना जाता है।
  • 36% ज्यादा कारगर है शहद सर्दी-खांसी दूर करने में एंटीबॉयोटिक से।
  • 44% गिरावट दर्ज की गई खांसी की तीव्रता में, जकड़न में भी आई कमी।
  • 02 दिन में गले में खराश, सीने में दर्द, कफ की समस्या से मिलती है राहत।
  • 7.5 लाख मौतें हर वर्ष एंटीबॉयोटिकरोधी सुपरबग के कारण हो रही विश्वभर में।
फायदे और भी हैं.......
  • एंटीऑक्सीडेंट की मौजूदगी फ्री-रेडिकल को कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाने से रोकती है।
  • सुबह गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद मिलाकर पीने से चर्बी घटाने में मदद मिलती है।
  • शहद में मौजूद फाइटोन्यूट्रिएट जख्म जल्दी भरते है, अल्ट्रावायलेट विकिरणों से भी बचाते हैं।
  • पाचन तंत्र दुरुस्त रखने और हृदय रोगों के खतरे में कमी लाने में भी बेहद कारगर मिला शहद।
साभार : दैनिक जागरण
https://www.jagran.com/lifestyle/health-honey-is-moreeffective-than-medication-says-oxford-university-research-20647121.html
 
हर साल हम 55 हजार प्लास्टिक के कण खा रहे
इंसान के दिमाग से लेकर दिल तक में कब्जा जमा रहे माइक्रोप्लास्टिक के कण
प्लास्टिक का इस्तेमाल इस कदर बढ़ गया है कि इसके सूक्ष्म कण अब हमारे दिमाग से लेकर दिल तक मैं कब्जा जमाने लगे हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक हर साल जाने-अनजाने में करीब ५५ हजार माइक्रोप्लास्टिक के कण इंसान के शरीर भीतर जा रहे हैं।
इस अध्ययन को साइंस जर्नल एसीएस पब्लिकेशन्स में प्रकाशित किया गया है। इससे पहले हुए अध्ययन में इंसान के खून में प्लास्टिक मौजूद होने की बात सामने आई थी। यूनिवर्सिटी ऑफ विक्टोरिया के वैज्ञानिकों ने अध्ययन मे पाया कि ये छोटे-छोटे कण ८० फीसदी लोगों में मौजूद हैं। इतना ही नहीं इंसान के दिल और दिमाग में उन्होंने एक नहीं, बल्कि नौ किस्म के माइक्रोप्लास्टिक मिलने की पुष्टि की है। अध्ययन में इंसानों नसों में भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता लगाया। इसमें हर ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के लगभग १५ कण मिले है।
  • 09 तरह के माइक्रोप्लास्टिक नसों के जरिये शरीर के भीतर पहुंचने की पुष्टि हुई
  • 80% लोगों में मौजूद हैं माइक्रोप्लास्टिक के कण
एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक हफ्ते में खा रहे है
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि प्लास्टिक के कण नसों के जरिये दिल और दिमाग में पहुँच रहे हैं। उनके मुताबिक एक इंसान हर हफ्ते एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक खा जाते हैं। जो शरीर के लिए नुकसानदायक है। उनका मानना है कि शरीर के भीतर प्लास्टिक पहुँचने से कैंसर की बीमारी तेजी से बढ़ रही है।
शरीर के भीतर पहुँचकर ये खतरे पैदा कर रहा
  • अल्जाइमर की बीमारी बढ़ने के लिए शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक कणों को जिम्मेदार माना।
  • ग्लियल फाइब्रिलरी एसिडिक प्रोटीन को घटाकर फैसले लेने की क्षमता कमजोर माना।
  • ब्रेन-ब्लड बैरियर को नुकसान पहुँच रहा, यह बाहरी कणों को मस्तिष्क में पहुँचने से रोकता है।
फैसला लेने की क्षमता को कमजोर कर रहे
इंसान के शरीर में प्लास्टिक पहुँचने के पुष्टि होने के बाद शोधकर्ताओं ने इसके खतरे को जानने के लिए चूहों पर अध्ययन किया। इस दौरान लगातार तीन सप्ताह तक उन्हें पानी और खाने में प्लास्टिक के बारीक-बारीक टुकड़े डालकर दिए गए। इस दौरान उनमें अल्जाइमर के लक्षण दिखने लगे। इसके अलावा मस्तिष्क में फाइब्रिलरी एसिडिक प्रोटीन भी घटने लगा। इस प्रोटीन की कमी से फैसला लेने की क्षमता कमजोर हो रही है।
इस तरह किया अध्ययन
अमेरिकन केमिकल सोसायटी ने इस अध्ययन के नतीजे सार्वजनिक किए। इसके अध्ययन के लिए दिल की सर्जरी कराने वाले लोगों को चुना गया। इसके बाद लेजर डायरेक्ट इंफ्रारेड इमेजिंग सिस्टम की मदद से उनके दिल और दिमाग की ऊतकों को देखा गया। इसमें पाया गया कि उनके दिल और दिमाग में नौ तरह के माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे। इसमें सबसे बड़ा टुकडा लगभग ४६९ मिलीमीटर का था।
साभार : दैनिक भास्कर
चार हजार कदम चलने से कम होता है मौत का खतरा
आजकल लोगों की बदलती जीवनशैली के कारण डायबिटीज और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता जा रहा है, इसलिए लोगों को सलाह दी जाती है कि स्वस्थ रहने के लिए बेहतर भोजन के साथ ही रोज व्यायाम करें। अगर आप व्यायाम नहीं कर सकते तो कम से कम टहलें जरुर। एक शोध में सामने आया है कि अगर आप रोज कम से कम 3967 कदम चलते हैं तो यह किसी भी कारण से होने वाली मौत के खतरे को कम करता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर आप 2337 कदम रोज चल पाने में सफल होते हैं तो दिल और कार्डियोवस्कुलर संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करने में सहायक है। विश्वभर के 2,26,889 लोगों से जुड़े 17 अध्ययनों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि आप जितना अधिक चलते हैं उतना अधिक स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है। यह शोध यूरोपियन जर्नल आफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। इसमें कहा गया है कि हर अतिरिक्त 1000 कदम किसी भी कारण से मौत के खतरे को 15 प्रतिशत तक कम करने में सहायक है, जबकि 500 अतिरिक्त कदम कार्डियोवस्कुलर बीमारी से होने वाली मौत के खतरे को सात प्रतिशत तक कम करने में सहायक है।
पोलैण्ड के मेडिकल यूनिवर्सिटी आफ लाड्ज में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर मैकिएज बानाज ने कहा कि भले ही लोग प्रतिदिन 20,000 कदम चलें, स्वास्थ्य लाभ में वृद्धि जारी रही। उन्हें रोज चलने के लिए अब तक कोई ऊपरी सीमा नहीं मिली है। यह पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी उम्र के हों और किसी भी क्षेत्र में रहते हों।
साभार : दैनिक जागरण
https://www.jagran.com/delhi/new-delhi-city-ncrhealth-walking-four-thousand-steps-reduces-the-riskof-
death-23497118.html
 
 

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