''त्यौहार''
भारतीय संस्कृति की समृद्ध तस्वीर
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वंदना बरनवाल
राज्य प्रभारी-महिला पतंजलि योग समिति, उ.प्र.(मध्य)
भारत यानि भावों से भरी राग और ताल की भूमि, भारत यानि भाव और भावनाओं से परिपूर्ण अध्यात्म की समझ रखने वालों की भूमि, भारत यानि ज्ञान रूपी प्रकाश की खोज में लगे हुए ऋषियों-मुनियों की भूमि, भारत यानि वेद पुराण के ज्ञान से सराबोर भूमि, भारत यानि वह भूमि जहां हर कथन, हर सोच, हर कर्म के पीछे एक भाव या भावना निहित हो। ऐसे ही भावों संग बहुरंगी विविधता, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विश्व की सबसे पुरानी आध्यात्मिकता से भरपूर सभ्यता यही तो विशेषताएं हैं हमारे देश की। यदि कोई इसे केवल 28 राज्य और 8 संघ राज्य क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाओं वाला देश मानता है तो गलत है। यह देश तो विविध सांस्कृतिक गतिविधियों से भरपूर एक सौ चालीस करोड़ की आबादी वाला देश है जो न केवल अपनी जनसांख्यिकीय, इतिहास, संस्कृति, वेश-भूषा और भाषा की समृद्धि के लिए ही जाना जाता है बल्कि अपने त्यौहारों की विशिष्टता, विचित्रता और वैज्ञानिकता के लिए भी हमेशा ही सबका ध्यान आकर्षित करता रहता है। हर कुछ दिनों में एक नए त्यौहार का आगमन जिसको मनाने का कारण और विधि सब कुछ बिलकुल ही भिन्न हो, भारतीय संस्कृति की समृद्ध तस्वीर को उकेरता है। इस तस्वीर में धर्म, अध्यात्म, विज्ञान, प्रकृति, समाज, खुशहाल परिवार, स्वास्थ्य आदि सबका मिश्रण है।
प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
त्यौहार भारतीय परंपरा के संस्कार हैं. इनको मनाने के तौर-तरीके, इनकी उमंग हमारे देश के रंग को निखारती और संस्कृति को समृद्ध बनाती है। विशेष पूजा-पाठ, खान-पान एवं उपवास के साथ ही कभी सूर्य की पूजा तो कभी चन्द्रमा की, कभी रंगों का त्यौहार तो कभी जगमगाते दीयों का। इन सभी त्यौहारों को मनाने का तौर तरीका अलग, सामग्री अलग, समय और मुहूर्त अलग, खानपान कैसा हो या उपवास कब किया जाये सब कुछ पूर्ण परिभाषित। पर क्या कभी आपने सोचा कि इन त्यौहारों का निर्धारण कैसे हुआ होगा, ग्रह नक्षत्र इसमें क्या भूमिका निभाते हैं, सदियों से इनको मनाने के पीछे क्या उद्देश्य रहे होंगे? अगर कोई यह कहता है कि ये त्यौहार केवल एक धार्मिक आयोजन का हिस्सा हैं जो कुछ पूजा-पाठ की विधियों तक सीमित है तो निश्चित रूप से उसकी जानकारी अपूर्ण है। दरअसल हमारे त्यौहार केवल धार्मिक संस्कार का हिस्सा नहीं हैं बल्कि यह वैज्ञानिक और मनोविज्ञान दोनों ही तथ्यों से भरपूर हैं। क्षेत्र और बोली बदलने के साथ ही इन त्यौहारों को मनाने के तौर-तरीकों में थोड़ा-बहुत अंतर आ ही जाता है और जिसकी खूबसूरती भी कुछ अलग किस्म की ही है बावजूद इसके इनमें जो समानता है वो यही है कि हर त्यौहार अपने साथ पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और अध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण लिए हुए भी होता है। त्यौहारों के इसी मिश्रित दृष्टिकोण ने इस देश के विचार एवं भावनाओं को ऐसा अदभुत रंग प्रदान किया है जो पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल देता है।
कल्पना की कोरी उड़ान नहीं
पर्वों और त्यौहारों की लम्बी शृंखला वाला एक ऐसा देश जहाँ वर्ष का हर दिन अपनी विशेषता के लिए परिभाषित किया गया हो और परिभाषा भी कोई ऐसी वैसी नहीं बल्कि पूर्ण वैज्ञानिक तथ्यों और गणितीय तर्कों पर आधारित हो और जिसका लाभ केवल भारत को नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को मिले बस यही तो विशेषता है भारत और भारतीय पर्वों और त्यौहारों की। यदि इसका श्रेय किसी को दिया जाये तो उसके अधिकारी कोई और नहीं हमारे ऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अपनी ध्यान साधना को इतने उच्च स्तर तक पहुंचा दिया कि उनके ज्ञान की रोशनी आज भी आधुनिक विज्ञान और विज्ञानियों का पथ प्रदर्शन कर रही है। अंतरिक्ष की यात्रा, भौगोलिक गणनाएं, कंप्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट समेत कृत्रिम इंटेलिजेंस ये सब विज्ञान के महत्वपूर्ण अविष्कार के रूप में देखे जाते हैं. पर सोचिये उन ऋषि वैज्ञानिकों के इंटेलिजेंस को जो केवल ध्यान में उतरकर उस अदृश्य को देख लेने की शक्ति रखते थे जिसको देखने के लिए आज ना जाने कितने वैज्ञानिक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। उनकी यह शक्ति उनके कल्पनाओं की कोरी उड़ान मात्र नहीं थी क्योंकि विज्ञान भी आज उसे ही दोहरा रहा है। यही कारण है कि भारतीय त्यौहार और उनको मनाने के कारण और विधियों की वैज्ञानिक मान्यता भी बढ़ रही है।
पञ्च तत्वों के बोध का महत्व
वर्ष 2024 की शुरुआत हो चुकी है और कैलेंडर बदल चुके हैं। बदले हुए कैलेंडर और 2024 की शुरुआत के साथ ही त्यौहारों का इंतजार भी शुरू हो गया है। इन त्यौहारों की संख्या इतनी कि यदि कोई चाहे तो हर महीने तो क्या हर सप्ताह हर दिन कोई ना कोई पर्व त्यौहार मनाता रह सकता है। इन त्यौहारों की खूबसूरती इतनी कि सबके तौर तरीके बिलकुल ही अलग। इसीलिए तो भारत को त्यौहारों की भूमि भी कहा जाता है और शानदार बात यह कि हर त्यौहार का सन्देश अनूठा होते हुए भी अंतत: एक जैसा ही हो जाता है और वो है अशुभ का अंत। अशुभ शारीरिक या मानसिक बीमारी के रूप में भी हो सकता है या पारिवारिक और सामाजिक कलह के रूप में भी हो सकता है। यह अशुभ सामाजिक विद्वेष ही नहीं प्राकृतिक आपदा के रूप में भी हो सकता है। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक, हर राज्य और समुदाय के अलग अलग माह में त्यौहार मनाने का चलन प्रदान कर दिया। उन्होंने इन त्यौहारों का ताना बाना ऐसा बुना कि आज यह हर भारतीय के जीवन का अभिन्न अंग बना हुआ है। भले ही रोजी-रोटी कमाने या पढ़ने-लिखने के लिए परिवार का कोई भी सदस्य परिवार से दूर रह रहा हो त्यौहारों के आते ही अपने परिवार में वापस आ जाता है। जनवरी में मकर संक्रांति से शुरू होकर फरवरी में वसंत पंचमी, मार्च में महाशिवरात्रि और रंग बिरंगी होली से होते हुए, रक्षा बंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि, विजय दशमी, करवा चौथ, दीपावली, भाई दूज, छठ पूजन आदि अनेकों त्यौहार गीत संगीत, नृत्य, व्रत, उपवास और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ धूमधाम से मनाने की परंपरा भारत की समृद्ध विरासत और जीवंत परंपराओं को तो दर्शाते ही हैं पर साथ ही ये हमें उन पञ्च तत्वों के महत्व का भी बोध करवाते हैं जिनसे मिलकर इस शरीर की रचना हुई है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने त्यौहारों के आयोजन में हमेशा ही प्रकृति को महत्व देते हुए पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, सूर्य-चन्द्रमा, नदी आदि के पूजन का विधान रख दिया। प्रकृति के ऐसे ही महत्व को रेखांकित करता त्यौहार है जनवरी माह में मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का त्यौहार।
दिव्यता से संपर्क का अवसर
भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है इसलिए 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। वैसे तो परंपराओं व संस्कारों से घिरे हर त्यौहार समाज और राष्ट्र के हित में कोई न कोई संदेश देते हैं पर मकर संक्रांति के त्यौहार का सन्देश कुछ ख़ास ही होता है जो प्रकृति की विरासत और उसके महत्व को समझने का अवसर ही नहीं प्रदान करता बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों को आधार बनाकर प्रकृति की उर्जा पर ध्यान केंद्रित करने का सन्देश भी देता है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियां चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का राशि परिवर्तन अर्थात सूर्य का एक राशि से अगली राशि यानि मकर राशि में संक्रमण या प्रवेश। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने, विज्ञानियों ने सूर्य की रश्मियों का अध्ययन करते हुए सूर्य के मार्ग के 12 भाग किये और प्रत्येक भाग को राशि कहा। इस प्रकार सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं। एक वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं और एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है। स्कन्द पुराण में भी मकर संक्रान्ति का उल्लेख मिलता है और इसके अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता पृथ्वी पर आते हैं इसीलिए इसे देवताओं और दिव्यता का समय भी माना जाता है। यानि मकर संक्रान्ति दिव्यता से संपर्क का भी अवसर प्रदान करती है जिसके कारण यह आध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए विशेष महत्व वाली बन जाती है।
खगोलीय गणना पर आधारित त्यौहार
हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है और हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते हैं। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है। पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती हैं जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी की इस वार्षिक गति के सहारे ही गणना करके वर्ष और मास आदि की गणना की जाती है। इस क्रम में जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है। इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण काल कहा जाता है। चूँकि 14 जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अत: मकर संक्रान्ति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही मनायी जाती है। मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। छांदोग्य उपनिषद और श्रीमदभगवदगीता के आठवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी सूर्य के उत्तरायण में होने का महत्व स्पष्ट किया गया है।
त्यौहार एक रूप अनेक
मकर संक्रांति के त्यौहार को सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है और इसकी विशेषता और खूबसूरती हर प्रदेश में अलग ही है। पर्व एक है पर इसको मनाने की परम्पराएं अलग-अलग हैं। इस कारण से ही विशाल भारत की विविधताओं में अन्तर्निहित एकता और अखण्डता का अनुपम उदाहरण भी प्रस्तुत करता है यह त्यौहार। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व ही मनाया जाता है जिसमें अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए चने की आहुति दी जाती है। राजस्थान एवं गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की विशेष परम्परा है जबकि उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से स्नान और दान के पर्व के रूप में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में तो इस पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने तड़के से ही जनसैलाब उमड़ पड़ता है। बिहार में भी मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से ही जाना जाता है जबकि असम के लोग इसको माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। इसी प्रकार महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना से लेकर तमिलनाडु एवं कर्नाटक तथा केरल सभी प्रदेशों में मकर संक्रान्ति का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।
स्नान दान संग स्वास्थ्य का विज्ञान
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मकर संक्रान्ति का पर्व आयेगा और चला जायेगा। भोर होते ही देशभर में हजारों लाखों लोग नदियों में डुबकी लगायेंगे, मंदिरों के घंटे बज उठेंगे, पुण्य की आस में दान किये जायेंगे, रसोई में प्रसाद रूपी भोजन के रूप में खिचड़ी बनेगी, दही संग गुड़ और चूड़ा अपना सोंधा स्वाद बिखेरेगा और इन सबके साथ सजेगा तिलकुट और गजक का बाजार और साथ में होगी पतंगबाजी। इन सारी विशेषताओं में कितना धर्म कितना अध्यात्म और कितना विज्ञान है कितने लोग जानते होंगे। कहाँ तो एक तरफ उत्तर भारत में ठण्ड की वजह से लोग रजाई में दुबके रहते हैं और दूसरी तरफ भोर में ही सूर्योदय से पूर्व नदी में स्नान करने की प्रथा। हो सकता है कुछ लोगों को यह सब विरोधाभासी या अजीबोगरीब लगता हो पर है इसी में तो छुपा है स्वास्थ्य का विज्ञान। उन्हें क्या पता कि जब ठण्ड में शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है और त्वचा भी रूखी हो जाती है तो ऐसे में नदी में स्नान और सूर्य की किरणें दोनों ही जबरदस्त औषधि का काम करती हैं। यही नहीं नदी में स्नान से अंतर्मन तो शांत होता ही है साथ ही नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती है। इसी प्रकार मकर संक्रान्ति में विशेष रूप से तिल के सेवन का भी प्रावधान है जो कि कफ नाशक, पुष्टिवर्धक और तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार तिल और गुड़ दोनों में ही भरपूर औषधीय और पोषक गुण पाये जाते हैं। तिल जहाँ अच्छे कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाता है और बुरे कोलेस्ट्रोल को कम कर हृदय रोग के खतरे को कम करता है तो वहीं गुड़ लौह तत्व का अच्छा स्त्रोत होने के कारण खून बढ़ाने में प्रभावी होता है। इसी प्रकार संक्रान्ति के दिन बनने वाली खिचड़ी से अधिक सुपाच्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से श्रेष्ठ भोजन और क्या होगा। आयुर्वेद के अनुसार मूंग की दाल त्रिदोषों यानि वात, पित्त और कफ को संतुलित करती है और इससे बनी खिचड़ी पोषक और सुपाच्य होने के कारण पेट के लिये भी जबरदस्त फायदेमंद है।
स्पष्ट है कि मकर संक्रान्ति खगोल विद्या और आयुर्वेद का ऐसा अद्भुत मिश्रण है जो कि ज्ञान की हमारी समृद्ध विरासत की एक शानदार तस्वीर प्रस्तुत करता है। ऐसे ही अनेकों त्यौहारों के अलग अलग रंगों को समेटे हुए सांस्कृतिक विरासत की इस तस्वीर के रंग धुंधले ना पड़ें इसके लिए ही तो हमारे पूर्वजों ने इन्हें पूजा पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़कर हमें विरासत में दिया है। और अब यह हमारा दायित्व है कि हम इन त्यौहारों के उद्देश्यों और इनको मनाने में अपने उत्साह को बनाये रखें जिससे अगली पीढियां भी इन त्यौहारों के संदेशों को समझ सके जिससे भारतीय संस्कृति की तस्वीर और समृद्ध होती रहे।
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