वर्तमान की आवश्यकता ‘यज्ञ’

वर्तमान की आवश्यकता ‘यज्ञ’

स्वामी विप्रदेव, पतंजलि संयासाश्रम

पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार

Present need 'Yagya'

   भारतीय संस्कृति मेंयज्ञ, योग एवं आयुर्वेदजैसी अमूल्य विद्याएं एवं विधाएं हैं, जो इस संस्कृति कीमुकुटमणिहैं। इतिहास की ओर दृष्टि डालें तोभगवान् श्रीराम, भगवान् श्रीकृष्णसे लेकर राजा-महाराजाओं, ग्रामवासियों अरण्यवासि-ऋषियों की कुटियों तक नित्य नैमित्तिक यज्ञ का प्रचलन देखने को मिलता है, जो सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं पंथनिरपेक्ष पावनी परम्परा है।
'पंच-महाभूतोंसे निर्मित इस जगत् का जीव मात्र प्रयोग ले रहा है। सभी लोग एक ही वायु में श्वास लेते, एक ही सूर्य से ऊर्जा लेते, एक ही जल का पान करते, एक ही भूमि पर विचरण करते हैं तथा एक ही आकाश-मंडल के नीचे बसते हैं। हम सब समान हैं, एक हैं, चाहेहिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आदि जो भी है सब मनुष्य ही हैं हम सब एकदिव्य शक्ति (ईश्वर) की संतान है, जिसने हमें पंचभूतों से निर्मित जगत् प्रदान किया है। इन्हीं पंचभूतों के बीच हमारा पूरा जीवन चलता है समाप्त हो जाता है। मनुष्य का जीवन इन पंच-भूतात्मक प्रकृति के संतुलन में है। आज निरंकुश भोगवाद के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है। प्रदूषण एक ऐसा जहर है, जो कालांतर में अपने ही जनक को भस्मासुर की तरह भस्म कर देता है। आज हमने वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण से लेकर आण्विक-प्रदूषणों को जन्म दिया है। १३० देशों के २४०० साइंटिस्टों की टीम ने अपनी रिर्पोटइंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाईमेट चेंजिंगमें जो बातें कही हैं, वह किसी संदेह की गुंजाइश नही रखती। धरती का तापमान इस सदी में . डिग्री बढ़ जाएगा, जिससे मौसम में आमूलचूल परिवर्तन होंगे।ग्लेशियर तेजी से पिघल जायेंगे, समुद्रतटीय शहर संकट से घिरे होंगे, रोगों का भयानक हमला होगा, जीवनदायिनी मां जिससे गंगा सूख जाएगी, कई पेड़-पोधें पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी, फसलों की पैदावार घटेगी, जिससे बहुत बड़ी जान-माल की हानि होगी। शताब्दी के अंत तक पूरी दुनियां में एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों के सामने पीने के लिए पानी नहीं होगा। इस रिपोर्ट में कहे अनुसार आज होने भी लग चुका है। आज भारत जैसे देश की ४०% नदियाँ सुख चुकी हैं, ५५०% कुएं सूख चुके हैं, ४५% भूगर्भ जलस्तर नीचे जा चुके हैं। पूरी दुनियां के १० बड़े ऐसे शहर है, जहाँ पर पानी की आपूर्ति कुछ ही दिनों के बाद समाप्त हो जायेगी, मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक जल का भय जहाँ एक ओर है, तो वहीं दूसरी ओर वायु का। मनुष्य अन्न के बिना महीने, जल के बिना सप्ताह जीवित रह सकता है,परन्तु वायु के बिना मिनट भी नहीं। वहीं वायु जो जीवन देती हैं, आज जानलेवा हो चुकी है।
पूरी दुनियां में वायु-प्रदूषण का तांडव हो रहा है, ‘हर में से एक व्यक्ति वायु-प्रदूषण से मृत्यु को गले लगा रहा है, जिसमें ३६त्न लोग फेफड़ों के कैंसर से मर जाते हैं भारत ही नहीं पूरी दुनियां में इसके खौफ का डंका बज चुका है तथा वायु-प्रदूषण रूपी भस्मासुर पूरी मानव सभ्यता के साथ-साथ अन्य पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, वनस्पति-औषधियों से लेकर संम्पूर्ण अस्तित्व को निगलने को तैयार है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (who) के आकड़ों के अनुसार ७० लाख से अधिक लोग केवल वायु-प्रदूषण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। पूरी दुनियां में प्रकृति के साथ अब मनुष्य के ऊपर भी खतरे की घंटी बज चुकी है। यह ग्लोबल वार्र्मिंग अबग्लोबल वार्निंगहो चुकी है, जिसक समाधान हैयज्ञ, वृक्षारोपण एवं वैदिक जीवन-शैली
वेद का उद्घोष है
अयं यज्ञो भुवनस्य नाभि:’ अर्थात् यज्ञ पंचभूतात्मक देह से लेकर ब्रह्मांड तक में स्वास्थ्य एवं संतुलन कायम करता है। वैज्ञानिक शोध दर्शाते हैं, कि यज्ञाग्नि में उत्तम गुणवत्तायुक्त-घृत-जड़ी-बूटियां एवं समिधा आदि की मंत्रोच्चारणपूर्वक आहुति देने पर वह द्रव्य अत्यंत सूक्ष्म आरोग्यवर्धक होकर हमें स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान करता है। यज्ञ, अस्थमा, कैंसर से लेकर कोरोना उससे होने वाले रोगों से बचाने के साथ ही तनाव, अनिद्रा, अवसाद आदि मानसिक रोगों को दूर कर शांति सौमनस्य प्रदान करता है यज्ञ से विषैली गैसों में भारी मात्रा में कमी आती है जानलेवा बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि नष्ट होते हैं एवं रेडिएशन को भी कम करता है यज्ञ भूमि की उर्वरा शक्ति एवं फलों के एक्टिव कम्पांउड को बढ़ाता है तथा रोगों की रोकथाम भी करता है।यज्ञ कृषि से उत्पन्न अन्न-फल आदि पोषक तत्वों से युक्त एवं स्वादिष्ट होते हैं यज्ञ उत्तम वर्षा तथा जलाशयों का शोधन करने वाला होता है।यज्ञ जड़ एवं चेतन दोनों में सात्विकता का संचार करता है यज्ञ प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार का लाभ प्रदान करता है। यज्ञ भौतिक  जीवन में धन-धान्य आदि ऐश्वर्य एवं आध्यात्मिक जीवन में मानवीय चेतना का उत्कर्ष करके अतिमानस चेतना की ओर अग्रसर करता है।यज्ञ से अभ्युदय एवं निश्श्रेयस दोनों की सिद्धि होती है
शास्त्रीय महिमा
येन सदनुष्ठानेन सम्पूर्णाविश्वं कल्याणं भवेदाध्यात्मिकाधिदैवकाधिभौतिकतापत्रयोन्मूलनं सुकरं स्यात् तत् यज्ञपदाभिधेयम्।
जिस सदनुष्ठान से सम्पूर्ण विश्व का कल्याण हो तथा आध्यात्मिक-आधिदैविक-आधिभौतिक तीनों तापों का उन्मूलन सरल हो जाए, उसे यज्ञ कहते हैं।
एतेषु यश्चरते भ्राजमानेषु यथाकालं चाहुतयो ह्याददायन्।
तन्नयन्त्येता: सूर्यस्य रश्मयो यत्र देवानां पतिरेकोऽधिवास: (मु.. ,,)
सात लपटों वाली अग्नि की शिखाओं में जो यजमान, ठीक समय पर आहुतियां देता हुआ कर्म को पूरा करता है, उसको आहुतियां, सूर्य किरणों में पहुँचकर संचित कर्मरूप होकर वहां पहुँचा देती है जहाँ जगत् के आधार परमात्मा को साक्षात् जाना जाता है।
यथेह क्षुधिता बाला मातरं पर्युपासते।
एवं सर्वाणि भूतान्यग्निहोत्रमुपासत।। (छा.. ,,,)
इस लोक में जैसे भूखे बच्चे, माता से सुखादि की याचना करते हैं। ऐसे ही सारे प्राणी, अग्निहोत्र (यज्ञ) की उपासना करते हैं।
एतद्वै जरामर्यसत्रं यदग्निहोत्रम्। जरया ह्येवास्मान्मुच्यन्ते मृत्युना वा।।
(तैत्ति.आरण्य.-१०.६४., शत.ब्रा.-१२...)
यह अग्निहोत्र जरामर्य सत्र है, क्योंकि यह अत्याधिक अशक्तता अथवा मृत्यु के बाद ही छोड़ा जा सकता है।
तस्मादपत्नीकोऽप्यग्निहोत्रमाहरेत्।। (ऐत. ब्रा. .)
पत्नी के बिना भी अकेले अग्निहोत्र करें।
मुखं वा एतद्यज्ञानां यदग्निहोत्रम्।। (शत. ब्रा.-१४...२९)
यह अग्निहोत्र यज्ञों का मुख है।
सर्वस्मात्पाप्मनो निर्मुच्यते एवं विद्वानग्निहोत्रं जुहोति।। (जै. ब्रा.-.)
जो विद्वान अग्निहोत्र करता है, वह सब पापों (दोषों या प्रदूषणों) से छुट जाता है।
यज्ञशिष्टाशिन: सन्तो मुच्यते सर्वकिल्बिषै:
भञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।। (गीता .१३)
यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाला अर्थात् यज्ञ कर प्रकृति को शुद्ध बनाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं परन्तु जो बिना यज्ञ किए या केवल अपने पोषण के लिए ही भोजन पकाते हैं, वह रोगों पापों को ही खाते हैं।
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