जीवन को निरोगी एवं स्वस्थ बनायें उपवास (Fasting)

जीवन को निरोगी एवं स्वस्थ बनायें उपवास (Fasting)

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय

उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

   आयुर्वेद की दृष्टि से उपवास (Fasting) का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। उपवास रखने से हमारे शरीर में कौन-कौन से हिस्से उपचारित हो जाते हैं? उनका कौन-कौन सा बॉडी रिस्पांस हमारे हर एक ऑर्गन, हमारा हर एक वास्तविक सेल उसको कैसे रिएक्ट करता है? उपवास के पीछे क्या सांइस है? जब हम उपवास रखते हैं तो हमारे शरीर में क्या-क्या बदलाव आते हैं? कौन-कौन से आर्गन से इसकी शुरूआत होती है? और इसके क्या-क्या लाभ हैं? ये स्वास्थ्यगत दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। उपवास एक ऐसी प्रैक्टिस है जिसमें हम एक छोटे अन्तराल में कुछ खाते हैं और ही पीते हैं। उपवास में केवल एक टास्क आर्गन है, वह है पैनक्रियाज।
जैसे ही हम उपवास (Fasting) रखते हैं तो सबसे पहले पैनक्रियाज के अन्दर बदलाव आने शुरू हो जाते हैं। पैनक्रियाज से निकलने वाले हार्मोन इन्सुलिन के बारे में जानते हैं। एक दूसरा बड़ा हार्मोन है ग्लूकागोन (Glucagon) यह ऐसा हार्मेन है जिसे पैनक्रियाज स्रावित करता है। पेनक्रियाज ग्लूकागोन इसलिए स्रावित करता है क्योंकि हमारे लीवर के अन्दर एक फूड स्टोर होता है। हम खाना खाते हैं तो ग्लूकोज तो है, पर जो अतिरिक्त ग्लूकोज है वह हमारा लीवर और हमारी मसल्स ग्लाइकोजिन में बदलकर सुरक्षित रख लेते हैं। यदि वह अधिक मात्रा में हो तो वह फैट में परिवर्तित हो जाता है। तो ग्लाइकोजिन को ग्लूकोज में तोडऩा आसान होता है और वो तोड़ते हैं ग्लूकागोन के माध्यम से। जो ग्लूकागोन है वह हमारे पैनक्रियाज के सेल्स से स्रावित होना शुरू हो जाता है, जैसे ही हम उपवास की शुरूआत करते हैं। हमारे शरीर में हमारी रिजर्व एनर्जी के माध्यम से एनर्जी आनी शुरू हो जाती है। यदि हम उपवास में कुछ नहीं खा रहे हैं तो यह नहीं समझना चाहिए कि हमारे अन्दर एनर्जी की कमी हो गई है या एनर्जी नहीं रही है। ये एनर्जी हमारे लीवर में और मसल्स में सुरक्षित रहती है जिसे हमारा शरीर तुरंत रिलिज कर लेता है। इसके अलावा फैट भी एनर्जी का स्रोत है। फैट सेल्स हमारी त्वचा की पतली झिल्ली के नीचे, पेट में तथा पूरे शरीर में रहती हैं। उपवास (Fasgint) रखने से हमारा शरीर एनर्जी को मांगता है, तो हमारे शरीर में एकत्र एनर्जी से हमारा शरीर कार्य करता है। इससे हमारे शरीर के तंत्र खराब नहीं होते, सारी शारीरिक क्रियाएँ सुचारू रूप से चलती रहती हैं। तो अभिप्राय यह है कि उपवास हमारे शरीर में संचित स्रोतों को सक्रिय करते हैं।
उपवास (Fasting) से ऐसे दो कार्य होते रहते हैं कि हम ऐसे एक स्टोर एनर्जी को कंज्यूम करना शुरू कर देते हैं और दूसरा हम एक हेल्दी साईकिलिंग की तरफ जाना शुरू कर देते हैं। यदि हम 8 घंटे का उपवास रखें तो हमारा शरीर उसको रिएक्ट करना शुरू कर देता है, यह उपवास की पहली अवस्था है। जब ऐसी फैटी स्थिति आने लगती है कि हम अब एनर्जी को ब्रेकडाउन रहें हैं, फैट्स को तोड़ रहे हैं तो कुछ कम्पोनेन्ट हैं जिसको हम कीटोन्स कहते हैं, वो कीटोन्स उपवास के दौरान आने लगते हैं जिससे हमारा मस्तिष्क बहुत खुश रहता है। उसकी वजह से हमारे मन में हेल्दी फिलिंग आने लगती है और हमारे भीतर स्मृति प्रतिधारणा (Memory Retention) की क्षमता भी बढ़ जाती है। रिपेयरिंग जीन्स (Repair jenes) उपवास का एक बड़ा पैरामीटर है। जिसमें हमारे शरीर में जो भी टूट-फूट हो रही है, जो हमारे शरीर का मेंटीनेंस डिपार्टमेंट है उस मेंटीनेंस डिपार्टमेंट का Activation रिपेयर जीन्स (Repair jenes) से होता है। तो रिपेयर जीन्स सक्रिय हो जाते हैं चाहे वह डीएनए की रिपेरिंग हो या सेल्स की रिपेरिंग हो। सब लोग जानते हैं कि जब हम उपवास करते हैं तो हमारा वजन कम हो जाता है, कोलेस्ट्राल कम हो जाता है, डायबिटीज पर कन्ट्रोल होना शुरू हो जाता हैं एवं सामान्यत: डिटोक्सीफिकेशन होना शुरू हो जाता है।  जो भी हमारे शरीर में कचरा या गंदगी जमा है हमारा शरीर उसे बाहर निकालने की प्रक्रिया में अग्रसर हो जाता है।
इसके अलावा भी उपवास पर काफी शोध हुए हैं। इसमें एक शोध में हमने देखा कि इस उपवास की क्रिया में हमारे शरीर में एक ऐसी सेल्युलर प्रक्रिया है जिसमें लगभग 1 लाख से अधिक सेल्स और कंडक्टर कार्य करने के लिए हमारे शरीर में जुड़े रहते हैं और हमारे जीवन की गतिविधियों की देखरेख करते हैं। उनमें से एक सेल्युलर प्रक्रिया बड़ी है जिसको हम टायरोसिन काइनेज प्रोसेस (Tyrosine Kinase Process) कहते हैं। इसमें एक टायरोसिन काइनेज एंजाइम (Tyrosine Kinase Enzyme)  एंजाइम है जिसको हम इन्बिड करते हैं तो इससे कैंसर पर भी काबू पाया जा सकता है। बहुत सारे मार्डन मेडिसिन की ड्रग्स इसी पाथवे को हिट करती है। तो उपवास के भी बहुत सारे प्रकार हैं कि आप किस तरह का उपवास कर रहे हैं। इनमें तरह के उपवास हैं जिनके  विषय में हम चर्चा करेंगे। सबसे पहला Intermittent Fasting है, जिसमें आप 12 घंटे का उपवास रखते हैं। दूसरा Calorie restriction हैं जिसमें आप खा तो सब कुछ रहे हैं लेकिन इसमें आप कैलोरी को नापतौल कर रखते हैं। तीसरा Timerestricted feeding जिसमें आपने समय निश्चित कर रखा है कि उतनी समय दूरी में नहीं खायेंगे। इसके अलावा आजकल एक नया चलन शुरू हुआ उपवास में, जिसको हम Alternative Day Fasting कहते हैं, जिसमें हम एक दिन में खूब मनपंसद और पूरा दबाकर खा लेते हैं और अगले दिन हम छोड़ देते हैं, उपवास रख लेते हैं फिर खा लेते हैं और फिर उपवास रख लेते हैं। इसके बाद फिर एक लम्बे समय अवधि वाला उपवास होता है जो 7-8 दिन भी हो सकता है या इससे अधिक भी। इसके साथ जो Periodic Fasting हैं, इसमें लोग आजकल लोग क्या कर रहे हैं कि लगभग 3 दिनों तक उपवास किया फिर 2 दिन बहुत सारा भोजन या अन्य चीजें खायी या फिर 7 दिन तक उपवास किया फिर 7 दिनों तक बहुत सारा खाया। आजकल के मार्डन समाज में ये सब अलग-अलग तरीके के उपवास की प्रक्रियाएँ हैं।
तो चलिए जानते हैं कि हमारे पूरे शरीर में जो तंत्र है उन पर उपवास का क्या प्रभाव पड़ता है, जो हमारे लिए आवश्यक भी है। इसमें हमारे शरीर में जो ब्रेन (मस्तिष्क) प्रणाली है वो थोड़ी अच्छी हो जाती है क्योंकि हमारे मस्तिष्क में न्यूरोट्रोफिक फैक्टर (Neurotrophic factor) होते हैं जो मस्तिष्क के हर एक सेल्स को सकारात्मक या हेल्दी फिलिंग देते हैं। उपवास उनकी ग्रोथ को या उनकी मरम्मत को थोड़ा अच्छा करते हैं जिससे हमारा मस्तिष्क बहुत अच्छा हो जाता है। बे्रन के दो सेल्स हैं जिनको हम न्यूरॉन कहते हैं, वे आपस में कनेक्ट होते हैं, एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं। उसे हाथ मिलाने को हम स्नैप्स कहते हैं उस हाथ मिलाने में जितनी ज्यादा ताकत लगती है या जितनी अच्छी प्रकार से ये हाथ मिलाते हैं उसे स्नैपटिक प्लासीसिटी कहते हैं। उपवास से यह स्नैप्टिक प्लासीसिटी अच्छी हो जाती है। जितनी ज्यादा अच्छी प्लासीसिटी होती है उतना ही हमारा ब्रेन (मस्तिष्क) अच्छा रहता है। यह प्रमाणित है की उपवास से स्नैपटिक प्लासीसिटी अच्छी हो जाती है। इससे ब्रेन के फंक्शन अच्छे हो जाते हैं और हम जल्दी सीखने लगते हैं। साथ ही जो सीखा होता है उसे जल्दी रिकॉल भी कर लेते हैं। लर्निंग और मैमोरी की ये दो प्रक्रियाएँ हैं।
एक सेल्यूलर फंक्शन जो पूरे शरीर में होता है किन्तु उपवास के कारण मस्तिष्क में अपेक्षाकृत थोड़ा ज्यादा परिवर्तित होता है उसे हम माइटोकॉन्ड्रियल बॉयोजेनेसिस कहते हैं। हमारे शरीर के प्रत्येक सेल्स में अपना एक पॉवर हाऊस है जहाँ एनर्जी बनती रहती है, उसे हम माईट्रोकोंड्रिआ कहते हैं। यहाँ पर हम एटीपी बनाते हैं जो हमारे एनर्जी की करंसी की तरह काम करते हैं। सामान्य भाषा में हम कह सकते हैं कि जो हमारे सेल्स के काम हैं वो एक सेल्स दूसरे सेल्स को आपस में मुद्रा के रूप में देकर कराते हैं। यह एटीपी माइटोकॉन्ड्रिया में बनती है। हमारी सेल्स में भी नए माइटोकॉन्ड्रिया बनते रहते हैं जिसे हम मायोजेनेसिस कहते हैं। इससे हमें ज्ञात होता है कि हमारी सेल्स कितने माइटोकॉन्ड्रिया कहाँ पर बना रही है। क्योंकि ब्रेन (मस्तिष्क) सबसे ज्यादा एनर्जी कंज्यूम करता है इसलिए मस्तिष्क को माइटोकॉन्ड्रिया की ज्यादा जरुरत होती है और उपवास से यह प्रोसेस भी रेगुलेट होता है। इसके बाद हम आते हैं Cardiovascular system पर। उपवास करने से हार्ट के फंक्शंस भी अच्छे हो जाते हैं। ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। रेस्टिंग हार्ट रेट भी कम हो जाता है और रेजिस्टेंस अच्छा हो जाता है। उसके बाद लेफ्ट इन हार्मोन का लेवल कम हो जाता है जिससे हमें बहुत ज्यादा भूख लगती है, तो फिर हम कम भूख से ही संतुष्ट हो जाते हैं। थोड़ा खाने से भी हमें अच्छी फिलिंग आने लगती है और यदि फैटी टिश्यू ज्यादा हो तो उससे शरीर में सूजन आने के बहुत कारण बढ़ जाते हैं। उपवास से वो भी कम हो जाता है। जहाँ उपवास से फैटी टिश्यू कम हो जाते हैं, तो इन्फलामेशन भी कन्ट्रोल हो जाता है। उपवास रखने से मसल्स में इंसुलिन की सेंसेटिविटी बढऩे से भागदौड़ की क्षमता (एण्ड्योरेंस) बढ़ जाती है। मसल्स के काम करने क्षमता भी बढ़ जाती है। इसके साथ-साथ लीवर में ग्लाईकोजिन का Deleption होता है, कीटोन भी बढ़ जाते है और लीवर में Lipid accumulation भी कम हो जाता है। हमारे फैटी एसिड्स हैं, जो हम फैटी लीवर डिजिज की बात करते हैं, वे सामान्यत: ऐसे फैट्स हैं जो हमारे लीवर में जमा हैं। उपवास से वो भी कम होते हैं और हम सामान्य लीवर फंक्शन की ओर जाना शुरू कर देते हैं।
कुछ लोग सोचते हैं कि अगर हम उपवास करेंगे, खाना नहीं खायेंगे तो हमारी आंतें सुस्त हो जायेंगी। जबकि इसमें उल्टा होता है। जब हम उपवास में होते हैं तो आंतों की गति तेज हो जाती है और उनकी मसल्स भी अच्छी तरह से कार्य करने लगती है। इसके बाद यदि हम ब्लड पर जाते हैं तो इसमें कीटोन लेवल बढ़ते हैं। इसके बाद जो बीमारियां का जो मूल कारण है वह भी कम होना शुरू हो जाता है। इसके साथ-साथ ग्लूकोज, इन्सुलिन, लैपटिन इन तीनों का लेवल भी कम हो जाता है। तो ये सब हमारे शरीर के अलग-अलग तंत्र हैं जो हमारे द्वारा रखे गये उपवास को सपोर्ट करते हैं। इसके अलावा जो भी छोटे जीव-जन्तु हैं, जैसे- चूहे, मक्खी, केचुआ इत्यादि, जो केवल एक सेल्स के बने होते हैं यदि उनको हम खाना दें, उनको केवल कैलोरी restriction पर रखें, तो उनका जीवन चक्र काल 3 गुना तक बढ़ जाता है। इसलिए हमको लम्बा और सुखी जीवन जीना है तो कम खाना चाहिए।
जब हम उपवास में होते हैं तो हमारे शरीर में बहुत सारी चीजें रिपेयर होती रहती हैं। टिश्यू और सेल्युलर लेवल पर हमारे शरीर में बहुत सारा कबाड़ जमा रहता है, उस कबाड़ की सफाई करने का जो कार्य है उसको हम Auto कहते हैं। यह हमारे खराब सेल्स हैं जिनको शरीर निकालकर बाहर फेंकता रहता है। Auto मतलब खुद, phagy मतलब खाना। अर्थात् सेल्स खुद के हिस्से को कन्ज्यूम करना शुरु कर देती हैं। उपवास करने से हमारे शरीर में अन्दर से शुद्धता होनी शुरु हो जाती है। उपवास रखने से डीएनए भी रिपयेर होने लगता है, वजन भी कम हो जाता है, इन्सुलिन भी कम होना, ब्लडप्रेशर भी कम होना, स्टे्रस आदि भी कम हो जाता है और हमारा शरीर ठीक प्रकार कार्य करने लगता है।
तो आईये! सप्ताह में कम से कम एक दिन उपवास (Fasting) को शामिल करें, जिससे हमारा मन, तन सब शुद्ध हो जाये तथा त्वचा निरोगी बनी रहे।

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